ईसाई वर्चस्व और यहूदी विद्रोह



प्रकाश के रे 

एक महिला सैनिक तेज़ आवाज़ में बोली:

तुम फिर आ गए? मैंने तो तुम्हें मार दिया था?

मैंने कहा: तुमने मुझे मार दिया था…

पर, मैं मरना भूल गया, तुम्हारी तरह.

  – महमूद दरवेश ‘जेरूसलम में’

 

इस श्रृंखला में हम पढ़ रहे हैं कि सितंबर, 335 में रोमन सम्राट कॉन्सटेंटाइन का भव्य चर्च उस जगह पर बन कर तैयार हो गया था जिसके बारे में माना जाता है कि वहां ईसा मसीह को सलीब पर चढ़ाया गया और वहीं उनका अंतिम संस्कार किया गया. उस वर्ष 17 सितंबर को सम्राट के सीजर बनने के तीस साल पूरे हो रहे थे. होली सेपुखर चर्च के उद्घाटन के मौके पर अलग-अलग इलाकों से बिशप और गणमान्य लोग ‘नये जेरूसलम’ में जमा हुए थे. यह लिखते हुए जेरूसलम में आजकल चल रहे ईसाईयों के विरोध का उल्लेख करना जरूरी लग रहा है.

कुछ दिनों पहले शहर के मेयर निर बरकत ने कहा था कि विभिन्न ईसाई धार्मिक सस्थाओं की मिल्कियत की कुछ इमारतों पर संपत्ति कर लगाया जायेगा. चर्चों की संपत्ति पर कर लगाने के विचार के पीछे नगरपालिका की अपनी मजबूरियां भी हैं. जेरूसलम इजरायल के गरीब शहरों में से एक है और सरकार समुचित मात्रा में शहर को धनराशि नहीं दे रही है. इसी कारण पिछले महीने मेयर बरकत ने यह कहते हुए दो हजार कर्मचारियों को नौकरी से निकालने की धमकी दी थी कि इजरायल के वित्त मंत्री मोशे कहलोन नगरपालिका को मिलनेवाले आवंटन को बाधित कर रहे हैं. शहर के सभी 13 ईसाई धार्मिक संगठनों के प्रमुखों ने 15 फरवरी को साझा बयान में मेयर को अपना प्रस्ताव वापस लेने का अनुरोध किया है. उनका कहना है कि कर लगाने का इरादा सदियों से चर्च की संपत्ति को कर मुक्त रखने की परंपरा के विरुद्ध है. इस बयान में नगरपालिका से ‘पवित्र इतिहास से निर्धारित यथास्थिति’ को बनाये रखने का निवेदन किया गया है ताकि ‘पवित्र शहर जेरूसलम के स्वरूप का उल्लंघन न हो.’ इस मसले के संबंध में ‘द इजरायल हायोम’ अखबार की एक रिपोर्ट दिलचस्प है. इसमें बताया गया है कि नगरपालिका का सबसे ज्यादा बकाया रोमन कैथोलिक चर्च पर है जो कि 3.3 मिलियन डॉलर से अधिक है. इस चर्च का मुख्यालय रोम में वैटिकन सिटी में है. वैटिकन के साथ 1993 में इजरायल के राजनयिक संबंध बहाल हुए थे. उसी समय से दोनों पक्षों के बीच जेरूसलम में चर्च की संपत्ति को लेकर बातचीत जारी है.

बहरहाल, आज जेरूसलम यहूदी राष्ट्र की राजधानी है. हम अपनी दास्तान के उस दौर में लौटते हैं, जब वह एक रोमन शहर था और रोमन सम्राट के आदेश पर ईसाई चर्च और इमारतों के निर्माण का सिलसिला जारी था. तब शहर में यहूदियों के आने-जाने पर बंदिशें थीं और वे अपने धर्मस्थल बनाने की तो सोच भी नहीं सकते थे. वर्ष 337 में सम्राट महान कॉन्सटेंटाइन ने मौत से पहले बपतिस्मा लेकर औपचारिक तौर पर ईसाई धर्म को स्वीकार किया. उसने अपने साम्राज्य को तीन बेटों और दो भतीजों में बांट दिया था. इन वारिसों के बीच 20 साल तक आपसी लड़ाई होती रही और इसमें कॉन्सटेंटाइन के दूसरे बेटे कॉन्सटेंटियस को कामयाबी मिली. कॉन्सटेंटियस की माता फाउस्टा थी जिसे बरसों पहले सम्राट ने मौत की सजा दे दी थी. इन 20 सालों में ये सभी दावेदार सिर्फ इस बात पर एकमत थे कि साम्राज्य ईसाई रहेगा और यहूदियों के खिलाफ कड़े कायदे-कानून बनाये जाते रहेंगे. वर्ष 339 में तो उन्होंने यहूदियों के साथ अन्य समुदायों की शादी की भी मनाही कर दी.

ईसाई परंपरा में ईसा मसीह और उनके जीवन से जुड़ी जगहों का जैसे-जैसे महत्व बढ़ता गया, जेरूसलम और अन्य शहरों-कस्बों में ईसाई इमारतें बनने लगीं. जेरूसलम समेत पूरे रोमन साम्राज्य में अभी ईसाई आबादी बहुत ही कम थी, परंतु शासकों के संरक्षण ने इस समुदाय के आत्मविश्वास और उसकी महत्वाकांक्षाओं को बहुत बढ़ा दिया था. कॉन्सटेंटियस ने तो ईसाईयों को यह भी छूट दे दी थी कि वे यहूदियों और बहुदेववादियों का दमन कर सकते हैं. यह नीति उसके पिता की नीतियों से बिल्कुल उलट थी. कॉन्सटेंटाइन परिवार के आपसी कलह और ईसाई दबदबे के माहौल में गैलिली के यहूदियों ने एक बार फिर विद्रोह का रास्ता अख्तियार किया क्योंकि उन्हें यह साफ लगने लगा था कि उनके अपने मंदिर का निर्माण मुश्किल हो रहा है तथा जेरूसलम के बाहर स्थित उनकी बस्तियां भी सुरक्षित नहीं है. वर्ष 351 में यह विद्रोह हुआ था. उसी साल जेरूसलम में जोरदार भूकंप भी आया था. उसी साल कॉन्सटेंटियस ने अपने रिश्ते के भाई और जीजा कॉन्सटेंटियस गैलस को रोमन साम्राज्य के पूर्वी हिस्से का सीजर बनाया था. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि इसके सीजर बनने से पहले ही पैलेस्टीना के यहूदियों का विद्रोह शुरू हो गया था, कुछ का मानना है कि यह विद्रोह उसकी नीतियों का नतीजा था. खैर, आइजाक और पैट्रिसियस की अगुवाई में यहूदियों का सामना गैलस के सेनापति अर्सिनियस से हुआ. इस कार्रवाई में रोमनों का नुकसान बहुत थोड़ा था, पर हजारों यहूदियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. जिस भयानक तरीके से जनसंहार को अंजाम दिया गया था, उससे रोमन भी घबरा गये थे. अनेक विद्रोही शहरों को नेस्तनाबूद कर दिया गया. माना जाता है कि साम्राज्य के पूर्वी हिस्से को ठीक से संभाल न पाने के कारण ही उसे कॉन्सटेंटियस की नाराजगी का शिकार होना था. साल 354 में उसे सम्राट के आदेश पर मार दिया गया था. गैलस की मौत के बाद कॉन्सटेंटियस पूरे साम्राज्य का अकेला सम्राट बना गया.

पर, रोमन साम्राज्य के यहूदियों के दिन बहुरनेवाले थे. गैलिली विद्रोह के एक दहाई बाद ही एक ऐसा व्यक्ति सम्राट बननेवाला था जिसे ईसाईयत को छोड़ देना था तथा जेरूसलम में यहूदियों को मंदिर बनाने की मंजूरी देनी थी. उसकी नजर में यूनानी देवता जिउस और यहूदी देवता येहेवा में फर्क नहीं था.

 

पहली किस्‍त: टाइटस की घेराबंदी

दूसरी किस्‍त: पवित्र मंदिर में आग 

तीसरी क़िस्त: और इस तरह से जेरूसलम खत्‍म हुआ…

चौथी किस्‍त: जब देवता ने मंदिर बनने का इंतजार किया

पांचवीं किस्त: जेरूसलम ‘कोलोनिया इलिया कैपिटोलिना’ और जूडिया ‘पैलेस्टाइन’ बना

छठवीं किस्त: जब एक फैसले ने बदल दी इतिहास की धारा 

सातवीं किस्त: हेलेना को मिला ईसा का सलीब 


(जारी) 

Cover Photo : Rabiul Islam