इतनी कम जांच और ऐसी लापरवाही के साथ कोरोना से कैसे जीतेगा झारखंड ?

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आसिफ़ असरार

जब देश के ज़्यादातर राज्य कोविड-19 के चपेट में आ चुके थे, तब झारखंड उन एक्के दुक्के राज्य में से एक था जहां कोरोना से संक्रमित एक भी मरीज़ नहीं मिला था. लेकिन यह स्थिति ज्यादा देर तक न रही. झारखंड में कोरोना से संक्रमित पहले केस की पुष्टि 31 मार्च को स्वास्थ्य सचिव डॉ नितिन मदन कुलकर्णी द्वारा की गयी. इसके बाद राज्य में बहुत तेज़ी से संक्रमण फैलने लगा है. 30 अप्रैल दोपहर तक प्रदेश में कुल 108 पॉजिटिव मामले हैं. जिसमे से राजधानी रांची में 78 मामले सामने आये हैं.

आपको बता दें कि झारखंड में सोमवार को सबसे अधिक 21 कोरोना पॉजिटिव मामले सामने आये थे.

मौजूदा वक़्त में कुल मरीजों में 85 एक्टिव केस हैं. वहीं 19 ठीक हो चुके हैं और अब तक राज्य में तीन कोरोना संक्रमित मरीजों की मौत हो चुकी है.

झारखंड में दिन प्रतिदिन मामले बढ़ते जा रहे हैं लेकिन जांच की रफ्तार उतनी ही धीमी है. झारखंड में चार अस्पतालों में कोरोना सैंपल की जांच की जा रही है. रांची के रिम्स की 300 जांच की क्षमता है, एमजीएम जमशेदपुर की 150, पीएमसीएच धनबाद की 50 और यक्ष्मा आरोग्यशाला इटकी की 50 जांच की क्षमता है.

कोविड-19 इंडिया की वेबसाइट के मुताबिक, 29 अप्रैल तक राज्य में 11381 सैंपल लिए जा चुके हैं. जिसमें से 10268 सैंपल की जांच की जा चुकी है. वहीं 1113 सैंपल की अभी भी जांच होना बाकी है.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, झारखंड में औसतन 223 जांच प्रतिदिन हो रही है. जिसे विशेषज्ञ नाकाफ़ी बताते हैं.

कोरोना संक्रमण के गहराते साये को देखते हुए केंद्र सरकार ने पूरे देश में तालाबंदी करने का फैसला लिया है. आपको बता दें कि जब झारखंड में एक भी कोरोना संक्रमित मरीज नहीं था और केंद्र सरकार ने भी जब सम्पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा नहीं की थी. उससे पहले ही राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने झारखंड में लॉकडाउन का ऐलान कर दिया था.

जानकार बताते हैं कि यदि हमें इस बीमारी को मात देना है तो सिर्फ लॉकडाउन करना काफी नहीं है, बल्कि इसके साथ ही ज्यादा से ज्यादा लोगों की जांच भी करनी होगी.

झारखंड में 31 मार्च को कोरोना का पहला मामला रांची के हिंदपीढ़ी में पाया गया था. इसके बाद हिंदपीढ़ी राज्य का सबसे बड़ा हॉट स्पॉट बन चुका है. करीब एक महीने के बाद भी यहां कोरोना के मरीज बढ़ते जा रहे हैं. रांची के हिंदपीढ़ी से अभी तक कुल 54 संक्रमित मामले पाए गए हैं.

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने एक इंटरव्यू में कहा है कि, आज हम मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी से नहीं घबरा रहे. उन्होंने यह भी कहा, हमारी कोशिश है ज्यादा से ज्यादा संक्रमितों की पहचान हो पाए ताकि हम उन्हें समूह से अलग कर उचित व्यवस्था करें और उनका सही उपचार करें.

लेकिन जब हम राज्य में वेंटिलेटर, आईसीयू, डॉक्टरों व नर्सों की संख्या की तरफ नज़र डालते हैं तो कहानी कुछ और ही नज़र आती है.

झारखंड में कुल 24 ज़िलें हैं, जिसमें से अब तक 21 जिलों में जांच को लेकर कोई बंदोबस्त नहीं है. झारखंड के देवघर, गढ़वा, गिरिडीह, सिमडेगा, बोकारो, हज़ारीबाग़ और कोडरमा ऐसे ज़िलें हैं जहां से कोविड-19 के पोसिटिव मरीज़ मिले हैं, लेकिन इन जिलों में भी जांच संबंधित कोई व्यवस्था नहीं है.

झारखंड में रविवार को संक्रमण के 15 नए मामले सामने आये, जिसमें 13 रांची और दो गढ़वा ज़िलें के मरीज़ शामिल हैं. इन संक्रमितों में रांची सदर अस्पताल की चार नर्स और एक महिला गॉर्ड शामिल हैं.

बताया जा रहा है कि उक्त नर्सों ने जिस महिला का प्रसव कराया था वह कोरोना संक्रमित पाई गयी थी. हालांकि यह पहला मामला नहीं है जब अस्पताल के स्वास्थ्यकर्मी किसी संक्रमित मरीज़ के संपर्क आये हों.

राजधानी रांची के राजेन्द्र आयुर्विज्ञान संस्थान (रिम्स) के गायनी वार्ड में भर्ती एक महिला ने बुधवार को सिजेरियन ऑपरेशन से बच्चे को जन्म दिया. गुरुवार को पता चला कि महिला कोरोना पॉजिटिव हैं. महिला के संपर्क में 30 से अधिक डॉक्टर, नर्स और कर्मचारी आए थे. इसके बाद रिम्स प्रबंधन ने सभी को क्वारेंटाइन करने की बात कही.  लेकिन शुक्रवार को शाम पांच बजे तक गायनी वार्ड खुला था. मरीज भी भर्ती थे. नर्स और बाकी कर्मचारी भी काम कर रहे थे.

इस घटना के बाद रिम्स निदेशक डॉ डीके सिंह ने शुक्रवार शाम को गायनी वार्ड को बंद करने का आदेश दिया. लेकिन किसी डॉक्टर, नर्स और कर्मचारियों को क्वारेंटाइन नहीं किया.

खबरों के मुताबिक,  रिम्स निदेशक ने कहा कि, गर्भवती महिला के ऑपरेशन में डॉक्टर, नर्स सहित करीब 30 लोगों का योगदान रहता है. ऐसे में सभी को क्वारेंटाइन कर दिया तो मरींजों को कौन संभालेगा. संक्रमण का असर पांच दिन में दिखने लगता है. ऐसे में 27 अप्रैल को सभी का सैंपल लिया जाएगा. इसके बाद ही उन्हें क्वारेंटाइन किया जाएगा.

मजबूरी का हवाला देकर संक्रमित के संपर्क में आये स्वास्थ्यकर्मियों को क्वारंटाइन नहीं करना इस वक़्त की सबसे बड़ी लापरवाही साबित हो सकती है.

क़रीब साढ़े तीन करोड़ की आबादी वाले राज्य में डॉक्टरों की आधे से ज्यादा पद खाली हैं. सरकारी डॉक्टरों, नर्सों, टेक्नीशियन की भारी किल्लत है. प्रदेश में 3378 चिकित्सक पद हैं लेकिन इसमें फिलहाल 1524 ही डॉक्टर सेवा दे रहे हैं. वहीं रिम्स की बात करें तो अस्पताल की क्षमता 2400 नर्सों की बताई जाती है, जबकि महज़ 450 से भी कम नर्स काम कर रही हैं.

विशेषज्ञ बताते हैं कि कोविड-19 की जंग में किसी भी देश या राज्य में वेंटिलेटर और आईसीयू की व्यवस्था बेहद ज़रूरी है. लेकिन खनिज पदार्थों से समृद्ध झारखंड, स्वास्थ्य व्यवस्था के मामले में समृद्ध नज़र नहीं आता है.

बताते चले कि, राज्य के किसी भी जिला अस्पताल में वेंटिलेटर की व्यवस्था नहीं है. प्रदेश के सरकारी और गैर-सरकारी अस्पतालों को मिलाकर मात्र 350 ही वेंटिलेटर बताए जा रहे हैं. ऐसे में झारखंड में लगभग 73 हजार लोगों पर एक ही वेंटिलेटर है. यदि हम प्रदेश के आईसीयू सेवा की तरफ नज़र डालें तो आईसीयू की सुविधा सिर्फ 14 जिलों के अस्पतालों में ही है.

साल 2018 में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, स्पेशलिस्ट डॉक्टरों और तकनीकी सुविधाओं की कमी के चलते हर महीने करीब 8000 मरीज़ दूसरे राज्यों में इलाज के लिए रेफर किये जाते हैं.

साल 2019 में जनवरी से लेकर दिसंबर तक संसाधनों की कमी और लापरवाही से रांची के रिम्स में भर्ती होने वाले 1150 बच्चों की मौत इलाज के दौरान हो गई. इस पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ट्वीट कर मामले को अत्यंत दुःखद बताया हए झारखंड की स्थिति को बदलने का वादा किया था.

लापरवाही और झारखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था कभी एक दूसरे से जुदा नहीं हो सकती.

झारखंड में कई ऐसे मामले देखे गए जहां संदिग्धों का सैंपल लेकर आइसोलेशन में रखने या क्वारंटाइन करने के बजाय उन्हें वापस घर भेज दिया जा रहा है.

इस सिलसिले में हमनें रांची के एक युवक से बात की. नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने बताया कि, रिम्स के कोरोना सेंटर में युवक का सैंपल लिया गया. फिर उसे दो दिन के बाद रिपोर्ट के लिए बुलाया जाता है. उसे होम क्वारेंटाइन रहने की भी हिदायत नहीं दी जाती है. युवक बिना किसी डर के अपने परिवार के साथ रहता है. किराना दुकान से सामान खरीदता है. यहां तक कि अपने दोस्तों से मिलता है.

रिपोर्ट के संबंध में चिकित्सकों के दिए गए नंबर पर दो दिन बाद फोन करता है. फ़ोन करने पर उसे बताया जाता है कि, रिपोर्ट नहीं आई है कल तीन बजे शाम में फोन कर लीजिएगा. तीसरे, चौथे और पांचवे दिन तक युवक को यही जवाब मिलता है कि अभी तक आपकी रिपोर्ट नहीं आई है.

युवक ने आगे बताया कि, वह तंग आकर रिम्स के निदेशक को फोन करता है. निदेशक उन्हें करोना सेंटर में फोन करने की हिदायत देते हैं.

निदेशक के बाद युवक रिम्स अधीक्षक को फोन करता है. अधीक्षक पूछते हैं, कब कराए थे जांच… अच्छा रविवार को… आज तो गुरुवार हो गया.  दुःखी मन से अधीक्षक युवक से कहते हैं क्या कीजिएगा. बहुत दबाव है. क्षमता है 200 सैंपल जांचने की. रोज आ जा रहे हैं 1200 सैंपल. लड़का सैंपल देने के छह दिन बाद भी यूं ही घूम रहा था. युवक ने बताया कि उसे रिपोर्ट जांच के सातवें दिन मिली. रिपोर्ट नेगेटिव आयी.

कोरोना वायरस से निपटने के लिए रिम्स प्रबंधन की तैयारियों को जानने के लिए हमने मंगलवार को रिम्स निदेशक डॉ. डीके सिंह से बात की. हमने उसने जांच रिपोर्ट आने में देरी को लेकर सवाल किया तो उन्होंने बताया कि, आम तौर पर 7-8 घंटे लगते हैं जांच रिपोर्ट आने में. अस्पताल की क्षमता से ज़्यादा सैंपल आ रहे हैं जिसके कारण बैकलॉग बढ़ जा रहा है. अभी हमारे यहां चार दिन का बैकलॉग है.

रिम्स निदेशक से जब हमने पूछा कि, लॉक डाउन के बाद वेंटिलेटर के नंबर में कोई इज़ाफ़ा हुआ है क्या ? सिंह के मुताबिक रिम्स में 30 के करीब वेंटिलेटर है, लेकिन फिलहाल काम के 12 ही वेंटिलेटर हैं. इतने ही वेंटिलेटर पहले भी थे इतने ही आज भी हैं.

उन्होंने यह भी बताया कि, रिम्स में मैनपावर की खासी कमी है. अस्पताल में 450 से भी कम नर्स बची हैं. जिसके कारण अगर संक्रमितों की संख्या बढ़ती हैं तो मामला बिगड़ सकता है.

झारखंड में कोरोना वायरस को लेकर सरकार की क्या तैयारी है और इस बीच होने वाली लापरवाही के बारे में हमने राज्य के स्वास्थ्यमंत्री बनना गुप्ता से कुछ सवाल किये.

राज्य में इतने कम जांच क्यों हो रहे हैं? इस सवाल का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा, ‘झारखंड में 5 केंद्रों में टेस्ट हो रहे हैं. हम लगातार केंद्र सरकार से मांग कर रहे हैं कि ज्यादा से ज्यादा कोरोना टेस्ट केंद्र खोलने की अनुमति दे ताकि बड़े पैमाने पर जांच हो सके. हमने हजारीबाग, दुमका और गुमला में भी जांच केंद्र शुरू करने की मांग की है’.

संसाधनों की कमी के मुद्दे पर मंत्री बनना गुप्ता ने बताया कि, प्रधानमंत्री और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के साथ कई बार वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से हमनें और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेंग ने वेंटिलेटर, पीपीई किट समेत अन्य टेस्टिंग उपकरण की मांग की हैं, लेकिन हमें सहयोग नही मिल पा रहा है. हमें आर्थिक सहायता भी बहुत कम मिल रही हैं. रही बात अन्य जिलों में जांच केंद्र की तो राज्य सरकार ने नए जांच केंद्र के लिए अनुमति मांगी है. तब तक विभिन्न जिलों को ज़ोन में बांटकर टेस्ट किया जा रहा हैं’.

हमने उनसे यह भी पूछा कि अगर झारखंड में संक्रमितों की संख्या बढ़ती है तो सरकार की उसके लिए क्या तैयारियां हैं ? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि, ‘झारखंड सरकार पूर्ण रूप से तैयार ह. हमने आपात स्थिति के लिए प्राइवेट अस्पतालों, होटलों, शिक्षण संस्थानों समेत अन्य संसाधनों की वैकल्पिक व्यवस्था कर रखी हैं. विषम परिस्थितियों में भी हम आवश्यक तैयारी के साथ कोरोना से लड़ेंगे और इसके लिए हम तैयार हैं’.

हालांकि हमने स्वास्थ्य विभाग द्वारा बरती जा रही लापरवाही पर भी सवाल किये लेकिन राज्य स्वास्थ्य मंत्री बनना गुप्ता ने इसपर कुछ नहीं कहा.


आसिफ़ असरार स्वतंत्र पत्रकार हैं।


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