राजस्थान के खेतों को ज़िंदा निगल चुके टिड्डी प्लेग को राष्ट्रीय आपदा कब कहेगी सरकार?



ओमप्रकाश इन दिनों अपने खेत में ही बैठे रहते हैं. जिस छह बीघे के खेत की मेढ़ पर वह बैठे हैं उसमें 50 हजार रुपये का कर्ज लेकर सरसों की बिजाई की थी. महंगे खाद-बीज और खेत की लगातार देखभाल के कारण सरसों को हरा और पीला रंग चढ़ा था लेकिन 21 जनवरी की रात को हुए टिड्डियों के हमले के बाद सरसों के पास सिर्फ रंगत बच गई, दाना नहीं. दाने को उस रात टिड्डियों ने सिर्फ आधे घंटे में ही चट कर दिया था. टिड्डियों से बचाव करने के लिए सरकार ने न तो उन्हें कोई दवाई दी और फसल बर्बाद होने के बाद न ही कोई मुआवजा. 

आज इतने दिनों बाद, उनके गांव में जोधपुर से तीन वैज्ञानिकों का एक दस्ता पहुंचा है जो किसानों से यह समझने की कोशिश कर रहा है कि टिड्डियां एकदम आकर कैसे फसलों को चट कर जाती हैं. एक किसान अपने हाथ में मरी हुई टिड्डी को उन अधिकारियों को दिखा रहा है और टिड्डी का शरीर विज्ञान देहाती भाषा में समझाने की कोशिश कर रहा है। यह किसान गांव का सरपंच भी है।

राजस्थान के बीकानेर जिले से करीब 120 किलोमीटर दूर पाकिस्तान की सीमा के पास खाजूवाला ब्लॉक के नहरी गांव. इन गांवों के चक-बीडी और गणित के अक्षरों जैसे नाम हैं ऐसा इसलिए क्योंकि पिछली सदी में ही पंजाब की सतलुज नदी से यहां नहर लायी गयी। नहर के आने के बाद पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के दूसरे इलाकों के लोगों ने यहां आकर जमीन खरीदी और नहरी-खेती ढाणियों का विकास हुआ। यहां दूर-दूर तक फैली छोटी-छोटी ढ़ाणियां (बस्तियां) हैं जिनके बीच के नहरी मुरब्बों में खड़ी बिन दाने की सरसों, तारामीरा, चने और गेंहू टिड्डियों द्वारा उजाड़े जाने के बाद भी वृहद हरियल दृश्य निर्मित कर रही हैं. मगर इन फसलों को नज़दीकी से देखने पर हरियाली की इस तस्वीर से किसान की विरह की आवाज़ सुनाई देती है.

जब भी गांव में कोई अनजान गाड़ी आकर रुकती है तो अवतार सिंह अपना खेत छोड़कर इस उम्मीद में उस गाड़ी के पास आकर खड़े हो जाते हैं कि सरकार की तरफ से कोई राहत आयी है। खेत में हुए टिड्डियों के हमले के बाद से ही टिड्डी मारने की सरकारी दवाई और सरकारी राहत का इंतजार कर रहे अवतार सिंह के खेतों में खड़ी सरसों, तारामीरा, चने और गेहूं की फसल बिल्कुल नष्ट हो गई है. जब हम उनके खेत में पहुंचे तो उनके पड़ोसी किसान भी अपनी फसलें हमें दिखाने के लिए आ गए। लगभग हर किसान के खेत में टिड्डियों ने नुकसान पहुंचाया था। वहां खड़े किसान गुरदीप सिंह ने पश्चिम दिशा की तरफ उंगली करके भारत पाकिस्तान बॉर्डर की तारबन्द सीमा दिखाते हुए कहा, “बॉर्डर के उस पार से पछुआ(पश्चिम से आने वाली हवा) जब चलती है तो टिड्डियों के पूरे झुंड के झुंड उस हवा के साथ आते हैं और हमारे खेतों में पड़ाव डाल लेते हैं। जिस खेत में पड़ाव डालते हैं उसको तो सफाचट समझो। फसल के फल पर ही अटैक करती हैं ये। दिक्कत ये है कि जो ये टिड्डियों वाला डिपार्टमेंट है, इसके पास थोड़ी बहुत दवाई होती है जो अपने चहेतों को बांटकर चले जाते हैं। कोई मशीन तो है नहीं इनके पास। किसान ही अपने ट्रैक्टरों की मदद से थोड़ा बहुत छिड़काव कर पाते हैं जोकि बिल्कुल नाकाफी है।”

सरकारी राहत को लेकर वहां खड़े सभी किसान असंतुष्ट हैं। नवंबर और दिसंबर के महीने में बोयी गयी रबी की फसल सरसों, तारामीरा, चने, इसबगोल, जीरा, गेंहू, छोले आदि में टिड्डियों ने काफी नुकसान पहुंचाया है। पश्चिमी राजस्थान में इस बार बड़े पैमाने पर टिड्डियों के हमले से बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर, जालौर और सिरोही सबसे ज्यादा प्रभावित जिले हैं जहां तीन लाख हेक्टेयर ज़मीन पर टिड्डियों का हमला हुआ है.

वहां खड़े खाजूवाला के किसान संघ के प्रतिनिधि संभु सिंह सरकारी राहत को लेकर अपनी नाराज़गी जाहिर करते हुए कहते हैं, “खाजूवाला के इलाके में आपको 25 बीघा वाले किसान मिलना आम बात है। 5 बीघे का एक हेक्टेयर होता है और सरकार अधिकतम 2 हेक्टेयर के लिए ही मुआवजा जारी कर रही है। यानी अगर मुआवजा मिला भी तो सिर्फ 10 बीघे का 27 हजार। बाकी 15 बीघे का क्या होगा भाई। 27 हजार रुपए से तीन-गुणा तो लोग अपनी फसल उगाने में खर्च कर चुके हैं। तो ये मुआवजा वगैरा भी किसानों को कोई राहत पहुंचाने वाला नहीं है और न ही अभी ये सभी किसानों को मिला है। कुछ किसानों को छोड़ दें तो ज्यादातर किसान सरकारी राहत की बाट जोह रहे हैं।”

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि प्रदेश के आपदा प्रबंधन एवं सहायता विभाग की ओर से 24 जनवरी तक 46 हजार 400 किसानों को 77.24 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया गया है। मुआवजे की इस लिस्ट में राजस्थान के 11 प्रभावित जिलों में से 6 जिलों के प्रभावित किसान ही शामिल हैं। सरकार का कहना है कि प्रभावित क्षेत्रों की गिरदावरी जारी है और रिपोर्ट आने के तीन दिन भीतर ही मुआवजा किसानों के खातों में भेज दिया जाएगा।

अवतार सिंह की 15 बीघा सरसों, 10 बीघा चना और 20 बीघा तारामीरा की फसल को टिड्डियाँ बिल्कुल सफाचट कर चुकी हैं। अपनी सरसों का एक बूटा उखाड़कर दिखाते हुए अवतार सिंह कहते हैं, “बस इस बूटे की ये हरी डंडी ही बची है। न इसपर सरसों की फली बची है और न ही पत्ता। यही हाल मेरे तारामीरा और चने का है। मैं यह नहीं कह रहा कि गांव में दवाई पुगी नहीं। दवाई पुगी है, लेकिन उनके पुगी है जिन्होंने अधिकारियों की जेबें मोटी की हैं। हमारे तक न तो दवाई पहुंची है और न ही कोई मुआवजा.”

अवतार सिंह के पास ही सर पर गेरुआ रंगा पटका सजाए उनके पिताजी हरि सिंह खड़े हैं जिनकी आंखों की कोर में जड़े छोटे से आंसू से टकराकर सूर्य की किरणें अजीब सी चमक पैदा कर रही हैं। वह अपने उस आंसू को छुपाते हुए कहते हैं, “किधर जाइये हूण.. ना तां असी खेती करण जोगे रहे.. अर ना ही छड्डन जोगे..” जमीन पर नज़र गड़ाते ही उनकी बाएं आंख से आंसू बह निकलता है और उनके सफेद रंग के कुर्ते में गायब हो जाता है।

राजस्थान में टिड्डी हमलों का एक इतिहास रहा है और इससे पहले भी किसान इनसे प्रभावित रहे हैं। बीकानेर जिले के किसान प्रतिनिधि चेतनराम गोदारा याद करते हैं, “वह साल 1993 था जब इस तरह का हमला हुआ था। काफी बड़ा हमला था, फिर भी नुकसान इस बार से कम ही था। उसकी एक वजह उस समय सरकारी टिड्डी नियंत्रण विभाग की सक्रियता थी। उस समय इस विभाग में कर्मचारी भी होते थे लेकिन अब न तो कर्मचारी हैं और न कोई ढंग के इंतजामात। टिड्डियों का हमला पिछले साल खरीफ की फसलों से ही शुरू हो गया था। उस समय भी राजस्थान और गुजरात के सीमावर्ती इलाके टिड्डियों के हमले की चपेट में थे। खरीफ की फसल के दौरान हुए हमलों से ही सरकार को तैयारी शुरू कर देनी चाहिए थी, लेकिन तैयारी न होने के कारण ही अब जब बड़ा हमला हुआ तो सरकार अपर्याप्त से प्रयास कर रही है। किसानों ने अपने स्तर पर बहुत मेहनत करके ट्रैक्टरों से स्प्रे करके और पीपे, ढोल बजाने जैसी गतिविधियों से टिड्डियों को भगाने की कोशिश की है.”

जिस टिड्डी ने फसलों पर हमला किया है इसे डेजर्ट लोकस्ट यानी रेगिस्तानी टिड्डी कहा जाता है जिसका प्रकोप दुनिया के रेगिस्तानों में रहते आया है। चेतनराम गोदारा आगे बताते हैं, “ये टिड्डी जहां पड़ाव डालती है वहां किसानों की फसलों को चट करने के अलावा अपने अंडे छोड़ देती है और वो अंडे 15 दिन में ही फाका बनकर उड़ने लायक हो जाते हैं। इसलिए यह कहना अभी नासमझी है कि टिड्डियों पर पूरी तरह से नियंत्रण पा लिया गया है। अभी तो टिड्डियों के हमले की संभावनाएं बरकरार हैं। ईरान, पाकिस्तान, अफगानिस्तान और अन्य मरुस्थलीय देशों में टिड्डियाँ अभी भी सक्रिय हैं जो गर्मियों में खरीफ की फसलों में भी नुकसान करेंगी।”

पिछले साल से लगातार फसलों को नुकसान पहुंचा रही टिड्डियों को अब पाकिस्तान और सोमालिया ने ‘राष्ट्रीय आपात’ घोषित कर दिया है. पर्यावरण मामलों के जानकार जितेन्द्र इस हमले में जलवायु परिवर्तन की बड़ी भूमिका बताते हैं. वह कहते हैं, “टिड्डियों का हमला अरब सागर में चक्रवातों की आवृत्ति में वृद्धि के साथ जुड़ा हुआ है. जून 2019 में, भारत में पड़ने वाले थार रेगिस्तान में अप्रत्याशित बारिश हुई, जिसकी वजह से टिड्डियों को अपने अंडे देने के लिए अनुकूल परिस्थितियां मिल गईं. आमतौर पर, दक्षिण पश्चिम मानसून 1 जुलाई को पश्चिमी राजस्थान में पहुंचता है. लेकिन इस बार मानसून ने जून के महीने में ही राजस्थान के बाड़मेर जिले और थार के हिस्सों में बारिश के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए. जिसकी वजह से थार में टिड्डियों ने बहुत अधिक मात्रा में प्रजनन किया. इसके बाद लगातार जुलाई में भी बारिश हुई, जिससे टिड्डियों को प्रजनन के लिए रेत में नमी की आवश्यकता की पूर्ति लगातार होती रही. टिड्डियां सूखे रेगिस्तानों में भी प्रजनन करती हैं लेकिन गर्मी के कारण उनके बच्चे अंडे से बाहर नहीं आ पाते हैं. इस बारिश के कारण रेगिस्तानी वनस्पतियां भी लहलहा उठीं जोकि टिड्डियों की खुराक बन गई. टिड्डियां आमतौर पर नवंबर तक भारत से चली जाती हैं. क्योंकि नवंबर 2019 में नौ दिन हुई बारिश की वजह से 2019 में ऐसा नहीं हुआ और वे जनवरी 2020 तक डटी रहीं.”

1950 के दशक के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है जब टिड्डी प्लेग (जब दो से अधिक निरंतर वर्षों के लिए झुंड का हमला होता है, तो इसे प्लेग कहा जाता है) के भयानक खतरे हमारे सामने हैं.

मौजूदा हमले में पहली बार टिड्डियां साल 2019 के मई महीने के अंत में जैसलमेर में देखी गई थीं. उस समय किसानों ने सरकार और प्रशासन को आगाह भी किया था लेकिन प्रशासन ने ढिलाई बरती. जिसकी वजह से टिड्डियों का प्रकोप इस स्तर तक पहुंच गया है. नाम न छापने की शर्त पर राजस्थान के एक कृषि वैज्ञानिक बताते हैं, “मई 2019 में पहली बार आई टिड्डियों की यह तीसरी पीढ़ी है. टिड्डी तेजी से प्रजनन करती हैं. पहली बार प्रजनन से संख्या में 20 गुना वृद्धि होती है, दूसरी बार से 400 गुणा और तीसरी बार करने से 16,000 गुणा वृद्धि होती है.”

वह आगे बताते हैं, “आनन-फानन में टिड्डियों के हमले को रोकने के लिए प्रशासन ने सबसे घातक कीटनाशकों में से एक ऑर्गनोफॉस्फेट्स (ओपी) का उपयोग किया है, जोकि रेगिस्तान की वनस्पति के साथ-साथ किसानों की अगली फसलों पर भी प्रभाव डालने वाला है. ऑर्गनोफॉस्फेट उन रसायनों का एक समूह है जोकि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इंसानों पर रासायनिक हमले करने के लिए विकसित किया गया था, हालांकि हमने प्रशासन से अनुरोध कर इसकी कम मात्रा का उपयोग होने दिया है.”

किसानों से इतर सरकारी अधिकारी कुछ और ही दावे कर रहे हैं। खाजूवाला ब्लॉक के कृषि अधिकारी दिनेश कुमार बताते हैं, “देखिए सर ये रेगिस्तानी टिड्डी ज्यादातर बारानी भूमि में बैठती हैं। अगर फिर भी किसी किसान की फसल में बैठ जाए तो हम जल्दी से जल्दी उनसे निपटने के लिए पहुंच जाते हैं। इस एरिया में जितने भी टिड्डी दल आए हैं लगभग हम उन्हें मारने में सफल हुए हैं। अगर 2-4 प्रतिशत नुकसान भी हुआ है तो राजस्व विभाग की तरफ से 3 दिन के अंदर ही मुआवजा किसानों के खातों में डाल दिया जाता है।”

अधिकारियों की मानें तो कुछ हुआ ही नहीं है और कुछ नुकसान हुआ भी है तो उसकी तुरन्त भरपाई कर ली गयी है। बूढ़े किसान बृजलाल गोदारा कहते हैं, “टिड्डियों ने हमारी फसलों को चट किया है तो अधिकारी जोंक बनकर हमारा खून चूस रहे हैं। किसानों को अपने खेत की गिरदावरी करवाने के लिए छोटे छोटे सरकारी मुलाज़िमों को घूस देनी पड़ रही है।”

सूरज ढलने को है. बूढ़े किसान बृजलाल सरकार और अफसरशाही को गाली निकालते हुए अपने घर की तरफ रवाना हो जाते हैं और जाते-जाते तेज आवाज़ में कहते हैं, “ये लोग (सरकार व अफसरशाही) हमारी मदद करने के लिए नहीं है बल्कि जो पहले ही मरा हुआ है उसे और मारने के लिए पैदा हुए हैं।”