फूलन देवी की मां ने जारी किया चंबल का पहला मेनिफेस्टो, छह जिलों के कायाकल्‍प का खाका



जालौन: कभी वीरता, कभी बगावत का प्रतीक रहा चंबल बदहाली से बदलाव की राह देख रहा है। सीरत के साथ ही सूरत बदलने की कोशिश का शंखनाद भी कर दिया गया है और इस बदलाव की नींव बन सकता है ‘चंबल मेनिफेस्टो 2019’, जो आज जारी कर दिया गया है।

‘चंबल मेनिफेस्टो 2019’ बीहड़ से संसद तक का सफर तय करने वाली फूलन देवी के जालौन स्थित गांव शेखुपुरा गुढ़ा से जारी किया गया है। ये मेनिफेस्टो किसी और ने नहीं बल्कि फूलन देवी की मां मुला देवी के हाथों जारी हुआ है। 2019 चुनाव के चलते सभी राजनैतिक दलों ने अपना मेनिफेस्टो जारी कर रही हैं। वादों-दावों का दौर में ऐसा पहली बार हुआ है जब सदियों से कई गौरवपूर्ण और स्याह इतिहास को खुद में दफन किए चंबल का मेनिफेस्टो लाया गया है।

अपने आप में तीन राज्यों के कई इलाकों को समेटे मेनिफेस्टो में फूलन देवी के यूपी के जालौन स्थित शेखुपुरा गांव से लेकर मध्यप्रदेश, राजस्थान के चंबल के विकास के लिए कई सुझाव और समस्याओं को बताया गया है। शिक्षा, रोजगार, सड़क, पानी जैसी कई समस्यायें हैं, जिसके जड़ से समाने से चंबल के लोगों का जीवन स्तर आज भी किसी तीसरी दुनिया के देश के बदहाल इलाके की तरह है। चंबल में फिल्मसिटीबनाने की भी मांग की गई है।

फूलन की मां को इसलिये चुना

बीहड़ ने बागी, दस्यु से लेकर विधायक, सांसद, सीएम तक दिए लेकिन चंबल की सूरत वैसी ही रही। यहां तक कि कई इलाके ऐसे हैं जहां आज भी पानी तक नदियों से पीया जाता है। ठीक से रोटी, कपड़ा और मकान तो छोडिए यहां पीने का साफ पानी तक मुहैया नहीं है। फूलन की मां भी इस बदहाली का शिकार हैं। बेटी ने बीहड़ से लेकर संसद तक अपनी धमक पहुंचाई लेकिन फूलन की मां दाने-दाने को मोहताज हैं। उन्हें गांव के लोग और सामाजिक संगठन खाना-पीना मुहैया कराते हैं। फूलन की मां मुला देवी ने कहा कि उन्होंने जिस रूप में बचपन से चंबल देखा, उसमें सदियां बीतने के बाद भी बहुत कुछ नहीं बदला है।

सैकड़ों लोगों से बात कर चंबल मेनिफेस्टो बनाने वाले एक्टिविस्ट शाह आलम बताते हैं कि चंबल का जितना दोहन हो गया, लेकिन अब नहीं हो। समझने और शोध के लिए चंबल की 2800 किलोमीटर की सायकिल यात्रा कर चुके शाह आलम कहते हैं कि चंबल बड़े बदलाव की राह देख रहा है। सूरत बदलने को वह लगातार प्रयासरत हैं। कई सामाजिक संगठनों, बड़े राजनेताओं से इसके लिए लम्बी बातचीत हुई है।

कुछ ऐसा रहा है चंबल

महजनपद काल में इस धरा ने द्रोपदी की बगावत को देखा। तब पहली बार यहां चंबल के किनारे चमड़ा सुखाने की परंपरा को बंद कराया गया। शायद यह पर्यावरण बचाने का आदि संदेश था। मध्यकाल में भी दिल्ली की सत्ता कभी इस इलाके को काबू में नहीं रख सकीं। दिल्ली के बगावती तब चंबल के बीहड़ों में शरण लेते। फिर तो यहां के बीहड़ बगावत का एक सिलसिला ही बन गए। आजादी आंदोलन में अंग्रेजों को सबसे बड़ी चुनौती चंबल के इलाकों में इसी रवायत के चलते मिली। इमरजेंसी भी चंबल की बगावत के आगे पानी मांग गई थी। व्यक्तिगत उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ भी बगावत की अभिव्यक्ति चंबल में जारी रही। बंदूक उठाकर बीहड़ कूदना सरकार, राजनीति और पुलिस के संरक्षण में पोसे जाने वाले जालिमों को मटियामेट करने के संकल्प को परिभाषित करने वाला मुहावरा बन गया।

‘नर्सरी आफ सोल्जर्स’ के नाम से विख्यात चंबल वह इलाका है जहां के लोग देश के लिए बलिदान हो जाने के जुनून के चलते सबसे ज्यादा संख्या में सेना और अन्य बलों में शामिल होते हैं। इस इलाके में शांति के दिनों में भी किसी न किसी गांव में सरहद पर तैनात किसी जवान को तिरंगे में लपेटकर लाया जाता है।

चंबल पुरातात्विक सभ्यता की भी खान है। संसद का चेहरा यहां की इसी महान सभ्यता का मुखौटा है। बीहड़ के कोने-कोने में सैकड़ों साल के इतिहास की स्मृतियों को सीने में दबाये भग्नावशेष बिखरे पड़े हैं। 900 किमी लंबी चंबल नदी के साथ दौड़ते बीहड़ों और जंगलों में क्रांतिकारियों, ठगों, बागियों-डाकुओं के न जाने कितने किस्से दफ्न हैं। चंबल की यह रहस्यमय घाटी हिन्दी सिनेमा को हमेशा लुभाती रही है। लिहाजा इस जमीन को फिल्मलैण्ड कहा जाता है। आजादी के बाद इस पृष्ठभूमि पर बनी तमाम फिल्में सुपरहिट रहीं।

पीला सोना यानी सरसों से लदे इसके खाई-भरखे, पढ़ावली-मितावली, बटेश्वर, सिंहोनिया के हजारों साल पुराने मठ-मन्दिर, सबलगढ़, धौलपुर, अटेर, भिंड के किले, चंबल सफ़ारी में मगर, घड़ियाल और डॉल्फिनों के जीवन्त दृश्य और चाँदी की तरह चमकती चंबल के रेतीले तट और स्वच्छ जलधारा… और भी बहुत कुछ है चम्बल में जिस पर फिल्मकारों और पर्यटकों की अभी दृष्टि पड़ी नहीं है। दस्यु समस्या का बहाना बना कर बहुत ही उर्वर चंबलभूमि को एक साजिश के तहत ‘डार्कजोन’ में रखा गया है। सरकारें आती रही और जाती रहीं, कैलैंण्डर बदलते रहे, नही बदली तो सिर्फ पचनद घाटी की किस्मत।

ये हैं सुझाव और मांगें

  1. चंबल की बुनियादी समस्याओं का अध्ययन और तत्काल निदान के लिए ‘चंबल आयोग’ बनाया जाए
  2. चंबल की ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित कर पर्यटन मानचित्र से जोड़ा जाय और शाम को लाइट एंड शो, सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाए
  3. चंबल संस्कृति में रची बसी लोकगीतों को आडियो-वीडियों के मार्फत सहेजा जाए
  4. चंबल विशेष पैकेज के तहत ‘चंबल विकास बोर्ड’ का गठन किया जाय और लोकनायक जेपी के सुझावों को जमीन पर उतारा जाए
  5. चंबल में बनाए जा रहे चंबल एक्सप्रेसवे चंबल के लिए और उसकी रवानगी के लिए खतरनाक साबित हो सकता है इसलिए इसे बेहद सावधानी से और स्थानीय लोगों की राय के बाद ही बनाया जाना चाहिए
  6. यहां आज भी व्याप्त मैला धोने की कुप्रथा चल रही है, उसे तत्काल बंद कर उचित पुनर्वास किया जाए
  7. पुल व सड़क और विद्युत से चंबल के बीहड़ में बसे गांवों को जोड़ा जाए
  8. रोजगार के अवसर पैदा कर पलायन को रोका जाए
  9. इस फिल्मलैण्ड में ‘चंबल फिल्मसिटी’ का स्थापना की जाए। यहां जो भी फिल्में बनें उसकी आमदनी का 30 फीसद यहीं के विकास पर खर्च किया जाए
  10. चंबल की गौरवशाली पहचान दुनिया के सामने लाने के लिए यहां के जंग आजादी के शहीदों-क्रांतिकारियों भारतीय सेना के शहीदों को के उनके गांव में उन हुतात्माओं की याद में डिजीटल पुस्तकालय, कालेज खोला जाए
  11. जगह-जगह स्कूल, अस्पताल, टेक्नीकल कालेज खोला जाए
  12. गरीब भूमिहीनों के लिए कृषि पट्टे आवंटित किये जाएं
  13. बकरी, भैंस, कुक्कुट पालन आदि स्वरोजगार उद्योगों को बढ़ाने के लिए नौजवानों को प्रेरित किया जाए
  14. पेड़ पौधे लगाकर घाटी का सुंदरीकरण किया जाए
  15. दिल्ली सहित तमाम महानगरों में चंबल भवन बनाया जाय, जिसमें चंबल घाटी से जाकर किसी भी प्रवेश परिक्षा/ नौकरी इंटरव्यू के लिए ठहरने की एक दिन पहले से व्यस्था हो
  16. भारतीय सेना में चंबल रेजीमेंट जो भारतीय संसद में रखा गया था उसे तत्काल अमल में लाया जाए
  17. अरसे से प्रस्तावित परियोजना पचनद बांध बनाकर व नहरें निकाल कर चंबल और बुंदेलखंड को हरा-भरा कर किसानों में खुशहाली लायी जाए
  18. पानी की किल्लत को दूर करने के लिए चैक डेम का निर्माण हो, लिफ्ट कैनाल से बंजर जमीने सरसब्ज हो उठेंगी
  19. चंबल औषधीय खेती की खान रहा है। फिर से चिन्हित कर उन औषधियों का संरक्षण कर औषधीय रिसर्च सेन्टर खोला जाए

इनके अलावा चंबल क्षेत्र के अलग-अलग जिलों की मांगें भी मेनिफेस्‍टो में शामिल की गई हैं। इनमें उत्‍तर प्रदेश, राजस्‍थान और मध्‍यप्रदेश के जिले आते हैं।

पूरा मेनिफेस्‍टो नीचे देखा जा सकता है।

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