जस्टिस लोया की कहानी की लोकप्रियता ने The Caravan को बना दिया हिंदी का ‘कारवां’


The Caravan से कारवां तक का सफर


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पत्रकारिता से जुड़ी एक अच्‍छी ख़बर है। अंग्रेजीकी चर्चित पत्रिका ‘दि कारवां’ ने आज से हिंदी की अपनी वेबसाइट ‘कारवां’ नाम सेशुरू कर दी है। यह वेबसाइट आज से लाइव हो गई है। इस मौके पर दि कारवां के संपादकविनोद के. जोस ने पाठकों के नाम एक संदेश भिजवाया है जिसे आप नीचे पढ़ सकते हैं।   

हिंदी में कैरवैन क्यों?

नवंबर 2017 में जब ‘द कैरवैन’ ने जज लोया कीसंदिग्ध मौत का खुलासा किया तो कुछ वेबसाइट, समाचारपत्रों औरएनडीटीवी हिंदी को छोड़कर अंग्रेजी और हिंदी के अधिकांश बड़े समाचार पत्र औरटेलिविजन खामोश रहे। वह खबर कुछ बड़े सवाल उठा रही थी जिसके राजनीतिक मायने थे।सवाल था कि सोहराबुद्दीन शेख और उनकी बीवी कौसर बी और चश्मदीद तुलसी प्रजापति केफर्जी एनकाउंटर मामले में सुनवाई कर रहे जज की मौत बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को समनभेजने के कुछ ही दिनों के अंदर कैसे हो गई। जज लोया के परिजनों का आरोप है कि बॉम्‍बेहाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने अमित शाह के पक्ष में फैसला सुनाने के लिए जजलोया को 100 करोड़ रुपए की रिश्वत की पेशकश की। वह एक ऐसा वक्त था जब भारतीय मीडियापत्रकारिता में बड़े जोखिम उठाने से डर रहा था और अमित शाह और प्रधानमंत्रीनरेन्द्र मोदी अपने करियर के शिखर पर थे। कारवां ने लोया से संबंधित खोजी रिपोर्टको प्रकाशित किया। हमें लगा था कि हमारी इस खोज को बड़े मीडिया समूह आगे ले जाएंगेलेकिन ऐसा नहीं हुआ। उनकी चुप्पी से हमें एहसास हुआ कि जज लोया की खबर को अनुवादकर अपनी वेबसाइट में प्रकाशित करना ही होगा ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों कोअंग्रेजी में प्रकाशित हमारी खबर का पता चल सके। और जज लोया की खबर के साथ हिंदीभाषा में हमने अपनी पहली खबर प्रकाशित की।

तब से लेकर हाल तक हमने केवल जज लोया के मामले में 27 खोजी रिपोर्टें प्रकाशित की है और इन खबरों को किया है छह पत्रकारों ने। शुरुआती दिनों में मीडिया के ब्लैकआउट के बावजूद हमने अपनी पड़ताल जारी रखी और उन खबरों को हिंदी में भी प्रकाशित किया। भाषाई प्रेस ने हमारे कवरेज को स्थान दिया और साथ ही अन्य अंग्रेजी वेबसाइटों ने भी इन खबरों को छापा। फिर धीरे धीरे जनता के विचार बदलने लगे। यहां तक कि मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने भी चुप्पी तोड़ते हुए 42 दिन बाद इस मामले में प्रेस कॉन्फ्रेन्स की। जनता में जज लोया की खबर पहुंचने और उसकी अंतरात्मा को झकझोर देने का असर ही था कि जब लोया का मामला सुप्रीम कोर्ट में आया तो चार वरिष्ठ जजों ने प्रेस कॉन्फ्रेन्स की और भारतीय इतिहास में पहली बार देश के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया आरंभ हुई। मुझे लगता है कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि अंग्रेजी के अलावा हमारी वेबसाइट और दूसरी हिंदी वेवसाइटों के माध्यम से जज लोया की खबर हिंदी पाठकों की बड़ी तदाद तक जा सकी। फेसबुक, ट्विटर और वॉट्सऐप ने हमारी खबरों को असंख्य लोगों तक पहुंचा दिया। आज एक साल बाद हम हिंदी वेबसाइट ‘कारवां’ आरंभ कर रहे हैं।

हाल के सालों में हमे महसूस हुआ कि हिंदी भाषी भारतीयों में भी अंग्रेजी कारवां में प्रकाशित होने वाली गंभीर और इन-डेप्थ खबरों के प्रति रुचि है। जिसे हम नैरेटिव या लंबे विवरण वाली रिपोर्ट कहते हैं उसमें सार्वजनिक व्यक्ति या विषय पर गंभीर पड़ताल होती है ताकि पाठकों को विषय से संबंधित सभी पक्षों की जानकारी मिल सके। एक प्रकार से देखा जाए तो कारवां की रिपोर्टों को पढ़़ना एक पूरी किताब को पढ़ना या संबंधित विषय की डॉक्यूमेंट्री देखने के जैसा एहसास है। मुझे विश्वास है कि हमारी राफेल, आसाराम, सलमान खान या आज के भारत में शूद्र पर प्रकाशित रिपोर्टें अपके लिए अच्छा अनुभव थीं। ये रिपोर्ट किसी किताब को संजो कर रखने के समान हैं। आप इन रिपोर्टों को याद रखते हैं, संदर्भ देते हैं और बातचीत में इनका हवाला देते हैं। हम कारवां की सभी खबरों में चार बातों को प्राथमिकता देते हैं- रिपोर्टिंग, लेखन, विद्वत्ता और उसूल। एक अच्छी लंबी रिपोर्ट में ये सारी बातें होनी ही चाहिए। और इस बात में क्या शक है कि हिंदी ऐसी रिपोर्टों के लिए एक अच्छी भाषा है।

डॉ विनोद के जोस

कार्यकारी संपादक

द कैरवैन


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