झारखण्ड: नक्सली समझकर निर्दोष आदिवासी युवक की हत्या, CRPF ने मानी गलती

रूपेश कुमार सिंह रूपेश कुमार सिंह
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रोशन होरो


झारखंड में 20 मार्च के तड़के साढ़े पांच बजे पुलिस ने 36 वर्षीय आदिवासी रोशन होरो को नक्सली समझकर सीने और सर में गोली मारकर सीआरपीएफ ने हत्या कर दी. यह घटना खूंटी जिला के मुरहू थानान्तर्गत रुमुतकेल पंचायत के एदेलबेड़ा उत्क्रमित मध्य विद्यालय के पास उस समय घटी, जब रोशन होरो घटनास्थल से मात्र डेढ़ किलोमीटर दूर अपने गांव कुम्हारडीह (कुम्हारटोली) से सांडी गांव भैंस का चमड़ा लेकर नगाड़ा बनवाने जा रहा था.

ख़बर है कि, रोशन होरो की पत्नी जोसाफिना होरो ने लाश लेने से मना कर दिया है। उन्होंने खूंटी एसपी को एक आवेदन ग्राम प्रधान से अनुशंसा करा कर भेजा है, जिसमें उनकी 10 सूत्रीय मांगें है:

1. स्व. रोशन होरो के परिवार को तीन करोड़ रूपये मुआवजा दिया जाए,
2. मृतक के तीन आश्रितों को सरकारी नौकरी (सिविल सेवा) उनके इच्छानुसार दिया जाए,
3. पूरी घटनाक्रम का सीबीआई जांच किया जाए,
4. दोषी पुलिसकर्मी को बर्खास्त किया जाए,
5. ग्लेमर मोटरसाइकिल जिसका नं. JH01DP8226 पर पुलिस ने गोली चलाकर क्षतिग्रस्त किया, उसका ऋण अभी बाकी है, को पुलिस-प्रशासन पूरा करे एवं इसके बदले में नया गलेमर मोटरसाइकिल दिया जाए,
6. मृतक के दोनों बच्चों की पढ़ाई रोजगर मिलने तक निजी शिक्षण संस्थानों में किया जाए,
7. मृतक परिवार एवं सभी गवाहों को पर्याप्त सुरक्षा प्रहरी दिया जाए,
8. पूरे 5वीं अनुसूची क्षेत्र में ग्रामसभा के बिना अनुमति के प्रशासन आज से आगे प्रवेश न करे,
9. सभी मांगें पूरी होने पर ही लाश के अंतिम संस्कार के लिए 50 हजार रूपये के साथ स्वीकार किया जाएगा,
10. मुआवजा राशि 3 करोड़ रूपये मृतक के परिजनों का खाता नंबर 459710110003749 बैंक ऑफ इंडिया के मुरहू शाखा में आज ही चेक द्वारा भुगतान किया जाए.

रोशन होरो की माँ रानीमय होरो और पत्नी जोसफिना होरो का कहना है कि 20 मार्च की सुबह रोशन होरो खाल लेकर सांडी गांव नगाड़ा बनवाने के लिए निकला था. वह खेती-बारी कर जीवन यापन करता था. वह आपराधिक छवि का व्यक्ति नहीं था. डेढ़ साल पहले तक वह सीएनआइ चर्च का प्रचारक भी था. उसका छोटा भाई जुनास फौज में है और सबसे छोटा भाई पढ़ाई कर रहा है. उसे तीन छोटी-छोटी बेटियां है, एलिना (12 वर्ष), आकांक्षा (8 वर्ष) और अर्पित (3 वर्ष).

मृतक की माता माँ रानीमय होरो

इस घटना पर खूंटी एसपी आशुतोष शेखर का कहना है कि “गुरुवार (19 मार्च) की रात पीएलएफआइ (पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट ऑफ़ इंडिया) के साथ पुलिस और सीआरपीएफ की संयुक्त टीम की मुठभेड़ हुई थी. शुक्रवार (20 मार्च) की सुबह मुरहू थाना क्षेत्र के कुम्हारडीह गांव के आसपास छापामारी के लिए मुरहू थाना, सैट और सीआरपीएफ की टीम निकली थी. इसी क्रम में बाइक सवार रोशन होरो वहां से गुजर रहा था. छापामारी दल द्वारा उसे रूकने के लिए कहा गया, लेकिन वह बाइक रोककर भागने लगा. नहीं रूकने पर गोली चला दी गयी, जिससे उनकी मौत हो गयी.

मृतक रोशन होरो का कोई आपराधिक इतिहास नहीं है. झारखंड पुलिस मृतक के परिजनों के साथ है. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के दिशा-निर्देश के आलोक में हरसंभव सहयोग करेंगे. घटना की मजिस्ट्रेट जांच करायी जाएगी”

झारखंड पुलिस के आइजी अभियान साकेत कुमार सिंह का कहना है कि “प्रथम दृष्टया मामला मानवीय भूल का लगता है. गुरुवार रात उग्रवादी दस्ते की मौजूदगी की सूचना पर अभियान शुरु हुआ था. शुक्रवार को दूसरी टुकड़ी अभियान में शामिल हुई, इसी दौरान घटना हुई. पुलिस मामले की स्वतंत्र एजेंसी से जांच करायेगी.”

वहीं इस घटना पर झारखंड के नवनियुक्त डीजीपी एमवी राव कहते हैं – “पुलिस ने गलतफ़हमी में गोली चलायी है. किसी की हत्या का इरादा नहीं था. दोषी पुलिसकर्मियों पर केस दर्ज करने का निर्देश दे दिया गया है. केस दर्ज कर कार्रवाई की जाएगी. किसी को भी नहीं बख्शा जाएगा.” इनका कहना है कि पुलिस पूरे मामले में किसी तरह की लीपापोती नहीं कर रही है. पूरे मामले की जांच भी करायी जाएगी और सरकार के नियमानुसार भुक्तभोगी के परिवारवालों को हर संभव सहायता की जाएगी.

पुलिस के अनुसार रोशन होरो के शव का मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में डाॅक्टरों की एक टीम द्वारा पोस्टमार्टम भी कर दिया गया है और इसकी वीडियोग्राफी भी करायी गयी है.

वैसे तो इन पुलिस अधिकारियों के बयान में काफी झोल नजर आता है और पुलिस की कार्यपद्धति पर भी काफी सवाल खड़े होते हैं. नक्सल ऑपरेशन के दौरान ऑपरेटिंग स्टैंडर्ड प्रोसिजर (ओएसपी) कहता है कि बिना हथियार देखे किसी पर गोली नहीं चलानी है, तो फिर इस ओएसपी का पालन वहीं पर क्यों नहीं किया गया? इस अभियान का नेतृत्व सीआरपीएफ की 94वीं बटालियन के टूओसी और खूंटी के एएसपी अनुराग राज कर रहे थे, तो क्या इन्होंने गोली चलाने की अनुमति दी थी ?

पुलिस रोशन को दौड़कर भी पकड़ सकती थी या फिर पैर पर गोली मारकर घायल कर सकती थी, लेकिन सीधा सर व सीने पर गोली क्यों मारी गयी ? क्या किसी पर भी नक्सली होने का संदेह होने पर सीधा गोली मारने का अधिकार हमारे पुलिस के पास है?

रोशन होरो के पास भैंस का चमड़ा था, उन्हें लगा होगा कि पुलिस के पास पकड़ाने पर उसे फंसाया जा सकता है, इसीलिए वह बाइक छोड़कर भागने लगा और पुलिस ने उनके सर और सीने को निशाना बनाते हुए तीन गोली चलाई, जिसमें दो गोली उन्हें लगी. तो सवाल उठता है कि क्या पुलिस ने उसे पकड़ने के लिए गोली चलायी या मौत की नींद सुलाने के लिए ? यह घटना नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में पुलिस द्वारा चलाये जा रहे अभियानों में तमाम कायदे-कानूनों को धता बताने की एक बानगी मात्र है, जिसमें इनकी पोल खुल गयी है और पुलिस अधिकारी गलती स्वीकार कर रहे हैं.


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