The Quint ने कुलभूषण जाधव के जासूस होने की ख़बर हटाई! संपादक की ‘छुट्टी’!

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पत्रकारिता के इस चारण युग में ‘द क्विंट’ की पहचान एक निर्भीक और सरकार के प्रति आलोचनात्मक रवैया रखने वाली वेबसाइट की रही है, लेकिन वेबसाइट के एडिटर (ओपीनियन) चंदन नंदी (मुख्य तस्वीर में दाएँ) के इस्तीफ़े की अपुष्ट चर्चा बताती है कि उसुूलों पर टिके रहना आसान नहीं रह गया है।

दरअसल, चंदन नंदी ने 5 जनवरी को एक ख़बर लिखी थी जिस पर काफ़ी विवाद हुआ। ख़बर से यह साबित हो रहा था कि पाकिस्तान में फाँसी की सज़ा पाए कुलभूषण जाधव दरअसल, रॉ के एजेंट हैं। पाकिस्तान का दावा भी यही है जिससे भारत इंकार करता आया है।


चंदन नंदी ख़ुफ़िया एजेंसियों को अरसे से कवर करते रहे हैं। संपादक संजय पुगलिया और ख़ुद वेबसाइट के प्रमोटर राघव बहल (जिन्होंने नेटवर्क 18 खड़ाा किया था) के रहते यह स्वाभाविक है कि ख़बर को प्रकाशित करने से पहले काफ़ी ठोंका-पीटा गया होगा, लेकिन ख़बर सामने आते ही मंज़र कुछ और हो गया। सोशल मीडिया में द क्विंट के ख़िलाफ़ ‘राष्ट्रवादी आग’ उगली जाने लगी।  वेबसाइट को ब्लॉक करने की अपील होने लगी। हद तो यह कि कुछ पत्रकारों ने भी सीधे वेबसाइट को राष्ट्रद्रोही साबित कर दिया।

 

क्विंट के ख़िलाफ़ इस अभियान को और हवा मिली जब चंदन नंदी की स्टोरी का इस्तेमाल पाकिस्तान में होने लगा। कहा गया कि भारत इंकार कर रहा है लेकिन एक भारतीय वेबसाइट ने ही बता दिया है कि कुलभूषण जाधव भारतीय जासूस है।

 

यह कहना मुश्किल है कि केंद्र सरकार ने वेबासाइट पर कोई दबाव डाला या नहीं, लेकिन उसने यह ख़बर हटा ली। पता चला है कि चंदन नंदी इस फ़ैसले से नाराज़ हुए और उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया। हाँलाकि इस्तीफ़े की पुष्टि नहीं हुई है। वेबसाइट के संपादक को मीडिया विजिल ने ईमेल के भेजकर पक्ष जानना चाहा, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। अनधिकृत रूप से इतना ज़रूर पता चला कि चंदन छुट्टी पर चले गए हैं। उधर, चंदन के मित्रों का साफ़ कहना है कि उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया है, लेकिन मोबाइल पर संपर्क करने पर चंदन ने इतना ही कहा – ‘छोड़िए इसे।’

बहरहाल, इस प्रकरण से कुछ ऐसे सवाल उठे हैं कि जिनका रिश्ता पत्रकारिता और पत्रकार की मुश्किलों से है। ध्यान देने की बात यह है कि सरकार ने इस ख़बर पर कोई कार्रवाई नहीं की और न ही द क्विंट ने इस ख़बर को ग़लत बताते हुए खेद प्रकाशित किया। फिर भी ख़बर को हटाना बताता है कि दबाव भारी था। अगर यह माना जाए कि पाकिस्तान द्वारा ख़बर के इस्तेमाल के ख़तरे को देखते हुए क्विंट ने ख़बर वापस ली तो फिर मानना होगा कि पाकिस्तानी पत्रकार भारतीय पत्रकारों से कहीं ज़्यादा साहसी और उसूल वाले हैं। यह नहीं भूलना चाहिए कि मुंबई हमले में ज़िंदा पकड़े गया आतंकी कसाब को पाकिस्तानी साबित करने वाला स्टिंग ऑपरेशन वहीं के मशहूर जिओ चैनल ने किया था। तब भारत में जिओ को पत्रकारिता की मशाल बताया गया था।

और जिस तरह भारत में चंदन नंदी की ख़बर को लेकर क्विंट के ख़िलाफ़ तूफ़ान खड़ा किया गया, कुछ वैसा ही जियो के ख़िलाफ़ होता रहता है। हमेशा याद दिलाया जाता है कि इस चैनल ने कसाब को पाकिस्तानी साबित किया था।

 

इसका मतलब यह नहीं कि मीडिया विजिल चंदन नंदी की ख़बर के सौ फ़ीसदी सही होने का दावा कर रहा है। लेकिन झूठ भी तभी साबित होगी जब सरकार इसके ख़िलाफ़ औपचारिक ढंग से कार्रवाई करे या द क्विंट ख़ुद ग़लती मानते हुए खेद प्रकाशित करे।

इससे भी बड़ा सवाल यह है कि अगर कथित देशहित और सच टकरा रहा हो तो पत्रकार क्या करे…? सिद्धांत कहते हैं कि उसे हर हाल में सच का साथ देना चाहिए, लेकिन क्या यह इतना ही आसान है। सत्यमेव जयते का नारा लगाना और समाज को सत्य के प्रति वास्तव में आग्रही बनाना, दो बाते हैं। झूठ में लिपटे समाज में सच का दामन थामने वाले पत्रकारों को कभी नौकरी से हाथ धोना पड़ता है तो कभी जान से।

.बर्बरीक