ब्रह्माण्ड की धूल कण भर पृथ्वी पर मंदिर-मस्जिद का झगड़ा!



“इस महाविराट ब्रम्हांड के परिदृश्य में हमारी पृथ्वी लगभग कुछ भी नहीं है. ज़रा सोचिये, आज तक कितने सम्राटों और सेनापतियों ने खून की नदियाँ बहाईं ताकि वे इसी बिंदु के एक छोटे से अंश पर अपनी गौरवगाथा लिख सकें. धूल के इसी नीले कण के एक छोर पर रहनेवाले रहवासियों ने किसी दूसरे छोर पर उनकी ही जैसी मिट्टी पर शांतिपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे अपने भाइयों को न जाने कैसी नासमझी और घृणा के वशीभूत होकर मौत के घाट उतार दिया.”- कार्ल सागन

“The Pale Blue Dot” (धुंधला नीला बिंदु) अंतरिक्ष यान वॉयजर द्वारा वर्ष 1990 में सौरमंडल की सीमा से बाहर जाते समय लिया गया एक फोटो है. इस फोटो में पृथ्वी को 6 अरब किलोमीटर (6,00,00,00,000 Kms.) की दूरी से देखा गया है. इस फोटो को खींचने का विचार और इसका शीर्षक कार्ल सागन ने दिया और 1994 में इसी नाम से एक किताब लिखी. स्पेस.कॉम ने इस फोटो को दस सर्वश्रेष्ठ अंतरिक्ष फोटो में चुना.

आज कार्ल सागन(Carl Sagan) का जन्मदिन है!

कार्ल सागन (9 नवम्बर 1934 – 20 दिसम्बर 1996) प्रसिद्ध खगोलशास्त्री और खगोल रसायनशास्त्री थे जिन्होंने खगोल शास्त्र, खगोल भौतिकी और खगोल रसायनशास्त्र को लोकप्रिय बनाया। इन्होंने पृथ्वी से इतर ब्रह्माण्ड में जीवन की खोज करने के लिए सेटी नामक संस्था की स्थापना भी की।

इन्होंने अनेक विज्ञान संबंधी पुस्तकें भी लिखी हैं। ये 1980 के बहुदर्शित टेलिविजन कार्यक्रम कॉसमॉस: ए पर्सनल वॉयेज (ब्रह्माण्ड: एक निजी यात्रा) के प्रस्तुतकर्ता भी थे। इन्होंने इस कार्यक्रम पर आधारित कॉसमॉस नामक पुस्तक भी लिखी। अपने जीवनकाल में सागन ने 600 से भी अधिक वैज्ञानिक शोधपत्र और लोकप्रिय लेख लिखे और 20 से अधिक पुस्तकें लिखी। अपनी कृतियों में ये अकसर मानवता, वैज्ञानिक पद्धति और संशयी अनुसंधान पर जोर देते थे।

चित्रो मे कार्ल सागन तथा वॉयजर अन्तरिक्ष यान द्वारा वर्ष १९९० में छः अरब किलोमीटर की दूरी से लिया गया पृथ्वी का चित्र. फोटो में दिख रही पीली, हरी, लाल पट्टियाँ कैमरे के लेंस पर पड़ रही सूर्य की किरणों का प्रभाव हैं.

इस चित्र पर कार्ल सागन की टिप्पणी:

इस बिंदु को दोबारा देखिए. हम यहीं हैं. यह हमारा घर है. ये हम हैं. इसपर वह सब कुछ है जिससे हम प्रेम करते हैं, जिसे हम जानते हैं, जिसे हमने कभी देखा, कभी सुना…इसी पर आज तक जन्मे सभी मनुष्यों ने अपना जीवन गुज़ारा. सूर्य की किरण में थमे हुए धूल के इसी कण पर मानव जाति के इतिहास के सभी दुःख-सुख, सैंकडों धर्मों-पंथों के द्वंद्व, मान्यताएं, आर्थिक विचार, सारे आखेटक और उनके शिकार, नायक और कापुरुष, सभ्यता के निर्माता और विध्वंसक, राजा और किसान, प्रेमी युगल, माता-पिता, शिशु, आविष्कारक और दुस्साहसी, नीतिवान शिक्षक, भ्रष्ट नेता, सुपरस्टार, राष्ट्रनायक, महात्मा और नराधम उत्पन्न हुए.

इस महाविराट ब्रम्हांड के परिदृश्य में हमारी पृथ्वी लगभग कुछ भी नहीं है. ज़रा सोचिये, आज तक कितने सम्राटों और सेनापतियों ने खून की नदियाँ बहाईं ताकि वे इसी बिंदु के एक छोटे से अंश पर अपनी गौरवगाथा लिख सकें. धूल के इसी नीले कण के एक छोर पर रहनेवाले रहवासियों ने किसी दूसरे छोर पर उनकी ही जैसी मिट्टी पर शांतिपूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे अपने भाइयों को न जाने कैसी नासमझी और घृणा के वशीभूत होकर मौत के घाट उतार दिया.

हमारे असंगत व्यवहार, हमारी काल्पनिक आत्म-गुरुता, और हमारा यह भ्रम कि इस महाविराट ब्रम्हांड में हमारा एक विशेष स्थान है – यह धुंधली रोशनी में लटके इस बिंदु से ध्वस्त हो जाता है. हमें अथाह घटाटोप अन्धकार में लपेटे हुए इस ब्रम्हांड में हमारी पृथ्वी धूल का एक अकेला कण मात्र है. इस गहनता से उपजी असहायता में कोई दिलासा नहीं है कि कभी कोई कहीं से हमें हमसे ही बचाने आएगा.

हमारी पृथ्वी ही वह ज्ञात विश्व है जहाँ जीवन है. आनेवाले समय में भी कहीं ऐसा कुछ नहीं दिखता जहाँ हम प्रस्थान कर सकें. जा भी सकें तो बस न सकेंगे. मानें या न मानें, इस क्षण तो पृथ्वी ही वह स्थान है जहाँ हम अटल रह सकते हैं.

कहा जाता है कि अन्तरिक्ष विज्ञान का अध्ययन मनुष्य को विनीत और उसके चरित्र को दृढ़ बनाता है. हमारे इस छोटे से संसार की इस दूरतम छवि से बेहतर भला क्या होगा जो मनुष्य के मूर्खतापूर्ण दंभ को उजागर कर दे. मेरे लिए तो यह हमारी जिम्मेदारी के नीचे एक अधोरेखा खींचकर यह बताता है कि हमें एक दूसरे से उदारतापूर्ण व्यवहार करना है और इस नीले बिंदु की रक्षा करनी है क्योंकि जिसे हम घर कह सकते हैं वह यही है.

. आशीष श्रीवास्तव
अनुवाद : निशांत मिश्र

(आशीष श्रीवास्तव की फेसबुक टिप्पणी पर आधारित।)