सोनभद्र में हक़ माँगने पर आदिवासियों का पुलिसिया दमन ! शुरु हुआ प्रतिकार अभियान !

मीडिया विजिल मीडिया विजिल
अभी-अभी Published On :


( आमतौर पर पूरे प्रदेश में आदिवासी और वनाश्रित पुश्तैनी रूप से जंगल की जमीनों पर बसे है। इनके वनभूमि पर अधिकार के लिए संसद द्वारा कानून बनाया गया। लेकिन इस कानून को उ0 प्र0 में मजाक बनाकर रख दिया गया। प्रदेश में वनाधिकार कानून के तहत जमा किए गए 92433 में से 73416 दावे बिना किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन किए और सुनवाई का अवसर दिए खारिज कर दिए गए। सोनभद्र जनपद में 65526 दावों में से 53506 दावे, चंदौली में 14088 में से 13998 दावे, मिर्जापुर में 3413 में से 3128 दावे खारिज किए गए। एक तरफ यहां वन माफिया पुलिस और वनविभाग के संरक्षण में मौज मारता है वहीं आदिवासियों और वनाश्रितों को उनका वनाधिकार देने की जगह आए दिन वन विभाग पुश्तैनी जमीन से उनको उजाड़ता है और वे पुलिस व वन विभाग की जोर जुल्म का शिकार होते हैं। )

 

दिनकर कपूर

 

सोनभद्र में आदिवासियों के हितों के लिए शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक आवाज उठाने वाले स्वराज अभियान व आदिवासी वनवासी महासभा के नेताओं और आदिवासियों का दमन किया जा रहा है। फर्जी मुकदमों में स्वराज अभियान के नेता मुरता के प्रधान डा0 चंद्रदेव गोंड़ ओर ओबरा विधानसभा से प्रत्याशी रहे आदिवासी नेता कृपाशंकर पनिका को जेल भेज दिया गया है। मजदूर किसान मंच के जिला संयोजक राजेन्द्र प्रसाद गोंड़, सहसंयोजक देव कुमार विश्वकर्मा के घरों पर छापे डाले जा रहे है और अन्य नेताओं को भी गिरफ्तार धमकी मिल रही है। यहीं नहीं दुद्धी तहसील में वनाधिकार कानून के तहत दावा करने वाले सैकड़ों आदिवासियों को भूमफिया घोषित कर वन विभाग ने उनके खिलाफ मुकदमें कायम कर दिए है। आदिवासियों पर इन हमलों के खिलाफ जनपद के राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों व सम्मानित नागरिकों ने लोकतंत्र के लिए पुलिस दमन प्रतिकार अभियान तेज कर दिया है।

गौरतलब है कि सोनभद्र, मिर्जापुर और चंदौली के नौगढ़ में अच्छी खासी संख्या आदिवासियों की है जिन्हें आज भी न्यूनतम अधिकार नहीं मिले हैं। वैसे तो पूरे प्रदेश में आदिवासियों की हालत अच्छी नहीं है। आदिवासियों को आदिवासी का दर्जा न मिलने के कारण उनके लिए प्रदेश में एक भी संसदीय सीट आरक्षित नहीं है। कोल जैसी लाखों की जनसंख्या में रहने वाली आदिवासी जाति को आदिवासी का दर्जा तक नहीं मिला है। आमतौर पर पूरे प्रदेश में आदिवासी और वनाश्रित पुश्तैनी रूप से जंगल की जमीनों पर बसे है। इनके वनभूमि पर अधिकार के लिए संसद द्वारा कानून बनाया गया। लेकिन इस कानून को उ0 प्र0 में मजाक बनाकर रख दिया गया। प्रदेश में वनाधिकार कानून के तहत जमा किए गए 92433 में से 73416 दावे बिना किसी कानूनी प्रक्रिया का पालन किए और सुनवाई का अवसर दिए खारिज कर दिए गए। सोनभद्र जनपद में 65526 दावों में से 53506 दावे, चंदौली में 14088 में से 13998 दावे, मिर्जापुर में 3413 में से 3128 दावे खारिज किए गए। एक तरफ यहां वन माफिया पुलिस और वनविभाग के संरक्षण में मौज मारता है वहीं आदिवासियों और वनाश्रितों को उनका वनाधिकार देने की जगह आए दिन वन विभाग पुश्तैनी जमीन से उनको उजाड़ता है और वे पुलिस व वन विभाग की जोर जुल्म का शिकार होते हैं।

हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने आदिवासी वनवासी महासभा की जनहित याचिका संख्या 56003/2017 पर दिए अपने आदेश में कहा ता कि वनाधिकार कानून के तहत दावा करने वाले आदिवासी वनवासी महासभा के सदस्यों, अनुसूचित जनजाति व अन्य परपरागत वन निवासी जातियों का किसी भी प्रकार से उत्पीड़न नहीं किया जायेगा, लेकिन दुद्धी तहसील के नगंवा, अमवार, रन्दह, गड़ीया, चैरी, तुर्रीडीह, महुअरिया, फरीपान, दुम्हान, सुपांचुआ, विश्रामपुर, भलुही, लौबंद, गम्भीरपुर के सैकड़ों लोगों पर वनाधिकार के तहत दावा करने के बावजूद वन विभाग ने मुकदमें दर्ज कर दिए हैं।

इसी पृष्ठभूमि में 19 मई को लीलासी गांव में 12 आदिवासियों को, जिनमें ज्यादातर महिलाएं थी, को वनभूमि विवाद में जेल भेजे जाने की घटना अखबारों द्वारा संज्ञान में आने के बाद स्वराज अभियान से जुड़ी आदिवासी वनवासी महासभा और मजदूर किसान मंच की टीम ने 20 मई को सोनभद्र के म्योरपुर थाने के लिलासी गांव का दौरा किया। टीम ने ग्रामीणों से बातचीत के बाद यह पाया कि गिरफ्तार की गयी महिलाओं को वन भूमि से नहीं अपितु उनके घरों से गिरफ्तार किया गया है। जांच करके सत्यता सामने लाने की यह सामान्य लोकतांत्रिक कार्यवाही भी पुलिस अधीक्षक सोनभद्र महोदय को बेहद नागवार लगी। एफआईआर में नाम तक न होने के बाद भी एसपी के निर्देश पर 22 मई 2018 को लिलासी गांव में आदिवासियों व वन विभाग और पुलिस के बीच हुई विवाद की घटना के बाद जांच टीम के सदस्यों को सबक सिखाने के लिए उनके घरों पर छापे डाले जाने लगे।

जाँच टीम के सदस्य मुरता के प्रधान डा0 चंद्रदेव गोंड़ को 26 मई को एडीओ पंचायत दुद्धी ने फोन कर कहा कि एसडीएम दुद्धी उनसे बात करना चाहते है। इस पर डा0 चंद्रदेव ने एसडीएम दुद्धी को फोन किया। उन्होने गांव की पेयजल समस्या पर वार्ता के लिए अपने कार्यालय बुलाया जहाँ पहुँचने पर डॉ.चंद्रदेव को दुद्धी पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया और चोपन थाने ले गई। चोपन थाने में 26 मई को आधी रात खुद एसपी महोदय पहुँचे। उन्होंने चंद्रदेव पर सरकारी गवाह बनने के लिए दबाब बनाते हुए कहा कि सरकारी गवाह बन जाओं और अपने नेताओं का नाम बताओं। बाकी लोगों की हम नेतागिरी छुड़वा देगें। इससे इंकार करने पर उनको जेल भेज दिया गया और फर्जी तरीके से दिखाया गया कि उन्हें 27 मई को मुखबिर की सूचना पर आश्रम मोड़ म्योरपुर से गिरफ्तार किया गया है।

यदि 26 मई की इस घटना की ही जांच करा ली जाए तो सच्चाई सामने आ जायेगी। हालत यह है कि पहली बार विवेचना में 24 मई को एफआईआर दर्ज कराने वाले वन विभाग के दरोगा का ही बयान बदलकर तमाम नेताओ का नाम डाला गया है। बयान में कहा गया है कि स्वराज अभियान के नेताओं ने 19 मई को लिलासी गांव में बैठक कर लोगों को भड़काया। यदि बैठक कर लोगों को भड़काने की बात सत्य होती तो स्वभाविक था कि स्वराज अभियान का नाम 22 मई को दर्ज की गयी एफआईआर में होता। यहीं नहीं एफआईआर में कहा जाता है कि वहां पर ग्रामीणों द्वारा पेड़ काटे गए है। लेकिन विवेचना में यह नहीं बताया जाता कि कटे हुए पेड़ कहां है और किसकी अभिरक्षा में है। एफआईआर और विवेचना को देख लें तो पुलिस द्वारा रची जा रही मनगढ़त कहानियों का सच आपके सामने होगा।

स्वराज अभियान के नेताओं का दमन और उत्पीड़न महज इसलिए किया जा रहा है क्योंकि वे लम्बे समय से इस इलाके में जमीन, सम्मान और आदिवासियों की पहचान के लिए कार्यरत है।  स्वराज अभियान के गठन के पहले से ही आल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट और उससे जुड़ी आदिवासी वनवासी महासभा, आदिवासियों और वनाश्रितों को पुश्तैनी वन भूमि पर टाईटिल दिलाने के लिए प्रयासरत रही है। उसने इसके लिए माननीय उच्च न्यायालय में जनहित याचिका संख्या 56003/2017 दाखिल की थी।  माननीय मुख्य न्यायाधीश की खण्ड़पीठ ने पिछले वर्ष 24 नवम्बर को आदेश दिया था कि वनाधिकार कानून के तहत दावा करने वाले महासभा के सदस्य आदिवासियों और अन्य वनाश्रितों का उत्पीड़न अगली सुनवाई तक नहीं किया जायेगा।

खनिज और संसाधनों से भरपूर सोनभद्र की हालत काफ़ी ख़राब है। यहां प्रदूषित पानी और मलेरिया जैसी बीमारियों से हर वर्ष बड़े पैमाने पर बच्चों और ग्रामीणों की असमय मौतें होती है। यहां के उद्योगों में एक ही स्थान पर बीसियों सालों से कार्यरत ठेका मजदूरों को नियमित नहीं किया जाता। बड़े पैमाने पर टमाटर पैदा करने वाले किसानों को, उचित मूल्य और संरक्षण न होने के कारण, हर वर्ष अपना टमाटर फेंकना पड़ता है। किसानों की फसल की खरीद नहीं होती और उसका वाजिब दाम नहीं मिलता। मनरेगा ठप्प पड़ी हुई है, लोगों को काम नहीं मिल रहा है, करोड़ों रूपए मजदूरी का बकाया है। पानी के जबर्दस्त संकट से यह क्षेत्र गुजर रहा है। अंधाधुंध खनन से पर्यावरण व आम जनता का जीवन खतरे में है। कुल मिलाकर इस पूरे इलाके की स्थिति भयावह बनी हुई है।

इन सवालों को हल करने की जगह सरकार की कोशिश है कि तमाम ज्वलंत मुद्दों पर राजनीतिक कार्यकर्ता बयान तक न दें। बयान देने की सामान्य लोकतांत्रिक कार्यवाही पर चैतरफा दमन ढ़ाया जा रहा है और इस दमन अभियान का नेतृत्व खुद एसपी कर रहे है। इस दमन अभियान को रोकने के लिए जनपद के राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों, अधिवक्ताओं और सम्मानित नागरिकों ने दो बार डीएम से मिलकर पत्रक दिया। इस प्रतिनिधिमण्ड़ल में सपा, कांग्रेस, सीपीएम, सीपीआई, जनता दल यू, लोकदल, प्रधान संगठन, जन मंच, स्वराज अभियान, वर्कर्स फ्रंट, आदिवासी वनवासी महासभा समेत कई संगठनों के प्रतिनिधि शामिल थे। स्वराज अभियान की तरफ से मुख्यमंत्री कार्यालय को भी पत्रक दिया गया। जन मंच के संयोजक व पूर्व आई0 जी0 पुलिस एस0 आर0 दारापुरी ने पुलिस द्वारा जारी दमन अभियान की शिकायत लखनऊ में प्रमुख सचिव (गृह) श्री अरविन्द कुमार और अपर पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था) श्री आनंद कुमार से मिलकर की। इसके अलावा एससी-एसटी कमीशन के अध्यक्ष बृजलाल से मिलकर भी जांच कराने के लिए पत्रक दिया गया।

आर्थिक रूप से सम्पन्न सोनभद्र समेत मिर्जापुर व चंदौली के नौगढ़ के विकास, यहां के नागरिकों के लोकतांत्रिक अधिकार मिले और समाज के सबसे निचलें पायदान पर पड़े, डिजीटल इंडिया में विकास से कोसों दूर रहने वाले आदिवासियों के अस्तित्व और अस्मिता के सवाल पर जनपद के राजनीतिक दलों, सामाजिक संगठनों ने पुलिस दमन प्रतिकार अभियान शुरू किया है। जिसके तहत जन प्रतिनिधियों, सम्मानित नागरिकों, आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों व बड़े पैमाने पर ग्रामीणों व ठेका मजदूरों से सीएम के नाम सम्बोधित ज्ञापन पर हस्ताक्षर कराए जा रहे है, एसएमएस किए जा रहे है और पोस्टकार्ड भेजे जा रहे है।

 

दिनकर कपूर स्वराज अभियान से जुड़े हैं।