IAS बनने में जुटी ‘बदसूरत’ ने ख़ुदकुशी की ! गोरेपन की क्रीम ख़रीदते रहिए !



अरविंद शेष

वैसे भी कोई ‘बदसूरत’ लड़की खुदकुशी कर ले तो जमाने को क्या फर्क पड़ता है..!

जिस वक्त आप किसी मानुषी छिल्लर को दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की होने का तमगा हासिल करने पर मुबारक दे रहे होते हैं, ठीक उसी वक्त के आसपास आईएएस बनने के दरवाजे तक पहुंच चुकी कोई लड़की गले में फंदा डाल कर पंखे से लटक कर सिर्फ इसलिए जान दे देती है कि दुनिया ने खूबसूरत होने के लिए मानुषी छिल्लर या ऐश्वर्या राय को पैमाना बनाया हुआ है… और इस कसौटी पर दुनिया उसे ‘बदसूरत चेहरे वाली लड़की’ कहती है!

हां… जानता हूं कि आपके भीतर से तुरंत यह जवाब कूद कर आएगा कि आईएएस बन सकने की काबिलियत रखने वाली लड़की आखिर अपनी ‘बदसूरती’ को लेकर इस कदर कमजोर क्यों थी..!

लेकिन मैं उस लड़की की ओर से आपसे यह नहीं कहूंगा कि वह लड़की कमजोर इसीलिए नहीं थी कि आपकी नजर में वह आइएएस की तैयारी कर रही थी तो उसे हर हाल में मजबूत होना ही था..! उत्तराखंड के किसी गांव से दिल्ली में आकर सिविल सर्विसेज की तैयारी करने वाली वह लड़की मेरी नजरों में बहुत मजबूत थी… लेकिन आप जरा सोच कर देखिएगा कि आपका समाज कितना मजबूत था कि अगर किन्हीं वजहों से उसके भीतर ‘बदसूरत’ होने का अहसास बैठा हुआ था तो उसे निकालने के लिए उसने क्या किया और उसके भीतर वह अहसास बिठाने में उसकी क्या भूमिका थी…!

आपकी नजरें शायद देख पाती होंगी कि मानुषी छिल्लर को या ऐश्वर्या राय को जब दुनिया का सबसे खूबसूरत चेहरा होने की मुनादी की जाती है तो उस खूबसूरती के पैमाने को तय करने वाले लोग कौन होते हैं… उन लोगों की सत्ता का दायरा क्या होता है… खूबसूरत होने के पैमाने तय करने के लिए शर्तें वे किस दुनिया से लाते हैं… और कैसे यह तय करते हैं कि किसे खूबसूरत होना है और किसे बदसूरत होना है…!

रहने दीजिए… मानुषी छिल्लर और ऐश्वर्या राय की खूबसूरती की दुनिया के दीवाने आप लोग कभी भी उन लड़कियों का दर्द नहीं समझ सकते जो सिर्फ गोरी नहीं होने की वजह से रोजाना हजार-हजार बार मरती हैं..! आप नहीं समझ सकते कि फेयर एंड लवली या उसकी जगह टेयर एंड लवली खरीदती हुए कोई सांवली लड़की ठीक उसी वक्त अपने भीतर किस भूख… किस तड़प से रूबरू हो रही होती है…! अपवाद का झंडा नहीं दिखाइएगा प्लीज… अपवाद व्यवस्था नहीं होता!

हमारे प्यारे देश में गोरे और काले का… सांचे में ढले और बेतरतीब भदेस का यह बंटवारा जात और औकात तक जाता है…! पद-कद-पैसा-हैसियत… हमारे इस खूबसूरत समाज की शर्तें हैं किसी को जीने देने के लिए और जीने नहीं देने के लिए…! मन करे तो कभी सोचिएगा कि आप अगर कभी किसी इंसान की तलाश में निकलते हैं तो आपके दाहिने हाथ में टंगे ‘कंडीशन अप्लाई’ के बोर्ड पर इस तरह की शर्तों में कौन आपके लिए अहम नहीं होता है..!

अपनी ‘बदसूरती’ की वजह से खुदकुशी कर लेने वाली उस लड़की से आप मजबूती की मांग कीजिए… मैं तब तक खूबसूरती के पैमाने तय करने वाले मठाधीशों को धिक्कार कर थोड़ी राहत हासिल करने की कोशिश करूंगा…!

(हिंदुस्तान टाइम्स में छपी ख़बर का एक हिस्सा।)

 

लेखक अरविंद शेष वरिष्ठ पत्रकार हैं।