सरकार ने महामारी से मुक़ाबले की तैयारी की जगह स्वास्थ्य बीमा पर ज़ोर दिया -पूर्व स्वास्थ्य सचिव

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के .सुजाता राव केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में सचिव के रूप में काम कर चुकी हैं। 2010 में रिटायर होने से पहले वे एंटीबायोटिक के उपयोग, जन स्वास्थ्य के क्षेत्र में वैक्सीन के उपयोग तथा गैर संक्रामक बीमारियों के लिए उस समय के पहले राष्ट्रीय कार्यक्रम से जुड़े रहने के साथ राष्ट्रीय नीति बनाने की प्रक्रिया से भी जुड़ी हुई थीं। भारत सरकार के लिए काम करने के सघन अनुभव के कारण वे दुनिया भर में फैली कोविड-19 महामारी और उसके मद्देनजर भारत में सरकार तथा व्यवस्था की तैयारी के बारे में बात करने के लिहाज से बेहद जानकार हैं।  

अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू में छपे एक इंटरव्यू में देश की पूर्व स्वास्थ्य सचिव के.सुजाता राव ने कहा है कि ग्रामीण और छोटे शहरों की तो छोड़िए, देश के बड़े शहरों की स्वास्थ्य संरचना भी ऐसी नहीं है कि बड़े पैमाने पर मरीजों की आमद को संभाला जा सके। उन्होंने कहा कि अभी ही स्थिति यह है कि ज्यादा लोग आ गए हैं तो कमरे को खाली कराना है। उन्हीं कमरों में आइसोलेशन वार्ड बने हैं। इसका मतलब हुआ कि अब सामान्य मरीजों के लिए जगह नहीं है। सच  तो यह है कि सरकारी या निजी अस्पतालों में अतिरिक्त क्षमता है ही नहीं। हम नए मरीजों के लिए जगह बना रहे हैं तो वह पुराने या कम गंभीर मरीजों की कीमत पर हो रहा है। गैर गंभीर मामलों में सर्जरी नहीं हो सकती। ग्रामीण क्षेत्रों की जन स्वास्थ्य व्यवस्था ऐसा भार नहीं उठा सकती है। इसके लिए बड़े पैमाने पर प्रशिक्षण और सूचना के वितरण की आवश्यकता होती है ताकि हेल्थकेयर के प्रत्येक कार्यकर्ता और डॉक्टर को बताया जा सके कि बचाव के लिए क्या उपाय किए जाने हैं। 

उनसे पूछा गया कि  अगर हम यह मानकर चल रहे हैं कि बड़ी संख्या में लोग बीमार होंगे और उनमें से 5-10 प्रतिशत को भी अस्पताल में दाखिल होना हुआ तो क्या स्वास्थ्य संरचना उपलब्ध है? इस संदर्भ में क्या सरकारी तैयारी बीमारी के साथ तालमेल में है? उनका जवाब था कि तैयारी दो स्तर की है। पहली स्वास्थ्य संरचना को आकार में लाना है और इस समय यानी लॉकडाउन की अवधि में  केंद्र तथा राज्यों के स्तर पर जन स्वास्थ्य व्यवस्था इसी पर केंद्रित है। सच तो यह है कि लॉक डाउन करने के कारणों में एक यह भी था कि कुछ देर ठहर कर मरीजों की संख्या में वृद्धि की स्थिति में आधारभूत संरचना की चुनौतियों से निपटने के उपाय देख समझ लिए जाएं। यही कारण है कि सरकार ने वेंटीलेटर और पीपीई के लिए ऑर्डर अब दिए हैं। 

पूर्व स्वास्थ्य सचिव ने कहा कि दिल्ली के जाने-माने गंगाराम अस्पताल जैसी जगह पर 110 चिकित्सा कर्मचारी पहले से क्वारंटाइन किए जा चुके हैं। हमारे पास कोरोना वायरस के संक्रमण के लिए आवश्यक सुविज्ञ उपचार दे सकने वाले डॉक्टर और नर्स वैसे ही कम हैं और यह संभव नहीं है कि वो भी संक्रमित हो जाएं तथा उन्हें क्वारंटाइन करना पड़े। दूसरा महत्वपूर्ण आयाम जांच है। इस समय हमारा फोकस इसी पर होना चाहिए। संक्रमण का फैलना रोकना बहुत जरूरी है और यह निश्चित समय सीमा के अंदर किया जाना चाहिए। इसलिए बड़ी संख्या में जांच किए जाने की आवश्यकता है। रैपिड टेस्ट किट आ रहे हैं पर इससे सिर्फ एंटी बॉडीज का पता चलता है। यानी किसी के संक्रमित होने का पता सात दिनों बाद चलता है। इसके अलावा, मेरा भी मानना है कि जांच निशुल्क होनी चाहिए। ऐसे समय में जब इस महामारी को रोकने का एक ही सकारात्मक उपाय है तब इस टेस्ट की कीमत 4500 रुपए होना समझ से परे है।  

[मीडिया विजिल ने पाया कि लाइव हिन्दुस्तान (livehindustan.com) की चार अप्रैल की एक खबर के अनुसार, डॉक्टर और नर्स सहित गंगाराम अस्पताल के 108 स्वास्थ्य कर्मियों में से 85 को होम क्वारंटाइन किया गया है। बाकी 23 अस्पताल में भरती हैं। इस खबर के अनुसार कोरोना के दो मरीज अस्पताल में भर्ती थे। अस्पताल के एक अधिकारी ने बताया कि अस्पताल की नीति के तहत, बुखार के सभी मामलों को कोविड-19 टेस्ट के लिए रेफर किया जा रहा है। दो जनों की कोविड-19 टेस्ट रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद अस्पताल ने उनके संपर्क में आने वाले सभी स्वास्थ्य कर्मियों को क्वारंटाइन कर दिया है क्योंकि कोविड-19 मरीजों के संपर्क में आने वाले बहुत से कर्मचारियों के पास व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) नहीं थे। जो सीधे संपर्क में आए वो 23 अस्पताल में भरती हैं।]

यह पूछे जाने पर कि लॉक आउट की घोषणा के बाद बड़ी संख्या में प्रवासियों के गांवों की ओर जाने से क्या ग्रामीण क्षेत्रों में संक्रमण के मामले बढ़ने की आशंका है? उन्होंने कहा, आमतौर पर माना जाता है कि प्रवासी ग्रामीण क्षेत्रों में गए हैं तो वहां संक्रमण फैलाएंगे। लेकिन सरकार जब कह रही है कि वायरस अभी इस वर्ग में नहीं पहुंचा है और स्थानीय स्तर पर ही फैला है तथा सिर्फ कुछ खास केंद्रों पर ही है तो संक्रमण का स्रोत महत्वपूर्ण हो जाता है। यह मुख्य रूप से विदेश में रहे मध्यम वर्ग के उन लोगों से फैला है जो भारत वापस आए हैं। मध्यम वर्ग के इन लोगों में लक्षण होने और उनका औपचारिक कामगारों के साथ उठना बैठना एक वर्ग का मामला लगता है और इसे समझने की जरूरत है।     

यह पूछे जाने पर कि महामारी से निपटने की तैयारी जैसी कोई विस्तृत नीति हमारे यहां है कि नहीं और भविष्य की जरूरत या महामारी की स्थिति से निपटने के लिए क्षमता से ज्यादा वेंटीलेटर, आईसीयू बेड आदि प्राप्त किए जा सकते हैं कि नहीं? उन्होंने कहा, नहीं, बिल्कुल नहीं।  इस आशय की रिपोर्ट थी कि नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत की मौजूदगी में एक मीटिंग में बताया गया कि देश भर में कुल करीब 30,000 वेंटीलेटर खराब पड़े हैं। यानी स्थिति यह है कि हमारे पास जो हैं हम उन्हें ही काम की हालत में नहीं रख रहे हैं। सवाल उठता है कि डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी क्या कर रहा है? तमिलनाडु और केरल में हमने देखा है कि सुनामी और समुद्री तूफान के लिए तो हमारी तैयारी है पर हमने कभी सोचा ही नहीं कि कोई बीमारी इस पैमाने पर फैल जाएगी। 

एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, भारत में हमलोग पिछले करीब एक दशक में एसएआरएस (सीवियर ऐक्यूट रेसपायेट्री सिनड्रोम), बार्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू और जिका के निशान देख चुके हैं। लेकिन राजनीतिक और विकास के एजंडा में स्वास्थ्य को इतना कम महत्व दिया जाता है कि इस सरकार ने भी आयुष्मान भारत और गैर संक्रामक बीमारियों पर ज्यादा ध्यान दिया है जबकि स्वास्थ्य के महत्व पर काफी जोर था। मैं उम्मीद करती हूं कि इस बार हमारे राजनेताओं को कुछ सीख मिलेगी और एक जनस्वास्थ्य विभाग बनाया जाएगा जो निगरानी, महामारी की जानकारी, जैवसांख्यिकी और जन स्वास्थ्य के अन्य महत्वपूर्ण विषयों पर केंद्रित होगा।   


प्रस्तुति- संजय कुमार सिंह 


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