BHU: कुलपति के बुने जाल में फंसे सभी, ये था असली ‘एजेंडा’- पहला भाग



शिव दास

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में छेड़खानी और उसके बाद उपजे हालात पर कुलपति गिरीश चंद्र त्रिपाठी का अड़ियल रवैया अनायास नहीं था। यह उनकी सोची-समझी रणनीति का हिस्सा था! इसमें विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों समेत पत्रकार, नेता, पुलिस, प्रशासन और सरकार, सभी फंस गए। पिछले एक महीने से विश्वविद्यालय प्रशासन की गतिविधियों की पृष्ठभूमि में छिपे हालात और छात्राओं के आंदोलन के बाद कुलपति की गतिविधियां कुछ ऐसा ही इशारा कर रही हैं।

इसे विश्वविद्यालय के नए कुलपति की नियुक्ति और उसके प्रशासनिक अधिकार की जब्ती से समझा जा सकता है। वर्ष 2014 में 27 नवंबर को काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति का प्रभार लेने वाले प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी का प्रशासनिक अधिकार केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की नियमावली के अनुसार गत 26 अगस्त को ही खत्म हो गया था, हालांकि उन्होंने सत्ता में अपनी पहुंच का इस्तेमाल करते हुए इस नियमावली में संशोधन करा लिया जिससे उनके प्रशासनिक अधिकार में एक महीने की बढ़ोत्तरी हो गई। नियमावली के अनुसार काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति का तीन वर्षीय कार्यकाल खत्म होने के तीन महीने पूर्व उनका प्रशासनिक और वित्तीय अधिकार जब्त कर लिया जाएगा और नए कुलपति के कार्यभार ग्रहण करने तक वे इस पद पर बने रहेंगे। अब प्रशासनिक और वित्तीय अधिकार जब्त करने की अवधि दो महीने पूर्व की संशोधित हो गई है।

दरअसल इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी बतौर कुलपति काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में दूसरा कार्यकाल चाहते थे। इसके लिए उन्होंने एड़ी-चोटी तक जोर लगा दी थी लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। जब उन्हें विश्वास हो गया कि उन्हें दूसरा कार्यकाल नहीं मिलेगा तो उन्होंने आलाकमान के सामने अपने वित्तीय और प्रशासनिक अधिकार में बढ़ोतरी का प्रस्ताव रखा जो उन्हें मिल गई। उन्होंने इसका फायदा भी बखूबी उठाया।

आरोप है कि इस एक महीने के कार्यकाल में उन्होंने विश्विविद्यालय में सैकड़ों पदों पर अनियमित ढंग से नियुक्तियों और पदोन्नति के क्रिया-कलापों को अंजाम दिया। इस आरोप को सहायक कुल-सचिव पद की नियुक्ति प्रक्रिया से समझा जा सकता है। मई के आखिरी सप्ताह में इसका विज्ञापन प्रकाशित हुआ था जिसका आवेदन-पत्र जमा करने की तारीख गत 24 जून थी। गत 17 सितंबर को इसकी लिखित परीक्षा आयोजित की गई और 22 सितंबर की देर रात इसका रिजल्ट जारी कर दिया गया। चयनित अभ्यर्थियों को 24 और 25 सितंबर को साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। सूत्रों की मानें तो इन पदों पर अभ्यर्थियों की नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है, हालांकि अधिकारिक रूप से इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है लेकिन इसमें साक्षात्कार के लिए सूचीबद्ध अभ्यर्थियों को 21 दिन पहले पत्र भेजकर सूचित करने के विश्वविद्यालय के प्रावधान का अनुपालन सुनिश्चित नहीं किया गया। आरोपों की मानें तो ऐसा कई अन्‍य नियुक्तियों और पदोन्नतियों में भी किया गया है।

अब छेड़खानी की घटना और उससे उपजे हालात पर भी ध्यान दीजिए। गत 21 सितंबर को दोपहर नवीन छात्रावास की छात्राएं विश्वविद्यालय के मुख्य आरक्षाधिकारी को पत्र लिखकर पूरी रात आरक्षी की तैनाती करने, छात्रावास में पर्याप्त प्रकाश व्यवस्था करने, छात्रावास तक जाने में आपत्तिजनक हरकतों की निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरों की स्थापना करने की मांग करती हैं। छात्राओं ने पत्र में कहा है कि रात में सुरक्षा अधिकारी की तैनाती नहीं होने से छात्रावास की मार्ग सुरक्षित नहीं है। आए दिन छेड़छाड़ की घटनाएं होती रहती हैं। अंतर्राष्ट्रीय छात्राओं को भी इस क्षेत्र में अभद्रता का सामना करना पड़ता है जो हमारे लिए शर्मनाक है। पत्र में छात्राओं ने लड़कों पर गंभीर आरोप लगाए हैं कि वे छात्रावास के बाहर आकर हस्तमैथुन (Masturbation) करते हैं, पत्थर फेंकते हैं और आपत्तिजनक शब्द बोलकर निकल जाते हैं। पत्र में नोट के रूप में चेतावनी दी गई है कि अगर किसी छात्रा के साथ कोई अभद्र या कुछ अनहोनी होती है तो इसका जिम्मेदार प्रशासन स्वयं होगा। छात्राओं के इस पत्र को राजनीति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर और लोक प्रशासन के संयोजक आरपी पाठक ने आवश्यक कार्रवाई के लिए मुख्य आरक्षाधिकारी को अग्रसारित किया है।

जिस दिन यह पत्र भेजा गया, ठीक उसी शाम को कला संकाय के दृश्य कला विभाग की एक छात्रा के साथ छेड़खानी की घटना घटती है। छात्रा के आरोपों की मानें तो संकाय से छात्रावास जाते समय कला भवन के पास सुरक्षाकर्मियों से करीब 10 मीटर की दूरी पर मोटरसाइकिल सवाल लड़कों ने उसके कपड़े में अचानक हाथ डाल दिया और छेड़खानी की। उसके शोर मचाते ही भाग गए। शोर सुनकर कुछ छात्र पास आ गए लेकिन सुरक्षाकर्मी नहीं आए। छात्रा का आरोप है कि वह सुरक्षाकर्मियों के पास शिकायत दर्ज कराने गई तो उन्होंने उससे कहा, वह रात को घूमती ही क्यों है? छात्रों की सुरक्षाकर्मियों से बहस होने लगी। कुछ परिचित छात्र उसे त्रिवेणी छात्रावास छोड़े। उसका कहना है कि वहां उसने छात्रावास की लड़कियों से घटना बताई और उन्होंने इससे वार्डन को भी अवगत कराया लेकिन उन्होंने उसकी शिकायत दर्ज नहीं की। पीड़िता का आरोप है कि वार्डन ने छोटी बात कहकर शिकायत दर्ज करने से मना कर दिया। मौके पर मौजूद छात्रों की मानें तो वे प्रॉक्टोरियल बोर्ड के अधिकारियों के पास गए थे लेकिन उन्होंने शिकायत दर्ज नहीं की। फिर वे लंका थाना गए जहां भुक्तभोगी की लिखित तहरीर पर ही शिकायत दर्ज करने की बात कही। रात होने की वजह से ऐसा नहीं हो पाया।

अगले दिन 22 सितंबर को अल सुबह पीड़िता के साथ त्रिवेणी छात्रावास की छात्राएं शिकायत दर्ज कराने प्रॉक्टोरियल बोर्ड के पास गईं जहां उनके साथ अभद्रता की गई। इससे नाराज छात्राएं बीएचयू के सिंहद्वार पर सैकड़ों की संख्या में धरने पर बैठ गईं। देखते ही देखते हजारों की संख्या में छात्राएं और छात्र धरने में शामिल हो गए। इससे विश्वविद्यालय प्रशासन पर कोई खास फर्क नहीं पड़ा लेकिन जिला प्रशासन के अधिकारियों के हाथ-पांव फूलने लगे। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री का दौरा होने की वजह से जिला प्रशासन के अधिकारी मय फोर्स सिंह द्वारपर आ धमके और छात्राओं का धरना खत्म कराने की कोशिश करने लगे। प्रशासनिक अधिकारियों ने कुलपति और मुख्य आरक्षाधिकारी से बात की लेकिन उन्होंने छात्राओं के धरने को खत्म कराने के लिए कोई ठोस पहल नहीं की। विश्वविद्यालय प्रशासन की यही भूमिका खासतौर पर कुलपति के उस एजेंडे की ओर इशारा करती है जो उन्होंने एक सोची-समझी रणनीति के तहत तैयार की थी।


जारी