त्रिवेन्द्र रावत के मीडिया सलाहकारों के मन में आखिर क्या चल रहा है?

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साभार पर्वतजन


रोहित जोशी / पिथौरागढ़ 

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकारों की वह कौन सी मन:स्थिति होगी जिसने बहुचर्चित उत्तरा बहुगुणा पंत मामले के बाद मुख्यमंत्री को उनके जनता दरबार में मीडिया और अन्य लोगों द्वारा कैमरे के इस्तेमाल को वर्जित कर देने की सलाह दी। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के मीडिया प्रभारी दर्शन सिंह रावत के हवाले से सोमवार को अंग्रेज़ी अख़बार टाइम्स ऑफ इंडिया ने बताया कि “सरकार ने निर्णय लिया है कि मुख्यमंत्री के जनता दरबार में हॉल के अंदर मीडिया और मोबाइल कैमरों के इस्तेमाल की अनुमति नहीं होगी।” अख़बार ने आगे लिखा, ”हालांकि इस बारे में कोई फॉर्मल इंस्ट्रक्शंस नहीं जारी किए गए हैं लेकिन (दर्शन सिंह) रावत ने कहा है कि नए प्रतिबंधों को सख़्ती से लागू किया जाएगा।”

मीडिया का ‘एम’ तक नहीं जानने वाला व्यक्ति भी समझ सकता है इससे क्या होना था?​ स्वाभाविक ही उत्तराखंड के न्यूज मीडिया को यह नागवार गुजरा और अगले दिन यह मसला मीडिया महकमे और सोशल मीडिया के ज़रिए उत्तराखंड में छाया रहा और पहले से ही जनता दरबार में अपने किए से किरकिरी पा रहे राज्य के मुखिया की दिन भर फिर फजीहत होती रही। (हालांकि ठीक इस जगह मुझे कोई मुहावरा इस्तेमाल करना चाहिए जो इस परिघटना का ‘खुलासा’ करे। लेकिन मुझे कोई सटीक मुहावरा सूझ नहीं रहा, सो पाठक मुझे सुझाएं।)
फिर वही हुआ जो होना था। जब पर्याप्त फजीहत बटोर ली तो दर्शन सिंह रावत इस ख़बर का खंडन करने प्रकट हुए और उन्होंने कहा कि जनता दरबार में मीडिया पर ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जाएगा। यानि इसके बाद उत्तराखंड के दूरदर्शी मुख्यमंत्री और उनके अति-दूरदर्शी सिपहसालारों को यह फैसला वापस लेना पड़ा।
यहाँ इस आलेख की पहली पंक्ति के प्रश्न पर वापस लौटें। “उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकारों की वह कौन सी मन:स्थिति होगी जिसने बहुचर्चित उत्तरा बहुगुणा पंत मामले के बाद मुख्यमंत्री को उनके जनता दरबार में मीडिया और अन्य लोगों द्वारा कैमरे के इस्तेमाल को वर्जित कर देने की सलाह दी।”
मौजूदा समय में उत्तराखंड में मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार, बरास्ता लोकसभा टीवी, न्यूज़ नेशन पहुंचे पत्रकार ‘कम’ एंकर रहे रमेश भट्ट हैं। उपरोक्त घटना के आलोक में उत्तराखंड की एक प्रमुख न्यूज मैग्ज़ीन ‘पर्वत जन’, (जो कि अब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी काफी सक्रिय है,) ने एक आलेख प्रकाशित किया है। इस आलेख में मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकार बनने के बाद देहरादून पहुंचे रमेश भट्ट के क्रियाकलापों को बताया गया है।
हमारे इस आलेख के मूल प्रश्न का जवाब भी संभवत: वहीं है। आलेख में जनता दरबार की घटना का ज़िक्र करते हुए लिखा गया है, ”उत्तरा बहुगुणा के साथ हुई घटना के बाद मीडिया के लोगों से मुख्यमंत्री के सलाहकार रमेश भट्ट ने उस दिन जनता दरबार प्रकरण के विडीओज़ को तत्काल डिलीट करने का आदेश इलेक्ट्रोनिक मीडिया के पत्रकारों दिया। रमेश भट्ट ने कुछ इस तरह से ज़ोर-ज़बरदस्ती की जैसे वह मुख्यमंत्री के सलाहकार नहीं, बल्कि टेलीविज़न चैनल के मालिक होंगे और वह अपने कर्मचारियों को आदेश दे रहे हों।”
आलेख आगे कहता है, ”रमेश भट्ट ने इस ख़बर को ना चलने देने की बात कहते हुए मीडिया के लोगों को धमकाया कि वह ख़ुद इस ख़बर को चैनल पर मॉनीटर करेंगे कि आखिरकार कौन सा टेलीविज़न चैनल इस विडीयो को दिखाता है। साथ ही उन्होंने सूचना विभाग के अधिकारी रवि बिजारनिया को तत्काल आदेश दिया कि वह पांच कर्मचारियों की टीम बनाकर मीडिया सेंटर के कंट्रोल रूम में जा कर सभी चैनलों की मॉनीटरिंग करें और बताएँ कौन क्या दिखा रहा है।”
आलेख कहता है, ”कुछ ने तो वीडियो डिलीट कर दिया तो कुछ ने बहाना बनाया कि उत्तरा प्रकरण इतने अचानक से हुआ कि उनके कैमरे रिकॉर्ड ही नहीं कर पाए…! इसके ठीक बाद कॉंग्रेस भवन में एक प्रेस वार्ता थी और प्रेस के लोगों ने कॉंग्रेस भवन जाकर सबसे पहले वही वीडियो अपने-अपने चैनलों को भेजे। उसके बाद जो हुआ उसे सलाहकार और मुख्यमंत्री दोनों भुला नहीं पा रहे हैं।”
पर्वत जन के इस आलेख में हालिया घटना के अतिरिक्त भी कई घटनाओं का ज़िक्र करते हुए मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट का एक खाका खींचा है जिससे पता चलता है कि ​’दिल्ली में पत्रकारिता करके आया’ यह भूतपूर्व पत्रकार, उत्तराखंड के पत्रकारों को ‘दोयम दर्जे’ का मानता है और अहमन्यता के साथ उन्हें पत्रकारिता करने की तमीज सिखाता रहता है। इस पूर्व पत्रकार की समझ मीडियाकर्मियों को डांट-फटक कर ख़बरों को रेग्यूलेट करने और त्रिवेंद्र सरकार को किसी भी आलोचना से परे रखने की है।
हमारे मूल प्रश्न का उत्तर भी यहीं है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री और उनके सलाहकार की यह चेतना ही असल में वह वजह है जिसने पहले से किरकिरी झेल रहे मुख्यमंत्री को जनता दरबार में मीडिया और अन्य लोगों द्वारा कैमरे के इस्तेमाल को वर्जित कर देने की सलाह दी। यहां प्रश्न यह है कि मीडिया को इस तरह मसल देने की नीयत के साथ, भाजपा जो कि देश भर में पारदर्शी सरकार देने का दावा करती है, कैसे यह कर पाएगी?
और यह पहला वाकया नहीं है जब त्रिवेंद्र सरकार न्यूज़ मीडिया पर चंगुल कसना चाह रही हो। इससे पहले भी पिछले साल उतराखंड सरकार ने एक फ़रमान जारी कर सरकारी दफ़्तरों में मीडिया के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया था। उत्तराखंड के मुख्य सचिव उत्पल कुमार द्वारा 27 दिसम्बर को जारी इस तीन पन्नों के आदेश में कहा गया था, “सभी सरकारी विभागों के सेक्शन कार्यालयों में अनाधिकृत लोगों/रिपोर्टरों का प्रवेश पूरी तरह वर्जित किया जाना है।”
इस आलेख में दो बार प्रश्न की तरह इस्तेमाल की गई शुरुआत की इन पंक्तियों को अंत में ‘विस्मय’ के साथ फिर दोहराना चाहिए, ”उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के मीडिया सलाहकारों की वह कौन सी मन:स्थिति होगी जिसने, बहुचर्चित उत्तरा बहुगुणा पंत मामले के बाद मुख्यमंत्री को उनके जनता दरबार में मीडिया और अन्य लोगों द्वारा कैमरे के इस्तेमाल को वर्जित कर देने की सलाह दी।”

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