रोर मीडिया ने पत्रकार के निष्‍कासन पर भेजा जवाब, ‘’मूल्‍यों की रक्षा के लिए लेना पड़ा निर्णय!”

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मीडियाविजिल ने बीते 1 अक्‍टूबर को रोर मीडिया की हिंदी सेवा से निकाले गए पत्रकार मुरारी त्रिपाठी की आपबीती प्रकाशित की थी जिसमें उन्‍होंने विस्‍तार से बताया था कि उन्‍हें ‘’ओपेन पॉलिटिकल एक्टिविज्‍़म’’ का आरोप लगाकर नौकरी से बरखास्‍त किया गया। इस संबंध में मीडियाविजिल को रोर मीडिया की ओर मेल पर से एक स्‍पष्‍टीकरण प्राप्‍त हुआ है जिसमें संस्‍थान का कहना है कि वे पत्रकारिता उन्‍मुख संस्‍थान नहीं हैं, लेकिन पत्रकारिता के मानकों पर काम करते हैं इसलिए वे अपने संपादकीय कर्मचारियों से उम्‍मीद करते हैं कि वे ‘’पॉलिटिकल एक्टिविज्‍़म’’ से दूर रहें। रोर मीडिया का भेजा स्‍पष्‍टीकरण नीचे अविकल प्रकाशित है- संपादक

ओपेन पॉलिटिकल एक्टिविज्मके कारण एक कर्मचारी की सेवाएं समाप्त करने के संबंध में

पिछले कुछ दिनों से कुछ एक मीडिया पोर्टल्स पर एक खबर सुर्खियों में है. इस खबर में रोर हिंदी (रोर मीडिया का एक हिस्सा) पर आरोप है कि उसने अपने एक कर्मचारी को सिर्फ इसलिए नौकरी से निष्कासित कर दिया, क्योंकि वह ‘ओपेन पॉलिटिकल एक्टिविज्म’ में सक्रिय था. रोर से निष्कासित कर्मचारी द्वारा दिए गए विवरण (Version) को इस खबर का आधार बनाया गया है.

इसी क्रम में हम आधिकारिक रूप से अपना स्टैंड लेते हुए स्पष्ट करना चाहेंगे कि आखिर किस परिस्थिति में यह निर्णय लिया गया था. जैसा कि ‘रोर मीडिया’ एक न्यू एज मीडिया प्लेटफ़ॉर्म है, जो पांच भाषाओं में मौजूद है. ‘रोर हिन्दी’ भारत में इसी का एक उपक्रम है. यह अपने फीचर्स, वीडियो एवं तस्वीरों के साथ बौद्धिक कंटेंट का संकलन एवं उसे प्रस्तुत करने की जिम्मेदारी को बखूबी निभाता आया है. यही कारण है कि एक बड़ी संख्या में लोग इसके पाठक हैं. फेसबुक पर 9 लाख से अधिक फालोवर के साथ हर महीने 20 मिलियन (2 करोड़) वीडियो व्यूज तो 1 मिलियन आर्टिकल-सेशन के साथ हम अपनी विश्वसनीयता बनाये हुए हैं.

हालांकि, हम खुद को पत्रकारिता उन्मुख कंपनी नहीं कहते, (हम दैनिक समाचार से भी दूर रहते हैं). बस हमारा काम पत्रकारिता के मानकों पर आधारित है. हम जो कहानियां लिखते हैं, उनमें कोशिश करते हैं कि वे तथ्यपूर्ण हों, साथ ही किसी खास विचारधारा, पार्टी विशेष आदि की तरफ झुके हुए न हों.

इसके लिए हम अपने संपादकीय कर्मचारियों से उम्मीद करते हैं कि वे ‘पॉलिटिकल एक्टिविज्म’ से दूर रहें. कम से कम तब तक तो ज़रूर ही, जब तक वह हमारे साथ जुड़े हुए हैं और पत्रकार का काम चर्चा को प्रोत्साहित करना है, न कि ‘पॉलिटिकल एक्टिविस्ट’ की तरह किसी चर्चा को प्रभावित करना.

यही कारण रहा कि जब हमारा एक कर्मचारी ‘ओपेन पॉलिटिकल एक्टिविज्म’ में लिप्त पाया गया, तो उससे स्पष्टीकरण मांगा गया. हमने उसे ‘रोर हिंदी’ की एक कमेटी के साथ व्यक्तिगत रूप से अपनी स्थिति साफ करने का अवसर भी दिया. इस दौरान कर्मचारी ‘ओपेन पॉलिटिकल एक्टिविज्म’ से दूर होने के मत में नहीं था, तो उसकी तरफ से संतोषजनक सफाई भी नहीं दी गयी. ऐसी परिस्थिति में हमें उससे जाने के लिए कहना पड़ा. हमने उसे 15 दिन की नोटिस पीरियड भी देना चाहा, लेकिन उसने इसका लाभ लेने से इंकार कर दिया. वह तत्काल प्रभाव से जाना चाहता था.

हम अपना मत रखने की आजादी में विश्वास रखते हैं. हमारे लेखों में यह देखा जा सकता है. यह भी महत्वपूर्ण है कि किसी मीडिया संस्थान में जिम्मेदारी के साथ ही ‘फ्री स्पीच’ की ताकत आ सकती है. पॉलिटिकल एक्टिविज्म निश्चित रूप से पत्रकारिता पर प्रश्नचिन्ह खड़े करता है. एक्टिविज्म निश्चित रूप से पत्रकारिता के पैमाने को नहीं आंकती है, हालांकि यह हर समाज में निश्चित और महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है

एक मीडिया कंपनी को तटस्थ और ऑब्जेक्टिव होने के लिए यह आवश्यक है कि उसके पत्रकार, पत्रकार ही हों, न कि एक पॉलिटिकल एक्टिविस्ट. इस बात में हमारा मजबूत विश्वास है कि यदि सभी मीडिया संगठन इसको मानक बनाते हैं, तभी सही मायने में पत्रकारिता की गुणवत्ता में सुधार होगा. इससे पत्रकारिता के उच्च मानकों को बल मिलेगा और पत्रकारिता का मुखौटा लगाने वाले लोग धीरे-धीरे गायब हो जाएंगे.

एक बात और किसी के जाने से किसी को कोई ख़ुशी नहीं मिलती. कम से कम हमें तो बिल्कुल नहीं! किन्तु, कभी-कभी संगठन को अपने मूल्यों की रक्षा करने के लिए ऐसे कड़े और अप्रिय निर्णय लेने पड़ते हैं और यही हमने किया.

इस मामले के बारे में किसी भी मीडिया प्रश्न के लिए, सचिन भंडारी से संपर्क किया जा सकता है: sachin@roarmedia.net


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