19 दिसंबर के बादः कानून और उसके रखवालों के साये में खाैफ़ की ज़िंदगी

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नागरिकता संशाेधन कानून के खिलाफ़ 19 दिसंबर को हुए देशव्यापी शांतिपूर्ण प्रदर्शनों के बाद उत्तर प्रदेश में जैसी हिंसा देखी गयी, उसकी रिपोर्टें टुकड़ों में अब तक हमारे सामने आयी थीं। अंग्रेजी दैनिक दि हिंदू के छह पत्रकारों− ओमर राशिद, अनुज कुमार, हेमानी भंडारी, सिद्धार्थ रवि, राघव एम. और रविप्रसाद कामिला− ने ज़मीन पर जाकर उत्तर प्रदेश व देश के अलग−अलग हिस्सों से हालात का जायज़ा लिया और इनके इनपुट के आधार पर अख़बार ने 4 जनवरी को एक समग्र रिपोर्ट प्रकाशित की। हिंदी में इस तरह की रिपोर्टिंग अब तक किसी भी मीडिया ने नहीं की है। हिंदी के पाठकों के हित मीडियाविजिल दि हिंदू में 4 जनवरी को छपी ग्राउंड रिपोर्ट का अविकल अनुवाद साभार प्रस्तुत कर रहा है। अनुवाद कामता प्रसाद ने किया है। (संपादक)


उत्तर प्रदेश के फिरोज़ाबाद में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) 2019 के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों के दौरान कम से कम छह लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इसके बाद सप्ताह भर तक अधिक समय में नैनी और जाटवपुरी चौराहे के निकट बाइपास पर रहने वाले स्थानीय निवासियों ने स्वयं को अपने घरों में बंद कर लिया, वे इतने भयभीत हो गए थे कि बाहर निकलने की हिम्मत ही नहीं हो रही थी।

20 दिसंबर को हुई मौतों के दिन को याद करते हुए मोहम्मदगंज के दुकानदार अब्दुल लतीफ ने कहा कि दोपहर की नमाज़ तक सब कुछ शांतिमय था। एकाएक लोगों ने पत्थर फेंकना शुरू कर दिया और पुलिस ने उनके ऊपर बंदूक चलाई। बताया जाता है कि मोहम्मदगंज से प्रदर्शन शुरू हुआ था। निवासियों का कहना है कि शुरुआत में जो लोग पत्थरबाजी कर रहे थे वे स्थानीय लोग नहीं थे। प्रकटरूप से गुस्से, निराशा, असहायता और पुलिस से डरे हुए स्थानीय लोगों ने कहा कि विरोध प्रदर्शन के दौरान मारे जाने वाले लोग पत्थरबाज़ी का हिस्सा नहीं थे। विरोध-प्रदर्शनों के परिणाम-स्वरूप पुलिस द्वारा उठाए गए कदमों ने लोगों को भयभीत कर दिया। ड्रोन घरों के ऊपर मंडरा रहे थे, हिंसा भड़काने के आरोपी प्रदर्शनकारियों की तस्वीरों वाले पोस्टर इलाके के सभी चौराहों पर चिपका दिए गए थे और 20 दिसंबर के घातक दिन के बाद कम से कम सप्ताह भर तक पुलिस की तैनाती देखी गई।

घर लौटते समय रास्ते में मारे गए

फिरोजाबाद में मारे गए लोगों की पहचान नवी इआन (22), राशिद (26), मोहम्मद शफीक़ (40), मोहम्मद हारून (30), मुकीम (20) और अरमान उर्फ कल्लू (20) के रूप में हुई है। नवी के पिता मोहम्मद अय्यूब ने उसे हिंसक स्थिति की जानकारी देने के लिए फोन किया उससे वापस घर आने के लिए कहा। नवी को जब मारा गया तो वह मज़दूर ठेकेदार के पास से अपनी बकाया रकम लेने के बाद घर को लौट रहा था। हारून भी 33,000 रुपये में अपनी भैंस को बेचने के बाद घर को वापस लौट रहा था। मुकीम और उनके चाचा कल्लू चूड़ी बनाने वाले कारखाने, जहाँ पर वे काम करते थे, से घर को लौट रहे थे। और अरमान, जिसे उसके बड़े भाई फरमान ने स्थिति से आगाह किया था, भी वापस लौटने की हड़बड़ी में था। सभी लोगों के परिवारों ने इस बात से इनकार किया कि उनमें से किसी ने भी 20 दिसंबर को या उससे पहले विरोध-प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था। अरमान के पिता यामीन ने कहा, “हाल के दिनों में हमारे समुदाय के साथ जो कुछ हो रहा है हम सब उसके खिलाफ हैं। हम भय के साए में जी रहे हैं। लेकिन मेरे बेटे ने कभी भी विरोध नहीं किया। उसके पास कभी भी समय नहीं था।” यह पूछे जाने पर कि क्या वे सीएए और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस (एनआरसी) का मतलब जानते हैं, उन्होंने कहा, “मैं केवल इस बात को समझता हूँ कि हमसे अपनी पहचान को साबित करने और 70 वर्ष पहले के दस्तावेजों को दिखाने के लिए कहा जाएगा।” यामीन का परिवार अरमान की हत्या की जाँच करवाना और किसी गलत आदमी को इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराना चाहता है।

चूँकि उत्तर प्रदेश भर में विरोध-प्रदर्शन हिंसक हो गए थे, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उन लोगों से “प्रतिशोध” लेने की प्रतिज्ञा की जिन्होंने सार्वजनिक सम्पति को नष्ट किया है। राज्य में कम से कम 19 लोग मारे गए हैं, इनमें से अधिकतर गोली लगाने से लगी चोटों से मारे गए। सिवाय बिजनौर के, जहाँ पर पुलिस ने कहा कि उन्होंने “आत्मरक्षा” में प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाई। पुलिस लगातार इस बात को कह रही है कि उसने राज्य में कहीं पर भी प्रदर्शनकारियों पर गोली नहीं चलाई। विरोध-प्रदर्शनों के दौरान तकरीबन 1,240 प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया, दूसरे 5,558 लोगों को ऐहतियातन हिरासत के तहत बंद किया गया। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक, 288 पुलिसकर्मी घायल हुए। इसके अलावा सरकार ने कथितरूप से उपद्रवियों पर जुर्माना लगाने और उनकी संपत्ति को जब्त करने के लिए कम से कम 498 लोगों को नोटिस जारी किए हैं।

सीएए विरोधी प्रदर्शनों के हिंसक हो जाने के 10 से अधिक दिनों बाद अहमदनगर, मेरठ में पालियों में जाग रहे हैं ताकि औचक गिरफ्तारी से बचा जा सके। ये लोग अलाव के इर्दगिर्द बैठे रहते हैं। 24 वर्षीय अलीम के भाई मो. सलाहुद्दीन ने बताया, “पुलिस अभी भी युवाओं को बंद कर रही है। कोई नहीं जानता कि रात में किसको उठा लिया जाएगा।”

मुजफ्फरनगर में, सभी तबकों के लोगों ने बताया कि पुलिसिया कार्रवाई अपने सुरक्षाकर्मियों के साथ महावीर चौक पर स्थानीय सांसद और केंद्रीय मंत्री संजीव बालयान के आने के बाद शुरू हुई। भारतीय जनता पार्टी के बड़े जाट नेता बालयान के ऊपर 2013 में मुजफ्फरनगर में दंगा भड़काने के आरोपी हैं। उन्हें ध्रुवीकरण करने वाले व्यक्ति के रूप में जाना जाता है जो उस समय परिदृश्य में आए जबकि सितंबर 2013 में उन्होंने महापंचायत में हिस्सा लिया, जिसके बाद दंगे हुए थे। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने इस बात से इनकार नहीं किया कि वे 20 दिसंबर को मौके पर मौजूद थे लेकिन उन्होंने आगे कहा कि उनकी तरफ से कार्रवाई करने का कोई दबाव नहीं था।

मेरठ में, स्थानीय लोगों का कहना है कि पुलिस को मुस्लिम-बहुल इलाकों में स्थानीय भाजपा नेताओं के साथ “देखा” गया है। बिज़नौर के नेहतौर में उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस मित्रों ने मुस्लिमों को निशाना बनाने के लिए पुलिस के साथ साठ-गाँठ की। उन्होंने कहा कि सांप्रदायिक भाषा का उपयोग करना और मुस्लिमों को पाकिस्तानी कहना भड़काने का आम तरीका था। मेरठ के पुलिस अधीक्षक अखिलेश नारायण सिंह को वायरल हो चुकी वीडियो क्लिप में मुस्लिमों को पाकिस्तान जाने के लिए कहते हुए देखा गया।

उन स्थानों पर जहाँ पर पुलिस ने स्थानीय धार्मिक नेताओं को विश्वास में लिया था, वहाँ पर हिंसा नहीं हुई। उदाहरण के लिए अलीगढ़ में पुलिस ने शहर काज़ी और दूसरे धार्मिक नेताओं की सेवाएं लीं और कुछ शुरुआती हिंसा के बाद शाति के लिए निरंतर अपीलें की गईं। मेरठ और मुजफ्फरनगर में जाहिरातौर पर 20 दिसंबर को इस तरह का कोई प्रयास नहीं किया गया। दरअसल, स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्होंने पुलिस को स्थानीय भाजपा नेताओं के साथ प्रदर्शनकारियों को भड़काते हुए देखा गया। प्रमुख शिया धर्मगुरु मौलाना असद राजा हुसेनी और उनके विद्यार्थियों को पुलिस द्वारा पीटा गया। पुलिस का कहना था कि प्रदर्शनकारियों ने सादात छात्रावास में शरण ले रखी थी।

वकील और सामाजिक कार्यकर्ता अक्रम अख्तर ने कहा, “स्थानीय भाजपा कार्यकर्ताओं ने जिला-प्रशासन के साथ साठगाँठ करके प्रमुख मुस्लिम परिवारों की दुकानों को मनमाने तरीके से सील करके और उनके व्यवसायों को निशाना बनाकर उस चीज को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की, जो कि सीएए के विरुद्ध प्रदर्शन था।”

स्थानीय लोगों ने यह भी कहा कि वर्दीधारी लोग संपत्ति को नष्ट करते हुए और जेवर चुराते हुए मुस्लिम इलाकों में जबरिया प्रवेश किया। उन्होंने कथित प्रदर्शनकारियों को बंदी बनाने के लिए घरों पर आधी रात को छापा मारा। उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस ने “हरजाने” का वादा किया था बशर्ते कि वे लुटेरों को अपनी शिकायतों में “अज्ञात” बताएं।

सलाहुद्दीन पूछते हैं, “मुझे अभी भी अपने भाई की पोस्टमार्टम रिपोर्ट नहीं मिली है। आप मुझ से कैसे कोई कानूनी कार्रवाई करने की कैसे आशा कर सकते हैं।”

नेहतौर और मुजफ्फरनगर में परिवारों को मारे गए लोगों को अपने कस्बे में दफन करने की अनुमति नहीं दी गई क्योंकि पुलिस को भय था कि इससे कानून और व्यवस्था भंग हो सकती है। सुलेमान के भाई शोएब मलिक ने बताया कि जब हम शिकायत दर्ज कराने थाने पर गए तो हमें धमकाने के लिए हवा में छह राउंड गोलियाँ दागी गईं। सुलेमान के चाचा एडवोकेट अफजल अंसारी ने बताया कि 10 दिनों बाद जब हमें पोस्टमार्टम की रिपोर्ट प्राप्त हुई तो हम यह देखकर स्तब्ध रह गए कि सुलेमान की उम्र 35 वर्ष बताई गई थी और पिता वाले कॉलम में उसके दादा का नाम लिखा गया था। उन्होंने कहा कि पुलिस ने अपने लोगों के खिलाफ अलग से प्राथमिकी दर्ज करने से इन्कार कर दिया, हालांकि शुरू-शुरू पर वह ऐसा करने पर सहमत थी। हमें केवल शिकायत की मोहर लगी प्रति ही दी गई।

अख्तर ने कहा कि मुजफ्फरनगर “मुस्लिमों के लिए पुलिस राज्य” बन गया है। उन्होंने 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगे को भी करीब से देखा था। उन्होंने कहा कि धनवानों को लूटा गया और गरीबों को गोली मारी गई। सहारनपुर और शामली जैसे स्थानों पर भी जहाँ पर तनावपूर्ण शांति बनी रही, बड़ी संख्या में लोगों को भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 148 (दंगा करने के लिए दंड) और 152 (लोकसेवकों के काम में बाधा डालना) के तहत गिरफ्तार किया गया। अख्तर ने कहा, “दुकानों को सील करना और सम्यक न्यायिक प्रक्रिया के बिना ही क्षतिपूर्ति की माँग करना अभूतपूर्व है। ये मुस्लिमों को डराने के तरीके हैं।” पुलिस और जिला प्रशासन ने स्थानीय मीडिया को अपनी समाचार रिपोर्टों में उन लोगों का नाम प्रकाशित करने के लिए कहा, जिन्हें दंगा करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

यूपी पुलिस कह रही है कि तस्वीरों और वीडियोज के जरिए पहचाने गए प्रदर्शनकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाया जाएगा। अधिकारी सार्वजनिक संपत्ति अधिनियम, 1984 के क्षति निवारण के तहत दंगाइयों से पैसे की भरपाई करने पर सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का हवाला दे रहे हैं। फिरोजाबाद में तोड़फोड़ का आरोप लगाते हुए यूपी पुलिस ने एक मृतक और दो 90 साल से अधिक के लोगों को नोटिस भेजा है। पुलिस अधीक्षक ने बाद में स्वीकार किया कि यह गलती थी और वादा किया कि वरिष्ठ नागरिकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी।

विरोध-प्रदर्शन जहाँ अधिकतर बिना किसी नेता या बेनर के बिना हुआ वहीं पुलिस ने वामपंथियों और मुस्लिम संगठनों का प्राथमिकी में उल्लेख किया है।

यूपी में मुस्लिम इलाकों में यह भावना घर कर गई है कि पुलिसिया कार्रवाई अत्यधिक की गई। स्थानीय लोगों का कहना है कि पुलिस उनसे बदला ले रही थी। जहाँ उनमें से कई लोगों ने खुद को विरोध-प्रदर्शनों से न केवल अलग रखा था बल्कि उसकी भर्त्सना भी की थी वहीं सीएए, एनआरसी, और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर की बाबत उनकी चिंताओं, असुरक्षा और संभ्रम को महसूस किया जा सकता है। नूरबानो नामक गृहिणी को पूरा यकीन है कि सीएए के बाद एनआरसी को लाया जाएगा, जिसका भारतीय मुसलमानों पर विपरीत असर पड़ेगा। हम सबूत कैसे प्रदान करेंगे। वह कहती हैं कि अगर यह सही है तो लोग सड़कों पर क्यों विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। अनेक लोगों ने कहा कि उन्हें एनआरसी से भय लग रहा है न कि सीएए से।


 


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