बुद्धिजीवियों का निंदा बयान: उमर की गिरफ़्तारी संविधान समर्पित युवाओं को डराने की कोशिश!

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जेएनयू के पूर्व छात्रनेता और मानवाधिकार कार्यकर्ता उमर ख़ालिद की गिरफ़्तारी की तमाम बुद्धिजीवियों और समाजिक कार्यकर्ताओं ने कड़ी निंदा की है। इस सिलसिले में एक बयान भी जारी किया गया है, जिसे आप नीचे पढ़ सकते हैं-

हम उमर ख़ालिद की गिरफ़्तारी की निंदा करते हैं जो हमारी सबसे साहसी युवा आवाज़ों में एक है, जो हमारे देश के संवैधानिक मुल्यों के प्रति हमेशा मुखर रहता है। हम उमर ख़ालिद की तुरंत रिहाई की माँग करते हैं। दिल्ली पुलिस आंदोलनकारियों का दुर्भावनापूर्ण शिकार बंद करे।

बतौर, संवैधानिक मूल्यों के प्रति समर्पित नागरिकों के हम उमर ख़ालिद की गिरफ़्तारी की निंदा करते हैं जिसे दुर्भावनापूर्ण जाँच का शिकार बनाया गया है। यह जाँच दरअसल सीएए विरोधी शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों को निशाना बना रही है। उमर के खिलाफ यूएपीए, राजद्रोह, हत्या की साज़िश रचने जैसे आरोप लगाये गये हैं। हम गहरी पीड़ा के साथ नि:संदेह यह कह सकते हैं कि यह जाँच फरवरी 2020 में राष्ट्रीय राजधानी में हुई हिंसा की नहीं, बल्कि देश भर में असंवैधानिक सीएए के ख़िलाफ हुए पूरी तरह शांतिपूर्ण और लोकतांत्रिक प्रदर्शन की हो रही है।

उमर खालिद उन सैकड़ों आवाज़ों में एक है जिन्होंने सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान पूरे देश में संविधान के पक्ष में आवाज़ उठायी और हमेशा शांतिपूर्ण, अहिंसक और लोकतांत्रिक तरीकों पर जोर दिया। उमर खालिद संविधान और लोकतंत्र के पक्ष में उठने वाली एक शक्तिशाली युवा आवाज़ के रूप में उभरकर सामने आया। दिल्ली पुलिस की ओर से दिल्ली हिंसा को लेकर उसे बार-बार फ़र्ज़ी मामलों मे फँसाने की कोशिश दरअसल असहमति की आवाज़ को दबाने का प्रयास है। यह ग़ौरतलब है कि अब तक हुई 20 गिरफ़्तारियों में 19 लोग 31 साल से कम उम्र के हैं जिनमें 17 पर दमनकारी यूएपीए लगाकर दिल्ली में हिंसा फैलाने के आरोप में जेल भेज दिया गया जबकि जिन्होंने वाकई दिल्ली में हिंसा भड़काई और इसमें शामिल रहे, उन्हें छुआ भी नहीं गया। जिन्हें गिरफ़्तार किया गया उनमें पाँच महिलाएँ भी हैं और एक को छोड़ सभी छात्रा हैं।

अंतरात्मा की आज़ादी हमारे लोकतंत्र का सार है और किसी भी देश की शक्ति उसके युवा मस्तिष्क होते हैं। हम उमर ख़ालिद और अन्य महिला-पुरुष कार्यकर्ताओं को निशाना बनाने की कड़ी निंदा करते हैं। जीवन के अधिकार मे केवल खाना, जीना और साँस लेना ही शामिल नहीं है, इसमें निर्भय, गरिमापूर्ण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ जीना भी शामिल है,असहमति के साथ।  दिल्ली पुलिस जिस तरह से जाँच कर रही है, उसका मक़सद लोकतांत्रिक आवाज़ों को ख़ामोश और भयभीत करना है। इस तरह लोगों को निशाना बनाने के पीछे यही सोच काम कर रही है।

अदालत परिसर में कन्हैया कुमार पर हुए हमले और 2018 में उमर ख़ालिद पर सरेआम चली गोली की याद करते हुए हम माँग करते हैं कि उमर की ज़िंदगी की हिफ़ाज़त के लिए सभी ज़रूरी क़दम उठाये जाने चाहिए जब तक वह सरकार या न्यायपालिका की हिरासत में है। अदालत ने यह भी पाया है मीडिया ट्रायल के फेर में फ़र्ज़ी ख़बरें और चुनिंदा जानकारियाँ लीक की जाती हैं और यह न्याय की प्रक्रिया को प्रभावित करने का प्रयास होता है।  इसे हर हाल में रोकना चाहिए। अगर कानून अपना काम करेगा तो हमें विश्वास है कि न्याय ज़रूर होगा।

हस्ताक्षर

रवि किरण जैन, वी.सुरेश, मिहिर देसाई, एन.डी.पंचोली, सतीश देशपांडे, मैरी जॉन, अपूर्वानंद, आकार पटेल, हर्ष मंदर, फ़राह नक़वी, बिराज पटनायक, नंदिनी।