जब देवता ने मंदिर बनने का इंतजार किया



प्रकाश के रे

ज़ायन की चोटी पर अरब चरवाहा ढूँढ रहा है अपनी बकरी
और सामनेवाली पहाड़ी पर मैं अपने नन्हे बच्चे को ढूँढ रहा हूँ
अरब चरवाहा और यहूदी पिता
दोनों ही फ़िलहाल नाक़ामयाब हैं.
हमारी दो आवाज़ें मिलती हैं
हमारे बीच की घाटी में बने सुल्तान के तालाब के ऊपर.
हम दोनों में कोई नहीं चाहता कि बच्चा या बकरी
‘हद गदिया’* मशीन के चक्कों में फँस जाये.

कुछ देर बाद झाड़ियों में हमने उन्हें पाया,
और हमारी आवाज़ें लौट आयीं हमारे भीतर
हँसते हुए और रोते हुए.

बकरी या बच्चे को ढूँढना हमेशा से नये मज़हब की शुरूआत रहा है इन पहाड़ियों में.

– यहूदा अमीख़ाई (अँग्रेज़ी से अनुदित)

* ‘हद गदिया’ अरामिक और हिब्रू भाषाओं का एक पुराना गीत है. इसका शाब्दिक अर्थ ‘एक छोटी बकरी’ या ‘एक बच्चा’ है. इसमें एक छोटी बकरी (जिसे पिता ने दो सिक्कों में ख़रीदा था) की कथा है जिसमें कहा गया है कि उसे एक बिल्ली खा जाती है, फिर बिल्ली को कुत्ता काट लेता है, कुत्ते को एक छड़ी पीटती है, आग छड़ी को जलाती है, पानी आग को बुझा देता है, बैल पानी पी जाता है, कसाई बैल को मार देता है, मौत का दूत कसाई को मार देता है, फिर वह पवित्र मसीहा आता है और मौत के दूत को ख़त्म कर देता है. इस गीत को यहूदी इतिहास के चरणों को रूपकों से अभिव्यक्त किया गया है. कभी पढ़ियेगा या सुनियेगा, मार्मिक है.


जेरूसलम पर आयी किताबों में सिमोन सिबाग मोंटेफियोरे की ‘जेरूसलमः द बॉयोग्राफी’ बहुत अहम है जो कुछ साल पहले छपी है. आज के लेख में इस किताब के आधार पर रोमन विजय के तुरंत बाद की खास घटनाओं का उल्लेख होगा जिनमें अनेक किंवंदतियां भी हैं या हो सकती है, पर वे तथ्यों से कतई कम नहीं है. रविवार (14 जनवरी) को ही स्ट्रेट्स टाइम्स में गिल यारॉन का अच्छा लेख छपा है जिसमें उन्होंने तीन धर्मों के लिए जेरूसलम के पवित्र शहर बनने की चर्चा की है. मोंटेफियोरे के साथ कुछ संदर्भ इस लेख से भी लिये जायेंगे. मोंटेफियोरे ने किताब की भूमिका में फिलीस्तीनी इतिहासकार डॉ नाज्मी अल-जुबेह की यह टिप्पणी दर्ज की है- ‘जेरूसलम में मुझसे तथ्यों के इतिहास न पूछें. आप कथा को हटा लें, तो फिर कुछ नहीं बचेगा.’

मोंटेफियोरे लिखते हैं कि जेरूसलम के किसी इतिहास को सच और किंवदंतियों- दोनों का इतिहास होना होगा. वे यह भी कहते हैं कि जेरूसलम का इतिहास उसकी पवित्रता के स्वरूप का अध्ययन होना चाहिए. यह बहुत अहम बात है. पवित्रता, धार्मिकता, मिथक और इतिहास उस शहर के ताने-बाने में ऐसे गूंथे हुए हैं कि उन्हें अलग-अलग कर पाना संभव ही नहीं है. मेरा मानना है कि अलग-अलग करने की कोशिश में ही पूरा मसला लगातार उलझता गया है और अब चाहे जो कह लिया जाये या लिख लिया जाये, इसे सुलझा पाना असंभव है. जेरूसलम के मसले पर किसी एक पक्ष में खड़ा हो पाना इसलिए भी दुश्वार है. बहरहाल, मिथकों और तथ्यों को टटोलते हुए उस शहर के इतिहास को दो-चार पन्नों को पलटते हैं जो ऐल्डस हक्सले के शब्दों में ‘धर्मों का बूचड़खाना’ और जिसे एडवर्ड सईद के पिता इसलिए नापसंद करते थे कि वह उन्हें ‘मौत की याद’ दिलाता था.

बाद की यहूदी मान्यताओं के अनुसार, टाइटस के नेतृत्व में हुई घेराबंदी के शुरूआती दिनों में एक प्रतिष्ठित रब्बाई ने योहानान बेन जक्काई ने अपने शिष्यों को आदेश दिया कि वे उन्हें ताबूत में बंद कर इस तबाह शहर से बाहर ले जायें. यह एक नयी यहूदी आस्था का प्रतीक था जो मंदिर में दी जानेवाली बलि पर आधारित संप्रदाय से अलग था. जूडिया और गैलिली के यहूदियों के साथ रोमन और फारसी साम्राज्य के यहूदी बाशिंदों के लिए जेरूसलम और पवित्र मंदिर का खात्मा बहुत बड़ी त्रासदी थी. इस प्रकरण ने मंदिर को लेकर उनकी आस्था को मजबूती देने के साथ धर्म के केंद्र के रूप में बाइबिल और मौखिक परंपराओं को स्थापित कर दिया. कहते हैं कि मंदिर के नष्ट होने के बाद जैतून की पहाड़ियों पर देवता ने साढ़े तीन साल तक इंतजार किया, और जब मंदिर नहीं बना तो वे स्वर्ग चले गये.

जेरूसलम में कुछ यहूदी-ईसाई भी थे जो साइमन के नेतृत्व में टाइटस की घेराबंदी से पहले ही शहर से पलायन कर गये थे. ये तबका यहूदी परंपराओं को भी मानता था. मंदिर तबाह होने पर इन्हें लगा कि यहूदियों ने ईश्वर का भरोसा खो दिया है. इसी के साथ वे ईसा मसीह के माननेवाले अपने पुराने धर्म से हमेशा के लिए अलग हो गये तथा अब्राहम और यहूदी मान्यताओं का असली वारिस होने का दावा कर दिया. उनका जेरूसलम अब अलौकिक था, न कि जूडिया की पहाड़ियों में बसा एक यहूदी शहर. इन बातों को रेखांकित करते हुए मोंटेफियोरे ने यह भी लिखा है कि जब कई सदियों बाद पैगंबर मोहम्मद ने इस्लाम की नींव रखीं, तो उन्होंने अनेक यहूदी परंपराओं को अंगीकार किया. वे नमाज जेरूसलम की ओर होकर पढ़ते थे और यहूदी नबियों को सम्मान देते थे. उनका भी मानना था कि मंदिर की तबाही इस बात का सबूत है कि ईश्वर ने यहूदियों से अपना आशीर्वाद हटा लिया है और अब उसका हाथ इस्लाम के ऊपर है. गिल यारॉन ने भी याद दिलाया है कि आज भी इस्लाम में नमाज की पहली दिशा- अल किबला अल उला- जेरूसलम का पर्याय है.

उजले वस्त्र पहन कर और उजले ऊंट पर बैठकर इस्लाम के दूसरे खलीफा हजरत उमर की जेरूसलम यात्रा (638 ई.) और पवित्र पत्थर पर स्वर्णिम गुबंद बनने के समय तक (691 ई.) मुस्लिम भी यह मानते थे कि यहां यहूदियों का पवित्र मंदिर था जिसे रोमनों ने तबाह कर दिया था. पवित्र पत्थर को लेकर इस्लाम की मान्यता है कि यहीं से पैगंबर मोहम्मद बुराक पर बैठ कर जन्नत गये थे. गुंबद के सामने जो मस्जिद है, उसे इस्लाम का तीसरा सबसे पवित्र स्थान माना जाता है. बहरहाल, यह सब उल्लेख इसलिए कि टाइटस को सपने में भी ख्याल नहीं रहा होगा कि उसके द्वारा यहूदियों के शहर की यह बर्बादी भविष्य में तीन धर्मों- जिनमें से एक का अभी आस्तित्व भी न था- की ऐसी आपसी रंजिश और जंग का उन्वान होगा जिसका आखिर शायद कयामत के दिन ही तय होगा. कहानी के सिरे को फिर से पकड़ने से पहले इस्लाम से जुड़ा एक मसला याद आ गया. जेरूसलम वही जगह है जहां टेंपल माउंट में स्थित मस्जिद परिसर में 661 में मुआविया ने इस्लाम के चौथे खलीफा हजरत अली की कूफा (इराक) में हत्या के बाद अपने को खलीफा घोषित कर दिया था. यह वह मोड़ है जहां से इस्लाम के भीतर फिरकापरस्ती का दौर शुरू होता है. पैगंबर मोहम्मद के दौर में यही मुआविया जन्नत से आये संदेशों को उनकी ओर से लिखने का काम करता था.

जीत के जश्न का दौर मना लेने के कुछ हफ्तों बाद टाइटस फिर जेरूसलम आया और तबाहो-बर्बाद शहर का दौरा किया. फिर वह राजकुमारी बेरेनिस और इतिहासकार जोसेफस तथा लूट के माल के साथ रोम रवाना हुआ. उसके साथ कई खास यहूदी कैदी भी थे. रोम के नागरिकों के सामने इस महान विजय का शानदार प्रदर्शन होना था. उस अवसर पर बनायी गया टाइटस आर्क आज भी रोम में मौजूद है जिस पर जेरूसलम के पवित्र मंदिर की लूट का चित्रण है. जोसेफस लिखता है कि वेस्पासियन और टाइटस जामुनी रंग का लिबास पहने आइसिस के मंदिर से निकले और सीनेट का अभिवादन स्वीकार कर अपनी गद्दी पर बैठ गये. इस जलसे में रोमन इतिहास के सबसे बड़े विजयों में से एक का प्रदर्शन हो रहा था. लूट का माल दिखाने के साथ जेरूसलम की लड़ाई का झांकियों के जरिये मंचन भी हो रहा था. सबसे आखिर में पवित्र मंदिर की पवित्रतम चीजें दिखायी गयीं और फिर यहूदी विद्रोह के नायक सिमोन बेन गिओरा को लाया गया जिसके गले में रस्सी बंधी हुई थी. बृहस्पति के मंदिर तक झांकियां गयीं और वहां सिमोन के साथ अन्य प्रमुख विद्रोहियों को मार दिया गया.

यहूदियों से लूटी गयी संपत्ति से रोम में कोलोसियम और शांति का मंदिर बना. जेरूसलम के मंदिर के लिए यहूदी जो टैक्स देते थे, वह अब उन्हें रोमनों को देना था जिसे बृहस्पति के मंदिर के पुनर्निमाण पर खर्च किया जाना था. रोमन और पार्थियन साम्राज्यों में रहनेवाले यहूदी पहले की तरह शासन को मानते रहे, पर कहीं-कहीं विद्रोह भी जारी रहा. अप्रैल, 73 में मसादा में यहूदियों ने गुलामी से बचने के लिए सामूहिक आत्महत्या कर लिया था. उधर रोम में जोसेफस को लिखने के लिए धन मिला तथा जूडिया के राजकुमारी टाइटस के साथ रहने लगी. रोमन उसे पसंद नहीं करते थे. यहूदी होने के अलावा वे उससे अपने भाई के साथ शारीरिक संबंधों की अफवाह को लेकर भी चिढ़ते थे. वह कभी टाइटस की रानी नहीं बन सकी और जूडिया लौट आयी थी. उसका भाई शायद हेरोड वंश का आखिरी चिराग था जिसने बाद में रोम में राजनेता बन कर जीवन बिताया. जोसेफस की मौत 100 ईस्वी के आसपास हुई और मरते दम तक उसे उम्मीद थी कि पवित्र मंदिर का निर्माण फिर हो सकेगा. वह यहूदियों के शानदार योगदान और अपने महत्व को लेकर भी आश्वस्त था.

टाइटस सिर्फ दो सालों तक ही रोम का राजा रह सका. कहते हैं कि मरते समय उसके होंठों पर यही शब्द थे कि जेरूसलम की बर्बादी उसके जीवन की सबसे बड़ी गलती थी. यहूदियों की नजर में उसकी मौत ईश्वर का अभिशाप थी. इतिहास बताता है कि अगले चार दशकों तक तनाव भरी उदासी के साथ जेरूसलम और आसपास के इलाकों में जिंदगी आगे बढ़ती रही, और फिर यहूदी विद्रोह का आखिरी अध्याय शुरू हुआ जिसका नतीजा टाइटस के कहर से कहीं अधिक भयानक था. उसकी बात बाद में. अभी उससे पहले के चालीस सालों का जायजा लेते हैं.

जैसा कि पिछले हिस्से में उल्लेख किया गया है, जेरूसलम में हेरोड के महल के एक हिस्से में रोमनों की 10वीं लीजन ने अपना डेरा बनाया था. उस भवन के अवशेषों से ऐसी ईंटें और टाइलें मिलीं हैं जिन पर जंगली सूअरों के चित्र हैं. यहूदियों के लिए ऐसे प्रतीक बहुत अपमानजनक थे. टाइटस की घेराबंदी के पहले दिनों में जो रब्बाई ताबूत में बाहर गये थे, उन्हें भूमध्यसागर के पास शिक्षा देने की अनुमति सम्राट वेस्पासियन ने दे दी थी. इस लेख में पहले इनका जिक्र आया है. जेरूसलम में यहूदियों के आने-जाने पर पाबंदी भी नहीं लगायी गयी, पर वे टेंपल माउंट पर नहीं जा सकते थे. माना जाता है कि अग्रिप्पा और जोसेफस की तरह कई धनी यहूदी रोमनों के साथ बेहतर रिश्ते बनाने में कामयाब हो गये होंगे. यहूदी जकारिया की कब्र पर जाकर दुख प्रकट करते थे. ये कोई पारिवारिक कब्र थी और इसमें दफन लोग घेराबंदी और हमले के शिकार हुए होंगे. कहते हैं कि जब रब्बाई बेन जक्काई जेरूसलम गये तो उनके शिष्य खंडहरों को देख कर रोने लगे. उन्हें बिलखता देख रब्बाई ने समझाया कि दुखी न हो, हमारे लिए कुछ और ही निर्दिष्ट है वह है- प्रेम और दया का आचरण. मोंटेफियोरे कहते हैं कि उस समय किसी ने नहीं सोचा था, पर यह नये- आधुनिक- यहूदीवाद का उद्भव था- बिना मंदिर के यहूदी धर्म.

जीसस के भाई कहे जानेवाले साइमन के नेतृत्व में यहूदी-ईसाई जेरूसलम वापस आये और माउंट जायन पर एक जगह आराधना करने लगे. गैर-यहूदियों ईसाईयों के लिए अब मंदिर का कोई मतलब न था. अब उनके लिए जीसस का व्यक्तित्व केंद्रीय तत्व बन गया. लेकिन रोमनों की नजर सब पर थी. टाइटस के बाद रोम का राजा बने डोमिशियन ने यहूदियों पर टैक्स बरकरार रखा था और ईसाईयों का उत्पीड़न भी जारी था. किसी भी तरह की मसीहाई को वे शक की निगाह से देखते थे. सम्राट नेर्वा के आने पर राहत मिली, पर उसका जेनरल और संभावित उत्तराधिकारी ट्राजन महत्वाकांक्षी था. वर्ष 106 में उसने साइमन को सलीब पर चढ़ाने का आदेश दे दिया क्योंकि जीसस की तरह साइमन का भी दावा था कि वह डेविड के खानदान से है. साइमन की मौत के साथ ही जीसस के परिवार का अंत होता है. ईसाईयों के साथ ट्राजन ने पूरे रोमन साम्राज्य में यहूदियों पर बड़े अत्याचार किये और पुराने धार्मिक टक्स फिर से लाद दिये. उसने यहूदियों पर काबू पाने की जिम्मेवारी सीरिया के नये गवर्नर ऐलियस हैड्रियन को दी जिससे उसकी भतीजी भी ब्याही थी. ट्राजन की मौत के बाद विधवा महारानी ने इसे गोद लेकर रोम का सम्राट बना दिया. इसने यहूदियों की समस्या को जड़ से मिटाने का नया उपाय किया. रोम के इतिहास में एक शानदार सम्राट माना जानेवाला हैड्रियन यहूदी इतिहास के लिए सर्वाधिक खूंखार लोगों में है.

पहली किस्‍त: टाइटस की घेराबंदी

दूसरी किस्‍त: पवित्र मंदिर में आग 

तीसरी क़िस्त: और इस तरह से जेरूसलम खत्‍म हुआ…


(जारी) 

Cover Photo : Rabiul Islam