CAA: मो. शाेएब से लेकर बजरडीहा के युवाओं तक ज़मानत के रास्ते में बहुत सरकारी पेंच हैं

मीडिया विजिल मीडिया विजिल
ख़बर Published On :


बीते महीने के 19 तारीख को नागरिकता संशाेधन कानून के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने के चलते उत्तर प्रदेश में जो लोग गिरफ्तार किए गए थे, उन्हें सिलसिलेवार रिहा करने का काम बनारस से शुरू हो चुका है। दो दिन पहले बनारस में 19 दिसंबर की एफआइआर के तहत निरुद्ध 56 लोग ज़मानत पा चुके हैं जबकि राजधानी लखनऊ में भी दो दिनों से अदालती कार्यवाही जारी है और आज रिहाई मंच के अध्यक्ष बुजुर्ग एडवोकेट मोहम्मद शाेएब की हेबियस कॉर्पस पर सुनवाई होनी है। 

इसके ठीक उलट प्रदेश में तमाम ऐसे बंदी अब भी हैं जिन्हें न तो कानूनी सहायता मिल पा रही है और न ही उनकी कहीं चर्चा है। ये तमाम लोग 19 दिसंबर के बाद की गयी पुलिसिया कार्यवाही में अलग-अलग इलाकों से उठाए गए थे। इनमें बनारस के बजरडीहा से गिरफ्तार किए गए चार लड़के भी शामिल हैं जहां 23 दिसंबर तक घरों में घुसकर आतंक बरपाने की पुलिस की तस्वीरें मीडिया में आती रही थीं और जहां एक बच्चे की मौत भगदड़ के चलते हो गयी थी।

पुलिस ने बजरडीहा के संबंध में 21 दिसंबर की आधी रात 12 बजकर 43 मिनट पर जो एफआइआर दर्ज की है, उसमें 16 लोग नामजद हैं जिन पर अलग अलग नौ धाराओं में मुकदमे कायम किए गए। इनमें से चार को पुलिस ने गिरफ्तार किया जो अब भी जेल में हैं।

first information report

बनारस से एडवोकेट तनवीर अहमद सिद्दीकी ने मीडियाविजिल के साथ बातचीत में बताया कि इन चारों का केस “थाेड़ा अलग” है, इसलिए इनके मामले में देरी हो रही है हालांकि उन्होंने आश्वस्त किया कि ये भी छूट ही जाएंगे।

Abdul Jabbar

इसी तरह बनारस के नदेसर से भी दो लड़कों को पुलिस ने उठाया था जिसकी ख़बर मीडिया में नहीं आयी थी। बनारस के मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. लेनिन के मुताबिक 22 दिसंबर की रात 2 बजे शादाब अहमद पुत्र इरशाद अहमद को उसके घर से उठा लिया जाता है और उस पर धारा 188, 141 व 7CL लगाकर जेल में डाल दिया गया। बताया जाता है कि यह लड़का नदेसर मस्जिद के पास शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहा था। उसके घर के एक पड़ोसी जिसकी चिकन की दुकान है, पुलिस ने उसको भी उठा लिया है।

सिद्दीकी के मुताबिक इन दोनों की ज़मानत मंजूर हो चुकी है।

Banne Khan

यूपी के फिरोजाबाद से छह साल पहले गु़ज़र चुके एक शख्स बन्ने खां को पुलिस की ओर से नोटिस भेजे जाने का मामला सामने आया है जिसमें डॉ. लेनिन ने हस्तक्षेप करते हुए राष्ट्रीस मानवाधिकार आयोग के सामने अर्जी लगायी है। दैनिक जनसत्ता की वेबसाइट पर प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक शांति भंग से रोकने के लिए यूपी पुलिस ने 200 लोगों को नोटिस भेजा था जिनमें मरहूम बन्ने खां का नाम शामिल था। पुलिस ने नोटिस में लिखा था कि बन्ने खां को सिटी मजिस्ट्रेट के सामने पेश होकर दस लाख का मुचलका भर कर ज़मानत लेनी होगी।

19 दिसंबर को हुए देश भर में प्रदर्शनों के बाद उत्पीड़न और गिरफ्तारी के अब भी कुछ मामले हैं जो सामने नहीं आ सके हैं। गोरखपुर, कानपुर, मऊ, आज़मगढ़ आदि जिलों में भी हिंसा और गिरफ्तारी के मामले हुए थे, जिनके विवरण आने अभी बाकी हैं।

इस बीच गुरुवार को मोहम्मद शाेएब की ज़मानत में दिलचस्प मोड़ सामने तब आया जब अपने उत्तर में सरकारी वकील ने कहा कि मो. शोएब को 20.12.19 को क्लार्क्स अवध तिराहा से सुबह 8.45 बजे गिरफ्तार किया गया था वे दो दिन से पुलि की हिरासत में अपने ही घर में नज़रबंद थे। मो. शोएब ने कहा है कि उन्हें उन्हीं के घर से 19.12.19 को रात 11.45 बजे, कई घंटे हाउस अरेस्ट में रखने के बाद, बिना कारण उठाया गया था। इसके समर्थन में उन्होंने तस्वीरें और कॉल रिकार्ड्स जैसे कुछ दस्तावेज़ प्रस्तुत किये हैं। कोर्ट ने गिरफ्तारी के वक़्त का सार्वजनिक सीसीटीवी फुटेज को उपलब्ध कराने को कहा है। इस पर सरकारी वकील ने पुलिस से सलाह करने के लिए समय माँगा है।

लखनऊ पुलिस द्ववारा 19 दिसंबर 2019 को अपने ही घर से उठाये जाने के बाद उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ वकील मो. शोएब ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में हैबियस कार्पस याचिका लगाई थी। 21 दिसंबर 2019 को पहली बार याचिका सुनवाई के लिए आई थी इस तारीख को सरकारी वकील को उत्तर (काउंटर एफिडेविट) और याचिकाकर्ता को प्रतिउत्तर (रीजोइंडर) करने की हिदायत दी गई थी। मामला 2 जनवरी 2020 के लिए रखा गया था जब सरकारी वकील ने उन्हें सड़क से उठाए जाने का दावा किया। 

इस मामले की सुनवाई आज फिर से हो रही है।


Related