सुप्रीम कोर्ट, मनोज तिवारी की जगह किसी AAP नेता पर कार्रवाई को कहता तो चैनल चीख़ रहे होते!



विष्णु राजगढ़िया


जिसे मीडिया की मुख्यधारा कहा जाता है, उसे मानो लकवा मार गया हो। देश के बड़े सवालों पर भी भयावह चुप्पी देखने को मिलेगी। अब तो इसके इतने उदाहरण मिल जाते हैं, कि इन पर चर्चा भी बेमानी लगती है। फिर भी, कुछेक मुद्दों पर बात होती रहे ताकि सनद रहे और वक्त-जरूरत काम आए।

दिल्ली में व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की सिलिंग राजधानी का बड़ा मामला है। लाखों लोगों का रोजगार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित है। इसका विधिवत हल करने का दायित्व केंद्र सरकार पर है। लेकिन अब तक ऐसा कोई रोडमैप पेश नहीं किया गया है, जिससे सीलिंग पीड़ितों में भरोसा जगे।

इसके बजाय, सीलिंग पर सस्ती राजनीति ने देश के सामने बेहद अप्रिय और शर्मनाक स्थिति पैदा कर दी। लेकिन इससे उठे गंभीर सवालों पर मीडिया के बड़े हिस्से ने चुप्पी साधकर एक बार फिर अपने वजूद को ही नकार दिया।

सीलिंग मामले का ठोस हल निकालने के बदले पिछले दिनों दिल्ली में हैरतअंगेज घटना हुई थी।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सांसद मनोज तिवारी ने 16 सितंबर को एक सीलिंग का ताला तोड़ दिया था। गोकलपुर इलाके की एक डेयरी में तोड़ी गई इस सील को सुप्रीम कोर्ट की अवमानना समझा गया। कारण यह कि सुप्रीम कोर्ट की मानिटरिंग कमिटि के आदेश पर सीलिंग होती है।

लिहाजा, मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा। अदालत ने तकनीकी कारण से अवमानना का मामला तो निरस्त कर दिया, लेकिन मनोज तिवारी के आचरण पर गंभीर टिप्पणियां कीं। कहा कि एक सांसद का ऐसा आचरण दुखद है। भीड़ के उकसावे में आकर कानून को हाथ में लेना गलत है।

अदालत ने खुद तो कोई सजा नहीं सुनाई, लेकिन भाजपा पर एक बड़ा दायित्व सौंप दिया कि पार्टी चाहे तो इस पर समुचित कार्रवाई करे। हालांकि फिलहाल भाजपा जिस रास्ते पर चल रही है, उसमें कोर्ट के ऐसे सुझाव पर वह एक पल को भी विचार नहीं करेगी।

तो क्या सीलिंग की समस्या पर भी ऐसी ही दिशाहीनता बनी रहेगी?

अदालत के आदेश के बाद आम आदमी पार्टी के ट्रेड विंग के संयोजक बृजेश गोयल ने ट्वीट करके केंद्र सरकार से सीलिंग समस्या का तत्काल हल करने की मांग की। लिखा कि सांसद मनोज तिवारी ने सीलिंग से राहत के लिए जो रास्ता अपनाया, उसे अदालत ने गलत बताया है। अब अगर बीजेपी को दिल्ली के व्यापारियों की चिंता हो, तो अध्यादेश लाकर सीलिंग रोके।

उल्लेखनीय है कि बृजेश गोयल उस वक्त चर्चा में आए थे, जब मनोज तिवारी ने सीलिंग तोड़ी थी। श्री गोयल ने सीलिंग से जुड़े सवालों पर खुली बहस के लिए चुनौती दे डाली। उसे लेकर सोशल मीडिया में खूब हंगामा हुआ। इस बीच श्री गोयल को आम आदमी पार्टी ने नई दिल्ली लोकसभा क्षेत्र का प्रभारी बनाकर उनका राजनीतिक कद ऊंचा कर दिया। अब सीलिग मामले पर मनोज तिवारी को ललकारते हुए श्री गोयल ने इस मामले में बीजेपी और केंद्र सरकार की किंकर्तव्यविमूढ़ स्थिति को उजागर कर दिया है।

क्या दिल्ली में सीलिंग का मसला इतना छोटा है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कथित मुख्यधारा के मीडिया ने इस पर चर्चा करने की जरूरत नहीं समझी? मनोज तिवारी पर कार्रवाई करने के संबंध में अदालत की नसीहत क्या इतनी मामूली है कि अखबारों में संपादकीय टिप्पणी तक न दिखे? किसी टीवी की प्राइम टाइम बहस में दिखा यह मुद्दा?

कल्पना करें, अदालत ने ऐसी सलाह आम आदमी पार्टी को दी होती, तो क्या होता? चीख-चीखकर एंकर पूछते, कि आखिर कब होगी कार्रवाई?

कल्पना करें, सीलिंग के हल का दायित्व अगर दिल्ली सरकार पर होता, तो क्या मीडिया में ऐसी ही खामोशी दिखती?

तो क्या वाकई हम कथित ‘गोदी मीडिया‘ के दौर में जी रहे हैं, जहां अप्रिय सवालों को उठाने से मीडिया परहेज करेगा? जबकि उसका तो काम ही है अप्रिय सवाल करना।

सीलिंग की समस्या के हल का क्या रोडमैप है? कोई तो पूछे, किसी से तो पूछे।

वरिष्ठ पत्रकार विष्णु राजगढ़िया राँची में रहते हैं।