पूर्व नौकरशाहों ने की जयंत सिन्हा को मंत्रिमंडल से निकालने की माँग !

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ये ख़बर कलकत्ता से प्रकाशित आज के द टेलीग्राफ़ में छपी है। अख़बार लिखता है-

संविधान की रक्षा के लिए कोई एक साल से अपनी आरामतलब जिन्दगी से बाहर आकर बोलने वाले अवकाशप्राप्त नौकरशाहों ने मांग की है कि भीड़ द्वारा हत्या के एक मामले में सात अभियुक्तों के जमानत पर रिहा होने पर उनका सम्मान करने और इसकी निन्दा होने पर अपने किए का बचाव करने के लिए जयंत सिन्हा को केंद्रीय मंत्रिमंडल से निकाला जाए।

50 रिटायर नौकरशाहों के एक बयान में कहा गया है, “हत्या के मामले में अभियुक्त बनाए गए लोगों के प्रति खुलेआम सहानुभूति प्रदर्शित करने के लिए हम श्री जयंत सिन्हा को तत्काल केंद्रीय मंत्रिमंडल से हटाए जाने / के इस्तीफे और उनकी पार्टी से मांग करते हैं कि वह भारत के लोगों से माफी मांगे।”

ये लोग इस बात पर नाराजगी जता रहे थे कि अभियुक्तों को जमानत मिलने पर सिन्हा ने उनका सम्मान किया। ये सात लोग वो हैं जो सिन्हा के गृह राज्य झारखंड में कथित रूप से गोमांस रखने के लिए अलीमुद्दीन अंसारी की भीड़ द्वारा हत्या किए जाने के मामले में अभियुक्त हैं।

बयान पर दस्तखत करने वालों में पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्य सचिव अर्धेन्दु सेन, योजना आयोग के पूर्व सचिव एन.सी सक्सेना, पूर्व संस्कृति सचिव श्री जवाहर सरकार और पूर्व पर्यावरण सचिव मीना गुप्ता शामिल हैं।

नौकरशाहों का कहना है कि केंद्रीय मंत्रिमंडल के एक वरिष्ठ सदस्य के खुलेआम एक गंभीर अपराध के अभियुक्तों का समर्थन करने से नागरिकों के जान और आजादी की सुरक्षा के जिम्मेदार लोक सेवकों में पूरी तरह गलत संदेश गया है।

इन लोगों ने सिविल सेवा के अपने सहकर्मियों से भी अपील की है कि, “कानून के नियमों का दृढ़ता से पालन करें और शक्तिशाली व प्रभावशाली समूहों की ऐसी कार्रवाई से न डरें जो हमारे बहु-सांस्कृतिक समाज में भेदभाव और वैमनस्य का जहर फैलाने वाले हों।”

बयान में कहा गया है कि “सिन्हा ने हत्या के इन अभियुक्तों का सम्मान ऐसे समय में किया है जब सत्तारूढ़ दल के प्रतिनिधियों और उनके समर्थकों द्वारा कानून के प्रति बार-बार अवमानना की कार्रवाई किए जाने की घटनाएं सामने आती रही हैं।”

रिटायर नौकरशाहों ने कहा है, “एक खास समुदाय के लोगों के प्रति इन रक्षकों की हिंसक घटनाएं बताती हैं कि केंद्र और राज्य की भिन्न सरकारें अगर इससे जुड़ी हुई नहीं है तो उनकी उदासीनता डरावनी है।” बयान में आगे कहा गया है, “पर इससे भी ज्यादा परेशान करने वाली बात यह है कि जिन लोगों को कानून की रक्षा करने की जिम्मेदारी दी गई है वे इसे खुलेआम चुनौती दे रहे हैं।”

इस बयान में झारखंड सरकार द्वारा अंसारी की हत्या के मामले में की गई कार्रवाई के लिए सरकार की प्रशंसा भी की गई है।

 

 

अखबार ने आज ही अपने इसी पन्ने पर एक और विस्तृत खबर छापी है जिसका शीर्षक है कि कांग्रेस इन हत्याओं का मकसद समझती है पर उपाय के मामले में अनिश्चित है। अखबार ने इसके साथ जयंत सिन्हा की फोटो छापी है जिसमें वे माला पहने, जमानत पर छूटे अभियुक्तों और दूसरे लोगों के साथ खड़े हैं। अखबार की इस खबर के मुताबिक कांग्रेस नेतृत्व का मानना है कि बार-बार होने वाली हिन्सा की घटनाएं अगले साल होने वाले आम चुनावों तक सांप्रदायिक तनाव को बनाए रखने की सोची-समझी साजिश है क्योंक इससे सरकार को जनता का ध्यान दूसरी ओऱ करने में मदद मिलती है।

पर पार्टी नेताओं का कहना है कि इसपर उनकी आदर्श प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए इसे लेकर भी वे भ्रमित हैं। उन्होंने कहा कि वे समझते हैं कि लिचिंग समेत ऐसी घटनाएं नजरअंदाज नहीं की जा सकती हैं> लेकिन निजी तौर पर उन्होंने माना कि ऐसे होने से इस समय चल रहा सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता है जबकि विपक्षी दल अभी चाहते हैं कि देश का ध्यान प्रधानमंत्री की नाकामियों की तरफ खींचा जाए। अखबार ने कांग्रेस के एक अनाम रणनीतिकार के हवाले से लिखा है कि इससे हम बहुत खराब स्थिति में पहुंच जाते हैं। लगातार चलने वाले हिन्दू-मुस्लिम तनाव से असली मुद्दे हाशिए पर चले जाते हैं जबकि इस समय हम रोजगार संकट, किसानों की परेशानी और अच्छे दिन न आने पर फोकस करना चाहते हैं।

 

 

अनुवाद- संजय कुमार सिंह

अनुवाद कम्युनिकेशन के फ़ेसबुक पेज से साभार। 

 



 


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