ये आकाशवाणी है… मोदीजी! अब आप सुनिए हमारे मन की बात!

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आदरणीय श्री नरेन्द्र मोदी जी,
प्रधानमंत्री, भारत सरकार एवं
अध्यक्ष, नीति आयोग
नई दिल्ली

विषय: आकाशवाणी महानिदेशालय के अमानवीय कृत्य से मुक्ति दिलाते हुए हमारे प्रति मानवीय संवेदनाओं की स्थापना
क्या हमें इस जीवन में मिल पाएगा न्याय? कृपया सुनिए हमारे मन और आत्मा की बात!
श्रीमान जी,

आकाशवाणी की स्थापना के बाद इस संस्थान में प्रसारण हेतु व्यक्तियों का चुनाव या पोस्टिंग की गई जो नियमित कर्मी की श्रेणी में आती है। इनमें आकाशवाणी से आवाज के प्रसारण हेतु उद्घोषक, कंपेयर मुख्य पद हैं। इसी प्रसारण श्रेणी में ट्रेक्स और पैक्स की भी भूमिका है।

उद्घोषकों के नियमित लोगों की भारी कमी के चलते एक निर्णय के अनुसार उद्घोषक की समान सेवा पर आधारित कैजुअल उद्घोषक/प्रस्तोताओं का पद सृजित किया गया जिसके अनुसार हर केंद्र पर नियमित उद्घोषक की आवश्यकता के साथ 3 से 4 गुना तक कैजुअल उद्घोषकों का पैनल बनाया गया जो सतत 20-30 वर्षों से जारी है।

इसी पैनल में निदेशालय ने मनमानी करते हुए भर्तियां आरंभ कीं और इन अनियमित लोगों को माह में कम से कम 6 ड्यूटी के निर्णय से भी कम ड्यूटी देना शुरू कर दिया।

ज्ञात हो कि निदेशालय की घोर अनियमितताओं और अपने आकाशवाणी में किए गए 20 से 25 वर्षों को आधार बना कर नियमितीकरण की मांग उठाई गई जो न केवल दिल्ली अपितु इलाहाबाद, पटना, एर्नाकुलम आदि कैट ने स्वीकार कर के उद्घोषकों के दावे को उचित माना।

विशेष कर एर्नाकुलम बेंच ने आकाशवाणी महानिदेशालय को आदेश जारी कर के कहा कि इन उद्घोषकों का एक पूर्व निर्मित या नई पालिसी के अंतर्गत नियमितीकरण किया जाए।

पूर्व में कोर्ट के निर्देश पर प्रसार भारती के दूरदर्शन केंद्रों पर एक नियमितीकरण पॉलिसी के तहत 233 केजुअल प्रोडक्शन असिस्टेंट, म्यूजिशियन कारपेंटर आदि को नियमित किया जा चुका है, सिर्फ आकाशवाणी के उद्घोषक और कम्‍पेयर्स को छोड़ दिया।

इस मामले में केरल हाई कोर्ट ने भी आदेश दिए हैं और अब ये याचिका सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है जो महानिदेशालय की आंखों में खटक रही है।

इसी याचिका में शामिल लोगों और इन जैसे देश भर में लगभग 4 हजार लोगों को एक षड्यंत्र के तहत री-स्क्रीनिंग के नाम पर बाहर निकालने की नीति बनाई गई है।

इस षड्यंत्र से मुक्ति पाने के लिए हम अनियमित उद्घोषकों ने विभाग के विरुद्ध न्यायालय में शरण ली है। दुखद पहलू ये है कि विभाग के अधिकारी कोर्ट की भी धड़ल्‍ले से अवमानना कर रहे हैं।

विभाग के कुछ अधिकारियों ने महिला उत्पीड़न में भी नाम कमाया है जिसके निराकरण के लिए महिला उत्पीड़न से संबंधित एक जनहित याचिका दिल्ली हाई कोर्ट में भी लंबित है। ड्यूटी लगाने या न लगाने हेतु महिला उत्पीड़न इन अधिकारियों का मुख्य अस्त्र है। ऐसी घटनाएं राजधानी दिल्ली, हरियाणा, हिमाचल, उत्तर प्रदेश आदि राज्यों में हुई हैं।

इन जगहों पर शिकायतकर्ता की या तो ड्यूटी ही बंद कर दी गई या शिकायतकर्ता जिन कार्यक्रमों के लिए काम कर रहे थे वे कार्यक्रम ही बंद कर दिए गए। ये भी देखा गया है कि अधिकारियों द्वारा इस विभाग में अधिक संख्या में महिलाओं को भरती करने की उत्सुकता रहती है ताकि उनका शोषण किया जा सके।

इस प्रकार की घटनाएं कुछ वर्ष पूर्व दिल्ली एफएम गोल्ड में भी घट चुकी हैं जहां न केवल पुरुष अपितु महिला अधिकारियों ने भी कैजुअल कर्मियों को प्रताड़ना दी थी।

ज्ञात हो कि वर्तमान में आनन-फानन में लिए निर्णय में पहले से पास होकर नियुक्त हुए उद्घोषकों और प्रस्तोताओं को दोबारा लिखित परीक्षा, साक्षात्कार और स्वर परीक्षण के लिये बाध्य किया जा रहा है।

तर्क ये दिया जा रहा है कि उम्र बढ़ने पर आवाज की क़्वालिटी खराब हो जाती है।

श्रीमान जी, अब सवाल ये है कि वॉइस क्वालिटी केवल कैजुअल उद्घोषक की ही क्यों खराब हो जाती है। नियमित उद्घोषक और नियमित ट्रेक्स/पैक्स तथा केंद्र अधिकारियों, जिनकी आवाजें भी ऑन एयर जाती हैं, उनकी वॉइस क्वालिटी 60 साल तक क्यों खराब नहीं होती।  उनका दोबारा टेस्ट क्यों नही लिया जाता? क्यों ऐसे अधिकारी को जो 60 वर्ष तक कार्यरत रह सेवानिवृत्त हो रहे हैं, उन्हें ऐसा कौन सा टॉनिक मिलता है जिस वजह से सेवानिवृत्त होने के अगले दिन ही उन्हें विभाग में पुनः स्थापित कर दिया जाता है।

गौरतलब है कि कैजुअल दूरदर्शन एंकर,  AIR न्यूज रीडर आदि की भी नहीं होती है री-स्‍क्रीनिंग। महोदय, देश में ये पहला मामला है कि जहां 50-58 साल की उम्र में दोबारा लिखित परीक्षा, साक्षात्कार और स्वर परीक्षण किया जा रहा है ताकि इन्हें फेल कर के बाहर किया जाए।

अन्य विभागों में इस उम्र में ऐच्छिक आधार पर प्रमोशन के लिए परीक्षा ली जाती है जबकि यहां निष्कासन के लिए।

विचारणीय विषय है कि प्रशासन संभाल रहे अधिकारियों की कार्यक्षमता पर भी बढ़ती उम्र का फर्क पड़ता होगाख्‍ तो क्यों नहीं उनका दोबारा टेस्ट SSC/UPSC से करवा लिया जाए?

(अमिताभ बच्चन को आकाशवाणी के अधिकारियों ने टेस्ट में फेल कर दिया था। विभाग आज उनकी आवाज में खूब विज्ञापन बजा रहा है, उम्र बढ़ने पर भी लता मंगेशकर, भीमसेन जोशी सरीखे लोगों की आवाज में रियाज या प्रैक्टिस से निखार ही आया था।)

ज्ञात हो कि इस विभाग से रिटायर हो रहे केंद्र निदेशक, ट्रेक्स, पैक्स और नियमित उद्घोषकों को दोबारा कैजुअल ड्यूटी पर हर महीने 29 दिन 750 रुपये प्रतिदिन के आधार पर बुलाया जा रहा है जहां वे लोग 35-40 हजार पेंशन के साथ 20 से 22 हजार रुपये महीना राशि का आनंद ले रहे हैं। इनमें से कई लोगों की उम्र 70-75 साल से अधिक हो चुकी है।

हास्यास्पद बात ये है कि नए ऑडिशन में इस तानाशाह विभाग के अधिकारियों ने एंट्री की उम्र को पचास साल रखा है। उपरोक्त नादिरशाही और तानाशाही से त्रस्त हम सब इसका विरोध करते हैं।

माननीय सुप्रीम कोर्ट ने 2016 और देश की 17 में से 12 कैट बेंच और दो हाई कोर्ट ने महानिदेशालय के इस आदेश पर स्टे और स्टेटस को लागू किया है।

1500 से अधिक लोग कोर्ट की शरण में जा चुके हैं। गत दिनों भी दिल्ली आकाशवाणी के सभी केंद्रों एफएम गोल्ड और रेनबो के कर्मी 150 से अधिक की संख्या में कैट में न्याय मांगने के लिए गए हैं।

ज्ञात हो कि 10 जुलाई 2017 को कैट प्रिंसिपल बेंच ने देश के 7 राज्यों के हक में स्टे दिया है जिसके अनुसार इन राज्यों में तैनात कर्मी इस प्रक्रिया के तहत कोई भी परीक्षा देने से मुक्त हैं पर निदेशालय है कि न वो सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मानता है न हाइ कोर्ट के फैसले को और न ही कैट के फैसले को।

प्राप्त सूचनाओं के अनुसार अभी तक देश के विभिन्न केंद्रों से 500 से अधिक लोगों का नाम आकाशवाणी पैनेल से काट कर बाहर का रास्ता दिखा दिया है।

अपुष्ट सूचनाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि लगभग 4000 लोगों की छुट्टी करने का षड्यंत्र है।

आप के संज्ञान में लाना चाहेंगे कि इस तानाशाही का विरोध करते हुए हिसार के कर्मी भूख हड़ताल पर भी बैठे थे जहां कुछ लोगों की जान पर बन आई थी जिन्हें स्थानीय जिला प्रशासन ने अस्‍पताल में भर्ती कराया।

इन सब पर आंख मूंद कर आकाशवाणी महानिदेशक ने हिसार में स्थानीय प्रशासन का सहारा लिया धारा 144 लागू कर, पुराने और नए कर्मियों का लिखित इम्तिहान लिया। इंतहा है जुल्म की!

और ये जुल्म और इसकी खबर प्रसारण मंत्री, अध्यक्ष प्रसार भारती और सीईओ प्रसार भारती को दी जा  चुकी है।

संसद में भी विभिन्न दिवसों पर सांसदों ने भी हमारे हक़ की आवाज उठाई है पर उसे भी प्रसार भारती द्वारा ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।

(प्रसार भारती के नए कार्यालय में मृतप्राय 1 अरब के पत्थर लगा दिए गए। जीवित प्राणियों के जीवन की चिंता किसी को नहीं है)

श्रीमान प्रधानमंत्री जी से आशा की जाती है कि हमारे खिलाफ विभाग द्वारा किए जा रहे षडयंत्र पर लगाम लगाते हुए हमारा नियमितीकरण किया जाए ताकि हम भी अपने परिवार को दो वक्त की रोटी खिला सकें। हमारे नियमितीकरण हेतु समय-समय पर संसदीय समिति ने भी निर्देश जारी किए हैं पर प्रसार भारती के अधिकारी इन समितियों के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करते।

कैज़ुअल कर्मियों हेतु न्याय की प्रतीक्षा में।

हरि कृष्ण शर्मा,
अध्यक्ष
आल इंडिया रेडियो कैजुअल एनाउंसर एंड कम्‍पेयर्स यूनियन (रजि०)