बुरहानपुर: खेत उजाड़ने का विरोध कर रहे आदिवासियों पर पहले फायरिंग, फिर दंगे का केस दर्ज

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9 जुलाई को मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले के ग्राम सिवल में पुलिस और राजस्व अधिकारी सहित वन अमला पहुंच कर करीब 9 जेसीबी मशीनों से खेत उजाड़ना शुरू कर दिया. दो घंटे की गहमागहमी के बाद तकरीबन 60 हैक्टेयर भूमि पर गड्ढे कर दिए गए, लेकिन अचानक स्थानीय आदिवासी इस बात का विरोध करने पहुंच गए. आदिवासी एकता जिंदाबाद,  आमु आखा एक छे, आवाज दो हम एक है, जंगल जमीन कोन री छे आमरी छे आमरी छे के नारों के जंगल गूंज उठा. आदिवासियों द्वारा फसल उखाड़ने का विरोध करने पर अमले ने छर्रे चलाये,जिसमें चार लोग घायल हुए हैं.

पुलिस ने आदिवासी और वन विभाग दोनों की शिकायत पर कार्रवाई करते हुए तकरीबन 26 आदिवासियों पर आईपीसी की धारा 353, 147, 148, 149, 332, 427 के तहत नामजद प्रकरण दर्ज किया.

उनमे से एक, गोखरिया पिता गाठला के गर्दन और छाती में लगे छर्रे बहार नहीं निकलने के कारण उन्हें महाराजा यशवंतराव अस्पताल इंदौर रेफेर किया गया है 15 खेत उखाड़े गए, पर ग्रामीणों के विरोध के कारण कार्यवाही स्थगित किया गया.

प्रशासन का आरोप है कि अतिक्रमणकारियों ने उनकी टीम पर हमला कर दिया. देर रात तक इलाके में तनाव की स्थिति बनी रही. पुलिस के मुताबिक स्थिति को नियंत्रण में करने के लिए पुलिस ने हवाई फायर किए.

ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि दिन भर के प्रयास के बाद देर रात को ही इस सम्बन्ध में केस दर्ज किया गया, एफआइआर में दोषी कर्मियों का नाम छोड़ा गया और ग्रामीणों पर भी “दंगे’ और “शासकीय काम में बाधा” डालने की धाराएं दर्ज किये गये हैं.

यहां के आदिवासी वन अधिकार के दावेदार हैं और 1988-89 के सबूत दावों में पेश किये हैं.आदिवासी आरोप लगा रहे हैं कि वन अधिकार अधिनियम के तहत उन्होंने उस जमीन पर दावे किए हैं जिसपर कोई कार्रवाई नहीं हुई. बावजूद इसके प्रशासन जबरदस्ती उनसे जमीन छीनना चाहता है.

एक ओर मध्य प्रदेश शासन वन अधिकार के लिए खरीफ और लंबित दावों का पुनर्निरीक्षण का प्रक्रिया शुरू कर रही है और 1 मई 2019 को समस्त कलेक्टरों को आदेशित भी किया है कि इस प्रक्रिया के होने तक किसी को बेदखल नहीं किया जाए, पर दूसरी ओर वन विभाग का आतंक ज़ारी है.

जागृत आदिवासी दलित संगठन द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में राज्य की कांग्रेस सरकार की इस नीति का विरोध करते हुए प्रशासन के सामने तीन मांगें रखी गई हैं :

1.दोषी कर्मियों को तुरंत गिरफ्तार किया जाए और उन पर ‘अत्याचार अधिनियम’ के धारा भी लगाये जाए.

2.सभी निरस्त और लंबित दावों हेतु कानून अनुसार तत्काल पुनः जाँच किया जाए और जांच प्रक्रिया के बीच किसी भी दावेदार को बेदखल नहीं किया जाए.  3.ग्रामीणों पर लगाये केस वापस लिए जाए.


प्रेस विज्ञप्ति : जागृत आदिवासी दलित संगठन द्वारा जारी


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