बाराबंकी : सियासी नफ़रतों के दौर में कौमी एकता का दयार, जहां “राम और रब” में कोई फ़र्क नहीं



मुल्क में चुनावी दौर चल रहा है। सियासी दांव-पेंच जोरों पर हैं। एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने वाले नेताओं द्वारा हिंदुस्तान को मजबूत बनाने के ख्वाब दिखाए जा रहे हैं। इसी के साथ सियासी लोग अली-बजरंगबली का नाम लेकर देश में वोट के लिए धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश कर रहे हैं। ऐसे हालात में पीर-फकीरों की दरगाहें मुल्क को कौमी एकता के सूत्र में पिरोने का काम कर रहीं हैं। हिन्दुस्तान की सरजमीं पर कदम-कदम पर इंसानियत का पैगाम देती दरगाहें हैं। ऐसी ही एक दरगाह हाजी वारिस अली शाह की है।

जिस दौर में सियासत ने दिलों में नफरत भरने का काम किया, ऐसे दौर में देवां शरीफ स्थित वारिस अली शाह की मजार पर एक अलग ही नजारा देखने को मिलता है। मंदिर-मस्जिद-गुरुद्वारा-गिरजाघर में जाने वाले लोग यहां एक ही छत के नीचे हाथ फैलाए दुआ मांगते दिखते हैं। गंगा जमुनी तहजीब की जीती जागती मिसाल है यह दरगाह। सदियों पहले हिन्द की धरती पर जन्म लेने वाले वारिस अली शाह को उनके चाहने वाले वारिस पाक के नाम से पुकारते हैं। वारिस अली शाह ने ‘जो रब है वही राम है’ का संदेश देकर कौमी एकता की अलख जगाई थी।

राजधानी लखनऊ से करीब 30 किमी की दूरी पर स्थित बाराबंकी जिले का एक कस्बा देवां शरीफ सदियों से मजहबी एकता की बागडोर सम्भाले है। लखनऊ के रास्ते होकर देवां शरीफ पहुंचते ही दरगाह जाने के लिए सबसे पहले ‘कौमी एकता द्वार’ से गुजरेंगे तो लगेगा कि जैसे आप जाति-धर्म को पीछे छोड़ आए हैं। इस द्वार से दरगाह की दूरी लगभग सौ मीटर है। इस बीच जायकेदार हलवा, पराठा, सुगन्धित लोबान, सुरमा और तमाम-तरह के सामनों से सजी दुकानें देखने को मिलती हैं। दरगाह के करीब पहुंचते ही गुलाब की खुशबू और चादरों की चमक श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करती है। जियारत करने आए लोग इन दुकानों से चादर, फूल, मिठाई लेकर दरगाह में प्रवेश करते हैं। दरगाह में घुसते ही एक अलग तरह की रूहानियत का एहसास होता है। इस दरगाह में जियारत करने आए लोग अपनी मन्नत मांगने बहुत दूर-दूर से यहां आते हैं।

वारिस पाक के समय से खेली जा रही होली

कहा जाता है कि वारिस अली शाह के मानने वाले जितने मुस्लिम थे उतने ही हिन्दू भी थे। वारिस पाक सारी जिंदगी इस्लाम के तौर-तरीके से जिये, लेकिन उनका कहना था कि भले ही आप किसी मजहब में आस्था रखो लेकिन साथ ही दूसरे मजहबों को भी पूरा सम्मान दो। उनके मुरीद हिन्दू-मुस्लिम सभी थे। होली के मौके पर उनके चाहने वाले उनके पास रंग लेकर जाते थे। वे उन रंगों को अपने पास रख लेते और त्योहार की मुबारकबाद देते। 1905 ईसवी के करीब उन्होंने शरीर त्याग दिया। तबसे लेकर आज तक होली के हर मौके पर इस दरगाह में होली खेली जाती है। पहले रंगों की बजाय फूलों की होली खेली जाती थी। बताते हैं कि होली के मौके पर पूरे देश से लोग यहाँ आते हैं। उन्हीं में से एक सरदार परमजीत सिंह हैं जो हर वर्ष दिल्ली से आकर दरगाह में होली खेलते हैं और साथ ही लोगों को गुझिया का प्रसाद भी खिलाते हैं।

मशहूर हैं कई किस्से

वारिस पाक जन्म से ही बहुत बुद्धिमान थे। बचपन में उनको प्यार से मिट्ठन मियां भी कहा जाता था। मिट्ठन मियां ने सात साल की उम्र में ही पूरा कुरान याद कर लिया यानी हाफिजे कुरान हो गए। इनका अधिकतर समय इबादत में गुजरता। कभी कभी ये कई दिनों तक इबादत के लिए जंगल चले जाते। वारिस पाक ने दुनिया के बहुत सारे देशों की यात्रा कीं। ये हमेशा नंगे पैर चलते थे। कहा जाता है कि इनके पैर में कभी धूल नहीं लगती। इनके गुरु खादिम अली शाह थे। इनकी मजार लखनऊ के क्रिश्चियन कॉलेज परिसर में बनी हुई है। खादिम अली शाह की मौत के बाद बुजुर्गों ने राय-मशविरा करके वारिस अली शाह को पगड़ी बांध दी, जिसके बाद से इन्होंने लोगों को अपना शिष्य बनाना शुरू किया। इनका शिष्य बनने के लिए किसी मजहब की सीमाएं नहीं थीं। अपने शिष्यों को ये इंसानियत का पाठ पढ़ाते। इन्होंने कहा कि इस सृष्टि को चलाने वाला सिर्फ एक ही है तो फिर आपस में भेदभाव कैसा।

कहते हैं कि एक बार एटा के मिलौली स्टेट के राजा ठाकुर पंचम सिंह उनसे मिले और उनका शिष्य बनना चाहा। वारिस अली शाह ने ठाकुर पंचम सिंह से कहा कि अगर तुम शराब छोड़ दो तो मैं तुम्हे अपना शिष्य बना लूं। ठाकुर पंचम सिंह ने शराब छोड़ दी। एक बार पंचम सिंह ने सोचा कि क्यों न शराब पी जाए। वारिस पाक को तो पता चलेगा नहीं। जैसे ही उन्होंने शराब की बोतल को हाथ लगाया उस बोतल में ठाकुर पंचम सिंह को वारिस पाक का चेहरा नजर आने लगा। उन्होंने उसी वक्त उस बोतल को तोड़ दिया और शराब न पीने की कसम खाई।

ऐसा ही एक किस्सा ठाकुर पंचम सिंह के पिता के समय का है, जब उन्होंने अपने बेटे को बहलाने-फुसलाने का आरोप वारिस पाक पर लगाया। वारिस पाक ने राजा सहित सारी प्रजा को आंख बंद करने के लिए कहा। जैसे ही सभी ने आंख बंद किया। सभी को वारिस पाक कृष्ण के रूप में बंशी बजाते हुए दिखाई दिए। यह दृश्य देखकर राजा अपनी प्रजा सहित वारिस पाक के सामने नतमस्तक हो गए। ऐसे ही तमाम चमत्कारिक किस्से वारिस पाक के बारे में सुनने को मिलते हैं। बताते हैं कि ग्वालियर नरेश सहित देश के तमाम राजघराने इनमें आस्था रखते थे। इस दरगाह पर नेहरू से लेकर इंदिरा गांधी, अटल बिहारी बाजपेयी जैसी राजनीतिक हस्तियां भी चादर चढ़ाने आती रहीं हैं।

जियारत करने देश-विदेश से आते हैं लोग

माना जाता है कि इस मजार पर मत्था टेकने से सभी मुरादें पूरी होती है। मत्था टेकने और चादर चढाने के बाद मज़ार के बहार बने चबूतरे पर मन्नत मांग धागा बांधा जाता है। वारिस पाक की मजार पर रहने वाले मुरीद अजमत शाह बताते है कि जिस भी किसी श्रद्धालु की मुराद पूरी होती है उसे फिर से बाबा के दर्शन करने आना चाहिए साथ ही कोई भी एक बंधे धागे को खोलना चाहिए। हाजी वारिस अली शाह की याद में हर साल बहुत ही भव्य मेले का आयोजन होता है जिसमें देश-विदेश से श्रद्धालु आते हैं। इस मेले का मुख्य आकर्षण दरगाह पर चादर चढ़ाना होता है। बनारसी सिल्क की चादर को वारिस पाक तथा उनके पिता हाजी कुर्बान अली शाह की मजार पर चढ़ाया जाता है। इस दौरान होने वाली कव्वाली दरगाह में जियारत करने आए लोगों को रूहानी सुकून देती हैं।

कस्बे में दिखती है भाईचारे की झलक

करीब तीस हजार की आबादी वाले कस्बा देवां में सभी मजहब के लोग आपसी प्यार और भाईचारे से रहते हैं। कहा जाता है कि हिन्दू-मुस्लिम दोनों ही धर्मों के लोगों ने इस दरगाह के निर्माण में अहम भूमिका अदा की। वकील बाबू कन्हैया लाल दरगाह की देखभाल करने वाले ट्रस्ट के पहले सेक्रेटरी थे। यहाँ के 80 वर्षीय बुजुर्ग रामशंकर बताते हैं कि आज तक इस कस्बे में कभी भी किसी तरह का सम्प्रदायिक तनाव देखने को नहीं मिला। वो कहते हैं कि भले ही सियासत दिलों में नफरत फैलाने का लाख जतन कर ले, लेकिन इस देश में वारिस पाक जैसी हस्ती ऐसे लोगों को कभी कामयाब नहीं होने देगी। यहाँ अपने नाम के आगे वारसी लगाने वालों में हिन्दू भी हैं और मुस्लिम भी। यही वजह है कि यहाँ उन्माद फैलाकर सियासी रोटियां सेंकने वालों की एक नहीं चलती।

बदहाली पर नहीं जाती किसी की नजर

यह कस्बा बाराबंकी लोकसभा क्षेत्र में आता है। इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने अपनी मौजूदा सांसद प्रियंका रावत को बदलकर जैदपुर से मौजूदा विधायक उपेंद्र सिंह को प्रत्याशी बनाया है। सपा-बसपा गठबंधन ने पूर्व सांसद रामसागर रावत पर भरोसा जताया है। वहीं कांग्रेस ने पीएल पुनिया के बेटे तनुज पुनिया को उम्मीदवार घोषित किया है। इन दिनों चुनाव नजदीक आने के चलते लगभग सभी प्रत्याशी वारिस पाक की दरगाह पर जीतने की दुआएं मांगने आते हैं, हालांकि आज तक किसी भी जनप्रतिनिधि की नजर इस कस्बे की बदहाली पर नहीं गई।

वारिस अली शाह पर एक किताब लिखने वाले फैयाज हुसैन वारसी कहते हैं कि यह दरगाह इतनी प्रसिद्ध है फिर भी आज तक यह कस्बा कई सुविधाओं से वंचित है। यहां न ही कोई रेलवे स्टेशन है और न ही कोई बस स्टॉप। कस्बे को लखनऊ और राष्ट्रीय राजमार्ग से जोड़ने वाली सड़कों की स्थिति भी बहुत बेहतर नहीं। उच्च शिक्षा का आलम यह है कि यहां एक भी डिग्री कॉलेज नहीं है। मजबूरन लड़कियों को तेरह किमी दूर बाराबंकी में पढ़ने जाना पड़ता है। फैयाज हुसैन वारसी बताते हैं कि चुनाव के समय तमाम नेता यहाँ चादर चढ़ाने आते हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद कोई भी इस कस्बे की सुध नहीं लेता। इसके बावजूद यह कस्बा वारिस पाक की अपनी विरासत पर गर्व करता है।


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