पूरब के ऑक्सफोर्ड में ‘डबल रोस्टर’ का गेम खेल रहे हैं ‘मनुवादी ऑक्स!’

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लक्ष्मण यादव

 

5 मार्च को यूजीसी द्वारा जारी मनुवादी विभागवार रोस्टर का सर्कुलर अपने व्यवहार में कितना सामाजिक न्याय विरोधी है, उसकी बानगी लगातार सामने आ रही है. अभी जबकि विभागवार रोस्टर लागू किये जाने को लेकर सरकार SLP (स्पेशल लीव पेटिशन) दायर होने के चलते मामला न्यायालय में विचाराधीन है, जिसकी अगली सुनवाई आगामी 2 जुलाई को होने जा रही है. MHRD से यह निर्देश आ रहा है कि अभी जब तक मामला कोर्ट है और MHRD ने तमिलनाडु केन्द्रीय विश्वविद्यालय को यह निर्देश दिया गया है कि जब तक यह मामला SLP के ज़रिये स्पष्ट नहीं किया जाता, तब तक के लिए तत्काल प्रभाव से रोक दिया जाए. तो क्या MHRD एक ऐसा निर्देश नहीं दे सकती कि देश के सभी विश्वविद्यालय SLP मामला निपटने तक विभागवार रोस्टर से नियुक्ति नहीं करेगा.

लेकिन जब मनुवाद ही सत्ता का मूल चरित्र बन गया हो, तो वे मनुवादी विश्वविद्यालय क्योंकर पीछे रहें. जिन्होंने दशकों तक न स्थाई नियुक्ति की और न अस्थाई नियुक्ति की, अब विभागवार रोस्टर आते ही सभी अप्रत्याशित तौर पर सक्रिय हो चुके हैं, यही हमारे दौर का असल चरित्र है. जिस विश्वविद्यालय में लगभग 60 फ़ीसदी पद दशकों से खाली थे, अचानक वह इतना कैसे सक्रिय हो गया. कौन पूछेगा? एक विश्वविद्यालय के शिक्षकों में आदिवासी समुदाय के शिक्षक होंगे ही नहीं, दलितों व पसमांदा समुदाय के दो-तीन फ़ीसदी शिक्षक होंगे, पिछड़े समुदाय के मात्र 5 फ़ीसदी के क़रीब जगह मिले, तो ये कैसा सामाजिक न्याय व उच्च शिक्षा का सामाजिक चरित्र होगा और एक लोकतांत्रिक मुल्क कैसे इसे सहता है.

अब दूसरा आपत्तिजनक बिंदु यह है कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय अपने विभागों और कॉलेजों में 200 प्वाइंट रोस्टर यानी विश्वविद्यालय/कॉलेज को एक इकाई मानकर बनाए गए रोस्टर के आधार पर पूर्व-विज्ञापित पदों पर लगातार स्थाई नियुक्तियाँ करता जा रहा है और लगे हाथ उसी तिथि में विभागवार रोस्टर के आधार पर अस्थाई नियुक्तियों के लिए भी विज्ञापन जारी करता है. एक ही तिथि में दो तरह के रोस्टर पर एक केन्द्रीय विश्वविद्यालय कैसे काम कर सकता है. कितनी शातिराना तरीके से एक डिस्क्लेमर लगाया कि कोर्ट जब आदेश देगी तो हम उसका पालन करेंगे. लेकिन MHRD से लेकर कोर्ट तक इस साज़िश में शामिल न होते, तो एक ही सस्थान के अलग अलग हिस्से अलग अलग रोस्टर पर काम नहीं करते.

जिस दिल्ली विश्वविद्यालय को यह इलाहाबाद विश्वविद्यालय एक उदाहरण के बतौर प्रयोग कर रहा है, वही दिल्ली विश्वविद्यालय अपने यहाँ विज्ञापित पदों को भी नए विभागवार रोस्टर के आने से नियुक्ति रोक चुका है, वहीँ इलाहाबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय लगातार संस्थावार 200 प्वाइंट रोस्टर स्थाई नियुक्ति भी कर रहे हैं और लगे हाथ विभागवार 13 प्वाइंट रोस्टर पर अस्थाई नियुक्ति करते जा रहे. एक ही साथ दो दो नियम और दो दो रोस्टर कैसे लागू किये जा सकते हैं. यही है सच्चाई उच्च शिक्षा के मनुवादी सामंती चरित्र की. अब जबकि देश के कोने कोने के विश्वविद्यालयों से इस मनुवादी रोस्टर के खिलाफ़ गुस्सा पनप रहा है, ऐसे में यह होना भयावह है.

बाकी अस्थाई नियुक्ति के लिए जिस विभागवार रोस्टर का पालन किया गया है उसमें आरक्षित वर्गों की सीटों की स्थिति आपके सामने है. कौन लोग बैठे हैं ये नीति-नियंता, जिन्हें या तो ये सामाजिक अन्याय न्याय लगता है या इनकी मंशा ही यही है कि देश के वंचितों-शोषितों को उच्च शिक्षा में ने ही न दिया जाए.

सामाजिक न्याय को लेकर चिंतित या चिंतित दिखने वाले लोगों क्या कहेंगे.

 

 

 

लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षक हैं।

 



 


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