क्या दलित, आदिवासी व पिछड़ों में सचमुच प्रतिभा नहीं होती? 



जितेन्द्र कुमार

मीडिया बोल के अब तक 34 एपिसोड हो गए हैं. अगर इसे दूसरे रूप में कहें तो लगभग आठ महीने से यह कार्यक्रम द वायर हिन्दी पर अनवरत चल रहा है. द वायर ने पिछलो दो-ढ़ाई वर्षों में अपने को एक वैकल्पिक मीडिया प्रतिष्ठान के रूप में स्थापित भी कर लिया है. उसने कई वैसी स्टोरी छापी है जिसे देखकर बड़े-बड़े मीडिया घरानों के हाथ-पांव फूल जाएं. वायर ने कई प्रयोग किए, जिसमें विनोद दुआ का प्रोग्राम जन गण मन की बात भी काफी लोकप्रिय कार्यक्रम है जिसे हजारों लोग देखते हैं और तारीफ करते हैं. अगर ‘मीडिया बोल’ की ही बात की जाए तो इसे देखने वालों की संख्या भी हजारों में है. अब यह बहुप्रचारित कार्यक्रम बन गया है. कुल मिलाकर उर्मिलेश जी के उस कार्यक्रम का लोग इंतजार करते हैं.

उर्मिलेश जी प्रमोशन वीडियो में राज्यसभा के मीडिया मंथन का अनुभव शेयर करते हुए बताते हैं कि किस तरह पांच साल आठ महीने तक उन्होंने यह कार्यक्रम वहां चलाया था और दर्शकों ने इसे काफी पसंद किया था. वह कहते हैं, ‘इस कार्यक्रम में हम समाज के बारे में, मीडिया सियासत के बारे में, मीडिया के अंदर की कहानी, मीडिया मीडिया के बारे में, मीडिया देश-विदेश के बारे में हम आपको बताएँगे.’ जब वह कहते हैं कि हम बताएँगे तो इसका मतलब साफ है कि वह किसी विशेषज्ञ के साथ मिलकर हफ्ते भर की हलचल के बारे में बात करेंगे.

उस प्रोग्राम में दो अतिथि होते हैं जो बीते हफ्ते की महत्वपूर्ण बातों या जिस बात की चर्चा होनी चाहिए थी उसपर या फिर जिसे मुख्यधारा की मीडिया या मीडिया घरानों ने छोड़ दिया था उस पर चर्चा करते हैं. विषय और विशेषज्ञ वह खुद चुनते हैं लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि उनके विशेषज्ञों की सूची में जिसमें तकरीबन 70 विशेषज्ञ बुलाए गए हैं, उसमें दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों की संख्या अंगुली पर गिनी जा सकती है. इसकी पुष्टि के लिए ‘मीडिया बोल’ के सभी कड़ियों के विषय और अतिथि के नामों की सूची शामिल है जिससे पाठकों को पता लग सकता है कि कौन-कौन विशेषज्ञ किस दिन, किस विषय पर बोलने आए थे!

लेकिन सवाल यहां सिर्फ यह नहीं है कि कौन से जानकार या विशेषज्ञ ‘मीडिया बोल’ के किस कड़ी में बुलाए गए थे या फिर उनमें यह योग्यता थी भी या नहीं? सवाल अगर सचमुच वही होता तो उसका उत्तर यही होता कि उनमें से बुलाए गए एकाध अपवाद को छोड़ दें तो आप किसी भी पैनलिस्ट की योग्यता पर सवाल खड़े नहीं कर सकते हैं. सवाल यहां यह है कि जब पूरे देश में ‘रिप्रेजेंटेशन’ या भागीदारी को लेकर बहस हो रही है तो उनके पैनल में शामिल कुल लगभग 70 विशेषज्ञों में विवेक कुमार, जयशंकर गुप्त, विराज स्वैन, भद्रा सिन्हा, शंभु कुमार सिंह और कौशल पंवार जैसे चंद नाम ही क्यों उस पैनल में आ पाए (यहां भद्रा सिन्हा और विराज स्वैन को इसलिए इसमें शामिल किया गया है क्योंकि इन पंक्तियों के लेखक को लगता है कि वे दोनों महिलाएं उसी समुदाय से आती हैं!)?

आखिर सिद्धार्थ वरदराजन और उनके प्रोफेशनल मित्रों के सहयोग से खड़ा किया हुआ वैकल्पिक मीडिया ‘द वायर’ में आज तक वैकल्पिक मीडिया मीडियाविजिल (अगर उसे वैकल्पिक मीडिया मानते हैं तो) से ही दो पैनलिस्ट बुलाए गए हैं, अन्य वैकल्पिक मीडिया से कोई समीक्षक क्यों नहीं बुलाए गए? क्या उर्मिलेश जी को वैकल्पिक मीडिया से ही अन्य नाम नहीं खोजने चाहिए थे या फिर विश्वविद्यालयों या उन विषयों पर काम करने वालों को नहीं बुलाया जाना चाहिए था जिनके बारे में बीएन उनियाल ने 1996 में पहली बार इन सर्च ऑफ ए दलित जर्नलिस्ट नामक कॉलम लिखा था?

हालांकि यह बहुत ही संतोषजनक है कि मीडिया बोल में लगभग आधी पैनलिस्ट महिलाएं रही हैं लेकिन पूरे पैनल से दलित, आदिवासी और खासकर पिछड़े गायब क्यों हो गए हैं? वैसा भी क्यों होता है कि जब आप किसी मंच से बात करेगें तो कहेंगे कि उन समुदाय के लोगों को न्यूज रूप में लाए जाने की जरूरत है और जब आप अपना शो करेंगे तो वे तमाम लोग आपके अपने ही शो से गायब हो जायेंगे!

जब अनिल चमड़िया, योगेन्द्र यादव और जितेन्द्र कुमार (मैंने) ने 2006 में दिल्ली के मीडिया घरानों में जातीय संरचना का अध्ययन किया था तो पता चला था कि 88 फीसदी ‘डिसीजन मेकर्स’ सवर्ण हैं. उस समय के लिए वह बड़ी खबर थी. तत्कालीन हिन्दुस्तान की प्रधान संपादक मृणाल पांडेय को यह बात इतनी नागवार गुजरी कि उन्होंने अपने अखबार में ‘जाति न पूछो मीडिया की’ शीर्षक से लेख लिखकर इसका प्रतिवाद किया था. अपने उस लेख में मृणाल जी ने कहा था कि हम पत्रकारों की कोई जाति नहीं होती, हम निरपेक्ष होते हैं. जबकि उनके कार्यकाल के दौरान हिन्दुस्तान अखबार की हकीकत यह थी कि एक खास पहाड़ी ब्राह्मण को छोड़कर किसी दूसरे ब्राह्णणों को भी वहां नौकरी नहीं मिलती थी. इसके गवाह खुद उर्मिलेश जी रहे हैं, जिन्होंने वहां लंबे समय तक काम किया है.

इसके उलट ‘अति-प्रतिभाशाली’ सवर्णों का यह तर्क उस समय भी था और आज भी है कि दलित, आदिवासी और पिछड़ों में प्रतिभा ही नहीं होती है, इसलिए चाहकर भी हम उन्हें बहाल नहीं कर पाते हैं! अगर उर्मिलेश जी प्रतिभा के इसी थ्योरी में विश्वास करते हैं तो उस पर मैं क्या कह सकता हूं!

 पैनलिस्टों में बुलाए गए अतिथियों के नाम कड़ी सहित
  1. मीडिया बोल की पहली कड़ी में उर्मिलेश, द वायर के संस्थापक संपादक एमके वेणु और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वायपेयी के मीडिया सलाहकार रहे अशोक टंडन के साथ प्रेस की स्वतंत्रता पर चर्चा कर रहे हैं.
  2. मीडिया बोल की दूसरी कड़ी में उर्मिलेश, हिंदुस्तान टाइम्स के राजनीतिक संपादक विनोद शर्मा और नेपाल वन टीवी की मैनेजिंग एडीटर व वरिष्ठ पत्रकार नलिनी सिंह के साथ मीडिया की आज़ादी पर चर्चा कर रहे हैं.
  3. मीडिया बोल की तीसरी कड़ी में उर्मिलेश, जेएनयू में समाजशास्त्र के प्रोफेसर विवेक कुमार और वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह के साथ मीडिया में दलित पत्रकारों की स्थिति पर चर्चा कर रहे हैं.
  4. मीडिया बोल की चौथी कड़ी में उर्मिलेश, एनडीटीवी के सीनियर एंकर रवीश कुमार और वरिष्ठ पत्रकार विद्या सुब्रह्मण्यम के साथ हिंदी मीडिया के ग़ैर-पेशेवर रवैये पर चर्चा कर रहे हैं.
  5. मीडिया बोल की पांचवीं कड़ी में उर्मिलेश, द हूट की संपादक सेवंती निनान और एनडीटीवी की वरिष्ठ संपादक निधि कुलपति के साथ बंगाल के बसीरहाट और बादुरिया की सांप्रदायिक हिंसा के मीडिया कवरेज पर चर्चा कर रहे हैं.
  6. मीडिया बोल की छठी कड़ी में उर्मिलेश भारत-चीन मामलों के जानकार मनोज जोशी और पत्रकार स्मिता शर्मा के साथ भारत-चीन के बीच जारी गतिरोध पर चर्चा कर रहे हैं.
  7. मीडिया बोल की सातवीं कड़ी में उर्मिलेश, इंडिया टुडे समूह के सलाहकार संपादक राजदीप सरदेसाई और वरिष्ठ पत्रकार आरती जेरथ के साथ प्रंजॉय गुहा ठाकुरता और बसपा सुप्रीमो मायावती के इस्तीफा देने पर चर्चा कर रहे हैं.
  8. मीडिया बोल की आठवीं कड़ी में  उर्मिलेश, देशबुंध अख़बार के कार्यकारी संपादक जयशंकर गुप्त और वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी के साथ बिहार में हुए सियासी उलटफेर की मीडिया कवरेज पर चर्चा कर रहे हैं.
  9. मीडिया बोल की नौंवी कड़ी में उर्मिलेशनेहा दीक्षित और ओम थानवी के साथ विपक्ष के कथित भ्रष्टाचार, चोटी काटने की घटनाएं और लड़की से छेड़छाड़ की घटना पर चर्चा कर रहे हैं.
  10. मीडिया बोल की दसवीं कड़ी में उर्मिलेश, टीवी पत्रकार अरफ़ा ख़ानम और द वायर हिंदी के कृष्णकांत के साथ गोरखपुर में बच्चों की मौत के मीडिया कवरेज पर चर्चा कर रहे हैं.
  11. मीडिया बोल की ग्यारहवीं कड़ी में उर्मिलेश ‘राइज़िंग कश्मीर’ के संपादक सैयद शुजात बुख़ारी और वरिष्ठ पत्रकार अशोक टंडन के साथ कश्मीर, विवाद और मीडिया कवरेज पर चर्चा कर रहे हैं.
  12. मीडिया बोल की बारहवीं कड़ी में उर्मिलेश राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार दुबे और वरिष्ठ पत्रकार पूर्णिमा जोशी से गुरमीत राम रहीम को मिली सज़ा और मीडिया कवरेज पर चर्चा कर रहे हैं.
  13. मीडिया बोल की 13वीं कड़ी में उर्मिलेश शायर गौहर रज़ा और पत्रकार अनुराधा रमण के साथ ज़ी न्यूज़ पर लगे जुर्माने और झूठी ख़बरों के कारोबार पर चर्चा कर रहे हैं.
  14. मीडिया बोल की चौदहवीं कड़ी में उर्मिलेश, वरिष्ठ पत्रकार अक्षय मुकुल और पत्रकार नेहा दीक्षित के साथ गौरी लंकेश की हत्या पर सियासत और उसके मीडिया कवरेज पर चर्चा कर रहे हैं.
  15. मीडिया बोल की 15वीं कड़ी में उर्मिलेश, पहलू ख़ान और बुलेट ट्रेन के मीडिया कवरेज को लेकर वरिष्ठ पत्रकार सबा नक़वी और एन आर मोहंती से चर्चा कर रहे हैं.
  16. मीडिया बोल की 16वीं कड़ी में  उर्मिलेश बीएचयू में हुई हिंसा के मीडिया कवरेज पर वरिष्ठ न्यूज़ एंकर अमृता राय और पत्रकार अभिषेक श्रीवास्तव के साथ चर्चा कर रहे हैं.
  17. मीडिया बोल की 17वीं कड़ी में उर्मिलेश मीडिया पर कॉरपोरेट दबाव और क़ानूनी बंदिशों पर कारवां पत्रिका के राजनीतिक संपादक हरतोष सिंह बल और द वायर के संस्थापक संपादक एमके वेणु के साथ चर्चा कर रहे हैं.
  18. मीडिया बोल की 18वीं कड़ी में उर्मिलेश केरल में जारी भाजपा-माकपा संघर्ष और गुजरात में दलितों पर हो रहे हमले को लेकर वरिष्ठ पत्रकार वीके चेरियन और पूर्णिमा जोशी से चर्चा कर रहे हैं.
  19. मीडिया बोल की 19वीं कड़ी में उर्मिलेश भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के बेटे जय शाह द्वारा द वायर के ख़िलाफ़ मानहानि के दावे को लेकर रवीश कुमार और द वायर के संस्थापक संपादक एमके वेणु से चर्चा कर रहे हैं.
  20. मीडिया बोल की 20वीं कड़ी में उर्मिलेश वर्ल्ड हंगर इंडैक्स में भारत की स्थिति और अयोध्या में राम की प्रतिमा के मीडिया कवरेज पर राधिका रामशेषन व विराज स्वैन से चर्चा कर रहे हैं.
  21. मीडिया बोल की 21वीं कड़ी में उर्मिलेश पत्रकारों पर बढ़ते हमले पर अधिवक्ता व मानवाधिकार कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज और हिंदुस्तान टाइम्स के राजनीतिक संपादक विनोद शर्मा से चर्चा कर रहे हैं.
  22. मीडिया बोल की 22वीं कड़ी में  उर्मिलेश 2022 के आम चुनाव और मीडिया की भूमिका पर वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव और इतिहासकार मृदुला मुखर्जी से चर्चा कर रहे हैं.
  23. मीडिया बोल की 23वीं कड़ी में उर्मिलेश फिल्म पद्मावती से जुड़े विवाद पर वरिष्ठ पत्रकार रितुल जोशी और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. अपूर्वानंद से चर्चा कर रहे हैं.
  24. मीडिया बोल की 24वीं कड़ी में उर्मिलेश प्यू सर्वे और मूडीज़ की रेटिंग के मीडिया कवरेज पर वरिष्ठ पत्रकार भाषा सिंह और जेएनयू के प्रोफेसर प्रवीण झा से चर्चा कर रहे हैं.
  25. मीडिया बोल की 25वीं कड़ी में उर्मिलेश, द कारवां के राजनीतिक संपादक हरतोष सिंह बल और आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज के साथ जज लोया की मौत के मामले पर चर्चा कर रहे हैं.
  26. मीडिया बोल की 26वीं कड़ी में उर्मिलेश, अधिवक्ता सारिम नावेद और मीडिया विजिल के फाउंडिंग एडिटर पंकज श्रीवास्तव के साथ यूपी निकाय चुनाव के नतीजों और मीडिया पर लगी अदालती पाबंदी पर चर्चा कर रहे हैं.
  27. मीडिया बोल की 27वीं कड़ी में उर्मिलेश, वरिष्ठ पत्रकार आरती जेरथ और पूर्णिमा जोशी के साथ गुजरात चुनाव के मीडिया कवरेज पर चर्चा कर रहे हैं.
  28. मीडिया बोल की 28वीं कड़ी में उर्मिलेश विधानसभा चुनाव के नतीजों पर प्रो. अपूर्वानंद और पत्रकार अशोक टंडन से चर्चा कर रहे हैं.
  29. मीडिया बोल की 29वीं कड़ी में उर्मिलेश साल 2017 में मीडिया से जुड़े मसलों और मुश्किलों पर वरिष्ठ पत्रकार प्रंजॉय गुहा ठाकुरता और स्मिता शर्मा से चर्चा कर रहे हैं.
  30. मीडिया बोल की 30वीं कड़ी में उर्मिलेश मुठभेड़ में हत्या करने के दौर और उसके मीडिया कवरेज पर मानवाधिकार कार्यकर्ता रवि नायर व वरिष्ठ पत्रकार पूर्णिमा जोशी से चर्चा कर रहे हैं.
  31. मीडिया बोल की 31वीं कड़ी में उर्मिलेश महाराष्ट्र में हुई भीमा-कोरेगांव हिंसा पर साकाल ग्रुप के ब्यूरो चीफ अनंत बागाईतकर और नेशनल दस्तक के संपादक शंभू कुमार सिंह से चर्चा कर रहे हैं.
  32. मीडिया बोल की 32वीं कड़ी में उर्मिलेश सुप्रीम कोर्ट के चार जजों की प्रेस कॉन्फ्रेंस पर द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन और हिंदुस्तान टाइम्स के सीनियर असिस्टेंट एडिटर भद्रा सिन्हा से चर्चा कर रहे हैं.
  33. मीडिया बोल की 33वीं कड़ी में उर्मिलेश देशभर में दलितों पर हो रहे अत्याचार और बलात्कार की मीडिया कवरेज पर दिल्ली विश्वविद्यालय की सहायक प्रोफेसर कौशल पंवार और वरिष्ठ पत्रकार पूर्णिमा जोशी से चर्चा कर रहे हैं.
  34. मीडिया बोल की 34वीं कड़ी में उर्मिलेश फिल्म पद्मावत के विरोध में करणी सेना के उत्पात और कासगंज में हुई सांप्रदायिक हिंसा पर द हिंदू सेंटर फॉर पॉलीटिक्स एंड पब्लिक पॉलिसी की सीनियर फेलो स्मिता गुप्ता और अमर उजाला के सलाहकार संपादक विनोद अग्निहोत्री से चर्चा कर रहे हैं.

जितेंद्र कुमार
जितेन्‍द्र कुमार वरिष्‍ठ पत्रकार हैं और सामाजिक न्‍याय के मामलों के जानकार ।हैं। इन्‍होंने भारतीय मीडिया की जातिगत संरचना पर पहला अध्‍ययन योगेंद्र यादव और अनिल चमडि़या के साथ मिलकर किया था। संप्रति, स्‍वतंत्र पत्रकारिता और अनुवाद। मीडियाविजिल के सलाहकार संपादक मंडल के वरिष्‍ठ सदस्‍य।