वर्धा : MGAHV में एम.फिल-PHD में प्रवेश प्रक्रिया में धांधली की अंतर्कथा

गौरव गुलमोहर
कैंपस Published On :


वर्धा। महाराष्ट्र के वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की प्रवेश परीक्षा में भ्रष्टाचार के रोज-ब-रोज नये-नये मामले उजागर हो रहे हैं। नामांकन प्रक्रिया में विश्वविद्यालय की कारगुजारियों का भंडाफोड़ करने वाला एक नया मामला सामने आया है। विश्वविद्यालय द्वारा मनमाने ढंग से गांधी एवं शांति अध्ययन विभाग के एकमात्र पीएचडी सीट को परीक्षा परिणाम जारी करने के वक्त ईडब्ल्यूएस आरक्षित श्रेणी का घोषित करते हुए परिणाम जारी कर दिया गया। इतना ही नहीं इस परिणाम में जिस छात्र को उत्तीर्ण घोषित किया गया उसके पास ईडब्ल्यूएस आरक्षित श्रेणी का कोई प्रमाण पत्र आवेदन भरते और साक्षात्कार तक नहीं था ews का सर्टिफिकेट साक्षात्कार के बाद लिया गया जो प्रवेश संबंधी नियमों के खिलाफ है। विश्वविद्यालय के इस कारनामे से पूरी प्रवेश प्रक्रिया संदेह के घेरे में आ गई है और ढेर सारे सवाल उठ खड़े हो गए हैं। आइए, इस पूरे मामले को तह में जाकर समझने की कोशिश करते हैं।

विश्वविद्यालय द्वारा पीएचडी प्रवेश परीक्षा हेतु गांधी एवं शांति अध्ययन विभाग के लिए एक सीट का विज्ञापन जारी हुआ। विज्ञापन जारी करते हुए इस सीट को किसी आरक्षित श्रेणी का नहीं बताया गया। लिहाजा सभी श्रेणी के 18 विद्यार्थियों ने पीएचडी प्रवेश पाने हेतु इस एक सीट के लिए आवेदन किया। इन सबों की लिखित परीक्षा ली गई, जिसमें से 11 अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के योग्य पाया गया। विश्वविद्यालय द्वारा जारी साक्षात्कार की सूचना में 13 जुलाई 2019 को साक्षात्कार की तिथि घोषित करते हुए यह स्पष्ट निर्देश दिया गया कि साक्षात्कार के समय ईडब्ल्यूएस/ओबीसी वैध प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करना होगा अन्यथा साक्षात्कार में सम्मिलित होने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

किंतु विश्वविद्यालय प्रशासन ने अपने द्वारा जारी उक्त निर्देशों को खुद ही धता-बता दिया। जिन 11 अभ्यर्थियों ने साक्षात्कार दिया उन सबों में से लिखित व साक्षात्कार दोनों मिलाकर सबसे ज्यादा अंक अरविंद प्रसाद गौड़ नामक अनुसूचित जाति श्रेणी से आने वाले छात्र को आया। उसे कुल 72.2 अंक प्राप्त हुए। कायदे से इसी अभ्यर्थी को उस एक सीट के लिए उत्तीर्ण घोषित किया जाना चाहिए था। क्योंकि विज्ञापन के वक्त यह सीट किस श्रेणी में है, यह स्पष्ट नहीं किया गया था और सभी श्रेणी के अभ्यर्थियों से फॉर्म स्वीकार किये गए थे। किंतु एक षड्यंत्र के तहत परिणाम जारी करने के वक्त अचानक इसे ईडब्ल्यूएस श्रेणी का सीट घोषित करते हुए सुमन्त कुमार मिश्रा नामक अभ्यर्थी को उत्तीर्ण घोषित कर दिया गया जिसको अरविंद से कम अंक प्राप्त हुए थे।

सबसे दिलचस्प बात तो यह कि साक्षात्कार के वक्त जिस अभ्यर्थी के पास ईडब्ल्यूएस प्रमाण पत्र भी नहीं था उसे उस श्रेणी में सफल घोषित किया गया। बताते चलें कि विश्वविद्यालय ने 13 जुलाई को साक्षात्कार लिया था जबकि जिस ईडब्ल्यूएस प्रमाण पत्र के आधार पर उक्त अभ्यर्थी को इस श्रेणी में उत्तीर्ण किया गया वह 15 जुलाई 2019 को उत्तर प्रदेश से जारी हुआ है। तो फिर सवाल उठता है कि 13 जुलाई के साक्षात्कार में 15 जुलाई 2019 को जारी प्रमाण पत्र भला कैसे पेश किया गया? और यह भी की जब अभ्यर्थी ने साक्षात्कार के वक्त प्रमाण पत्र प्रस्तुत ही नहीं किया तो विश्वविद्यालय द्वारा उसे आरक्षित श्रेणी का लाभ कैसे दिया गया?

सही तथ्य तो यह है कि साक्षात्कार के दिन तक सुमन्त कुमार मिश्रा के पास ईडब्ल्यूएस प्रमाण-पत्र नहीं था। उसने साक्षात्कार के ही दिन प्रवेश परीक्षा समिति के अध्यक्ष को लिखित आवेदन देकर यह स्वीकार किया था कि उसने गलती से ईडब्ल्यूएस का विकल्प प्रवेश फॉर्म भरते समय चयन किया था। उसने निवेदन किया था कि उसे ईडब्ल्यूएस न मानकर सामान्य श्रेणी में सम्मिलित होने की अनुमति प्रदान की जाए। प्रवेश समिति के अध्यक्ष ने उसके प्रति विशेष मेहरबानी दिखाते हुए नियमों की अवहेलना करते हुए उसे साक्षात्कार में शामिल किए जाने की इजाजत दे दी। परन्तु अंतिम परिणाम जारी करते वक्त विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक बार फिर यूटर्न लेते हुए सुमन्त को ईडब्ल्यूएस श्रेणी में चयनित घोषित कर दिया।

परीक्षा परिणाम प्रकाशित होने के पश्चात 22 जुलाई को वंचित अभ्यर्थियों ने इसकी लिखित शिकायत कुलपति से की और न्याय देने की अपील की। किंतु कुलपति प्रो. रजनीश शुक्ल ने इस संगीन मामले पर कोई संज्ञान नहीं लिया। पुनः 26 अगस्त को अरविंद प्रसाद गौड़ नामक अभ्यर्थी ने विश्वविद्यालय के कुलसचिव से न्याय की गुहार लगाते हुए एक ज्ञापन सौंपा। अपने आवेदन में अरविंद ने यह सवाल उठाया कि जब विज्ञापन के समय यह सीट अनारक्षित थी तो परिणाम जारी करते वक्त आरक्षित कैसे हो गई? उन्होंने यह वाजिब सवाल भी उठाया कि यदि यह सीट आरक्षित श्रेणी की थी तो बाकियों से इस सीट के लिये आवेदन फॉर्म क्यों लिए गए। क्यों उनकी लिखित व साक्षात्कार परीक्षा ली गई? आखिर यह दूसरे विद्यार्थियों के समय व धन दोनों की बर्बादी क्यों की गई! बहरहाल अरविंद का यह आरोप सही जान पड़ता है कि उसे प्रवेश लेने से रोकने और सुमन्त कु. मिश्रा को प्रवेश दिलाने के लिए ही यह पूरा जाल रचा गया।

इस पूरे प्रकरण के सामने आने से हिंदी विश्वविद्यालय प्रशासन की चौतरफा किरकिरी हो रही है। छात्रों ने विश्वविद्यालय प्रशासन के इस काले कारनामे के खिलाफ राष्ट्रपति से इंसाफ की गुहार लगाते हुए आवेदन किया है। अब यह तो समय ही बताएगा कि भ्रष्टाचार मुक्त देश बनाने का दावा करने वाली मौजूदा सरकार के राज में इस भ्रष्टाचार के असल दोषियों पर कार्रवाई होगी अथवा नहीं।


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