सांसद राजीव चंद्रशेखर को असली दिक्‍कत ‘कांग्रेस-पोषित’ The Wire से है, अपनी मानहानि से नहीं

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आप अगर अदालत जाने की हैसियत रखते हैं, आपके पास पैसा है और आपको अपने खिलाफ़ मीडिया में छपा कुछ पसदं न आया हो, तो एकतरफ़ा तरीके से आप मीडिया को उसके घुटनों पर बैठने को मजबूर कर सकते हैं। राज्‍यसभा के सांसद, एनडीए के केरल में संयोजक और निवेशक राजीव चंद्रशेखर ने एक झटके में सिद्धार्थ वरदराजन की वेबसाइट दि वायर के साथ यही सुलूक कर डाला है। जज साहब ने फैसला सुनाते वक्‍त एक बार भी सिद्धार्थ या उनकी वेबसाइट का पक्ष जानने की कोई कोशिश नहीं की और उन्‍हें आदेश दे डाला कि वे सांसद महोदय के खिलाफ़ छपी दो खबरें हटा लें।

सिद्धार्थ वरदराजन को कानून का फैसला मानना पड़ा है। इस फैसले एक ऐसी नज़ीर स्‍थापित कर दी है कि आप लिखते रहिएगा और आहत होने वाला आपके लिखे को मिटवाता रहेगा। दिलचस्‍प यह है कि ज़माना बदल चुका है, सो एक स्‍टोरी का फुटप्रिंट इंटरनेट की दुनिया में इतनी जगह फैल जाता है कि दुनिया की कोई मुकदमेबाज़ी उससे नहीं निपट नहीं सकती। आल्‍टन्‍यूज़ पर प्रतीक सिन्‍हा लिखते हैं कि भले ही बंगलुरु की अदालत के आदेश पर दि वायर को दो लेख हटाने पड़े हों, लेकिन वे दोनों लेख आर्काइव डॉट आइएस नामक चेक वेबसाइट पर जस के तस पड़े हुए हैं। इन्‍हें हटवाने के लिए राजीव चंद्रशेखर को चेक रिपब्लिक में मुकदमा करवाना पड़ेगा।

मामला अर्णब गोस्‍वामी के बहुप्रतीक्षित टीवी चैनल रिपब्लिक में राजीव चंद्रशेखर के निवेश से जुड़ा है जिसके बारे में दो स्‍टोरी दि वायर पर छपी थीं- 25 जनवरी को संदीप भूषण की लिखी स्‍टोरी ”अर्नब्‍स रिपब्लिक, मोदीज़ आइडियोलॉजी” और इसके बाद 17 फरवरी को सचिन राव की स्‍टोरी ”इन हूंज़ इंटरेस्‍ट्स डू आवर सोल्‍जर्स मार्च’‘। इन लेखों में बताया गया है कि संसद की रक्षा समिति का सदस्‍य होने के नाते राजीव चंद्रशेखर साफ़ तौर पर रिपब्लिक का निवेशक होने के नाते हितों के टकराव में फंसे हुए हैं।

वैसे, चेक गणराज्‍य जाने की भी कोई ज़रूरत नहीं है क्‍योंकि राजीव चंद्रशेखर के निवेश से जुड़ी खबरें न्‍यूज़लॉन्‍ड्री से लेकर तमाम अंग्रेज़ी वेबसाइटों पर छप चुकी हैं, लेकिन सांसद को इससे कोई दिक्‍कत नहीं है। इतना ही नहीं, यहीं मीडियाविजिल पर 26 जनवरी को हमने रिपब्लिक के लॉन्‍च से जुड़ी ख़बर में राजीव चंद्रशेखर के निवेश का पूरा विवरण दिया था। इस स्‍टोरी का शीर्षक था बजरंगी पत्रकारों की फौज लेकर दक्खिन से लॉन्‍च हो रहा है अर्नब गोस्‍वामी का रिपब्लिक। मीडियाविजिल की इस ख़बर से भी सांसद महोदय को कोई दिक्‍कत नहीं है।

इन उदाहरणों से एक बात बहुत साफ़ है कि राजीव चंद्रशेखर को अपने खिलाफ़ छपी खबर से उतनी दिक्‍कत नहीं थी जितनी इससे कि उसे सिद्धार्थ वरदराजन ने छापा है। यह मामला दोनों के बीच किसी पुरानी रंजिश का लगता है। इसका पता हफिंगटन पोस्‍ट पर बेतवा शर्मा की कल प्रकाशित स्‍टोरी से चलता है जिसमें राजीव चंद्रशेखर कहते हैं, ”मैं ऐसे हमलों के लिए हमेशा से तैयार था क्‍योंकि ये कांग्रेस नेतृत्‍व के करीब बैठे लोगों की ओर से हो रहे हैं। मैं कांग्रेस और मीडिया में बैठे कुछ लोगों की निकटता और उनके बौद्धिक फर्जीवाड़े को कानूनी रास्‍ते से परदाफाश करने का संकल्‍प जताता हूं।” ज़ाहिर है, उनका इशारा सिद्धार्थ वरदराजन की ओर है जिन पर कांग्रेस के प्रति नरम रहने का आरोप लगता रहा है।

अगर वाकई सांसद को अपने खिलाफ़ छपी ख़बरों पर आपत्ति होती तो वे बाकी सभी वेबसाइटों पर मुकदमे करते, लेकिन उनके निशाने पर केवल ”कांग्रेस-पोषित” मीडिया है, जैसा कि वे खुद कहते हैं। ज़ाहिर तौर पर यह लड़ाई मानहानि की नहीं है बल्कि सियासी है।

तस्‍वीर: साभार इंडिया टुडे/गेटी इमेज