#SabYaadRakhaJayega: एक्टिविस्टों के दमन के ख़िलाफ हुआ देशव्यापी विरोध प्रदर्शन

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सीएए-विरोधी आंदोलन के कार्यकर्ताओं व प्रतिरोध की जनतांत्रिक आवाजों पर हो रहे दमन के ख़िलाफ़ आज देश भर में लोगों ने #SabYaadRakhaJayega हैशटैग के साथ अपना विरोध दर्ज कराया। कोरोना महामारी और लॉकडाउन को ध्यान में रखते हुए लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए प्लेकार्ड के जरिये अपना विरोध व्यक्त किया। सामाजिक-राजनीतिक और छात्र-युवा संगठनों समेत देशभर के करीब 200 संगठनों ने इस देशव्यापी प्रतिवाद में भाग लिया।

दरअसल पिछले दो महीनों में दिल्ली पुलिस ने जामिया के छात्र सफूरा जरगर, मीरान हैदर, आसिफ इकबाल तन्हा, जेएनयू की छात्राएं नताशा नरवाल और देवांगना कलिता व इशरत जहां, खालिद सैफ़ी, गुलफिषा फातिमा, शर्जील इमाम, शिफा उर रहमान जैसे कार्यकर्त्ता और अन्य सैकड़ों मुस्लिम युवाओं को गिरफ्तार कर लिया है। इनमें से कुछ पर संशोधित यूएपीए के तहत कार्यवाही चलाई जा रही है।

हाल ही में एएमयू के छात्र फरहान जुबैरी और रवीश अली खान को यूपी पुलिस ने सीएए के विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने के लिए गिरफ्तार किया है। यह स्पष्ट है कि अभी गिरफ्तारियों का सिलसिला खत्म नहीं हुआ है और इस लंबी सूची में अन्य कई लोकतांत्रिक कार्यकर्ताओं के नाम जोड़े जाने की संभावना है। इस बीच शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों के खिलाफ खुलेआम हिंसा भड़काने वाले कपिल मिश्रा, परवेश वर्मा और अनुराग ठाकुर जैसे लोग बिना किसी कार्यवाही निर्भीक घूम रहे हैं।

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संगठनों ने कहा कि यह दमन पिछले साल दिसंबर में देश भर में सीएए-एनआरसी के खिलाफ उभरे व्यापक विरोध प्रदर्शनों को दंडित करने के उद्देश्य से किया जा रहा है। साथ ही यह भी स्पष्ट है कि सत्तारूढ़ ताकतें, किसी भी सामाजिक आंदोलनों के साथ बातचीत करने से इनकार करते हुए, सभी प्रतिवाद की आवाज़ों को बर्बर राज्य दमन और काले कानूनों के उपयोग से चुप करना चाहती है। इससे पहले, सरकार ने भीमा कोरेगांव मामले के बहाने कई लोकतांत्रिक-अधिकार कार्यकर्ताओं और शिक्षाविदों को अपनी गिरफ्त में लिया है और उनके खिलाफ कार्यवाही चला रही है। इसी तरह असम में सीएए-विरोधी कार्यकर्ता अखिल गोगोई को यूएपीए के तहत आरोपित किया गया है, और बिट्टू सोनोवाल, मानस कुंअर, धज्जो कुंअर और कई अन्य आंदोलनकारियों को गिरफ्तार कर प्रताड़ित किया जा रहा है।

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ऐसे समय में जब सरकार की ऊर्जा और संसाधन हज़ारों लोगों की जाने लेने वाले और लाखों आजीविकाओं को नष्ट करने वाले विशाल स्वास्थ्य संकट और विनाशकारी पैमाने की आर्थिक मंदी से लड़ने में लगाई जानी चाहिए, तब सरकार द्वारा अपने सारे प्रयास प्रतिवाद की आवाजों को दबाने और छात्रों और जनतांत्रिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने में लगाना राज्यसत्ता के गलत इस्तेमाल का शर्मनाक प्रदर्शन है।

संगठनों ने कहा कि मुसलमानों, दलितों, आदिवासियों, श्रमिकों, महिलाओं और सभी हाशिए के समुदायों की नागरिकता पर हमले के खिलाफ लोकतांत्रिक संघर्ष में भाग लेने वाले सीएए-विरोधी कार्यकर्ताओं पर चलाया जा रहा हमला पूरे सीए-एनआरसी-एनपीआर आंदोलन को ध्वस्त करने का व्यवस्थित प्रयास है। यह सरकार की सांप्रदायिक और जनविरोधी नीतियों की मिसाल है, जो अपने नागरिकों के लिए उपलब्ध सभी संवैधानिक सुरक्षाओं को ख़तम करने में लगी हुई है। ऐसे दमन के ज़रिए यह सरकार प्रतिवाद करने वालों का उदाहरण बना कर दूसरों को भी चुप कराना चाहती है।

आज श्रम कानून ध्वस्त किए जा रहे हैं, शैक्षणिक संस्थान दुर्गम बन रहे हैं, बेरोज़गारी समाज में अभूतपूर्व स्तर तक पहुँच रही है और श्रमिकों, अल्पसंख्यक और हाशिए पर रहने वाले समुदायों, महिलाओं और छात्रों के खिलाफ हिंसा लगातार बढ़ रही है। ऐसे में इस देश के लोगों को इस दमनकारी शासन को एक आवाज़ में चुनौती देनी होगी!

देशव्यापी विरोध प्रदर्शन में जेएनयू छात्रसंघ, आइसा, एसएफआई, एआईएसएफ, एआईडीएसओ,बीएएसओ, अंबेडरकर पेरियार फुले स्टडी सर्किल पुणे, बीएएसएफ, लोकमंच, अनहद, ऐपवा, रिहाई मंच, समाजवादी जन परिषद, एचआरएनएल, यूनाइटेड ओबीसी फोरम, एक्टू समेत करीब 200 संगठन शामिल रहे।

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यूपी में लोकमोर्चा के कार्यकर्ता भी देशव्यापी विरोध का समर्थन करते हुए इसमें शामिल हुए। लोकमोर्चा के संयोजक अजीत सिंह यादव ने कहा कि सरकार को आंदोलनकारियों से बदला लेने की जगह प्रवासी मजदूरों और मेहनतकश जनता की दुर्दशा पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि दिल्ली हिंसा के असली अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं, सरकार को इन्हें तत्काल गिरफ्तार करना चाहिए। अजित यादव ने यूएपीए को रद्द करने और सीएए विरोधी आंदोलन के सभी कार्यकर्ताओं को रिहा करने की मांग की।


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