इलेक्टोरल बॉन्ड घाेटालाः सरकार के दबाव में RTI आवेदकों से कैसे झूठ बोलता रहा SBI


Courtesy: The Hindu


हफपोस्ट इंडिया द्वारा की गयी इलेक्टोरल बॉन्ड संबंधी कागज़ात की पड़ताल में यह सामने आया है कि इस विवादास्पद योजना के बारे में सूचना प्रदान करने में भारतीय स्टेट बैंक ने सार्वजनिक रूप से गलतबयानी की थी और कुछ मामलों में सूचना के अधिकार के तहत किए गए आवेदनों पर झूठे जवाब भी दाखिल किए थे। यह इसके बावजूद था कि बैंक ये सूचनाएं नियमित रूप से वित्त मंत्रालय को भेज रहा था।

सूचना कार्यकर्ता वेंकटेश नायक ने दिनांक 4 दिसंबर, 2019 को किए आरटीआइ आवेदन में एसबीआइ से 13 सीधे सवाल पूछे थे। एसबीआइ ने इस आवेदन के कुछ सवालों से जिस तरह से कन्नी काटी और कुछ अन्य सवालों के जैसे गलत जवाब दिए, वह दिखाता है कि किस हद तक इस बैंक के अफ़सर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी वाली केंद्र सरकार में बैठे अपने सियासी आकाओं के हितों की रक्षा में तैनात हैं। बैंक के इन ‘जवाबों’ पर एसबीआइ के डिप्टी जनरल मैनेजर और केंद्रीय सूचना अधिकारी नरेश कुमार रहेजा के दस्तखत हैं।

यह मामला इतना महत्वपूर्ण इसलिए बन जाता है क्योंकि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की आलोचना उसमें निहित अपारदर्शिता, दुरुपयोग की गुंजाइश आदि के लिए पहले भी होती रही है जिसमें एक स्थापित आलोचना का बिंदु यह रहा है कि यह योजना सरकार को निगरानी रखने की सहूलियत देती है कि कौन किसको अनुदान दे रहा है, और ऐसा करते हुए सरकार विपक्ष व बाकी देश को अंधेरे में रख सकती है।

इस योजना का खाका ही ऐसा है जो एसबीआइ जैसी संस्थाओं के ऊपर इसके तटस्थ क्रियान्वयन की असंगत जिम्मेदारी थोपता है। ऐसे में एसबीआइ यदि सूचना के अधिकार के आवेदन का गलत जवाब दे रहा हो तो इससे यही समझ में आता है कि ऐसा वित्त मंत्रालय की शह पर ही किया जा रहा था।

दिसंबर 2019 में हफपोस्ट इंडिया ने गुप्त अनुदान के दावों के झूठे होने की बात उजागर की थी, कि कैसे प्रत्येक इलेक्टोरल बॉन्ड से सम्बद्ध एक गोपनीय संख्या के सहारे एसबीआइ प्रत्येक विनिमय का शुरू से अंत तक पता लगा सकता है। हफपोस्ट इंडिया ने यह भी उद्घाटन किया था कि वित्त मंत्रालय के निर्देशों पर एसबीआइ ने कैसे एक्सपायर हो चुके (जिनकी अवधि समाप्त हो चुकी हो) बॉन्ड स्वीकार किए थे।

हफपोस्ट इंडिया ने ख़बर दी थी कि कैसे जब पहली बार एसबीआइ को आरटीआइ आवेदन आने लगे, तो उसने वित्त मंत्रालय से सूचना प्रदान करने की अनुमति मांगी, जो कि अवैध था क्योंकि आरटीआइ कानून के तहत सूचना प्रदाता के बतौर एसबीआइ एक स्वतंत्र अधिकरण है जिसे केंद्र सरकार से मंजूरी की दरकार नहीं है।

पहले झूठ बोल कर बहकाया 

नायक ने जो सवाल पूछे थे, उन्हें कुछ इस तरह से ड्राफ्ट किया गया था कि यह अंदाजा लग सके कि मार्च 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड के लागू होने के बाद बॉन्डों की पहली खेप बेचे जाने से लेकर तब तक (घोषणा फरवरी 2017 में की गयी थी) प्राप्तकर्ताओं ने योजना का उपयोग किस तरह से किया था। (यह ध्यान रखने वाला तथ्य है कि बीजेपी ने इस पहली खेप से 95 फीसदी धन प्राप्त किया था)।

इन्हीं में एक सवाल छापे गए, बेचे गए और खरीदे गए बान्डों की संख्या से जुड़ा है, जिसमें उन्हें भुनाए जाने का तारीखवार विवरण भी शामिल है (जिससे यह समझ आ सके कि खरीदार ने कितने दिन इसे अपने पास रखा)। एसबीआइ ने भुना लिए गए और जब्त बॉन्डों के कागज़ात कब तक संभाले रखे और भुनाए गए बॉन्डों को रखे जाने की भौगोलिक अवस्थिति क्या थी, यह भी पूछा गया था।

ये सवाल काफी अहम थे क्योंकि रिजर्व बैंक आँफ इंडिया ने चिंता जतायी थी कि इन बॉन्डों का दुरुपयोग पैसे की हेरफेर में किया जा सकता है चूकि ये बियरर (वाहक) बॉन्ड थे और यदि इन्हें भारी मात्रा में जारी किया जाए तो इससे भारतीय मुद्रा में आस्था का अवमूल्यन भी हो सकता था।

नायक ने जब एसबीआइ से पूछा कि प्रत्येक मूल्य के कितने न्ड 2018 और 2019 में बेचे गए हैं, तो बैंक का जवाब था, “जिस स्वरूप में यह सूचना मांगी गयी है वह सार्वजनिक अधिकरण के पास उपलब्ध नहीं है और इसलिए प्रदान नहीं की जा सकती।

यह झूठ है।

एक और सूचना कार्यकर्ता कमोडोर लोकेश बत्रा (सेवानिवृत्त) द्वारा किए गए आरटीआइ आवेदन में हासिल दस्तावेज कुछ और कहानी कहते हैं। हफपोस्ट द्वारा इन कागज़ात की पड़ताल से पता चलता है कि एसबीआइ उक्त डेटा को रखता है, वित्त मंत्रालय के साथ समय-समय पर साझा करता है और इन बॉन्डों के मुद्रण के संबंध में निर्देश भी लेता है।

एसबीआइ ने इन बॉन्डों की बिक्री और भुनाए जाने के बारे में 4 अप्रैल, 2018 को वित्त मंत्रालय को विस्तृत सूचना दी थी, जब पहली खेप की बिक्री की गयी थी। इसके बाद हर बार बिक्री और भुनाए जाने के वक्त इनकी सूचना वित्त मंत्रालय को बैंक देता रहा।

नायक ने मार्च 2018 से एसबीआइ की प्रत्येक शाखा से बेचे गए इलेक्टोरल बॉन्ड का तारीखवार रिकॉर्ड भी मांगा था।

बैंक ने जवाब में दावा किया कि उसके मुख्यालय ने शाखाओं से यह सूचना एकत्रित नहीं की है और ऐसा करने से “बैंक के संसाधनों पर अनावश्यक दबाव पड़ेगा।”

यह बात भी गलत है।

हफपोस्ट इंडिया द्वारा कागज़ात की पड़ताल बताती है कि एसबीआइ के पास इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के परिचालन के लिए एक विशिष्ट टीम है जिसका नाम है ट्रांजैक्शन बिजनेस यूनिट। यह यूनिट सभी इलेक्टोरल बॉन्ड की लेनदेन का केंद्रीकृत रिकॉर्ड रखती है। यह डेटा नियमित रूप से सभी बैंक शाखाओं से जुटाया जाता है और हर दस दिन की बिक्री के बाद इसे वित्त मंत्रालय के साथ साझा किया जाता है।

देश भर में एसबीआइ की 24,000 से ज्यादा शाखाएं हैं और इनमें केवल 32 शाखाएं ही बॉन्ड बेच सकती हैं। इससे यह दावा झूठा साबित होता है इस डेटा संग्रहित करने से बैंक के संसाधनों पर अनावश्यक दबाव पड़ेगा।

प्रत्येक मूल्य के कितने बॉन्ड बेचे गए और राजनीतिक दलों द्वारा कितने भुनाए गए, इसका जवाब नहीं देने के लिए भी बैंक ने वही बहाना बनाया।

कमोडोर लोकेश बत्रा (सेवानिवृत्त) ने वित्त मंत्रालय के रिकॉर्ड खंगाले हैं जो बताते हैं कि हर बार बिक्री की अवधि पूरी होने पर उसे बॉन्डों की बिक्री के बारे में बैंक से नियमित अपडेट मिलता रहा है।

इससे पहले बैंक आरटीआइ के जवाब में यह तक बता चुका है कि हर बार की बिक्री में कितना नकद आया था।

फिर प्रहसन

नायक ने कुछ और सवाल इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की आवर्ती लागत का अनुमान लगाने के लिए पूछे थे। एसबीआइ ने इसका जवाब देने से इनकार करते हुए दावा किया, “आवेदक द्वारा मांगी गयी सूचना वाणिज्यिक रूप से गोपनीय सूचना है जिसे प्रदान करने से बैंक की प्रतिस्पर्धी स्थिति को नुकसान पहुंचेगा। इसलिए आरटीआइ कानून की धारा 8(1)(डी) के तहत यह सूचना नहीं दी जा सकती।”

एसबीआइ का पक्ष यहां इसलिए पुष्ट नहीं ठहरता क्योंकि इलेक्टोरल बॉन्ड योजना पर इस बैंक का एकाधिकार है। किसी और बैंक को बॉन्ड बेचने की अनुमति नहीं है। एसबीआइ का काम इसे सरकारी योजना की तरह चलाना है न कि एक स्वतंत्र बैंक के किसी वाणिज्यिक उद्यम के जैसे। इसके अलावा, यह तथ्य तो है ही कि एसबीआइ खुद इन डेटा को संग्रहित करता है और इसे वित्त मंत्रालय को भेजता है।यक के सवालों की सूची के अंत तक आते आते ऐसा लगता है कि एसबीआइ ने सूचना प्रदान करने से इनकार करने में पूरी तरह हास्यास्पद रवैया अपनाया है।

नायक ने जब पूछा कि इन बॉन्डों को भौतिक स्वरूप में एसबीआइ ने कितने दिन अपने पास रखा, कब इन्हें भुनाया गया, कब ये ज़ब्त हुए या नष्ट कर दिए गए और वह भैगोलिक अवस्थिति क्या थी जहां ये बॉन्ड रखे गए, तो इन सब के जवाब में बैंक का दावा था कि यह सूचना “व्यक्ति की निजता के अनावश्यक उल्लंघन” की श्रेणी में आती है।

इसलिए सूचना नहीं दी गयी।

आरटीआइ कानून के तहत सार्वजनिक अधिकरण ऐसी सूचना को बेशक रोक सकते हैं जो नागरिकों और किसी तीसरी पार्टी की निजी जिंदगी से ताल्लुक रखती हों, लेकिन यहां यह मामला नहीं बनता।

हफपोस्ट इंडिया ने एसबीआइ को एक विस्तृत प्रश्नावली भेजी है। बैंक का जवाब आने पर स्टोरी को अपडेट किया जाएगा।


नितिन सेठी की यह स्टोरी हफपोस्ट इंडिया और न्यूज़लॉन्ड्री से साभार प्रकाशित है