टेलिग्राफ का मौलिक जुमला Pollgrimage यानी चुनावी तीर्थ, बाकी अखबार मोदी में ‘ध्‍यानमग्‍न’!

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


आज के लगभग सभी अखबारों में पहले पन्ने पर देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की फोटो छपी है जो गेरुआ वस्त्र पहने पांच मीटर लंबी और तीन मीटर चौड़ी ध्यान गुफा में हैं। अंग्रेजी दैनिक द टेलीग्राफ ने इस बारे में बताया है कि एएनआई ने यह तस्वीर ट्वीट की और लिखा, (अंग्रेजी से अनुवाद मेरा) “प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी केदारनाथ मंदिर के एक गुफा में ध्यानमग्न”। कोई 50 मिनट बाद जब सोशल मीडिया पर यह सवाल उठा कि कि क्या गुफा में उनके साथ फोटोग्राफर भी हैं तो एएनआई ने सूत्रों के हवाले से लिखा, “प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी दो किलोमीटर पैदर चलकर गुफा तक पहुंचे और मीडिया के आग्रह पर कैमरों से शुरुआती तस्वीर उतारने की इजाजत दी गई। प्रधानमंत्री अपना ध्यान कुछ घंटे में शुरू करेंगे जो कल सुबह तक चलेगा। गुफा के आस-पास किसी मीडिया वाले को नहीं रहने दिया जाएगा।”

इससे एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया, अगर प्रधानमंत्री अपना ध्यान कुछ घंटे बाद शुरू करेंगे तो ऊपर (टेलीग्राफ में) जो तस्वीर छपी है उसमें वे क्या कर रहे हैं? अखबार ने इसी सवाल को शीर्षक बनाया है। अखबार ने लिखा है कि इस पवित्र गुफा में एक शयनकक्ष, एक डाइनिंग प्लेस और आधुनिक शौचालय है। एएनआई की तस्वीर में मोदी तकिया के साथ बिस्तर पर बैठे हैं। लोगों ने यह भी पूछा कि रात में ध्यान के दौरान भी क्या चश्मा लगा रहेगा।

टेलीग्राफ ने इसके साथ ए सैड साइन (एक दुखद संकेत) शीर्षक से खबर छापी है। इसे दीपम चटर्जी ने लिखा है जो सेना के रिटायर कैप्टन हैं और 25 वर्षों से ध्यान की भिन्न परंपराओं के शिक्षक हैं। इसमें इन्होंने लिखा है कि, “आज ही के दिन (कल यानी शनिवार को) गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ था” और यह भी कि …. “वास्तविक योगी कहीं भी, किसी भी समय ध्यान लगा सकता है।” अखबार ने लाल कालीन पर चलकर मंदिर जाते मोदी जी की फोटो छापी है और लिखा है, इस पर कन्हैया कुमार ने ट्वीट किया, “… एक फकीरी तो है हमारे गप्पू जी में”।

कुल मिलाकर आज का दिन एक प्रधानमंत्री द्वारा वोट पाने के लिए किए गए प्रयासों के लिहाज से अनूठा है पर अखबारों में ऐसा वर्णन नहीं है। यही नहीं, टेलीग्राफ ने प्रधानमंत्री की एक फुलसाइज फोटो छापी है और पूछा है कि क्या यह परिधान आपको टैगोर की याद दिलाता है या “राजा के नए परिधान” की? (राजा के नए परिधान एक पुरानी कहानी है जो भिन्न देशों में भिन्न रूपों में चर्चित है और भारत में इसका एक रूप राजा नंगा है भी है)। अखबार ने बताया है कि कैसे एएनआई ने सूत्रों के हवाले उनके इस परिधान को खास बताया है और यह भी कि (अनुवाद मेरा) एएनआई ने लिखा है, “(यह परिधान) लगता है पश्चिम बंगाल और हिमाचल प्रदेश के मतदाताओं के लिए स्पष्ट संकेत है जो कल (इतवार को) मतदान करेंगे”।

द टेलीग्राफ के अनुसार चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद की अवधि में धर्म का इस तरह सार्वजनिक प्रदर्शन माकपा महासचिव सीताराम येचुरी की राय में आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन है। अखबार के मुताबिक, (अनुवाद मेरा), “धर्म निजी आस्था का मामला है और चुनाव आयोग ने कहा है कि इसका उपयोग वोट जुटाने के लिए नहीं किया जा सकता है। पर मोदी आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन खुलकर करते हैं। चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद और मतदान से पहले केदारनाथ में उनकी धार्मिक गतिविधियों के फुटेज टीवी पर खूब चल रहे हैं और चुनाव आयोग हमेशा की तरह अपने काम के समय में सोया हुआ है।”

आपको लगता है कि इन खबरों का चुनावी महत्व नहीं है या इन्हें आज छापने का प्रधानमंत्री की यात्रा से कोई संबंध नहीं है और इसका आज जिन केंद्रों पर मतदान है वहां असर नहीं होगा तो अच्छी बात है। पर मुझे लगता है कि यह सब गलत है। प्रधानमंत्री को इतना अनैतिक नहीं होना चाहिए था। इसी तरह, अगर आपको लगता है कि कांग्रेस के शिकायत की खबर छापकर अखबर निष्पक्ष हैं तो मैं कुछ नहीं कर सकता।

इंडियन एक्सप्रेस ने फोटो के साथ शिमला डेटलाइन से छपी कविता उपाध्याय की खबर में लिखा है, रुद्रप्रयाग के जिला मजिस्ट्रेट मंगेश घिलडियाल ने कहा कि प्रधानमंत्री के लिए रात का खाना गुफा में भेजा जाएगा जहां, उन्होंने आगे कहा कि बिजली का हीटर, साधारण बिस्तर, गद्दा, नहाने की छोटी सी जगह, अटैच्ड टॉयलेट और गर्म पानी के लिए बिजली का गीजर है। गुफा में टेलीफोन भी है तथा सुरक्षा कारणों से 30 मीटर और 100 मीटर पर दो तंबू लगाए गए हैं। अखबार ने आगे लिखा है, संडे एक्सप्रेस को पता चला है कि पीएमओ ने इस यात्रा के लिए चुनाव आयोग से अनुमति मांगी थी और इसे इस शर्त पर मंजूरी मिली है कि आदर्श आचार संहिता के किसी भी शर्त का उल्लंघन नहीं किया जाएगा।

आज के अखबारों में आपने चुनाव आयोग की खबर पढ़ी ही होगी। ऐसे में इस अनुमति का क्या और कितना मतलब है आप खुद समझिए और देखिए कि यह सूचना सिर्फ इंडियन एक्सप्रेस में है या आपके अखबार ने भी दी है। कहने की जरूरत नहीं है कि यह सूचना आम मतदाताओं के मन में प्रधानमंत्री द्वारा मनमानी या आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन की शंका को दूर करने का काम करेगी। अखबार के मुताबिक, उत्तराखंड भाजपा अध्यक्ष अजय भट्ट ने इसे “आध्यात्मिक और बिल्कुल निजी” यात्रा बताया है। यह सब शिमला डेटलाइन की एक ही खबर में है।

टाइ्म्स ऑफ इंडिया ने ध्यान मुद्रा में फोटो छापी है जो एनडीए विरोधी मोर्चा को सुदृढ़ करने के लिए टीडीपी प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू की राहुल गांधी, अखिलेश यादव और मायावती से मुलाकात से संबंधित खबर के साथ है। अखबार का फोटो कैप्शन है, थकाऊ चुनाव प्रचार अभियान का नेतृत्व करने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को केदारनाथ मंदिर में ध्यान लगाने के लिए एक ब्रेक लिया। इसकी तस्वीरें (सोशल मीडिया पर) वायरल हुईं तो विपक्ष ने उनपर आचार संहिता के उल्लंघन का आरोप लगाया। अखबार ने बताया है कि खबर अंदर के पन्ने पर है। पहले पन्ने पर चुनाव आयोग या आयुक्तों में मतभेद की खबर जरूर है लेकिन मोदी जी के इस वोट बटोरू ध्यान पर कोई और टीका टिप्पणी नहीं है। अखबार के पहले पन्ने पर आज आधा विज्ञापन है। अंदर के पन्ने पर टाइम्स ऑफ इंडिया ने विस्तार से खबर छापी है। दो फोटो और हैं तथा सिंगल कॉलम में विपक्ष का आरोप भी कि, “प्रधानमंत्री के दौरे का फुटेज चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन है”।

हिन्दुस्तान टाइम्स में प्रकाशित फोटो में प्रधानमंत्री विशेष परिधान में अकले पहाड़ी क्षेत्र में पैदल चलते दिखाए गए हैं और इसका शीर्षक है, “मोदी केदारनाथ में प्रार्थना करने गए”। कैप्शन में बताया गया है कि प्रधानमंत्री ने केदारनाथ मंदिर के शहर में विकास कार्यों का भी जायजा लिया और इतवार को बद्रीनाथ जाएंगे। इसमें चुनावी आचार संहिता की कोई चिन्ता नहीं है और ना यह बताया गया है कि इतवार को बद्रीनाथ जाएंगे तो वाराणसी में उनके चुनाव क्षेत्र में क्या होगा। अखबार ने यह उल्लेख भी नहीं किया है कि आज वाराणसी में मतदान है। यह सूचना पीटीआई के हवाले से है और अंदर कोई खबर होने की सूचना पहले पन्ने पर नहीं है।

हिन्दी अखबारों में दैनिक भास्कर ने भी गेरुआ वस्त्र में गुफा में ध्यान लगाए मोदी की फोटो छापी है। मुख्य शीर्षक है, “शिव की शरण में नमो”। इस फोटो के साथ सिंगल कॉलम की दो छोटी खबरों और एक फ्लैग शीर्षक में अखबार ने तीन बार बताया है कि प्रधानमंत्री ने 12250 फीट की ऊंचाई पर गुफा में ध्यान लगाया। पर एक बार भी यह नहीं बताया है कि यह आचार संहिता का उल्लंघन है या ऐसा कोई आरोप है। अखबार ने लिखा है कि पिछले साल बनी इस गुफा का संचालन इस साल से शुरू हुआ है। ऊपर आप पढ़ चुके हैं कि यह निजी यात्रा है और प्रधानमंत्री ने विकास कार्यों का जायजा लिया और अखबारों को यह चिन्ता नहीं है कि वे छुट्टी मना रहे हैं तो भारत सरकार के हेलीकॉप्टर और विमान का किराया दिए बगैर “टैक्सी की तरह” उपयोग कर रहे हैं और यह निजी यात्रा है तो विकास कार्यों की समीक्षा क्यों की और समीक्षा की तो निजी यात्रा कैसे हुई?

मैं जो अखबार देखता हूं उनमें राजस्थान पत्रिका अकेला है जिसने इस खबर को पहले पन्ने पर नहीं छापा है। हिन्दुस्तान ने गेरुआ वस्त्र में ध्यान लगाए प्रधानमंत्री की फोटो पर लाल रंग में आस्था भी चिपका दिया है। हि्दुस्तान ने चुनाव को यज्ञ भी कहा है और लीड का शीर्षक है, “सातवें चरण के साथ आज पूरा होगा लोकतंत्र का यज्ञ”। फोटो का शीर्षक है, प्रधानमंत्री मोदी की तीर्थयात्रा। नवभारत टाइम्स में फोटो तो लगभग वही है पर शीर्षक है, केदार के दर पर …। इस शीर्षक के साथ सूचना है, 23 मई को आम चुनाव के नतीजों से पहले पीएम नरेन्द्र मोदी शनिवार को गढ़वाली ड्रेस पहनकर केदारनाथ पहुंचे। उनके लिए रेड कार्पेट बिछाया गया। पूजा के बाद वे दो किलोमीटर चल कर गरुड़चट्टी पहुंचे जहां ध्यान कुटिया में रात भर साधना की। संबंधित खबर अंदर दो पन्नों पर है।

एक खबर का शीर्षक है, पीएम के केदारनाथ दौरे पर कांग्रेस ने जताया एतराज। अगले पन्ने पर और भी कई सूचनाएं हैं। पहला शीर्षक है, मोदी जहां गए, वह गुफा 990 रुपए में एक दिन के लिए बुक होती है। दूसरी खबर है, पंच केदार के करें दर्शन। कहने की जरूरत नहीं है कि इस मौके पर ये खबरें आम पाठक की दिलचस्पी की हो सकती हैं और देखिए आपके अखबार ने ये खबरें दी हैं या सिर्फ ध्यान के नाम पर चुनाव प्रचार ही कर रहा है।

अमर उजाला में भी वही फोटो है और लगभग वैसा ही कैप्शन। अंदर भी कई खबरें और फोटो हैं। इनमें एक, कांग्रेस ने आयोग से की शिकायत भी है। इसके ऊपर की खबर है, केदारनाथ के पुजारी ने दिया विजय का आशीर्वाद। अखबार ने बताया है कि जिस गरुरचट्टी में मोदी ध्यान कर रहे हैं वहां 34 साल पहले भी तपस्या कर चुके हैं। इस बारे में जागरण की खबर अलग है। जागरण की खबर है, “यादें ताजा करने गरुड़चट्टी नहीं पहुंच पाए मोदी”। जून 2013 की आपदा से पूर्व केदारनाथ यात्रा का प्रमुख पड़ाव रही गरुड़चट्टी अब दोबारा आबाद हो चुकी है। गरुड़चट्टी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी पसंदीदा जगह रही है। 1985-86 में मोदी ने गरुड़चट्टी के पास ही एक गुफा में ध्यान-साधना के लिए कुछ वक्त गुजारा था। इसलिए उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री अपनी केदारनाथ यात्रा के दौरान इस बार गरुड़चट्टी भी जाएंगे। लेकिन, तमाम कारणों के चलते ऐसा संभव नहीं हो पाया (अब आप तय कीजिए कि सही क्या है)।

गेरुआ वस्त्र में गुफा में ध्यान लगाए प्रधानमंत्री की फोटो लगभग सभी अखबारों में एक सी है और दो कॉलम में ही छपी है। जागरण ने दो कॉलम की फोटो टॉप पर छापा है और इसके साथ एक कॉलम की खबर भी है और शीर्षक तीन कॉलम में लगाया है। कैप्शन है, “विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ धाम के पास ध्यान गुफा में साधना में लीन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी”। खबर का शीर्षक है, “नतीजों का इंतजार, गुफा में मोदी का ध्यान”। इसमें यह नहीं बताया गया है कि आज भी कुछ जगह मतदान है और अभी चुनाव खत्म नहीं हुए हैं। वाराणसी में प्रधानमंत्री का अपना चुनाव आज ही है और यह सब आदर्श आचार संहिता के लिहाज से अनैतिक है।

उल्टे खबर जिस भक्ति भाव से लिखी गई है वह पढ़ने लायक है, सातवें एवं अंतिम चरण के मतदान से ठीक एक दिन पहले केदारनाथ धाम पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पूरी तरह से आध्यात्मिक रंग में रंगे नजर आए। इस दौरान उन्होंने गर्भगृह में रुद्राभिषेक किया। मंदिर की परिक्रमा के बाद अपने ड्रीम प्रोजेक्ट का निरीक्षण किया। करीब एक घंटे तक निर्माणाधीन शंकराचार्य समाधि स्थल, सरस्वती घाट और सुरक्षा दीवार का जायजा लिया। करीब दो बजे वह साधना के लिए ध्यान गुफा में चले गए। रात को वहीं विश्राम करेंगे। … मोदी हेलीपैड से पैदल ही मंदिर पहुंचे और पूजा अर्चना की। पुनर्निर्माण कार्यो के निरीक्षण के बाद मोदी ने अति विशिष्ट अतिथि गृह में कुछ देर विश्राम किया। दोपहर 1:40 बजे वह एक किमी पैदल चलकर ध्यान गुफा पहुंचे। पांच मीटर लंबी और तीन मीटर चौड़ी गुफा में साधना कर रहे मोदी सिर्फ फलाहार और दूध लेंगे। सायं साढ़े सात बजे उन्हें बाबा केदार की सायंकालीन आरती में शामिल होना था, पर खराब मौसम के कारण वे नहीं आए।

टेलीग्राफ की खबर में देखिए चुनावी तीर्थ के लटके-झटके : द टेलीग्राफ का आज का पहला पन्ना। दोनों प्रमुख खबरों की प्रस्तुति देखिए। शीर्षक, कैप्शन और उसमें हाईलाइट तथा अंत में सीताराम येचुरी की टिप्पणी। मुझे नहीं लगता कि आजकल खबर किसी को दिखानी होती है या किसी से पास कराना होता है। फिर हिन्दी अखबारों में इतनी भक्ति क्यों है? और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पत्रकारों को विदेश नहीं ले जाने की नई परंपरा शुरू की थी पर मंदिर में, निजी यात्रा पर और धार्मिक व आस्था के मामलों में भी पत्रकार, फोटोग्राफर सब कैसे पहुंच जाते हैं यह मुझे आज तक समझ में नहीं आया। टेलीग्राफ ने आज एएनआई की सूत्रों की पत्रकारिता की भी अच्छी खबर ली है। दूसरी फोटो दिल्ली की उस प्रेस कांफ्रेंस की है जिसमें कुछ बोले नहीं।


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