एनबीएसए की सज़ा को ज़ी का ठेंगा, लेकिन ज़ुबान सिले बैठे हैं टीवी संपादक !

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टी.वी.न्यूज़ के चर्चित चेहरे अजित अंजुम ने 18 सितंबर को प्रसार भारती की पूर्व चेयरमैन और मशहूर पत्रकार मृणाल पाण्डेय को आलोचना बर्दाश्त ना करने वाली बताते हुए कई ट्वीट किए। उन्होंने सूचना दी कि मृणाल पाण्डेय ने उन्हें ट्विटर पर ब्लॉक कर दिया है।

दरअसल अजित अंजुम ने मृणाल पाण्डेय के उस ट्वीट को निशाना बनाया था जिसमे उन्होंने ‘जुमला जयंती’ पर ‘वैशाखनंदन को रोमांचित और पुलकित’ बताते हुए एक गधे की फोटो डाली थी। अजित अंजुम ने इसे प्रधानमंत्री मोदी के जन्मदिन से जोड़ते हुए भाषा की मर्यादा तोड़ने का आरोप लगाया था।

लेकिन मृणाल पाण्डेय से  ब्लॉक होने को मुद्दा बनाकर लेख लिखने वाले अजित अंजुम ने एक ऐसे ज़रूरी मुद्दे पर ख़ुद को ‘ब्लॉक’ कर रखा है जहाँ, उनसे बोलने की उम्मीद सबसे ज़्यादा की जाती थी।

अजित अंजुम हाल ही में इंडिया टीवी से अलग हुए हैं और फिलहाल उन्होंने कहीं ज्वाइन नहीं किया है। इस बीच वे सोशल मीडिया पर काफ़ी सक्रिय हैं। दुनिया भर के विषयों पर अपनी बेबाक क़लम चलाते रहते हैं। अजित अंजुम ने 8 और 9 सितंबर को रीट्वीट मिलाकर 27 बार ट्वीट किया।

इन तारीख़ों का महत्व बताएँ, इससे पहले ये भी जान लीजिए कि ‘आज तक’ के मैनेजिंग एडिटर सुप्रिय प्रसाद ने 8,9 और 10 सितंबर को कोई ट्वीट नहीं किया।

इस कहानी में अचानक सुप्रिय का नाम यूँ ही नहीं आया है। दरअसल, हाल ही में सुप्रिय प्रसाद ब्रॉडकास्ट एडिटर्स एसोसिएशन यानी बीईए के अध्यक्ष और अजित अंजुम महासचिव चुने गए हैं। बीईए का दावा है कि न्यूज़ चैनलों की दुनिया को पत्रकारिता के उच्च मानदंडों के अनुरूप बनाना उसकी ज़िम्मेदारी है।

 

लेकिन अफ़सोस, दुनिया भर के मुद्दों पर राय देने वाले अजित अंजुम या फिर चुप रहकर आज तक को नंबर एक बनाए रखने की चाकी चलाते जाने वाले सुप्रिय प्रसाद का ज़ी न्यूज़ के उस ‘अपराध’ पर चुप्पी साध ली जो आगे चलकर न्यूज़ चैनलों की स्वतंत्रता के लिए घातक हो सकता है।

मामले की पृष्ठभूमि समझ लीजिए। कुछ साल पहले, किसी बाहरी ट्रिब्यूनल द्वारा नियमन के ख़तरे को देखते हुए न्यूज़ चैनलों ने ‘आत्मनियमन’ का दाँव चला था। एनबीए यानी ‘नेशनल ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन’ का गठन हुआ जिसने नेशनल ब्रॉडकास्ट स्टैंडर्ड अथॉारिटी यानी एनबीएसए बनाया ताकि कंटेंट पर नज़र रखी जा सके। इसके पहले अध्यक्ष  सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस रहे जे.एस.वर्मा रहे और उनके निधन के बाद अब जस्टिस रवींद्रन हैं। बहरहाल, एनबीए ख़ुद को लेकर ख़ुद कितना गंभीर है, इसका अंदाज़ा लगाना हो तो उसकी वेबसाइट पर क्लिक कीजिए। ये दिखेगा—

 

इन दिनों कई चैनलों के नीचे एक पट्टी चलती है कि अगर किसी को कंटेंट को लेकर कोई शिकायत हो तो एनबीएसए के पास दर्ज कराए।  शायर और विज्ञानी गौहर रज़ा ने इसी बात पर भरोसा करते हुए अपनी शिकायत दर्ज कराई थी। ज़ी न्यूज़ ने दिल्ली के मशहूर शंकर-शाद मुशायरे में पढ़ी गई उनकी एक नज़्म को देशद्रोह से जोड़ दिया था। पूरे मुशायरे को उसने “अफ़ज़ल प्रेमी गैंग का मुशायरा” क़रार दिया था। एनबीएसए ने गौहर रज़ा को देशद्रोही बतौर प्रचारित करने के आरोप को सही पाते हुए ज़ी न्यूज़ पर एक लाख रुपये जुर्माना लगाते हुए 8 सितंबर को माफ़ीनामा प्रसारित करने का आदेश दिया था। लेकिन 8 सितंबर आई और गई,  ज़ी न्यूज़ ने ठेंगा दिखा दिया। मीडिया विजिल ने इस विषय पर ख़बर छापी थी।

देखा जाए तो यह पाँव पर कुल्हाड़ी मारने वाला क़दम है। एनबीएसए की नैतिक आभा एक ओट है जिसकी आड़ में न्यूज़ चैनल अपनी स्वायत्तता को सही ठहरा सकते हैं।  लेकिन उसके फ़ैसले को एक चैनल ही मज़ाक बना दे तो फिर क्या होगा। हद तो ये है कि इतने बड़े मुद्दे पर बड़े-बडे़ संपादकों ने दस दिन बाद भी चुप्पी नहीं तोड़ी है। बीईए भी ख़ामोश है। उसके पेज पर आख़िर प्रेस रिलीज़ 2013 की है।

यह आश्चर्य की बात है कि जमकर ट्वीट करने वाले बीईए महासचिव अजित अंजुम ने 8 ही नहीं, 9 और 10 सितंबर को भी इस मुद्दे पर कुछ नहीं लिखा। अध्यक्ष सुप्रिय प्रसाद को भी फ़ुर्सत ना मिली।

मामले की गंभीरता समझने के लिए वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया का यह लेख पढ़िए, जो मीडिया स्टीडज़ ग्रुप के पेज पर छपा है–

“न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड ऑथोरिटी (एनबीएसए) के चेयरपर्सन न्यायाधीश आर. वी. रवीन्द्रन ने 31 अगस्त 2017 को जी न्यूज को 8 सितंबर 2017 को रात नौ बजे अपना निम्नलिखित आदेश प्रसारित करने का आदेश दिया था।

नई दिल्ली में आयोजित वार्षिक शंकर शाद (भारत पाक) मुशायरा के दौरान 5 मार्च 2016 को प्रो.
गौहर रजा द्वारा कविता पाठ के बारे में जी न्यूज चैनल पर 9 से 12 मार्च 2016 को अफजल प्रेमी
गैंग का मुशायराके शीर्षक के साथ प्रसारित कार्यक्रम के दौरान व्यक्त किए गए विचारों एवं इस
कार्यक्रम के लिए इस्तेमाल की गई टैगलाइन के लिए जी न्यूज़चैनल को खेद है। इसके अलावा ज़ी
न्यूज चैनल प्रो. गौहर रजा तथा उक्त मुशायरें में भाग लेने वालों के बारे में अफजल प्रेमी गैंगके
नाम से दिए गए विवरण के लिए भी खेद प्रकट करता है।

ज़ी न्यूज को स्क्रीन पर मोटे-मोटे अक्षरों में यह आदेश लिखा जाए और धीरे-धीरे पढ़ा जाए ताकि दर्शक/पाठक समझ सकें, लेकिन उसने इस आदेश का पालन नहीं किया। तब क्या हुआ और क्या होगा? इसकी जानकारी किसी को नहीं है। जबकि सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश ने बहैसियत चेयरपर्सन अपने इस आदेश की जानकारी सभी मीडिया को भी मुहैया कराने का आदेश दिया था। इसी आदेश के तहत कई अखबारों में इस आदेश की खबर प्रमुखता से छपी, लेकिन न्यायाधीश रवीन्द्रन का यह आदेश लागू नहीं होने के बाद के हालात को लेकर कहीं कोई सूचना नहीं है। आखिर एनबीएसए ने अपने इस आदेश को मीडिया को मुहैया कराने का आदेश क्यों दिया था। एनबीएसए का इरादा क्या केवल प्रो. गौहर रजा जैसे मामलों से नाराज होने वाले टेलीविजन न्यूज के दर्शकों के बीच अपनी साख बचाने भर के लिए था?

एनबीएसए को यह भी बताना चाहिए कि यदि जी न्यूज ने उनके आदेश का पालन नहीं किया है तो वह किस प्रकार की कार्रवाई कर रही है? रजत शर्मा को भी दिसंबर 2008 में इंडिया टीवी चैनल पर फरहान अली के झूठे इंटरव्यू को दिखाने की शिकायत के बाद 6 अप्रैल 2009 को माफी मांगने का आदेश दिया गया था। रजत शर्मा को केवल फरहान अली से 8 बजे से 9 बजे रात के बीच हर बारह मिनट के अंतराल  पर पांच बार खेद व्यक्त करना था। एनबीएसए ने रजत शर्मा के बारे में अपने फैसले की कॉपी  को समाचार एजेंसियों को मुहैया कराने का आदेश दिया था, लेकिन रजत शर्मा ने उस आदेश को नहीं मान और एनबीएसए की सदस्यता ही छोड़ दी। न्यूज चैनलों के मालिकों की संस्था न्यूज ब्रॉडकास्टिंग एसोसिएशन ने न्यूज ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड ऑथोरिटी बनाई है और अपनी ओर से अपने दर्शकों को ये वचन दिया है कि वे अपने द्वारा पत्रकारिता के लिए तैयार किए गए मानदंडों का पालन करेंगे, लेकिन रजत शर्मा ने भी नहीं किया और ज़ी न्यूज ने भी नहीं किया।

जी न्यूज के आदेश के लागू नहीं होने के बारे में एनबीएसए में हमने बात करने कोशिश की, लेकिन वहां इस तरह की जानकारी देने के लिए कोई आधिकारिक व्यक्ति नहीं मिलता। जिस तरह से अपने फैसलों की कॉपी मीडिया को मुहैया कराने का आदेश न्यायाधीश देते हैं तो उन्हें नैतिक रूप से यह सूचना देने की भी नैतिक जिम्मेदारी लेनी चाहिए कि आदेश के लागू नहीं होने के क्या कारण हैं। आदेश के कितने हिस्से लागू हुए। हम ये भी जानना चाहें कि एनबीएसए के कितने आदेश लागू हुए हैं तो ये जानना संभव  नहीं लगता। ये तो जानना और भी मुश्किल लगता है कि आदेशों का कितना हिस्सा लागू हुआ और जो आदेश लागू नहीं हुए उनके बारे में एनबीएसए ने अब तक क्या किया है। एनबीएसए को इन तमाम  जानकारियों की भी प्रेस विज्ञप्ति जारी करनी चाहिए।

एनबीएसए न्यूज चैनलों पर दर्शकों से शिकायत दर्ज कराने की अपील करता है। इस अपील में शिकायत पर कार्रवाई किए जाने का भरोसा शामिल होता है। यदि शिकायत और कार्रवाई के बारे में केवल एक भ्रम बनाने की यह कवायद भर नहीं है तो एनबीएसए को अपने कामकाज में पारदर्शिता लानी चाहिए। “

 

सवाल यह है कि इस मुद्दे पर बीईए के नए अध्यक्ष और महासचिव चुप क्यों हैं ? क्या इसलिए कि वे किसी चैनल को नाराज़ नहीं करना चाहते! क्या पता कब,कौन, कहाँ काम आ जाए !

अगर बीईए के पदाधिकारियों का वाक़ई ये रुख है तो फिर इस संगठन को अभिव्यक्ति की आज़ादी का अलमबरदार क्यों माना जाए। अजित अंजुम से ये क्यों नहीं पूछा जाना चाहिए कि मृणाल पाण्डेय से ब्लॉक होने पर आपकी नाराज़गी तो  समझ में आती है, लेकिन आपने ज़ी न्यूज़ के मुद्दे पर ख़ुद को क्यों ब्लॉक कर रखा है ? आख़िर आप संपादकों के नेता हैं, बीईए के महासचिव हैं।

ना..ना…ये कोई क्रांतिकारी बनने की माँग नहीं है। बीईए को उसकी भूमिका याद दिलाने की कोशिश है। सुप्रिय प्रसाद और अजित अंजुम तो बस चेहरा हैं.. जो भी होता, चुप रहने पर कठघरे में ही होता।

बाक़ी ये एनबीएसए की मौत की मुनादी है। आत्मनियमन के भाव को समझने और उसका सम्मान करने की लियाक़त, हिंदुस्तानी चैनलों के मालिकों और संपादकों में बिल्कुल भी नहीं है,यह तय हो गया है।

 

.बर्बरीक