IIMC: पत्रकारिता के एक छात्र का अपने सीनियर्स को प्यार भरा ख़त

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प्यारे भइया और दीदी,

आइआइएमसी में 12 छात्र-छात्राओं को संस्थान में 9 फरवरी को ‘अफोर्डेबल फी मॉडल’ पर चर्चा करने के लिए पांच दिनों के लिए ससपेंड कर दिया गया है. साथ ही कारण बताओ नोटिस भी जारी कर दिया गया है. प्रशासन चाहता था कि छात्र ये चर्चा न करें क्योंकि आइआइएमसी कैंपस में IIMCAA Connections 2020 आयोजित हो रहा था जिसमें कुछ लोग जो आइआइएमसी के पुराने छात्र रहे हैं उन्हें IIMCAA शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबी, किसानी, असमानता और तमाम मुद्दों पर शानदार रिपोर्टिंग करने के लिए अवॉर्ड दे रहा था. इसके साथ ही संस्थान में कुछ-कुछ खाने-पीने की व्यवस्था भी की गई थी क्योंकि कैंपस में धूम्रपान करना सख़्त मना है, जो कानूनी तौर पर जुर्म है.

इसी संस्थान के कुछ छात्र चाहते थे कि वे संस्थान के लॉन में, जिस लॉन में हर एक आइआइएमसियन फोटो खिंचवा कर फेसबुक से लेकर इंस्टा और ट्विटर हर जगह अपनी डीपी लगा लेता है, उसी लॉन में सस्ती शिक्षा के मॉडल पर चर्चा कर सकें, जिससे अंदर जिन लोगों को अवॉर्ड दिया जा रहा है उन्हें बताया जा सके कि प्यारे भइया और दीदी, आपको एक और शानदार रिपोर्टिंग करनी चाहिए. आपकी इस रिपोर्ट से संस्थान में कुछ गरीब बच्चों का भला हो जाएगा. जिस किसान, दलित, आदिवासी, उसके साथ हो रही असमानता की स्टोरी करने के लिए आपको अवार्ड मिला है उसका बच्चा भी संस्थान में पढ़ सकेगा. वो भी आइआइएमसी आने के बारे में सोच सकेगा. आपकी तरह स्टोरी करके अवॉर्ड जीत सकेगा.

जब ये बच्चे संस्थान में सस्ती शिक्षा की लड़ाई लड़ रहे थे तब आज जो संस्था आपको ये पुरस्कार दे रही है, वह आपकी स्टोरी के हीरो रहे किसान, मजदूर, दलित, आदिवासियों के बच्चों को जो भरी ठण्ड में, बारिश के दिनों में भी बाहर बैठकर सस्ती शिक्षा की मांग कर रहे थे, उनसे यह कहकर चली गई थी कि हम आइआइएमसी के किसी मामले में दखल नहीं दे सकते हैं, हम इस बारे में उनसे कोई बात नहीं कर सकते हैं.

फिर जब इमका कनेक्शन होता है तो आइआइएमसी उनकी सारी बातें मान लेता है. संस्थान उनसे इतना बड़ा इवेंट कराने का कोई भी फीस नहीं लेता (जबकि संस्थान एक ऑटोनॉमस बॉडी की तरह काम करता है, संस्थान को 70-30 का आंकड़ा बना कर चलना होता है. ऐसा संस्थान खुद कहता है). उसी दिन संस्थान के वर्तमान छात्रों को अपने प्यारे भइया और दीदी से ये नहीं कहने देता है कि भइया एक बार आकर फोटो खिंचाने के साथ-साथ हमारी बात भी सुन लीजिए. हम आपके विरोध में नहीं हैं. हम आपसे बस कुछ सवाल पूछना चाहते हैं. आपने भी तो अपनी बेस्ट स्टोरी के लिए सवाल ही पूछे होंगे.

वह संस्थान, जहां धूम्रपान करना सख्त मना है उस दिन थोड़ा-थोड़ा ‘पीने’ की इजाजत भी दे देता है. ऐसा क्यों है? जब कैंपस में अनुमति नहीं है तो क्यों खुलेआम ऐसा किया गया? नियम तो नियम होते हैं न? बच्चों का पोस्टर लेकर बैठना गलत था तो ये कहां तक जायज था? उनको क्यों कोई नोटिस नहीं दी गई? कैंपस में किसी की लड़के-लड़की के साथ कोई घटना हो जाती तो उसका जिम्मेदार कौन होता? किस संस्थान में खुलेआम धूम्रपान करने की अनुमति होती है जबकि वहां ‘धूम्रपान अवैध है’ के बड़े-बड़े पोस्टर लगाए गए हों.

प्यारे भइया और दीदी, आपको तो अवॉर्ड दे दिया गया. आपने अवॉर्ड ले भी लिया और हो सकता है दूसरी स्टोरी के लिए भी निकल गए हों जिससे कोई दूसरा अवॉर्ड भी मिल जाए. इसके लिए आपको बहुत सारी शुभकामनाएं. लेकिन प्यारे भइया और दीदी, आप भूलिएगा मत जिस किसान, मजदूर, आदिवासी, दलित की असमानता के लिए आप स्टोरी करने जा रहे हैं, उनके लिए सरकार या किसी संस्था से सवाल करने जा रहे हैं, उसी किसान, मजदूर, गरीब, दलित, आदिवासी के बच्चे को आपको अवॉर्ड देने वाली संस्था से सवाल पूछने के जुर्म में आइआइएमसी ने ससपेंड कर दिया है.

आप भी सवाल पूछते हुए ख्याल रखिएगा कि आप ये स्टोरी करके अवॉर्ड तो दोबारा जीत लेंगे लेकिन ऐसे ही दोबारा किसी बच्चे को सवाल पूछने के लिए ससपेंड कर दिया जाएगा, जो शायद आपकी ही तरह कुछ सवाल पूछना चाहता था. लेकिन उसके पोस्टर फेंक दिए गए, उसकी जगह कुछ बड़े-बड़े पोस्टर लगे. शायद जिनसे आपके अवॉर्ड का पैसा मिला होगा. उसके साथ ही पोस्टर हटाकर संस्थान में कुछ थर्माकोल के गिलास निकाले गए, थोड़ा-सा धुआं उड़ाया गया. कुछ ज्यादा नहीं हुआ है! बस ये सब करवाने वाली संस्था से कुछ सवाल पूछना चाह रहे संस्थान के 12 बच्चों को सस्पेंड कर दिया गया है.

खैर, आप अपनी दूसरी बेस्ट स्टोरी की तरफ बढ़िए लेकिन ये पढ़ने के बाद अगर अब भी आपको लगे कि कुछ गलत हुआ है, अगर ये पढ़ने के बाद आप अपनी अगली स्टोरी करते हुए जब सवाल करें और आपको ये सब याद आने लगे तो आ जाइएगा उसी लॉन में जहां आपने अपने अवॉर्ड के साथ फोटो खिंचवाई थी. रख दीजिएगा वहीं अपना अवॉर्ड और पूछिएगा संस्थान से ये सारे सवाल. क्या पता यही आपकी अगली बेस्ट स्टोरी हो.


यह पत्र आइआइएमसी के एक वर्तमान छात्र ने अपना नाम न छापने के अनुरोध के साथ मीडियाविजिल को भेजा है। इसे जस का तस एक पत्र के रूप में ही छापा गया है। इसमें मौजूद तथ्यों की पुष्टि मीडियाविजिल नहीं करता है।


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