समान नागरिक संहिता और आबादी नियंत्रण पर BJP ने अपनाया कानूनी रास्‍ता, सरकार को नोटिस

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दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए 31 मई को केंद्र सरकार को नोटिस भेजकर कहा है कि तीन महीने के भीतर समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड) कानून का मसविदा तैयार करने के लिए वह एक न्यायिक आयोग या एक उच्चस्तरीय विशेषज्ञ समिति का गठन करे. याचिकाकर्ता दिल्‍ली बीजेपी के प्रवक्‍ता अश्विनी उपाध्‍याय हैं.

मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति बृजेश सेठी की खंडपीठ ने अधिवक्‍ता और बीजेपी के प्रवक्‍ता अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर केंद्र और विधि आयोग को यह नोटिस भेजा है.

https://twitter.com/ippatel/status/1134392298928664576

अगस्त 2018 में जारी अपने एक विमर्श प्रपत्र में विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता की आवश्यकता से इंकार किया था.

समान नागरिक संहिता भारतीय जनता पार्टी के तीन प्रमुख और शुरुआती मुद्दों में शामिल रहा है. इस बार के आम चुनाव के लिए तैयार अपने घोषणापत्र में बीजेपी ने राम मंदिर, समान नागरिक संहिता और अनुच्‍छेद 370 की उपेक्षा की थी, लेकिन सरकार के शपथ लेते ही अगले दिन उच्‍च न्‍यायालय का इस पर केंद्र को नोटिस भेजा जाना इस बात की ओर इशारा करता है कि यह मुद्दा अभी बीजेपी के एजेंडे पर कमज़ोर नहीं पड़ा है.

https://twitter.com/ippatel/status/1133616139517382662

अभी तीन दिन पहले ही 28 मई को जनसंख्या नियंत्रण पर दिल्ली उच्‍च न्‍यायालय में दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने गृह मंत्रालय और विधि आयोग को नोटिस भेजा था. कोर्ट ने अपने इस नोटिस में केंद्र सरकार से चार हफ्ते के भीतर जवाब मांगा है. यह याचिका भी बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय ने ही दायर की थी.

अश्विनी उपाध्‍याय अरविंद केजरीवाल के इंडिया अगेंस्‍ट करपन के शुरुआती चेहरों में थे जो आम आदमी पार्टी बनने से पहले ही बीजेपी में चले गए. उनका काम बीजेपी के एजेंडे पर जनहित याचिकाएं दायर करना है. पिछले पांच साल से वे यही करते आ रहे हैं।

बीजेपी के जिन मुद्दों को कानूनी रूप से लागू करवाना है, उपाध्‍याय ने उनकी एक सूची जारी की है, जिसे उनके 27 मई के इस ट्वीट में देखा जा सकता है:


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