BHU: जहां प्रॉक्टर भी नहीं है सुरक्षित, फिर छात्रों, मरीज़ों और शिक्षकों की कौन कहे!

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कैंपस Published On :


जातिगत उत्पीड़न, लैंगिक भेदभाव, अवैध वसूली, छात्रों और पत्रकारों पर हमले के लिए बदनाम काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के कुलपति गिरीश चंद्र त्रिपाठी के कार्यकाल में अब आरक्षाधिकारी (प्रॉक्टर) भी सुरक्षित नहीं हैं। विश्वविद्यालय के प्रॉक्टोरियल बोर्ड के एक सदस्य ने शनिवार को स्वयं की सुरक्षा में असमर्थता जताते हुए प्रॉक्टर पद से इस्तीफा दे दिया। इसमें उसने संकाय प्रमुख और विभागाध्यक्ष पर मानसिक प्रताड़ना का आरोप लगाया है।

कला संकाय के पत्रकारिता एवं जन संप्रेषण विभाग के सह-प्राध्यापक और प्रॉक्टर डॉ. ज्ञान प्रकाश मिश्रा ने शनिवार को विश्वविद्यालय के मुख्य आरक्षाधिकारी को इस्तीफा सौंपा। इसमें उन्होंने साफ लिखा है, ‘मैं वि.वि. के प्रॉक्टोरियल बोर्ड का एक सदस्य हूं और मैं स्वयं अपनी सुरक्षा करने में असमर्थ हूं, इस कारण मैं अपने प्रॉक्टर पद से इस्तीफा दे रहा हूं।’ ज्ञान प्रकाश ने कला संकाय प्रमुख कुमार पंकज और विभागाध्यक्ष अनुराग दवे पर मानसिक प्रताड़ना का आरोप भी लगाया है। उन्होंने इस्तीफा की एक प्रति विश्वविद्यालय के कुलपति गिरीश चंद्र त्रिपाठी को भी प्रेषित की है।

बता दें कि प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सक्रिय सदस्‍य हैं और वे इसपर गर्व महसूस करते हैं। उन्होंने जब से बीएचयू की कमान संभाली है, परिसर में आरएसएस से जुड़े आनुषंगिक संगठनों के कार्यकर्ताओं द्वारा जातिगत उत्पीड़न, लैंगिक भेदभाव, अवैध वसूली और हमले की घटनाओं में बढ़ोतरी हो गई है। लैंगिक भेदभाव और जातिगत उत्पीड़न का मामला उच्चतम न्यायालय समेत अन्य संवैधानिक संस्थाओं तक पहुंच चुका है। परिसर में छात्रों और उनकी समस्याओं को जनता के बीच ले जाने वाले पत्रकारों पर लगातार हमले हो रहे हैं।

शुक्रवार की रात को ही कैंपस के अंदर बाइक सवार बदमाशों ने आनंद यादव नामक छात्र को गोली मार दी जिसकी हालत गंभीर है। दो सप्ताह पहले समीर यादव नामक छात्र को भगवा गमछाधारी गुंडों ने कक्षा के अंदर से कट्टे के बल पर बंधक बना लिया था और बाहर लाकर लात-घूसों से उसकी पिटाई की थी। उसके कपड़े फाड़ दिये। फिर उसे बिड़ला छात्रावास ले गए। इस दौरान प्रॉक्टोरियल बोर्ड के सदस्य मूकदर्शक की भूमिका निभाते रहे। सुरक्षाधिकारियों और पुलिस प्रशासन के हस्तक्षेप के बाद मामला शांत हुआ था। गत 27 जुलाई को भगवा गमछाधारी गुंडों ने चंदा के नाम पर दुकानदारों से अवैध वसूली का वीडियो बना रहे एक पत्रकार पर हमला कर दिया। उन्होंने उस पत्रकार को मारा-पीटा और मोबाइल छीन लिया। यह पूरा वाकया प्रॉक्टोरियल बोर्ड के अधिकारियों और सुरक्षाकर्मियों के सामने हुआ लेकिन किसी ने भी इसका विरोध नहीं किया बल्कि वे हमलावरों का पीठ थपथपाकर उन्हें शाबासी देते रहे। दरअसल कैंपस में आए दिन मारपीट की घटनाएं होती रहती हैं लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन समेत पुलिस प्रशासन हमलावरों को ना गिरफ्तार करता है और ना ही उनके खिलाफ कोई कार्रवाई होती है। इसमें विश्वविद्यालय के प्रॉक्टोरियल बोर्ड के मुख्य आरक्षाधिकारी की भूमिका हमेशा संदिग्ध रहती है।

सूत्रों की मानें तो मुख्य आरक्षाधिकारी कैंपस के अंदर गुंडागर्दी करने वाले छात्रों को खुलेआम इस प्रकार की घटनाओं को अंजाम देने के लिए उकसाते रहते हैं। इसका सुबूत यह है कि हमलावर कैंपस में खुलेआम घुमते रहते हैं लेकिन ना ही प्रॉक्टोरियल बोर्ड के सदस्य उनके खिलाफ कोई कार्रवाई करते हैं और ना ही पुलिस प्रशासन। अब सवाल उठता है कि विश्वविद्यालय परिसर के अंदर ना ही छात्र सुरक्षित हैं और ना ही प्रॉक्टर। ऐसे में विश्वविद्यालय प्रशासन की निजी सुरक्षा व्यवस्था के औचित्य पर सवाल उठने लगे हैं।


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