करणी सेना पर ‘चुपमार’ राजनाथ को आईना दिखाती मनीष सिसोदिया की ललकार !



तमाम राज्यों में जारी करणी सेना के उत्पात पर अगर बीजेपी के मुख्यमंत्री चुप हैं तो वजह है। एक तो वे ख़ुद उन सामंती मूल्यों के पक्षधर हैं जिसकी प्रतिनिधि करणी सेना है और दूसरे ये भी जानते हैं कि करणी सेना के उत्पातियों पर कड़ी कार्रवाई करने से उन्हें राजनीतिक रूप से नुकसान हो सकता है। उन्हें अच्छी तरह पता है कि जिस हिंदू राष्ट्र का सपना वे बेचते हैं, उसकी छतरी तले तमाम जाति एक राष्ट्र के रूप में ही संगठित हैं। या कहें कि उन्हें इसी आधार पर संगठित किया गया है। इसलिए फ़िल्म पद्मावत दिखाने के सुप्रीमकोर्ट फ़ैसले को बेकार बना देने के लिए तमाम जुगत भिड़ाई जा रही हैं।

यह रुख़ सिर्फ योगी आदित्यनाथ या महारानी वसुंधरा राजे तक सीमित नहीं है। पाकिस्तान के ख़िलाफ़ आए दिन कड़ी निंदा जारी करके मशहूर हो चुके देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह के भी बोल नहीं फूट रहे हैं। वे जानते हैं कि उनके आगमन पर जब ‘ठाकुर राजनाथ सिंह’ का स्वागत टाइप पोस्टर छपते हैं तो इसका मतलब क्या है। जीवनभर लगभग जनाधारविहीन राजनेता रहे राजनाथ सिंह इस मुफ़्त हाथ आए जनाधार को हाथ से जाने नहीं देना चाहते, इसलिए चुपमार कर बैठ गए हैं। जबकि सुप्रीकोर्ट के फ़ैसले के बाद अगर फ़िल्म पद्मावत का कई राज्यों में हिंसक विरोध हो रहा है तो यह केवल उन राज्यों का मसला नहीं है। वैसे केंद्र ने राज्यों से इस मामले में कोई रिपोर्ट माँगी, इसकी कोई सूचना नहीं है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह का ट्विटर हैंडल तो गुड़गाँव में स्कूली बस में जा रहे बच्चों पर हमले के बाद भी ख़ामोश है। (25 जनवरी सुबह 11 बजे तक)

ऐसे में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया का रुख़ क़ाबिले तारीफ़ है। यूँ तो चित्तौड़ की सारी कहानी ही ‘सिसौदियों’ की है, लेकिन मनीष ने बेहद कड़े शब्दों में करणी सेना को ललकारा है। जाति को अपना जनाधार बनाने के दौर में एक राजनेता का ऐसा करना, दर्ज किया जाना चाहिए, जबकि दिल्ली में 20 सीटों पर चुनाव की तलवार भी लटक रही है।

यही नहीं, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी इसकी निंदा की है। और यह निंदा पद्मावत के रिलीज़ होने को लेकर थी जो गुड़गाँव में बच्चों की बस पर हुए हमले के पहले ही आ गई थी। इस लिहाज़ से राजपूतों की एकमात्र ठेकेदार बनने वाली करणी सेना को चुनौती देने का ‘साहस’ दिखाने वाले हिंदी पट्टी के वे इकलौते मुख्यमंत्री कहे जा सकते हैं।

कम्युनिस्ट पार्टियों से तो ख़ैर उम्मीद भी रहती है। सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी और सीपीआई (एम.एल) महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य के ट्वीट पूरे मसले को बड़ा परिप्रेक्ष्य दे रहे हैं।

दीपांकर ने दलित उत्पीड़न का सवाल उठाने वाले भीम आर्मी के चंद्रशेखर रावण पर रासुका लगाने और करणी सेना के उत्पात पर चुप्पी को लेकर योगी से लेकर मोदी तक को घेरा है।

उधर, 2019 में बीजेपी से मोर्चा ले रही काँग्रेस के लिए स्थिति साँप-छछूंदर वाली है। इंडिया टुडे में 24 जनवरी की रात 9 बजे अपना शो करते हुए राजदीप सरदेसाई ने बार-बार दो खाली कुर्सियाँ दिखाईं। ये बीजेपी और कांग्रेस के प्रवक्ताओं की थीं जिन्होंने करणी सेना के आंतक पर बोलने से इंकार कर दिया था। हालाँकि गुड़गाँव में स्कूल बस पर हुए हमले के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी ने इसे लॉ एंड आर्डर का मसला और बीजेपी की नफ़रत की राजनीति से जोड़ते हुए  ट्वीट किया। करणी सेना का नाम भी नहीं लिया।

वहीं समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी बस मसले को सुरक्षा तक सीमित रखा। इस बात का पूरा ख़्याल रखा कि कहीँ क्षत्रिय समाज नाराज़ न हो जाए।

और प्रधानमंत्री ! उनके भाषण बस विदेशियों के लिए हैं। 25 जनवरी की सुबर हिमाचल प्रदेश की स्थापना दिवस पर शुभकामनाएँ देना वे नहीं भूले, पर करणी सेना के विरोध में बोल दें, इसके लिए 56 इंच छाती में जिगरा भी चाहिए।

 

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