MP : आला मंत्रियों की सीट पर बीड़ी-सी सुलगती जिंदगी के बीच एक निर्दलीय से आस



अमन कुमार / दमोह, सागर

बेरोजगारी और पलायन से जूझ रहा मध्‍यप्रदेश के बुंदेलखंड का दमोह इस बार शायद अपनी सियासी किस्मत बदल ले। दमोह सदर सीट से विधायक हैं जयंत मलैया। मध्य प्रदेश की राजनीति में मजबूत आधार रखने वाले जयंत राज्‍य के वित्त मंत्री हैं। वे यहां से 35 साल से विधायक हैं और हर बार मंत्री बनते हैं। उनके जलवे का अंदाजा बस स्टैंड के बाहर चल रही चुनावी चर्चा में चलता है जब बीच में अचानक किसी की आवाज़ आती है- ‘’सबसे बड़ा रुपैया, अबकि बार जयंत मलैया’’।

जातिगत समीकरण के हिसाब से देखा जाए, तो इस सीट पर लोध, कुर्मी, जैन और ब्राह्मण वोट बहुतायत में हैं। इसमें से किसी तीन का वोट किसी को विधायक बना सकता है। विधायक हर बार जयंत ही बनते हैं, लेकिन इस बार मामला थोड़ा-सा सख़्त है। वोटर के मूड के हिसाब से देखा जाए, तो उनका कहना है कि जयंत न जाने कैसे जीत जाते हैं!

वित्‍तमंत्री जयंत मलैया के क्षेत्र में खस्‍ताहाल सड़क

दमोह से कांग्रेस ने राहुल सिंह को अपना प्रत्याशी बनाया है, जो जयंत कि आधी उम्र के हैं। तीसरे मजबूत दावेदार हैं रामकृष्ण सिंह कुसमरिया, जो चार बार के सांसद और चार बार के विधायक व मंत्री रहे हैं, जो भाजपा से बागी होकर दमोह सदर और पथरिया विधानसभा से निर्दलीय ताल ठोंक रहे हैं। टिकट कटने को लेकर उनका कहना है कि पार्टी में लोकतंत्र नहीं रहा, उन्हें पता है कि उनका टिकट किसने कटवाया। उनका मकसद अब भाजपा को हराना है। कुसमारिया के बागी होने से पूरी भाजपा परेशान है और परेशानी का आलम यह है कि उसने अपने प्रदेश अध्यक्ष और सीनियर नेता प्रभात झा को मनाने भेजा, लेकिन कुसमारिया ने प्रभात झा को मिलने तक का समय नहीं दिया।

दमोह जिले की दूसरी बड़ी विधानसभा है पथरिया, जहां लड़ाई बड़ी दिलचस्प है। पिछले 20 साल से यह सीट भाजपा के कब्जे में है। वर्तमान में लखन पटेल यहां से विधायक हैं। मुकाबला भाजपा बनाम कांग्रेस न होकर निर्दलीय बनाम बसपा है। भाजपा के बागी रामकृष्ण सिंह कुसमारिया लोध और हरिजन वोटर के सहारे यहां भी जोरदार टक्कर देते नजर आ रहे हैं। उन्हें अपने जाति के वोटर पर भरोसा है। भाजपा और कांग्रेस ने जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए पटेल प्रत्याशी मैदान में उतारा है। हरिजन बहुल सीट पर तीन सजातीय प्रत्याशी मैदान में हैं जबकि रामबाई (वर्तमान में जिला पंचायत सदस्य) महिला और इस जाति से बाहर की हैं। ऐसे में पटेल वोट के बिखराव और लोध वोटर के एक साथ आने से रामबाई के लिए राह आसान होती दिख रही है। दमोह-सागर की अधिकांश विधानसभाओं में हरिजन अच्छी खासी संख्या में हैं, जो हार-जीत तय कर सकते हैं। यहां दलित मायावती का परंपरागत वोट है, जो केवल निशान देखकर बटन दबाता है। कांग्रेस ने मायावती के साथ गठबंधन न कर अपना ही नुकसान किया है, जो उसके लिए मुसीबत बन सकता है।

अमित शाह की रैली में खाली पड़ी कुर्सियां

बेरोजगारी और उससे उपजा पलायन दमोह का सबसे बड़ा मुद्दा है। यहां के अधिकांश लोग दिल्ली और गुजरात के इलाकों में काम करने के लिये जाते हैं। वैसे तो बेरोजगारी पूरे मध्य प्रदेश और देश की समस्या है, लेकिन दमोह के लिए इस बेरोजगारी के मायने कुछ दूसरे हैं क्‍योंकि साढ़े तीन दशक से यहां का विधायक सूबे का वित्‍तमंत्री भी है। फिर भी दमोह में ऐसा कुछ खास नहीं दिखता, जिससे अनुमान लग सके कि यह प्रदेश के वित्त मंत्री का इलाका है। यहां पर वैसी ही गंदगी है, जैसी कि दूसरे शहरों में है।

बेरोजगारी यहां चरम पर है। मजाक के तौर पर लोग कहते हैं कि “ओजस्विनी ग्रुप के किसी स्कूल, कॉलेज में पढ़ने वाला बेरोजगार हो ही नहीं सकता।” ओजस्विनी ग्रुप वित्त मंत्री मलैया का निजी प्रतिष्ठान है, जिसके तहत कॉलेज और स्कूलों का संचालन किया जाता है। दमोह के सुमित पटेल का कहना है- ‘दमोह में विकास हुआ है। दो-तीन हाइटेक कॉलोनियां हैं, बेहतर शिक्षण संस्थान हैं, उच्च शिक्षा के लिए बाहर नहीं जाना पड़ता है। लेकिन यह सब यहां के विधायक और मध्य प्रदेश के वित्तमंत्री जी का है, अब आप बताइए कि किसका विकास हुआ है, दमोह का या फिर मंत्री जी का?’

रैली में पैसे देकर लाए गए मजदूरों के लिए खाने का पैकेट

आम लोगों में विधायक-मंत्री के खिलाफ़ गुस्सा दिखाई देता है। शशांक जैन कहते हैं- ‘उनको 35 साल से विधायक बना रहे हैं, जिससे हमको कुछ लाभ मिले, लेकिन मिलता है तो धोखा। पहले दमोह के लिए प्रस्तावित हुआ मेडिकल कॉलेज छतरपुर जिले में शिफ्ट कर दिया गया, जबकि वहां पहले से एक विश्वविद्यालय प्रस्तावित है जिस पर काम चल रहा है। और ये सब इसलिए किया गया क्योंकि मंत्री जी के खुद के कॉलेज में नर्सिंग और मेडिकल की पढ़ाई होती है। अपने नुकसान से बचने के लिए दमोह के विकास की अच्छी-खासी बड़ी परियोजना को दूसरे जिले में शिफ्ट कर दिया गया। यहां ऐसी कोई परियोजना नहीं है जो बेरोजगारों को संगठित रूप से एकमुश्त रोजगार दे सके।’

माईसेम सीमेंट फैक्ट्री में बोरियों की सिलाई करने वाली मशीन चलाने वाले रामकुमार अहिरवार कहते हैं कि माइसेम सीमेंट प्लांट ही इकलौती ऐसी बड़ी परियोजना है जो सीधे रोजगार देती है। उसमें भी मजदूर वर्ग के लोग ही बहुतायत में हैं।

रोजगार का इकलौता ठौर माईसेम सीमेंट कारखाना

दमोह और सागर में भाजपा हवा का रुख नहीं भांप पाई है ,वहीं कांग्रेस ने सतर्क तरीके से प्रत्याशियों का चयन किया है। भाजपा विरोध की लहर का असर अमित शाह की रैली में भी दिखता है। दमोह के तहसील ग्राउंड की क्षमता बीस हजार के करीब है लेकिन कुर्सियां आठ हजार के करीब लगाई गईं हैं जिसमें से पीछे और बीच-बीच में अधिकांश खाली पड़ी हैं। रैली के लिए बसों से ग्रामीणों को दिहाड़ी के बराबर 300 रुपए और एक टाइम का खाना देकर बसों से लाया गया है।

सागर 

सागर में शैलेंद्र जैन का जुलूस

पिछले 25 साल से सागर भाजपा का गढ़ है। शैलेंद्र जैन दो बार से विधायक हैं। यहां के आम मतदाता का कहना है कि उन्हें ऐसा कुछ नहीं लगता, जो सागर में बदला हो। इस बार यहां मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच है, लेकिन दिलचस्प है। वजह यह कि दोनों प्रत्याशी जैन हैं। जैन, ओबीसी और ठाकुर बहुल इलाके में दोनों ही प्रत्याशियों का जैन होना लोगों को समझ नहीं आ रहा है। चाय की दुकान चलाने वाले करण यादव का कहना है कि भाजपा के तो पहले से जैन विधायक हैं, तो उसको तो टिकट मिलना समझ आता है, लेकिन कांग्रेस की क्या मजबूरी थी, जो एक जैन को ही प्रत्याशी बनाया? कुछ लोगों का कहना है कि कांग्रेस ने जानबूझकर कमजोर प्रत्याशी उतारा है।

विधानसभा क्षेत्र खुरई जिले की महत्वपूर्ण सीट है, जहां से विधायक हैं भूपेन्द्र सिंह ठाकुर, जो मध्य प्रदेश के गृह और परिवहन मंत्री हैं। 65 प्रतिशत सवर्ण मतदाता वाली सीट पर भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही सवर्ण प्रत्याशियों पर दांव खेला है। कांग्रेस ने अरुणोदय चौबे पर दांव लगाया है। दोनों ही प्रत्याशी पहले भी दो बार आमने-सामने हो चुके हैं, जिसमें एक बार 2008 में अरुणोदय चौबे को जीत मिली, वहीं 2013 में भूपेन्द्र सिंह को। अरुणोदय को हराने का ईनाम भूपेन्द्र सिंह को सरकार में गृहमंत्री के पद के रूप में मिला।

इस बार हालात ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ वाले हैं। भूपेन्द्र जहां ठाकुर और लोध वोट के सहारे अपनी नैया पार लगाने को तैयार हैं, वहीं अरुणोदय ब्राह्मण और यादव वोट के सहारे। मतदाता के लिहाज से न भूपेंद्र बुरे हैं और न अरुणोदय, सत्ता की मलाई हालांकि दोनों ही खाते हैं। कभी ये तो कभी वो। गृहमंत्री के क्षेत्र के लोगों का कहना है कि उनके विधायक के मंत्री होने का कोई फायदा नहीँ हुआ। बाकी जो योजनाएं हैं, वो सरकार की हैं सो उनका प्रभाव सब जगह एक-सा है।

कांग्रेस यहां अंधी लाठी भांज रही है, लेकिन उसको पता ही नहीं कि कैसे पार पाया जाए। गृहमंत्री की सीट पर न सुरक्षा मुद्दा है और न विकास। जो बचा है, वो है बस जाति। जो विधायक बनाने के लिए जरूरी है। खुरई के राजवीर का कहना है कि विधायक ने गृहमंत्री रहते हुए विकास के कामों से ज्यादा पूर्व विधायक से अपनी रंजिश निकालने में लगाया। यही बात अमित शुक्ला भी कहते हैं- ‘ये सच है कि दोनों ही एक-दूसरे को हराकर विधायक बनें हैं लेकिन भूपेन्द्र सिंह अपनी हार को पचा नहीं पाए और अरुणोदय चौबे को झूठे इल्जाम में फंसाने की जुगत लगाते रहे। उन्होंने सत्ता का दुरुपयोग किया है।’

सागर अपने बीड़ी उद्योग के लिए प्रसिद्ध है। यहां भी रोजगार के हाल खराब हैं। परम्परागत रूप से बीड़ी निर्माण का कुटीर उद्योग आजीविका का मुख्य साधन है। उसके बाद सागर की पहचान शिक्षा के केंद्र के रूप में होती है। विश्वविद्यालय परिसर भी कुछ लोगों के लिए रोजी-रोटी का साधन बनता है। कैम्पस से थोड़ी दूर एक लॉज चलाने वाले यादव का कहना है- ’25 साल से भाजपा का विधायक है, लेकिन रोजगार सृजन जैसा कुछ नहीं हुआ, बल्कि यूनिवर्सिटी के लड़कों से गुंडागर्दी कराई जाती है। गृहमंत्री का आश्रय पाकर कई लड़के सरेआम गुंडागर्दी करते हैं।’ बीड़ी मजदूरों के जीवन पर शोध कर रहे नीरज भी इस बात का समर्थन करते हैं।

बीड़ी मजदूर प्रेमरानी रजक को 1000 बीड़ी बनाने के 55 रुपये मिलते हैं

विश्वविद्यालय परिसर से दो किलोमीटर आगे जाने पर एक गांव है पथरिया, जहाँ हर घर में बीड़ी बनती देखी जा सकती है। प्रेमरानी रजक बीड़ी बनाती हुए कहती हैं- ‘एक हजार बीड़ी बनाने पर 55 रुपए मिलते हैं। ठेकेदार एक तयशुदा माल देता है, जो अक्सर कम हो जाता है, जिसकी भरपाई उन्हें अपने 55 रुपए में से करनी पड़ती है।’ इन बीड़ी मजदूरों को सरकार से किसी प्रकार की सहायता नहीं मिलती। हाल में एक बीड़ी कामगार कार्ड बनाया गया है, जिससे सस्ता इलाज कराया जा सकता है, लेकिन उससे भी अभी तक कई लोग वंचित हैं।

देखना यह है कि तमाम ज़रूरी सुख-सुविधाओं से वंचित इस क्षेत्र में इस बार चुनाव क्या बदलाव लेकर आता है या एक बार फिर चुने गए प्रतिनिधि अपनी-अपनी रोटी सेंकने में ही लगे रहेंगे और आम लोगों की ज़िन्दगी बीड़ी की तरह यूँ ही सुलगती रहेगी।

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