डिगरी बाबू के दुआर मोहब्‍बत की कीमत लगाता मीडिया : एक संस्‍मरण

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आशुतोष कुमार पांडे  

बक्सर से आरा के लिए बन रही नयी-नवेली फोर लेन पर चलते जाइये। लगभग बीस किलोमीटर चलने के बाद दाहिने तरफ एक ईंट का घर बना हुआ है जहां एक सफेद देसी गाय खूंटे पर बंधी है। एक अधेड़ उम्र की महिला मूली पर लगी मिट्टी साफ़ कर रही है। उनके साथ लगभग चौदह साल की लड़की और एक लगभग बारह साल का लड़का इस काम में मदद कर रहा है। हमें देखते ही वह महिला अपने माथे पर घूंघट डाल लेती है। घर की उत्तर दिशा में बक्सर से आरा के लिए जाने वाली सड़क दिखाई दे रही है। बाकी तीन तरफ़ सब्जियां लगी हुई हैं। घर के पश्चिम में मूली और भिंडी के खेत जवान हो रहे हैं। पूरब की तरफ गोभी अभी फूलने को बेचैन है। घर के पीछे आलू की फसल लगी है। खेतों को लीलने पर आमादा इस फोर लेन सड़क के उस पार के खेतों में भी फसल खड़ी है।

यह डिगरी सिंह का दुआर है। इस गांव का नाम कठार है, जो बक्सर जिला में पड़ता है। दुबले पतले टिपिकल किसान डिगरी सिंह हमें अपने खेत से ही देख लेते हैं। लाल रंग की गमछी का माथे पर पगड़ी, हरे रंग की लुंगी और मटमैले रंग का खद्दर का कुरता पहने डिगरी बाबू हमसे हमरा परिचय पूछते हैं। हमने बताया हम प्रेस से हैं। उनके चेहरे पर पता नहीं कैसे ख़ुशी की लकीर खिंच जाती है।

मैंने पूछा कि खेत आपका ही है या मालगुजारी पर लिए हैं? डिगरी बाबू ने कहा कि खेत अपना नहीं है, 12 से 16 हज़ार रूपया देकर मालगुजारी पर लिए हैं। उसके बाद वे खुद ही बोलते गये- ‘’देखिये, गोभी लगाये है। तीन बिगहा यानि साठ कट्ठा में। एक बिगहा का पलाऊ कराने में पांच सौ रुपया लगता है। जोताई साढ़े तीन सौ रुपया प्रति बिगहा है। कम से कम कुछ भी बोने से पहले खेत को चार चास करना पड़ता है। गोभी का बीज बाजार में तेरह सौ रूपया किलो है। अपना बोरिंग है तो सिंचाई आसान है। तेल और चालीस रुपया प्रति घंटा बोरिंग वाले को दीजिये। खाद का भाव आप जनबे करते हैं। तीस रूपया से चालीस रुपया प्रति किलो है।‘’

उन्होंने आगे कहा- ‘’हम किसान हैं तो खुद बेचने मार्केट जायेंगे नहीं। जायेंगे तो खेती कैसे कर पायेंगे। खेत भी जाना बहुत जरूरी होता है। यहां नयका भोजपुर, कृष्णाब्रह्म और डुमरांव में मार्केट सवेरे पांच बजे से सवेरे नौ बजे तक लगता है। हम शाम को सब्जी तोड़ते है। सवेरे बेच देते हैं।‘’

‘’गोभी क्‍या भाव है’’, हमने पूछा। उन्होंने कहा दो सौ रुपया सैकड़ा। असल में एक हफ्ता पटना रहने के बाद सब्जी का भाव मुझे मालूम था। जिस दिन डिगरी सिंह मुझे दो सौ रुपया सैकड़ा गोभी का भाव बता रहे थे उस दिन पटना के बोरिंग रोड में तीस रुपया प्रति पीस था। डिगरी बाबू कहने लगे- ‘’एक गोभी की लागत पांच रुपये है लेकिन मज़बूरी है कि शहर जाकर कोई काम नहीं कर सकते। खेती के अलावा कुछ आता नहीं है।‘’

मेरे साथ वहां गए मीडिया के कुछ लोगों ने पहली बार गोभी और मूली के खेत देखे थे। एक एंकर ने कहा- ‘’मुझे नहीं मालूम था कि मूली ज़मीन के अंदर विकसित होता है और गोभी की फसल ऐसे होती है।‘’

डिगरी बाबू ने हमें बिस्‍कुट के साथ नींबू की चाय पिलाई। रात हो रही थी और वे रुकने का आग्रह कर रहे थे। मीडिया हाउस के साथियों को पटना जाने वाली सड़क पर छोड़ना था और मुझे भी अपने गांव जाना था।

चलते चलते एक साथी ने पूछने के अंदाज़ में मुझसे कहा- ‘’एक दर्ज़न मूली और दो-चार फूल गोभी मिल जायेगा क्‍या।‘’ डिगरी बाबू यह बात सुन लिए और एक पंजा मूली और क़रीब पचास गोभी गाड़ी में डाल दिए। पटना से गया कैमरामैन उन्‍हें सौ का नोट देने लगा। डिगरी बाबू ने कहा कि मोहब्बत में देने के लिए बस यही है। इसकी कीमत मत लगाइये बाबू।

मैंने कैमरामैन को नोट पॉकेट में रखने का इशारा किया और हम निकल लिए।


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