बांटने वाली खबर का जोड़ने वाला शीर्षक

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :

मनजिन्दर सिंह सिरसा


आज अंग्रेजी दैनिक द टेलीग्राफ के पहले पन्ने की मुख्य खबर का शीर्षक है, दूसरे छंद का दिन। इसके नीचे लाल अक्षरों में लिखा है, हिन्दु बौद्ध शिख जैन पारसिक मुसलमान खृष्टानी और फिर बताया गया है कि ये शब्द रवीन्द्र नाथ टैगोर के गीत भारत भाग्य विधाता के दूसरे पद/छंद के हैं। इस गीत का पहला छंद राष्ट्रगीत के रूप में अपनाया गया है। इसके साथ खबर यह है कि मुसलमानों का साथ देने के लिए सिख और ईसाई भी सामने आए और युवा एजंडा सेट कर रहे हैं। इस तरह, बताया गया है कि भारतीय जनता पार्टी के पुराने, मजबूत सहयोगी, शिरोमणि अकाली दल और राम विलास पासवान की लोकजनशक्ति पार्टी ने सोमवार को सीएए-एनआरसी के विरोध को नजरअंदाज करने पर जोरदार एतराज किया।

इस आशय की बाईलाइन खबर अखबार ने नई और पटना डेटलाइन से अलग से छापी है। मुख्य शीर्षक सिर्फ इस तथ्य पर आधारित है कि सिखों ने भाजपा का साथ छोड़ा और मुसलमानों के समर्थन में आगे आए। टेलीग्राफ ने इसकी जगह अकाली दल के मनजिन्दर सिंह सिरसा का बयान बड़े अक्षरों में छापा है। बीच में कोलकाता के सेंट पॉल्स केथेड्रल की तस्वीर है जिसका कैप्शन है, संशोधत नागरिकता कानून के खिलाफ मार्च के लिए सोमवार को हजारों लोग कोलकाता के पॉल्स केथेड्रल पहुंचे। दूसरी ओर ईसाई समूहों का एक कोट है जो बंगाल के राज्यपाल को दिए गए एक ज्ञापन से लिया गया है।

मनजिन्दर सिंह सिरसा का बयान (अनुवाद मेरा) इस प्रकार है, भाजपा (नेताओं) से मुलाकात में हमसे कहा गया कि हम सीएए पर अपने स्टैंड पर पुनर्विचार करें। पर हमलोगों ने ऐसा करने से मना कर दिया। सिरोमणि अकाली दल इस दृढ़ विचार का है कि मुसलमानों को सीएए से अलग नहीं रखा जा सकता है। दूसरी ओर प्रकाशित इसाई समूहों का कोट इस प्रकार है, (अनुवाद) कुछ समूह धार्मिक अल्पसंख्यकों को खत्म करने और हमारे लोकतांत्रिक, संप्रभु तथा धर्मनिरपेक्ष भारत को एक तथाकथित ‘हिन्दू राष्ट्र” में बदलने की खुली अपील कर रहे हैं। ऐसी दमनकारी अपीलों से अल्पसंख्यक असुरक्षित महसूस करते हैं।

जैसा कि टेलीग्राफ ने लिखा है, राष्ट्रगीत पूरे गीत का पहला छंद ही है। आज दूसरे छंद की बात हो रही है तो पेश है दूसरा छंद (बांग्ला से देवनागरी में किया गया है इसलिए कुछ शब्द अटपटे लग सकते हैं)। इस गीत के कुल पांच पद हैं :

अहरह तव आह्वान प्रचारित
शुनि तव उदार वाणी
हिन्दु बौद्ध शिख जैन
पारसिक मुसलमान खृष्टानी
पूरब पश्चिम आशे
तव सिंहासन पाशे
प्रेमहार हय गाँथा
जन गण ऐक्य विधायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
जय हे जय हे जय हे

यह अलग बात है कि, देश को जोड़ने वाली इस कविता को कुछ लोग अंग्रेज़ों की प्रशंसा में लिखा मानते हैं। राजस्थान के उस समय के राज्यपाल कल्याण सिंह ने राजस्थान विश्वविद्यालय के 26वें दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए पूछा था कि ‘जन गण मन अधिनायक जय हो’ में अधिनायक किसके लिए है। उन्होंने कहा था कि यह ब्रिटिश समय के अंग्रेज़ी शासक का गुणगान है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रगान में संशोधन होना चाहिए। दैनिक भास्कर की एक खबर है, आखिर क्यों होता है रबीन्द्रनाथ टैगोर के जन गण मन पर विवाद, जानिए अभी। इसके अनुसार, 1911 तक भारत की राजधानी बंगाल हुआ करता था।

सन 1905 में जब बंगाल विभाजन को लेकर अंग्रेजों के खिलाफ बंग-भंग आंदोलन के विरोध में बंगाल के लोग उठ खड़े हुए तो अंग्रेज राजधानी को दिल्ली ले गए। 1911 में दिल्ली को राजधानी घोषित कर दिया। अंग्रेजों के खिलाफ पूरे देश में विद्रोह हो रहा था। अंग्रेजों ने इंग्लैंड के राजा को भारत बुलाया ताकि लोग शांत हो जाए। इंग्लैंड के राजा जॉर्ज पंचम 1911 में भारत में आए। उस समय भारत की अंग्रेज सरकार ने रवीन्द्रनाथ टैगोर पर जॉर्ज पंचम के स्वागत में एक गीत लिखने के लिए दबाव बनाया।

1911 में टैगोर का परिवार अंग्रेजों के काफी नजदीक हुआ करता था। परिवार के बहुत से लोग ईस्ट इंडिया कंपनी में नौकरी करते थे। अंग्रेज अधिकारियों ने उनके परिवार के सदस्यों के जरिए उनपर गीत लिखने के लिए दबाव डाला। रवीन्द्रनाथ टैगोर ने मन से या बेमन से जन गण मन अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता गीत लिखा। इस गीत के सारे के सारे शब्दों में अंग्रेजी राजा जॉर्ज पंचम का गुणगान है। इसका अर्थ समझने पर पता चलता है कि यह गीत अंग्रेजों की खुशामद में लिखा गया था। इंग्लैंड लौट कर इस गीत का अंग्रेजी में अनुवाद करवाया गया। अंग्रेजी अनुवाद सुनकर वे बहुत खुश हुए और कहा कि इतना सम्मान और इतनी खुशामद तो आज तक मेरे देश में नहीं हुई। वे बहुत खुश हुए। और इस तरह रवीन्द्र नाथ टैगोर को नोबेल पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला किया गया।

आधुनिक और राष्ट्रवादी भारत में भले राष्ट्रगीत पर सवाल उठाया जाए पर मुझे यकीन नहीं हुआ। यह तथ्य है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फ़ौज के लड़ाकों ने भी राष्ट्रगान के तौर पर अपनाया था। और यह ऐसे ही नहीं हो गया होगा। बीबीसी ने पंजाब विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर एम राजीवलोचन के हवाले से इस बारे में लिखा है, स्वतंत्रता से पहले 1937 में प्रांतों में पहली चुनी हुई सरकारों ने भी इसे अपनाया था। स्वतंत्र भारत के गणराज्य ने काफी चिंतन-मनन के बाद इसे 1950 में अपनाया। इसके बावजूद, 2004 में साध्वी ऋतंभरा ने ‘जन गण मन अधिनायक जय हे’ को ‘गद्दारी का गाना’ का दर्जा दे डाला था। साध्वी ऋतंभरा और आज के अनपढ़ और कुपढ़ संवाददाताओं को कौन बताए कि यह गाना पहली बार 27 दिसंबर 1911 को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन के दूसरे दिन का काम शुरू होने से पहले गाया गया था।

‘अमृत बाज़ार पत्रिका’ में यह बात साफ़ तरीके से अगले दिन छापी गई थी। पत्रिका में कहा गया था कि कांग्रेसी जलसे में दिन की शुरुआत गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर द्वारा रचित एक प्रार्थना से की गई। ‘बंगाली’ नामक अखबार में खबर आई कि दिन की शुरुआत गुरुदेव द्वारा रचित एक देशभक्ति के गीत से हुई। टैगोर का यह गाना संस्कृतनिष्ठ बंग-भाषा में था यह बात बॉम्बे क्रॉनिकल नामक अखबार में भी छपी। जॉर्ज की प्रशंसा भी की गई और उन्हें धन्यवाद भी दिया गया। तथ्य यह है कि ‘जन गण मन’ के बाद जॉर्ज पंचम की प्रशंसा में भी एक गाना गाया था। यह दूसरा गाना रामभुज चौधरी द्वारा रचा गया था, सम्राट के आगमन के लिए। यह हिंदी में था और इसे बच्चों ने गाया: बोल थे, ‘बादशाह हमारा’। कुछ अखबारों ने इसके बारे में भी खबर दी।

आप रामभुज के बारे में नहीं जानते होंगे। उस वक्त भी लोग कम ही जानते थे। दूसरी ओर, टैगोर जाने-माने कवि और साहित्यकार थे। सो सत्ता-समर्थक अख़बारों ने खबर कुछ इस तरह दी कि जिससे लगा कि सम्राट की प्रशंसा में जो गीत गाया गया था वह टैगोर ने लिखा था। इस गाने के बारे में इसके रचियता टैगोर ने 1912 में ही स्पष्ट कर दिया कि गाने में वर्णित भारत भाग्य विधाता के केवल दो ही मतलब हो सकते हैं: देश की जनता, या फिर सर्वशक्तिमान ऊपर वाला—चाहे उसे भगवान कहें, चाहे देव। टैगोर ने इसे खारिज़ करते हुए साल 1939 में एक पत्र लिखा, ”मैं उन लोगों को जवाब देना अपनी बेइज्जती समझूँगा जो मुझे इस मूर्खता के लायक समझते हैं।” इतिहास के तथ्यों को नकार देना इतना आसान नहीं है और गूगल के जमाने में 1911 की बात 2004 और बाद के बयानों से गलत साबित हो जाए तो गलत नहीं हो जाएगी।

द टेलीग्राफ जिस खबर का ऐसा बढ़िया और अनूठा शीर्षक लगाया है वह मैं जो सात अखबार देखता हूं उनमें से पांच ही हिन्दी अखबारों में पहले पन्ने पर है। दो हिन्दी अखबारों – अमर उजाला और राजस्थान पत्रिका में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। जिसमें है उसमें इस प्रकार है –

1. भाजपा ने दिल्ली में अकाली दल से किया किनारा – नवोदय टाइम्स – (दो कॉलम की लीड)
2. दिल्ली में भाजपा और अकाली गठबंधन टूटा – दैनिक जागरण, सिंगल कॉलम
3. दिल्ली में भाजपा और शिअद गठबंधन टूटा – हिन्दुस्तान सिंगल कॉलम (टॉप)
4. अकाली नहीं लड़ेंगे चुनाव, नागरिकता कानून वजह – नवभारत टाइम्स, लीड तीन कॉलम
5. दिल्ली महाभारत 2020 (फ्लैग शीर्षक), शिअद नहीं लड़ेगी चुनाव, केजरीवाल के खिलाफ कांग्रेस से रोमेश शबरवाल – दैनिक भास्कर, दो कॉलम



 


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