CMIE की रिपोर्ट से डरिए, अप्रैल के अंत तक देश में बेरोजगारी दर 27.1 प्रतिशत पहुंची

आदर्श तिवारी
ख़बर Published On :


कोरोना वायरस की वजह से चल रहे लॉकडाउन के दौरान बेरोजगारी दर 27.1 प्रतिशत हो गयी है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी (सीएमआईई) ने एक ताजा सर्वे रिपोर्ट जारी की है। जिसमें बेरोजगारी की दर में अच्छी-ख़ासी बढ़ोतरी बताई गयी है। 3 मई 2020 को ख़त्म हुए सप्ताह के दौरान बेरोजगारी दर पिछले महीने जारी आंकड़े के मुकाबले, 23.5 से बढ़कर 27.1 प्रतिशत तक पहुँच गयी है। सीएमआईई की रिपोर्ट में बताया गया है कि सबसे अधिक 9.1 करोड़ छोटे व्यापारियों और दिहाड़ी मजदूरों का रोजगार छिन गया है। रिपोर्ट के मुताबिक मई के इस सर्वे के डेटा को देखने से ये भी पता चलता है कि ये बेरोजगारी दर आगे और भी बढ़ सकती है। 2019-20 के दौरान रोजगार का कुल औसत 40.4 करोड़ था जो अप्रैल 2020 में करीब 30 प्रतिशत की गिरावट के साथ 28.2 करोड़ पर आ गया है। जिसका मतलब करीब 12.2 करोड़ रोजगार कम हो गए। रिपोर्ट में लिखा है कि लॉकडाउन के आगे और बढ़ने पर बेरोजगारी भी बढ़ेगी। अभी के प्रारंभिक मामलों में असंगठित क्षेत्र में ही इस लॉकडाउन का अधिक असर देखने को मिल रहा है लेकिन आगे चलकर संगठित क्षेत्रों पर भी असर पड़ेगा। साथ ही सुरक्षित नौकरी वालों की भी नौकरी जा सकती है।

नौकरियों की तलाश बढ़ी, बड़ी सैलरी वालों में भी 5 में से एक ने गंवाई नौकरी

इसी रिपोर्ट में नौकरी की तलाश करने वालों की संख्या भी बढ़ी हुई बताई गयी है। साथ ही ये भी बताया गया है कि शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण क्षेत्रों के मुकाबले बेरोजगारी दर ज्यादा है। शहरों में ये दर करीब 29.2 है और ग्रामीण क्षेत्रों में ये 26.6 फ़ीसदी है। पिछले तीन वर्षों से फिक्स्ड तनख्वाहों वाली नौकरियां भी बढ़ी नहीं है, वो मात्र 8-9 करोड़ की संख्या में ही सिमट गयी हैं। यहाँ तक की बड़ी तनख्वाहों वाली प्रतिष्ठित  नौकरियों में भी 2019-20 के मुकाबले अप्रैल 2020 में गिरावट आई है। जो कि करीब 21 फ़ीसदी के बराबर है। इसका मतलब करीब हर 5 में से 1 व्यक्ति ने इस लॉकडाउन के दौरान नौकरी गंवाई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में 2800 से ज्यादा आईटी कंपनियों के एसोसिएशन नैसकॉम ने भी नौकरियों के जाने को लेकर आगाह किया था लेकिन अब बेरोजगारी का बढ़ता संकट हर क्षेत्र में दिखाई दे रहा है।

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कोरोना महामारी पर लगाम लगाने के लिए सरकार द्वारा लॉकडाउन की घोषणा की गयी थी। उसके बाद से ही बेरोजगारी बढ़ने का अंदेशा लगाया गया था। सीएमआईई द्वारा जारी इस रिपोर्ट में 9 करोड़ से अधिक लोगों के रोजगार छिन जाने को एक भयानक मानव त्रासदी कहा गया है। दरअसल पहले ही मोदी सरकार द्वारा चुनावी वादों में से एक – ढाई करोड़ नौकरियों का वादा धूल चाट चुका है। हम पिछले साल जारी आंकड़ों से जान चुके थे कि बेरोज़गारी की दर आधिकारिक तौर पर 42 साल में सबसे बुरी स्थिति में थी। लेकिन कोरोना काल ने इस विभीषिका अपने सबसे बुरे दौर में पहुंचा दिया है। इसके पीछे की बड़ी वजह विशेषज्ञ, केंद्र सरकार द्वारा रोज़गार संवर्धन की कोई नीति न तय कर पाना मानते हैं। मेक इन इंडिया और स्किल इंडिया – दोनों ही अपने तय लक्ष्य तो छोड़ दीजिए, किसी खास मक़ाम तक नहीं पहुंच सके। बैंकों के बंद होने-डूबने से लोगों की जमापूंजी पर संकट आया, नोटबंदी और जीएसटी से छोटे और मंझोले व्यापार पहले ही धूल फांक रहे थे। तिस पर अब कोरोना काल, लॉकडाउन और इंडस्ट्री समेत छोटे रोज़गार डूबने से ये दर, अगली रिपोर्ट में कहां पहुंचेगी, ये सोचना भी भयानक सपना लगता है। 


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