जज लोया की मौत: दबाव डालकर गलत पंचनामा करवाने वाला डॉक्टर कैबिनेट मंत्री का रिश्तेदार है



निकिता सक्सेना / The Caravan

नागपुर के राजकीय मेडिकल कॉलेज के फॉरेन्सिक मेडिसिन विभाग में किए गए जज बीएच लोया के पोस्‍ट-मॉर्टम से जुडी परिस्थितियों पर दो महीने की जांच के बाद जो तथ्‍य सामने आए हैं, वे सिहरा देने वाले हैं। यह पोस्‍ट-मॉर्टम एक ऐसे डॉक्‍टर की निगरानी में किया गया जिसने बाकायद लिखवाया था कि कौन सा विवरण पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्ट में जोड़ना है और क्‍या घटाना है। बाद में कई पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्टों में घपलेबाज़ी की शिकायत पर इस डॉक्‍टर के खिलाफ जीएमसी में जांच भी चली थी। यह डॉक्‍टर अब तक लोया मामले में किसी भी मेडिकल या कानूनी दस्‍तावेज़ से अपना नाम दूर रखने में कामयाब रहा है। अब तक जज लोया की मौत के मामले में हुई मीडिया कवरेज की नज़र से भी यह डॉक्‍टर साफ़ बचता रहा है।

आधिकारिक रिकॉर्ड के मुताबिक लोया का पोस्‍ट-मॉर्टम डॉ. एनके तुमराम ने किया था जो उस वक्‍त जीएमसी के फॉरेन्सिक मेडिसिन विभग में लेक्चरार थे लेकिन वास्‍तव में य पोस्‍ट-मॉर्टम डॉ. मकरन्‍द व्‍यवहारे के निर्देष पर किया गया जो उस वक्‍त विभाग में प्रोफेसर थे और अब नागपुर के एक दूसरे संस्‍थान इंदिरा गांधी राजकीय मेडिकल कॉलेज में फॉरेन्सिक विभाग के अध्‍यक्ष हैं। व्‍यवहारे एक ताकतवर संस्‍था महाराष्‍ट्र मेडिकल काउंसिल के सदस्‍य भी हैं जो राज्‍य में सभी चिकित्‍सा‍कर्मियों का निरीक्षण करने वाली इकाई है। अपने पेशेवर दायरे में उन्‍हें अपने राजनीतिक संबंधों के चलते सत्‍ता का इस्‍तेमाल करने वाले शख्‍स के रूप में जाना जाता है। व्‍यवहारे महाराष्‍ट्र के वित्‍त मंत्री सुधीर मुंगंतिवार के साले हैं जो देवेंद्र फणनवीस के बाद राज्‍य सरकार में दूसरे नंबर के नेता माने जाते हैं।

व्‍यवहारे ने लोया के केस में असाधारण दिलचस्‍पी ली थी। पोस्‍ट-मॉर्टम के दौरान वहां मौजूद कर्मचारियों के साक्षात्‍कार के अनुसार व्‍यवहारे ने पोस्‍ट-मॉर्टम जांच में निजी रूप से हिस्‍सा लिया और उसे निर्देशित किया- यहां तक कि एक जूनियर डॉक्‍टर पर वे चिल्‍ला भी उठे जब उसने लोया के सिर की जांच करते वक्‍त कुछ सवाल उठाए। लाया के सिर के पीछे एक घाव था लेकिन व्‍यवहारे ने ही यह सुनिश्चित किया कि पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्ट में इसका जि़क्र न होने पाए। रिपोर्ट कहती है कि लोया की मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी। मामले की जांच से यह साफ़ है कि किसी भी ऐसे निष्‍कर्ष को छुपाने का संगठित प्रयास किया गया जो लोया की मौत के संदर्भ में आशंका को जन्‍म दे सके और व्‍यवहारे की भूमिका यहां पोस्‍ट-मॉर्टम जांच पर परदा डालने में रही है।

यह संगीन आरोप इस तथ्‍य से और पुष्‍ट होता है कि जीएमसी के कई कर्मचारियों ने मुझे बताया कि वे ऐसे कुछ मामलों के गवाह रहे हैं जहां व्‍यवहारे ने पोस्‍ट-मॉर्टम जांच में हेरफेर की और झूठी रिपोर्ट बनाई। उनकी ऐसी हरकतों के खिलाफ रेजि़डेंट डॉक्‍टरों और मेडिकल के छात्रों ने जब मुखर विरोध दर्ज कराया, तब जाकर 2015 में जीएमसी ने व्‍यवहारे के खिलाफ जांच बैठायी।

द कारवां की यह नई पड़ताल- जो एक ऐसे अज्ञात डॉक्‍टर की भूमिका को उजागर करती है जिसने लोया के सिर पर लगी चोट जैसे अहम तथ्‍यों को सफलतापूर्वक छुपाने का काम किया- समूचे पोस्‍ट-मॉर्टम की प्रक्रिया की सत्‍यता पर ह सवाल खड़ा करती है और इस तरह लोया की मौत की वजह के सरकारी संस्‍करण पर संदेह पैदा कर देती है। द कारवां ने नवंबर 2017 में जब पहली बार लोया के परिजनों के संदेह पर रिपोर्ट प्रकाशित की थी, तब अचानक एक कथित ईसीजी परीक्षण का एक चार्ट कुछ चुनिंदा मीडिया प्रतिष्‍ठानों तक पहुंचा दिया गया था जिन्‍होंने उसके आधार पर छाप दिया कि उनकी मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई है। सोशल मीडिया पर उस चार्ट की गड़बडि़यों की तरफ लोगों ने इशारा किया। महाराष्‍ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में लोया की मौत की स्‍वतंत्र जांच की आवश्‍यकता के खिलाफ अपनी दलील देते हुए उस चार्ट को प्रस्‍तुत नहीं किया। इसके चलते जीएमसी में तैयार पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्ट अकेले सबसे अहम दस्‍तावेज़ के रूप में उभरी जिसके आधार पर महाराष्‍ट्र सरकार ने दलील दी कि लोया की मौत प्राकृतिक थी। अब पोस्‍ट-मॉर्टम परीक्षण की समूची कवायद खुद कठघरे में खड़ी हो गई है।

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इस जांच में जीएमसी के 14 मौजूदा ओर पूर्व कर्मचारियों के बयानात हैं। इसमें वे व्‍यक्ति भी शामिल हैं जिनके पास लोया के पोस्‍ट-मॉर्टम की प्रत्‍यक्ष जानकारी है। इन कर्मचारियों पर कोई आंच न आए, इसके लिए कारवां ने इनका नाम लेने के बजाय इनसे हुई मुलाकात के क्रम में इनकी पहचान रखने का फैसला किया है। इनमें से कई कर्मचारियों का साक्षात्‍कार एक से ज्‍यादा बार लिया गया। जिन्‍होंने भी बातचीत की, चाहे वे सीनियर प्रोफेसर ही क्‍यों न रहे हों, सभी को मुंह खोलने में भय था क्‍योंकि उन्‍हें व्‍यवहारे और प्रशासन सहित पुलिस व महाराष्‍ट्र के गुप्‍तचर विभाग की ओर से पलटवार कार्रवाई की आशंका थी चूंकि इन सभी ने एक ही पक्ष लगातार बनाए रखा है कि लोया की मौत प्राकृतिक थी।

इनकी गवाहियों के आधार पर मैंने 1 दिसंबर 2014 की सुबह 7 बजे (जब फॉरेन्सिक मेडिसिन विभाग खुलता है) से शुरू होकर जीएमसी तक के पूरे घटनाक्रम का एक खाका तैयार किया। जिन कर्मचारियेां को मैंने बोलने को राज़ी किया, उनमें से किसी को भी इस समय से पहले तक लोया की मौत की कोई जानकारी नहीं थी।

मुझसे मिले पांचवें कर्मचारी के अनुसार, जो कि उस दिन विभाग में मौजूद थे, लोया की लाश उस वक्‍त तक विभाग को सौंपी जा चुकी थी। विभाग खुलने के कुछ देर बाद व्‍यवहारे ने फोन कर के उस दिन पोस्‍ट-मॉर्टम के शिड्यूल के बारे में पूछा। वे करीब 10 बजे वहां आ गए- यह असाधारण था क्‍योंकि वे आम तौर से दोपहर होने तक विभाग में आया करते थे।

मुढसे मिले नौवें कर्मचारी ने बताया कि व्‍यवहारे कभी-कभार अपने व्‍याख्‍यानों में भी देर से पहुंचते थे और  ऐसे कुछ मामलों में 2014 में विभागाध्‍यक्ष रहे व्‍यवहारे के वरिष्‍ठ डॉ. पीजी दीक्षित उनकी जगह ले लेते थे। मुझसे मिले आठवें कर्मचारी ने कहा, ”समय जैसी चीज़ें आम लोगों के लिए होती हैं, राजाओं के लिए नहीं।”

व्‍यवहारे दस दिन पहुंचे तो उत्‍तेजित से थे। पांचवें कर्मचारी ने मुझे बताया, ”उस दिन उनका अंदाज़ ही अलग था। वे बहुत खींझे हुए थे।” व्‍यवहारे तुरंत विभाग के पोस्‍ट-मॉर्टम कक्ष में गए और पूछा कि क्‍रूा पुलिस ने लोया की लाश के काग़ज़ात तैयार कर लिए हैं। अब तक काग़ज़ात तैयार नहीं हुए थे।

अगले एक घंटे में व्‍यवहारे तनाव में आ गए। आम तौर से वे पौन घंटे में एक बार पोस्‍ट-मॉर्टम कक्ष के पास स्‍मोकिंग क्षेत्र में जाकर सिगरेट पीया करते थे लेकिन पांचवें कर्मचारी के मुताबिक उस दिन व्‍यवहारे हर पंद्रह मिनट पर एक सिगरेट पी रहे थे। वे बार-बार पोस्‍ट-मॉर्टम कक्ष में जाते, ”पूछते (काग़ज़ात के बारे में), फिर बाहर जाते और एक सिगरेट सुलगा लेते…  काग़ज़ात के आने तक वे कम से कम तीन बार (पोस्‍ट-मॉर्टम) कक्ष में आ चुके थे।”

उस दिन पोस्‍ट-मॉर्टम ड्यूटी पर दो डॉक्‍टर थे- तुमराम और एक पोस्‍ट-ग्रेजुएट का छात्र अमित थामके। जब लोया का पोस्‍ट-मॉर्टम शुरू हुआ- 10.55 बजे, रिपोर्ट के मुताबिक- व्‍यवहारे भी वहां आ गए।

मुर्दाघर के कर्मचारियों ने लोया की लाश को जांच टेबल पर लिटाया और पोस्‍ट-मॉर्टम के लिए तैयार कर दिया। व्‍यवहारे ने सर्जिकल जांच के लिए दस्‍ताने पहन लिए- यह उनके लिए भी असामान्‍य बात थी। पहले कर्मचारी ने मुझे बताया, ”व्‍यवहारे कभी भी दस्‍ताने नहीं पहनते हैं… इसीलिए यह ए‍क अद्भुत बात थी।” उसने बताया कि अधिकतर बार जब उसने व्‍यवहारे को पोस्‍ट-मॉर्टम कक्ष में देखा है, व्‍यवहारे ने कभी भी खुद ऑटोप्‍सी नहीं की और न ही उन्‍होंने कभी दसताने पहने।

लोया की ऑटोप्‍सी के दौरान व्‍यवहारे के शर्ट की मुड़ी हुई बांह अचानक नीचे खिसक आई। उन्‍हेांने कमरे में मौजूद दो डॉक्‍टरों में सक एक को कहा कि बांह ऊपर कर दे। पांचवें कर्मचारी का कहना था, ”खुद नहीं किया। उस लाश के साथ वे हर छोटी-छोटी बात पर खीझ जा रहे थे।”

एक महीने के अंतराल पर लिए गए दो अलग-अलग साक्षात्‍कारों में पांचवें कर्मचारी ने मुझे बताया कि लोया के सिर पर एक चोट थी, ”पीछे की ओर दाहिनी तरफ”। यह चोट ”ऐसी थी जैसे कि कोई पत्‍थर लगा हो और चमड़ी हट गई हो।” उसके मुताबिक यह चोट बहुत बड़ी नहीं थी लेकिन इतनी गहरी जरूर थी कि खून भरभरा कर उससे निकल गया रहा होगा क्‍योंकि ”लोया को ढंका हुआ कपड़ा सिर की तरफ खून में सन चुका था… वह पूरी तरह लाल था।” लोया के सिर पर चोट वाली जगह ”बाल भी चिपके हुए थे।”

लोया के सिर की जांच के दौरान व्‍यवहारे ने तुमराम को डांटा था। पांचवें कर्मचारी ने बताया कि तुमराम ने व्‍यवहारे का ध्‍यान किसी चीज़ की ओर खींचा जिस पर व्‍यवहारे ने उसे डांटते हुए मराठी में कहा, ”जितना कह रहा हूं उतना ही लिखो।” परीक्षण के अंत में कर्मचारी ने याद करते हुए बताया कि व्‍यवहारे ने कहा था, ”मेरे सामने पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्अ के निष्‍कर्ष लिखो।”

रिपोर्ट सिर पर लगी चोट को नजरंदाज करती है और कहती है कि लोया की मौत की संभावित वजह ”कोरोनरी आर्टरी इनसफीशियंसी” है। उपशीर्षक ”एक्‍सटर्नल एग्‍जामिनेशन” में बिंदु संख्‍या 14 के अंतर्गत ”त्‍वचा की स्थिति-खून के धब्‍बे, इत्‍यादि” के नीचे लिखा है ”ड्राइ एंड पेल”। बिंदु 17 में ”सरफेस वुंड्स एंड इंजरीज़” के तहत रिपोर्ट कहती है, ”नो एविडेंस ऑफ एनी बॉडिली इंजरीज़” (शरीर पर चोट का कोई साक्ष्‍य नहीं)। बिंदु 18 में ”बाहरी जांच में पाया गया कोई और ज़ख्‍म या फ्रैक्‍चर के रूप में पैल्‍पेशन” में लिखा है, ”नन” (कोई नहीं)। बिंदु 19 में ”सिर” के अंतर्गत पहली प्रविष्टि ”इंजरीज़ अंडर द स्‍काल्‍प, देयर नेचर” में रिपोर्ट कहती है ”नो इंजरीज़”। फॉरेन्सिक विभाग के भीतर के कर्मचारियों की गवाहियां प्रत्‍येक प्रविष्टि की सत्‍यता पर सवाल खड़े कर रही हैं।

लोया के सिर पर चोट वाली जो बात बतायी गई, वह डॉ. आरके शर्मा द्वारा पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्ट के किए गए विश्‍लेषण से मेल खाती है। डॉ. शर्मा दिल्‍ली के भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान में फॉरेन्सिक मेडिसिन और टाक्सिकोलॉजी के प्रमुख रह चुके हैं। जैसा कि शर्मा ने कारवां को बताया था, रिपोर्ट कहती है कि लोया का ड्यूरा कंजस्‍टेड था। उन्‍होंने समझाया था, ”ड्यूरा मैटर मस्तिष्‍क को घेरने वाली बाहरी सतह है। यह सदमे जैसी किसी स्थिति में नुकसानग्रस्‍त हो जाती है, जो दिमाग पर किसी किस्‍म के हमले का संकेत है। शारीरिक हमला।”

पहली बार लोया के परिजनों ने बताया कि उनके सिर पर चोट के निशान थे और उनकी देह और शर्ट दोनों पर खून था। ये तमाम विवरण लोया की मौत पर कारवां की पहली रिपोर्ट का हिस्‍सा थे। सरकारी डॉक्‍टर डॉ. अनुराधा बियाणी ने कहा था कि परिजनों को सौंपे जाने के बाद उन्‍हेांने जब पहली बार अपने भाई की लाश देखी तो उन्‍होंने एक बात नोट की थी, ”गरदन और शर्ट के पीछे की तरफ खून के धब्‍बे थे।” लोया की मौत के बाद 2014 में उन्‍होंने अपनी डायरी में एक प्रविष्टि की थी, ”उनके कॉलर पर खून था।” लोया की दूसरी बहन सरिता मांधाने ने कारवां को बताया था कि उन्‍होंने ”गरदन पर खून देखा”, ”उनके सिर पर एक चोट थी और खून था… पीछे की ओर” और ”उनकी शर्ट पर खून के धब्‍बे थे।” लोया के पिता हरकिशन ने कहा था, ”उसकी शर्ट पर खून था बाएं बाजू से लेकर कमर तक।”

लोया की मौत के बाद तैयार किए गए मेडिकल काग़ज़ात को मैंने नौवें कर्मचारी के साथ साझा किया। उसे पढ़ने के बाद उसने कहा, ”यह जो अजीब है।” पोस्‍ट-मॉर्टम करने का मानक तरीका होता है कि मृतक के शरीर में से कोशिकाओं के नमूने लिए जाते हैं जिन्‍हें बिसरा के फॉर्म के साथ लैब में परीक्षण के लिए भेजा जाता है। यह फॉर्म पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्ट में दी गई सटीक सूचना के आधार पर पोस्‍ट-मॉर्टम के तत्‍काल बाद भरा जाता है। कर्मचारी ने कहा, ”पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्ट में इसने (डॉक्‍टर ने) हृदय के बारे में विशेष तौर पर लिखा है” लेकिन ये विवरण कहीं और नहीं दिखते। उसने कहा, ”इन्‍होंने पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्ट में जरूर बराद में हेरफेर की होगी।”

कारवां ने दिसंबर 2017 में एक स्‍टोरी प्रकाशित की थी जिसमें पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्ट पर लिखी एक तारीख की ओर इशारा किया गया था जिस पर दोबारा कलम चलायी गई थी। रिपोर्ट में एक अतिरिक्‍त प्रविष्टि भी दर्ज है जो उसके तैयार होने के दस दिन बाद डाली गई। दिलचस्‍प है कि पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्ट का पहला पन्‍ना जिसमें दोबारा लिखी हुई तारीख और अतिरिक्‍त प्रविष्टि दर्ज है, वह महाराष्‍ट्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में जमा कराए गए दस्‍तावेज़ों में से नदारद है। इस बात को जब याचिकाकर्ताओं में सक एक के वकील ने उठाया, तो 22 जनवरी 2018 को महाराष्‍ट्र सरकार के एक वकील ने कहा कि उसे उसी दिन के अंत तक जमा करा दिया जाएगा। चार दिन बाद कारवां ने खबर की कि ऐसा अब तक नहीं हुआ है। पहली बार जब अदालत में गायब पन्‍ने का मसला उठा था, उसके करीब दो महीने बाद 2 अप्रैल को महाराष्‍ट्र सरकार ने याचिकाकर्ता तहसीन पूनावाला के साथ वह पन्‍ना साझा किया, जिनकी इस मुकदमे में विश्‍वसनीयता पर पहले ही सवाल उठ चुका है। यह पन्‍ना अब तक दूसरे याचिकाकर्ता बॉम्‍बे लॉयर्स असोसिएशन के साथ साझा नहीं किया गया है, न ही इस मामले में एक प्रतिवादी अवकाश प्राप्त एडमिरल लक्ष्‍मीनारयण रामदास को मुहैया कराया गया। अब तक बॉम्‍बे लॉयर्स असोसिएशन और रामदास के वकील कोर्ट के समक्ष जांच के समर्थन में ढेरों दलील पेश कर चुके हैं।

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मैंने जिन 14 कर्मचारियों से बात की उनमें से 10 इस बात से सहमत थे कि व्‍यवहारे पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्ट को तैयार करने में दखल देने और उसकी सामग्री का बदलने में सक्षम हैं। नौवां कर्मचारी जिससे मेरी मुलाकात हुई, व्‍यवहारे का सहकर्मी है। उसने कहा, ”अगर यह नाम शामिल है, तो बिलकुल तय मानिए कि पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्ट में तब्‍दीली की गई होगी।”

व्‍यवहारे के एक सहकर्मी आठवें कर्मचारी ने कहा, ”कर सकते हैं.. वे ऐसे व्‍यक्ति हैं जो कुछ भी कर सकते हैं।”

जीएमसी में एक विभाग के अध्‍यक्ष रह चुके तीसरे कर्मचारी ने मुझसे कहा, ”अगर कोई राजनीतिक दबाव है, तो वे नतीजों के साथ हेरफेर बेशक कर सकते हें।”

जिस सातवें कर्मचारी से मैं मिली वे जीएमसी में सीनियर डॉक्‍टर हैं। वे कहते हैं, ”कुछ लोगों के लिए पोस्‍ट-मॉर्टम एक धंधा होता है- छोटी सा बदलाव करने के बड़े-बडे लाभ मिल सकते हैं क्‍योंकि यह समूची जांच की दिशा को बदल सकता है… वे (व्‍यवहारे) राजनीतिक संपर्क वाले व्‍यक्ति हैं, इस किस्‍म के लोग ऐसे काम कुछ ज्‍यादा ही करते हैं।”

महाराष्‍ट्र के मौजूदा वित्‍त मंत्री सुधीर मुंगंतिवार व्‍यवहारे के जीजा हैं। मुंगंतिवार भारतीय जनता पार्टी के राज्‍य में अध्‍यक्ष थे। पहली बार जब 1995 में भाजपा राज्‍य की सत्‍ता में शिवसेना के साथ आई, तब मुंगंतिवार को मंत्री बनाया गया। वे महाराष्‍ट्र के विदर्भ क्षेत्र में स्थित चंद्रपुर से आते हैं। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भी यहीं के हैं। भाजपा जब 2014 में वापस राज्‍य की सत्‍ता में लौटी, तो मुंगंतिवार को मुख्‍यमंत्री पद का दावेदार माना जा रहा था लेकिन देवेंद्र फणनवीस को मुख्‍यमंत्री बनाए जाने के चलते मुंगंतिवार को नंबर दो पर डाल दिया गया। उनके पास तीन विभाग हैं: वित्‍त, योजना और वन। वे चंद्रपुर और वर्धा के अभिभावक मंत्री भी हैं।

व्‍यवहारे के सहकर्मी बार-बार इस बात का जिक्र करते हैं कि उन्‍होंने अपने समूचे करियर में मुंगंतिवार के साथ अपने रिश्‍ते को भुनाने का काम किया है। जिस तीसरे कर्मचारी से मैंने बात की, वह व्‍यवहारे को 1990 के दशक से जानता है जब वे पोस्‍ट-ग्रेजुएट के छात्र हुआ करते थे। उसने बताया, ”मुंगंतिवार जब विपक्ष के एक मामूली विधायक थे, तब भी व्‍यवहारे उनके रसूख का इस्‍तेमाल करता था। अब तो वे सत्‍ता में हैं, तो आप कल्‍पना कर सकते हैं।”

नौवें कर्मचारी ने महाभारत का संदर्भ लेते हुए कहा, ”आप जानते हैं कि दुर्योधन के अपराधों की ओर से धृतराष्‍ट्र कैसे आंखें मूंदे रहते थे। यह जोड़ी ऐसी ही है।”

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लोया के पोस्‍ट-मॉर्टम के करीब महीने भर बाद जनवरी 2015 में व्‍यवहारे जीएमसी में फॉरेन्सिक विभाग के अध्‍यक्ष बने। कुछ महीने बाद उन्‍हें कॉलेज का वाइस डीन बना दिया गया। उनका यह नाटकीय उभार उस साल के अंत तक संकट में फंस गया जब सैकडों छात्र और रेजिडेंट डॉक्‍टर उनके खिलाफ विरोध में उतर आए और जीएमसी को ठप कर दिया। फिर जीएमसी के डीन ने उनके खिलाफ जांच का आदेश दिया और व्‍यवहारे का मेडिकल कॉलेज से तबादला कर दिया गया। तीसरे कर्मचारी ने कहा, ”पानी सिर के ऊपर चला गया था।”

17 नवंबर 2015 को 28 साल के एक पोस्‍ट-ग्रेजुएट छात्र डॉ. नितिन शरणागत ने खुद को छात्रवास के कमरे में बंद कर के दवा का ओवरडोज़ ले लिया और खुदकुशी की कोशिश की। शरणागत के सहपाठियों ने दरवाजा तोड़ा तो उसे मुंह से झाग फेंकते हुए पाया। वे उसे लेकर अस्‍पताल गए जहां उसकी जान बच गई। अपने सुसाइड नोट में शरणागत ने लिखा था कि व्‍यवहारे की सतत प्रताड़ना के चलते वह यह कदम उठाने को बाध्‍य हुआ है।

उस वक्‍त टाइम्‍स ऑफ इंडिया को दिए एक साक्षात्‍कार में शरणागत ने कहा था, ”डॉ. व्‍यवहारे अकसर अपने परिजन का नाम लेकर मुझे धमकाते थे जो राज्‍य की कैबिनेट में एक मंत्री है। वे मुझे मेरे किए पोस्‍ट-मॉर्टम पर दस्‍तखत नहीं कर के प्रताडि़त करते थे। किसी-किसी दिन तो वे मुझे कोई काम नहीं देते थे और खाली बैठाए रहते थे।”

इस बीच एक महिला छात्र ने भी व्‍यवहारे के लिखफ यौन दुर्व्‍यहार की शिकायत दर्ज करवायी थी। जीएमसी के एक शिक्षक ने नागपुर टुडे नाम की वबसाइट को बताया था कि व्‍यवहारे ”अकसर उसे गलत तरीके से छूता था, उसके दिखने को लेकर भद्दी टिप्‍पणियां करता था और अकसर उससे पार्टी में साथ चलने को कहता था।” मैंने जिन लोगों से बात की, उनमें चार लोग एक घटना के गवाह थे जब व्‍यवहारे ने सभी छात्रों के सामने शिकायत करने वाली छात्रा से कहा था कि वह जिस लाश का परीक्षण कर रही है उसकी जांघ पर लगी चोट वाली जगह अपने पैरों पर दिखाए। नौंवें कर्मचारी की मानें तो व्‍यवहारे पर 2007 में भी ऐसे ही आरोप लगे थे जब महिला मेडिकल प्रशिक्षुओं ने शिकायत की थी कि वे उन्‍हें अपने ए्प्रन उतारने को कहते हैं जो उनकी युनिफॉर्म का हिस्‍सा है। उस वक्‍त व्‍यवहारे के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई। घटना के कई साल बाद तक, जैसा कि कर्मचारी बताते हैं, छात्राओं को फॉरेन्सिक मेडिसिन विभाग में इंटर्नशिप नहीं करने दी गई।

शरणागत की खुदकुशी की कोशिश वाली खबर राज्‍य में काफी तेजी से फैली थी। इसके बाद महाराष्‍ट्र असोसिएशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्‍टर्स और स्‍टूडेंट्स काउसिल ऑफ मेडिकल कॉलेज ने व्‍यवहारे को हटाने के लिए हड़ताल की जिसके चलते मेडिकल कॉलेज अस्‍पताल में सारा काम ठप हो गया।

नागपुर टुडे में 19 नवंबर 2015 को प्रकाशित एक रिपोर्ट ने काफी महत्‍वपूर्ण उद्घाटन किया। छात्रों को प्रताडि़त करने के आरोप के अलावा अखबार ने लिखा, ”व्‍यवहारे के खिलाफ पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्ट बदलने के 17 गंभीर आरोप हैं। यह एक ऐसा गंभीर मुद्दा है कि जीएमसीएच की पेशेवर अखंडता ही खतरे में पड़ गई है।”

उस वक्‍त जीएमसी के डीन रहे डॉ. अभिमन्‍यु निसवाड़े ने दो जांच कमेटियां गठित कीं- एक का काम पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्ट से छेड़छाड़ सहित पेशागत कुकृत्‍य के आरोपों की जांच करना था। दूसरी कमेटी को यौन दुर्व्‍यवहार पर महिलाओं की शिकायत की जांच करनी थी।

पहले कर्मचारी ने बताया कि व्‍यवहारे के राजनीतिक संपर्कों के चलते फॉरेन्सिक मेडिसिन विभाग के कई प्रोफेसर ”सिर झुकाने को” मजबूर किए गए। उनका भय ”शिक्षकों में सबसे ज्‍यादा था क्‍योंकि शिक्षक नियमित कर्मचारी होते हैं। उन्‍हें डर है कि कहीं उनकी पदोन्‍नति न अटक जाए, तबादला न हो जाए या फिर वेतन बढ़ोतरी में रोक न लग जाए- ये सब कुछ मुमकिन था।”

चार कर्मचारियों ने याद करते हुए बताया कि कैसे नब्‍बे के दशक में जब व्‍यवहारे पोस्‍ट-ग्रेजुएट के छात्र थे, तब उनकी थीसिस में मदद कर रहे प्रोफेसर से उनकी कुछ अनबन हो गई थी। तीसरे कर्मचारी ने बताया, ”काफी झगड़ा हुआ थ, फिर उसने (व्‍यवहारे) शिकायत कर दी और दबाव बना दिया।” जल्‍द ही उस प्रोफेसर का तबादला यवतमाल कर दिया गया।

आठवें कर्मचारी ने मुझे बताया कि मुंगंतिवार के माध्‍यम से व्‍यवहारे ”अगर चाह जाए तो जीएमसी में किसका तबादला कब और कहां होगा, यह तय कर सकता है.. इसके पास इतनी ताकत है।”

पांचवें कर्मचारी ने बताया, ”पोस्‍ट-मॉर्टम कक्ष में वा अगर किसी से बात कर रहा हा तो बोलेगा- तुम मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकते। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सामने वाला डॉक्‍टर है या पुलिसवाला। वह अपने जीजा का नाम ले लेगा।” नौवें कर्मचारी ने बताया कि उसने सुन रखा था कि ”अगर कोई राजनीतिक संपर्क वाला मामला हो, मसलन कोई वीआइपी… और किसी की मौत बिजली का झटका लगने से हुई हो तो व्‍यवहारे कहता, ‘इसे ओपीनियन में शामिल मत करना।”’ मैं जिस चौंदहवें कर्मचारी से मिली वे जीएमसी के वरिष्‍ठतम फैकल्‍टी सदस्‍यों में एक हैं। उन्‍होंने बताया, ”मेरा खयाल है कि पोस्‍ट-मॉर्टम में अगर कोई बहुत अहम वीआइपी रहा हो या किसी और दबाव के चलते उसकी वचनबद्धता रही हो तो वो ऐसा कर सकता है (पोस्‍ट-मॉर्टम में तब्‍दीली)।”

पहले कर्मचारी ने कहा, ”अगर मुंगंतिवार के जिले चंद्रपुर से कोई लाश आई हो तब तो 101 फीसदी वो वहीं पर पाया जाएगा।” ”चंद्रपुर की लाश आते ही पूरा विभाग हिल जाता था”, पांचवें कर्मचारी ने बताया। एक चंद्रपुर की लाश का मामला ऐसा था कि स्‍टाफ के कुछ लोगों को पोस्‍ट-मॉर्टम के लिए आधी रात के बाद विभाग में बुलवा भेजा गया।

पांचवें कर्मचारी का कहना था, ”ऐसी लाशों में आप फ्रैक्‍चर आदि नहीं देख सकते, बस आपको जल्‍दी काम निपटाना होता है।” आम तौर से एक पंचनामे में घंटे भर का वक्‍त लगता है लेकिन चंद्रपुर की लाश के मामले में यह काम ”20 से 30 मिनट में निपटा दिया जाता है”। ऐसे एक मामले में वे याद करते हुए बताते हैं कि लाश के रिब्‍स में एक फ्रैक्‍चर साफ दिखता था लेकिन उसे पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्ट में दर्ज नहीं किया गया।

आठवें कर्मचारी ने बताया, ”वे कहते थे कि तुमने जो लिखा है वो गलत है इसलिए बदल डालो।” थोड़ा ठहर कर उसने कहा, ”कभी-कभार तो ऐसे बदलाव… ठीक हैं लेकिन कभी ऐसा भी होता है कि एक ओपीनियन को रद्द करने से इंसाफ़ पर फ़र्क पड़ता है।”

अकसर व्‍यवहारे जो बदलाव करवाते थे उससे मौत के कारण को हलका कर दिया जाता था। पहले कर्मचारी ने बताया, ”मान लीजिए कि कहीं कोई चोट लगी हो, तो (व्‍यवहारे के रिपोर्ट में बदलाव करने के बाद) अब भी उसे देखा जा सकता है लेकिन लाल के बजाय अब वह नीले रंग का होगा।” वे कहते हैं, ”इतने भर से मौत का वक्‍त बदल जाता है। ऐसे बदलावों के गंभीर निहितार्थ हो सकते हैं, हो सकता है कि आरोपी बच निकले और पीडि़त को इंसाफ न मिलने पाए।” वे कहते हैं, ”या फिर कोई ऐसा मामला हो जहां मौत की वजह म्‍योकार्डियन इनफार्क्‍शन हो, मृतक की कोरोनरी उतनी अवरुद्ध न पाई गई हो, तब भी वे अवरोध को बढ़ाकर दिखाते- मसलन, अगर आपको 60 फीसदी अवरोध मिला तो आपने उसे 90 फीसदी बना दिया और मौत का कारण लिख दिया ”कोरोनरी हार्ट डिजीज़”।

पहले कर्मचारी ने एक मामले का उदाहरण दिया जहां हत्‍या का संदेह था। ऑटोप्‍सी कर रहे डॉक्‍टर को व्‍यवहारे ने ”ज़ख्‍म में कई बदलाव करने” को बाध्‍य किया… ये बदलाव हो जाने के बाद ज़ख्‍म जैसा था, वैसा नहीं रह गया।” इसके बाद डॉक्‍टर को बाध्‍य किया गया कि वह अपने द्वारा दस्‍तखत किए गए पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्ट के हिसाब से ही पुलिस को अपना बयान दे, इस तरह मौत के कारण के बारे में वह स्‍पष्‍ट नहीं हो सका। ”पुलिस उससे पूछती रही कि हादसा था या हत्‍या, उसने जवाब दिया कि दोनों ही स्थितियां ”संभव” हैं।” पहले कर्मचारी का कहना था कि ”मैंने खुद लाश को देखा था…उसके एक शब्‍द ”संभव” के चलते एक हत्‍या हो सकता है हादसे में तब्‍दील हो गई हो।”

एक और मामले में जब पहला कर्मचारी ज़हर से हुई मौत की रिपोर्ट पर काम कर रहा था, व्‍यवहारे ने निष्‍‍कर्षों को बदलने के लिए दखल दिया। कर्मचारी ने लाश का पेट चीर कर परीक्षण किया था। एक मामले में उसे सामग्री की गंध ”अरोमैटिक” जान पड़ी थी। व्‍यवहारे ने सुझाव दिया के बाद के दोनेां मामलों में भी कर्मचरी ”अरोमैटिक” जोड़ दे। जब कर्मचारी ने विरोध किया, व्‍यवहारे का कहना था, ”मैंने कहा न, ”अरोमैटिक” लिखो, और उसने रिपोर्ट को फाड़ कर कर्मचारी के चेहरे पर दे मारा। कर्मचारी ने मुझे बताया कि कीटनाशक की मौजूदगी से संकेत मिल रहा था कि मरने वाला किसान था। गंध की बात को नकाराना और इस तरह खुदकुशी की संभावना को खारिज कर देना ”किसानों की आत्‍महत्‍या की संख्‍या को कम कर सकता था… और इसके पीछे बाकायदे एक राजनीति पृष्‍ठभूमि काम कर रही थी।”

कई कर्मचारियो ने मुझे बताया कि अगर पोस्‍ट-मॉर्टम करने वाले जूनियर डॉक्‍टर या पोस्‍ट-ग्रेजुएट के छात्र हों, तब व्‍यवहारे को रिपोर्ट में फेरबदल करने में बड़ी आसानी होती थी। चौदहवां कर्मचारी, जो कि कॉलेज में वरिष्‍ठतम फैकल्‍टी सदस्‍य है, उसने बताया कि व्‍यवहारे का दावा था कि वह छात्रों को अकसर इसलिए रिपोर्ट बदलने को कहता क्‍योंकि वे अकसर गलत विवरण लिख देते थे और वह ”विभाग में अनुशासन बनाए रखना चाहता था”। कर्मचारी ने कहा, ”यह ऐसा दावा है जिसमें कोई ईमानदारी नहीं है।”

चौदहवें कर्मचारी ने बाकी कर्मचारियों की ही तरह बताया कि व्‍यवहारे की हरकतों से पूरा जीएमसी वाकिफ़ था। मैंने जब पूछा कि नवंबर 2015 से पहले व्‍यवहारे के खिलाफ कोई संस्‍थागत कार्रवाई क्‍यों नहीं हुई, तो उन्‍होंने जवाब दिया, ”कौन लेगा? कौन हाथ जलाएगा?”

दसवें कर्मचारी के मुताबिक व्‍यवहारे के खिलाफ हडताल के दौरान मुंगंतिवार ने डीन निसवाड़े से संपर्क किया था। ”इतने फोन कॉल आए, कोई पत्र नहीं, कोई काग़ज़ी काम नहीं, लेकिन वे (मुंगंतिवार) लगातार एक ही बात कहते रहे कि ‘ऐसा नहीं होना चाहिए, जो कुछ भी करना है संस्‍था के स्‍तर पर ही कर लो, बस।” कर्मचारी का कहना था कि निसवाड़े स्‍वायत्‍त जांच कमेटियां गठित करना चाह रहे थे, बावजूद इसके ”ऊपर से कुछ दबाव था कि ‘हम कमेटी अपने हिसाब से गठित करेंगे।”’ चौदहवें कर्मचारी ने बताया कि राज्‍य कैबिनेट के एक और आला मंत्री ने निसवाडे को फोन कर के कहा, ”देख लेंगे तेरे को।”

नवंबर खत्‍म होते-‍होते जब प्रदर्शनकारी पीछे हटने को तैयार नहीं हुए तो अंतत: राज्‍य ने मामले में दखल दिया। व्‍यवहारे को जीएमसी नागपुर से हटा दिया गया, साथ ही निसवाड़े और महाराष्‍ट्र स्‍टेट मेडिकल टीचर्स असोसिएशन के सचिव समीर गोलावर का भी बादला कर दिया गया। सरकार ने महाराष्‍ट्र असोसिएशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्‍टर्स की मांगों को मान लिया, जिसमें रेजिडेंट डॉक्‍टरों के लिए मातृत्‍व अवकाश और पारिश्रमिक में इजाफा शामिल था। इसके बाद संगठन ने हड़ताल वापस ले ली। निसवाड़े ने व्‍यवहारे के खिलाफ यौन उत्‍पीड़न के आरोपों के मामले में जो जांच कमेटी बनाई थी उसे तुरंत खत्‍म कर दिया गया और सरकार ने घोषणा की कि वह अपनी एक कमेटी गठित करेगी।

व्‍यवहारे के कथित पेशागत भ्रष्‍टाचार की जांच के लिए निसवाड़े ने जो कमेटी बनाई थी उसकी जांच पूरी हुई और उसने एक रिपोर्ट जमा की। इसकी एक प्रति द कारवां के पास मौजूद है। इसमें दर्ज पांचवीं शिकायत कहती है, ”विभागाध्‍यक्ष डॉ. एमएस व्‍यवहारे, जो भले ही पोस्‍ट-मॉर्टम के दौरान निजी रूप से उपस्थित नहीं होते, पीएम रिपोर्ट में बदलाव करने को बाध्‍य करते हैं और यदि ऐसा नहीं किया गया तो सबके सामने गाली-गलौज करते हैं।” इस मामले में कमेटी की जांच का निष्‍कर्ष निम्‍न है: ”यह सच है, जिसे हर छात्र ने अपने प्रतिवेदन में दर्ज किया है। विभाग के प्रोफेसरों ने स्‍वीकार किया है कि यह सच है और कहा है कि डॉ. व्‍यवहारे अपने तरीके से रिपोर्ट लिखने को उन्‍हें बाध्‍य करते हैं। इसी वजह से यह शिकायत की गई है।”

सरकार ने व्‍यवहारे के खिलाफ यौन उत्‍पीड़न के आरोपों की जांच के लिए जो कमेटी बनाई थी उसने 2017 के मध्‍य तक कथित तौर पर जांच पूरी कर ली थी। एक आला सरकारी अफसर ने द हिंदू को बताया था कि कमेटी ने व्‍यवहारे को दोषमुक्‍त कर दिया है।

तबादले के बाद व्‍यवहारे कोई एक साल तक नागपुर से बाहर काम करते रहे। जून 2017 में उन्‍हें इंदिरा गांधी राजकीय मेडिकल कॉलेज में फॉरेन्सिक विभाग का अध्‍यक्ष नियुक्‍त कर दिया गया। दो महीने बाद अगस्‍त 2017 में देवेंद्र फणनवीस ने उनके सहित चार अन्‍य लोगों को महाराष्‍ट्र मेडिकल काउंसिल में नामित किया। काउंसिल एक अर्ध-न्‍यायिक इकाई है जिसका काम राज्‍य भर के 80,000 से ज्‍यादा चिकित्‍सकों के लिए नैतिक आचार संहिता तैयार करना है। नामांकन के इस दौर में फणनवीस ने जिन पांच चिकित्‍सकों को सदस्‍य बनाया उनमें व्‍यवहारे कथित रूप से इकलौते सरकारी सेवा के डॉक्‍टर थे।

आठवां कर्मचारी कहता है, ”वो (व्‍यवहारे) इस तंत्र को चला रहा है। इसीलिए बाकी लोगों को इस तंत्र में बचने के लिए पतली गली खोजनी पड़ रही है। आप पहाड़ हिला सकते हैं, जो मन में आए कह सकते हैं… लेकिन नतीजा सिफ़र ही होना है। कहते हैं कि हर किसी के पाप का घड़ा कभी न कभी तो भर जाता है लेकिन इनके घड़े में तो शायद नीचे गड्ढा बना हुआ है।”

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एनके तुमराम फिलहाल इंदिरा गांधी राजकीय मेडिकल कॉलेज के फॉरेन्सिक विभाग में असोशिएट प्रोफेसर हैं। वे व्‍यवहारे के मातहत काम कर रहे हैं। मुझे लोया के पोस्‍ट-मॉर्टम के बारे में जो भी विवरण हाथ लगा था, उसके साथ मैं 28 मार्च को दोनों से उनके कार्यालय में मिलने गई।

मैंने तुमराम से पूछा कि जब व्‍यवहारे ने पोस्‍ट-मॉर्टम जांच में अपनी चलाई थी तो रिपोर्ट पर इनके दस्‍तखत क्‍यों थे। उन्‍हेांने कहा, ”मैं कुछ नहीं जानता… देखो आप बात ही कुछ मत करो इस बारे में।” मैंने उनसे पूछा कि उन्‍होंने लोया के सिर पर खून और ज़ख्‍म की उपेक्षा क्‍यों की थी। वे बोले, ”सब दे दिया है ऑलरेडी।” मैंने जब इस सवाल को दोबारा दबाव डालकर पूछा, तो तुमराम ने कहा, ”कुछ भी नहीं पता मेरे को।” बाद में पूछे गए सभी सवालों पर उनका जवाब एक ही था कि या तो उन्‍होंने सब जमा करा दिया है या उनके पास कहने को कुछ नहीं है।

मैंने व्‍यवहारे से पूछा कि पोस्‍ट-मॉर्टम रिपोर्ट पर तुमराम के दस्‍तखत क्‍यों हैं जबकि सारे निर्देश खुद उन्‍होंने दिए थे। वे बोले, ”मैंने केवल पोस्‍ट-मॉर्टम ही नहीं किया था।” मैंने कहा कि आशय यह नहीं है कि पोस्‍ट-मॉर्टम उन्‍होंने किया बल्कि उन्‍होंने उसे निर्देशित किया। उनका जवाब था, ”मैंने निर्देशित भी नहीं किया।” मैंने पूछा कि उन्‍होंने तुमराम को लोया के सिर पर खून होने की बात छोड़ देने को क्‍यों कहा। व्‍यवहारे का जवाब था, ”मैंने उन्‍हें कुछ भी करने से नहीं रोका। मेरी कोई भूमिका ही नहीं है… मैं तो उस मामले में गया ही नहीं।”


यह कहानी द कारवाँ पर 2 अप्रैल को प्रकाशित है और वहीं से साभार है.