गड़बड़झाला: मोदी सरकार के पाँच साल का छठा बजट !


संविधािन में अंतरिम बजट जैसी कोई व्यवस्था नहीं है। बस वोट ऑन अकाउंट होता है।




सुशील कुमार सिंह

हम रोज नई बातें सुन रहे हैं। नरेंद्र मोदी सरकारआयकर में छूट की सीमा बढ़ाने जा रही है। किसानों को तेलंगाना की तर्ज पर खाद और बीज आदि के लिए हर साल प्रति एकड़ एक निश्चित रकम देने की घोषणा होने वाली है। बेरोजगारों और गरीबों के लिए यूनीवर्सल बेसिक इन्कम लागू हो सकती है जिसकी चर्चा पूर्व आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम ने छेड़ी थी।  

एक के बाद एक ऐसी खबरें चली आ रही हैं। यह भी कहा जा रहा है कि इस बार बजट में मोदी सरकार अगले पांच साल के लिए अपना आर्थिक दृष्टिकोण पेश करने वाली है। तो क्या यह सरकार पांच साल के अपने कार्यकाल में छठा बजट पेश करने जा रही है, क्योंकि पांच बजट तो वह पेश कर चुकी है?

अब तक हम देखते आए हैं कि किसी भी सरकार को अपने अंतिम वर्ष में पूरा बजट पेश नहीं करना होता। यह काम वह अगली सरकार पर छोड़ देती है। मगर तब तक सरकार के खर्चों में कोई अड़चन न आए और कर्मचारियों व अधिकारयों को वेतन आदि मिलता रहे, इसके लिए उसे वोट ऑन अकाउंट पास कराना होता है। सामान्य बजट जैसा भाषण वोट ऑन अकाउंट में नहीं होता और न कोई नई योजना घोषित की जाती है। 

मगर इस बार मीडिया हमें बता रहा है कि सरकार बजट में क्या-क्या नई योजनाएं लाने वाली है। इसके लिए तो बाकायदा बजट भाषण होना चाहिए। अगर यह सब केवल राजनैतिक इरादे से हो रहा है, तब तो भाषण और भी जरूरी है। अरुण जेटली क्योंकि स्वस्थ नहीं हैं, इसलिए वित्त मंत्रालय का प्रभार एक बार फिर पीयूष गोयल को दिया जा चुका है। यानी मोदी सरकार का सबसे महत्वपूर्ण बजट भाषण पीयूष गोयल देने वाले हैं?

इस सबकी तैयारी काफी पहले से चल रही थी। किसी भी सरकार के अंतिम साल में शीतकालीन सत्र को प्रोरोग अथवा विसर्जित नहीं किया जाता। बाद में वोट ऑन अकाउंट के लिए उसी सत्र के विस्तार स्वरूप कुछ दिनों के लिए संसद फिर बुला ली जाती है। सत्र का सत्रावसान स्पीकर या सभापति करते हैं, लेकिन उसे प्रोरोग राष्ट्रपति करते हैं और वही नया सत्र बुलाते हैं।

इस बार शीतकालीन सत्र 11 दिसंबर से 8 जनवरी तक बुलाया गया। यह अपनी 16वीं लोकसभा का 16वां सत्र था। इस सत्र में लोकसभा 8 जनवरी तक और राज्यसभा, आरक्षण वाले बिल के चलते,एक दिन ज्यादा यानी 9 जनवरी तक चली। आखिरी दिन, 9 जनवरी को जब राज्यसभा चल ही रही थी, सीसीपीए यानी कैबिनेट की राजनैतिक मामलों की समिति की बैठक हुई और उसने नया सत्र बुलाने की सिफारिश कर दी। इस पर राष्ट्रपति ने शीतकालीन सत्र को प्रोरोग किया और 11 जनवरी को खबर आई कि संसद का नया सत्र बुला लिया गया है, जो 31 जनवरी से शुरू होगा और 13 फरवरी तक चलेगा।

अब क्योंकि साल का यह पहला नया सत्र होगा, इसलिए इसकी शुरूआत राष्ट्रपति के अभिभाषण से होगी, जो कि दोनों सदनों की साझा बैठक में सेंट्रल हॉल में होता है। और इस बार तो राष्ट्रपति के अभिभाषण के भी चुनावी मायने होंगे।

वोट ऑन अकाउंट के लिए कभी ऐसा नहीं हुआ। इसे कोई वोट ऑन अकाउंट कह भी नहीं रहा। सरकार में इसे अंतरिम बजट कहा जा रहा है। लेकिन क्या अंतरिम बजट नाम की कोई चीज होती है? पूर्व लोकसभा महासचिव पीडीटी आचारी कहते हैं कि ऐसी कोई व्यवस्था संविधान में नहीं है।

आचारी के मुताबिक अगर संविधान के अनुच्छेद 112 को 114 और 83 के साथ पढ़ा जाए तो स्पष्ट हो जाता है कि किसी सरकार का कार्यकाल अगर वित्तीय साल के बीच में समाप्त हो रहा हो, तो वह अपने बाकी बचे समय के लिए ही संसद से खर्च की राशि पास करवा सकती है। इसी को वोट ऑन अकाउंट कहते हैं और क्योंकि यह पूरा बजट नहीं है, इसलिए इसे लोकसभा बिना किसी बहस के पास कर देती है। राज्यसभा से इसे पारित कराने की अनिवार्यता नहीं होती। लेकिन यह प्रथा जरूर है कि राष्ट्रपति का अभिभाषण होगा तो उस पर चर्चा और मंजूरी दोनों सदनों से हासिल की जाती है। शायद यह इस बार भी होगा। इसके अलावा कुछ बिल भी लटके हुए हैं, इसीलिए संसद दो हफ्ते के लिए बुलाई गई है। कहीं ऐसा तो नहीं कि भाषण में सरकार अपने तमाम इरादे और योजनाएं घोषित कर दे, लेकिन सदन के पटल पर रखा केवल वोट ऑन अकाउंट जाए? अगर ऐसा नहीं है तो फिर सवाल उठता है कि क्या कोई सरकार चुनाव से तीन महीने पहले अपने कार्यकाल के बाद की अवधि के लिए कोई कार्यक्रम घोषित कर सकती है? क्या वह उसके लिए राशि मंजूर करवा सकती है? या क्या वह अपने बचे हुए कार्यकाल भर के लिए भी कोई नई योजना ला सकती है? सबसे बड़ी बात यह कि क्या आज जैसी स्थिति में कोई सरकार किसी नई योजना पर राशि मंजूर करवा कर उसे खर्च करना भी शुरू कर सकती है? 

अब तक तो ऐसा नहीं हुआ है। लेकिन ऐसे बहुत से काम हैं जो पहले नहीं हुए थे और इस सरकार ने कर दिए हैं। सबको पता है कि चुनाव के बाद बनने वाली सरकार इस कथित अंतरिम बजट के प्रस्तावों को ठुकरा सकने को स्वतंत्र होगी। इसीलिए यह सरकार कुछ ऐसी योजनाएं घोषित करना चाहती है जिन्हें अगली सरकार चाह कर भी खत्म नहीं कर सके।

चुनाव में मोदी ही जीत कर लौटें या सरकार बदल जाए, दोनों हालत में 2019-20 का वास्तविक बजट संभवतया जुलाई में पेश होगा। तो क्या हम 2019 में दो बार बजट भाषण सुनने जा रहे हैं? एक अभी और दूसरा जुलाई में? इस बात पर भी गौर कीजिए कि यह सरकार अगली सरकार से राष्ट्रपति का एक अभिभाषण भी छीनने जा रही है, क्योंकि यह तो जुलाई में दोबारा नहीं हो सकेगा। 

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘समय की चर्चा’ के संपादक हैं।)