बेल्जियम में आयोजित बलात्‍कृत महिलाओं के परिधानों की यह प्रदर्शनी कुछ कह रही है!

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हमारे समाज में आए दिन हम बलात्कार और महिला यौन उत्पीड़न की घटनाएँ देख रहे हैं। बदलते समय के साथ न तो हम किसी भी तरह इन घटनाओं को न रोक पा रहे हैं और न ही पीड़िता को इसका ज़िम्मेदार ठहराने के चलन को रोक पा रहे हैं। हमें ये बात नहीं भूलनी चाहिए कि बलात्कार की घटना पीड़िता के शरीर से ज़्यादा उसे मानसिक तौर पर चोट पहुँचाती है और जब हम इस घटना के लिए पीड़िता को ज़िम्मेदार ठहराते है तो ये पीड़ा महिला के लिए और भी नासूर बन जाती है। इतना ही नहीं, ये उसे सामाजिक तौर पर भी क्षति पहुँचाती है।

यों तो बलात्कार के लिए जब भी पीड़िता को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है तो उसके कपड़ों को सवाल करना बेहद आम उलाहना है, जिसे हम हमेशा बलात्कार का ज़िम्मेदार मानते हैं। मेरी तरह आपने भी ये बात किसी न किसी से ज़रूर सुनी होगी कि ‘अरे ऐसी कपड़े पहनेगी तो बलात्कार तो होगा ही।’ ‘लड़कियों के कपड़ों के चलते उनका बलात्कार होता है।’ ‘लड़कियों के छोटे कपड़ों की वजह से उनका बलात्कार होता है।’ वग़ैरह-वग़ैरह। ऐसा कहने वाले उन तमाम तथाकथित सभ्य समाज के लोगों के लिए ख़ास है ये लेख जो इसे न केवल पढ़ें बल्कि इसमें संलग्न तस्वीरों को भी ग़ौर से देखें और अपने ज़हन में बिठा लें।

रेप को लेकर बलात्कार पीड़िता को दोषी मानना ये मानसिकता शायद समाज के मन में हमेशा से थी और रहेगी भी। इसी मानसिकता से लड़ने के लिए बेल्जियम के ब्रसल्स में एक प्रदर्शिनी लगी है। ये प्रदर्शिनी रेप विक्टिम और सेक्शुअल असॉल्ट विक्टिम के कपड़ों की है। ये वो कपड़े हैं जो लड़कियों ने तब पहने थे जब उनके साथ रेप किया गया। इस प्रदर्शिनी का नाम “What were you wearing?” रखा गया।

इस प्रदर्शिनी में पैजामा, ट्रैक सूट, यहां तक एक बच्ची की ‘आई एम पोनी’ कैप्शन वाली टीशर्ट भी है। ये सभी कपड़े पूरे हैं और कोई भी ऐसा नहीं जो भड़काऊ हो। जिस संस्था ने ये प्रदर्शिनी लगाई है वो ये बताना चाहती है कि असल में रेप का कपड़ों से कोई संबंध नहीं। ये सही भी है। विदेश की बात छोड़ दीजिए भारत में ही सालभर की बच्ची का जब रेप होता है तो क्या उसके कपड़ों को देखकर होता है? यूपी में 100 साल की बूढ़ी महिला का जो रेप हुआ था तो क्या वो कपड़े देखकर हुआ था? उसने तो साड़ी पहनी थी।

इन तस्वीरों से साफ़ है कि बलात्कार की वजह सिर्फ़ एक है हिंसक सदी हुई पितृसत्तात्मक सोच। जो महिलाओं के दमन के लिए उसे इज़्ज़त का जामा पहनाकर उसे बेइज़्ज़त करने के लिए होती है। बाक़ी कपड़े, समय, जगह ये सब सिर्फ़ बहाना है।


स्वाति सिंह का यह लेख फेमिनिज्म इंडिया डॉट कॉम से साभार लिया गया है


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