चुनाव चर्चा जयपुर: राहुल गांधी को एक मौका देने में क्‍या हर्ज़ है, खानदानी है!


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चंद्र प्रकाश झा

पुलवामा में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के एक बड़े काफिले के आग्नेयास्त्र-रोधी कवच से वंचित एकमात्र वाहन पर फिदायीन आतंकी हमले में 40 से अधिक सुरक्षाकर्मियों के मारे जाने की खबर फैलते ही हिन्दुस्तान के अनेक नगरों की तरह राजस्थान की राजधानी जयपुर में भी लोग झुण्ड में विभिन्न मुहल्लों में सड़कों पर फेरी लगाकर पाकिस्तान-विरोधी नारेबाजी करने लगे। यह नारेबाजी पुलवामा आतंकी हमले के 12 दिन बाद पाक-अधिकृत कश्मीर में  मुजफ्फराबाद, बालाकोट और चकोटी में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के बताये गए कई ठिकानों पर भारतीय वायुसेना के 12 मिराज विमानों की बमबारी से ध्वस्त करने के दावे के दिन तक चलती रही। युद्धोन्माद चरम पर पहुंच गया था। इस बीच आम चुनाव कार्यक्रम की औपचारिक घोषणा हो गई। योगेंद्र यादव जैसे पूर्व चुनाव विश्लेषक एवं समाजवादी चिंतक ने हिंदी अखबारों में लेख लिखे कि पहले यह तो तय करें कि युद्ध लड़ना है या चुनाव।  उन्होंने शायद यह नहीं सोचा होगा कि युद्धोन्माद के पार्श्व में चुनाव नहीं कराना होता तो निर्वाचन आयोग चुनाव कराने की घोषणा ही नहीं करता।

संशय के माहौल में चुनाव की घोषणा के ऐन पहले मीडियाविजिल के इस मंगलवारी स्तम्भ के एक अंक में मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा के हवाले से यह छपा कि चुनाव समय पर होंगे। वह खबर इस स्तम्भकार का उपचार कर रहे डाक्टर ने भी पढ़ी। चुनाव की घोषणा हो जाने पर उन डाक्टर ने पूछा, ‘हमारे लोग बेसब्र हो गए थे। चुनाव होने में तो अभी देर है।  लोग यह सब भूल जाएंगे। क्या आपको नहीं लगता है कि भारत की यह सैन्य कार्रवाई थोड़ी जल्दी हो गई।’ स्तम्भकार के कुछ कहने के पहले उन्होंने खुद ही कह दिया, ‘यह तो हमलोग भी जानते है कि अमेरिका की रजामंदी के बगैर अब युद्ध नहीं होगा लेकिन हमारी सरकार को चुनाव के ऐन पहले कुछ तो करना ही होगा। और कुछ नहीं कर सकते तो जैश-ए-मोहम्मद के सरगना या फिर दाऊद इब्राहिम को ही पकड़ कर ले आये।’

वहां बैठे मरीजों में से अधिकतर ने डाक्टर की बात में हामी भरते हुए कहा- हां, ऐसा ही कुछ करना होगा नहीं तो चुनाव में क्या मुंह दिखाएंगे। मरीजों में शामिल एक शिक्षक ने कहा, ‘अजी, टीवी की खबरें मत मानो। वो सब फर्जी है। एक अंग्रेजी अखबार में तो छपा है हवाई बमबारी में सिर्फ एक कौवा मरा है, आतंकी पहले ही वहां से निकल गए थे। एक मदरसा था वो ज्यूँ का त्यूँ रह गया।

जयपुर लोकसभा क्षेत्र का परिचय

राजस्थान राज्य के कुल 25 में से दो लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र इसकी राजधानी जयपुर के हैं, जो दो भागों- जयपुर और जयपुर ग्रामीण में बंटा हुआ है। दोनों निर्वाचन क्षेत्रों में इस बार 6 मई को वोटिंग है। जयपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में कुल आठ विधानसभा क्षेत्र हैं। ये सभी विधानसभा क्षेत्र- हवामहल, विद्याधर नगर, सिविल लाइन्स, किशनपोल, आदर्श नगर, मालवीय नगर, सांगानेर और बगरू नगरीय आबादी के हैं। राजस्थान क्षेत्रफल के हिसाब से देश का अब सबसे बड़ा राज्य है। 1 नवंबर 2000 को मध्यप्रदेश के 14 जिलों को पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के रूप में गठित करने  तक क्षेत्रफल के आधार पर मध्यप्रदेश ही सबसे बड़ा राज्य था। राजस्थान के पश्चिम में पाकिस्तान, दक्षिण-पश्चिम में गुजरात, दक्षिण-पूर्व में मध्यप्रदेश, उत्तर में पंजाब, उत्तर-पूर्व में उत्तरप्रदेश और हरियाणा हैं। राज्य का क्षेत्रफल 3,42,239 वर्ग किलोमीटर है। इसकी राजधानी जयपुर का करीब 300 बरसों का इतिहास है। जयपुर की स्थापना आमेर के शासक जय सिंह द्वितीय ने 1727 में की थी। माना जाता है कि नगर का निर्माण वास्तु शास्त्र और शिल्‍प शास्त्र के सिद्धांतों के आधार पर नियोजित है। इसे इसके भवनों पर हावी गुलाबी रंग के कारण गुलाबी नगरी भी कहते है। यह रंग यहां भारत के तत्कालीन ब्रिटिश सम्राट एडवर्ड सप्तम के 1876 में आगमन के मौके पर दिया गया बताया जाता है। यहां बाकायदा पिंकसिटी प्रेस क्लब है। नई दिल्ली से 268 किलोमीटर दूर इस नगर की आबादी तीस लाख से अधिक है। 2011 की जनगणना के अनुसार जयपुर नगर की साक्षरता 84 फीसद थी। नगर की आबादी में हिन्दू 77 फीसद और मुस्लिम 18.6 फीसद माने जाते हैं। जयपुर नगर निगम 91 वार्डों में बंटा है।

यह लोकसभा सीट 1980 के आम चुनाव से भारतीय जनता पार्टी का गढ़ रहा है। भाजपा की स्थापना 1980 में ही जनता पार्टी के विभाजन से हुई थी। इस विभाजन में जनता पार्टी में शामिल भाजपा का पूर्ववर्ती दल भारतीय जनसंघ अलग हो गया था। 1977 के आम चुनाव में इस सीट से जनता पार्टी में शामिल जनसंघ के सतीशचन्द्र अग्रवाल जीते थे जो 1980 में भाजपा प्रत्याशी के रूप में जीते। 1952 के पहले आम चुनाव में और उसके बाद दो बार – 1984 और 2009 में यहां से कांग्रेस जीती। 1957 में यहां से निर्दलीय जीते थे। लेकिन 1989 से हर बार यहां भाजपा ही जीती। उनमें छह बार जीते गिरधारीलाल भार्गव प्रमुख हैं। भाजपा ने इस बार यहां 2014 में जीते रामचरण बोहरा को ही चुनाव मैदान में उतारा है।  कांग्रेस ने पूर्व मेयर ज्योति खण्डेलवाल को प्रत्याशी बनाया है। वह इस सीट पर 48 बरस बाद पहली महिला प्रत्याशी हैं। जयपुर के पूर्ववर्ती राजघराने की गायत्री देवी 1962 से 1971 तक तीन बार स्वतंत्र पार्टी की सांसद रही थीं। अबतक के 16 चुनावों में कांग्रेस सिर्फ तीन बार जीती है।

जयपुर जिला परिषद के प्रमुख रह चुके भाजपा के रामचरण बोहरा ने पिछली बार मतदान करने वाले 12 लाख 89 हजार 535 मतदाताओं में से 66.95 प्रतिशत के वोट हासिल किए थे। कांग्रेस प्रत्याशी महेश जोशी का वोट शेयर करीब 25 फीसद था। बोहरा ने 5 लाख 39 हजार 355 मतों के अंतर से जीत हासिल की थी,  जो देश में चौथी सबसे बड़ी जीत थी।

निर्वाचन आयोग ने इस बार जयपुर लोकसभा सीट पर मतदान कराने के लिए महिला अफसरों को पर्यवेक्षक नियुक्त किया है। जयपुर सीट पर पुलिस पर्यवेक्षक भी महिला अफसर को ही बनाया गया है। मुख्य निर्वाचन अधिकारी आनंद कुमार के अनुसार कुम. बी.आर.दवे  को जयपुर निर्वाचन क्षेत्र का पर्यवेक्षक तथा शालिनी सिंह को पुलिस पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया है। कुल 2088058 मतदाताओं में 1099214 पुरुष,  987797 महिलाएं, 21 थर्ड जेंडर  और 1026 सर्विस वोटर शामिल हैं।

जयपुर ग्रामीण लोकसभा सीट निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के बाद 2008 में अस्तित्व में आई और उसका पहला चुनाव 2009 में हुआ। इस सीट से मौजूदा सदस्य, सूचना एवं प्रसारण मंत्री और एथेंस ओलंपिक 2004 में पुरूषों की डबल ट्रैप निशानेबाजी में रजत पदक जीतने वाले राज्यवर्धन सिंह राठौड़ हैं। उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है। अर्जुन पुरस्कार विजेता राज्यवर्धन देश के सर्वोच्च खेल सम्मान राजीव गांधी खेल रत्न से भी सम्मानित किए जा चुके हैं। राठौड़ 1900 के पेरिस ओलंपिक के बाद भारत के लिये व्यक्तिगत स्पर्धा में रजत जीतने वाले पहले खिलाड़ी थे। उन्होंने शूटिंग में 28 साल की उम्र में अपना करियर शुरू किया था। उन्होंने 2014 के पिछले चुनाव में बतौर भाजपा प्रत्याशी कांग्रेस के दिग्गज नेता डॉ. सीपी जोशी को 33,28,96 वोटों से हराया था। कांग्रेस ने इस सीट पर अपने प्रत्याशी की घोषणा अभी नहीं की है। चर्चा है कि कांग्रेस जयपुर ग्रामीण से बॉक्सर विजेंद्र को उम्मीदवार बनाने पर विचार कर रही है।

पिछले चुनाव में जयपुर ग्रामीण लोकसभा सीट पर कुल वोटरों की संख्या 16 लाख 99 हजार 462 थी, जिसमें से मात्र 10 लाख 13 हजार 691 लोगों ने अपने मत का प्रयोग किया था। इनमें वोट देने वाले पुरुषों की संख्या 5 लाख 54 हजार 84 और महिलाओं की संख्या 4 लाख 59 हजार 607 थी। जयपुर ग्रामीण की कुल जनसंख्या 27,06,261 है, जिसमें से 82 फीसद लोग गांवों में निवास करते हैं और 17 प्रतिशत लोग शहरों में निवास करते हैं। जब से ये सीट अस्तित्व में आई है तब से इस पर एक बार कांग्रेस का और एक बार भाजपा का कब्जा रहा है। जयपुर ग्रामीण को विकास की दरकार है। 2014 में भाजपा ने यहां विकास के ही आधार पर वोट मांगा था। दिसम्बर 2018 के विधानसभा चुनाव में मिली सफलता के बाद से कांग्रेस आत्मविश्वास से भरी हुई है।

राहुल गांधी को एक मौका

नगर के छात्रों-युवाओं  में आम राय है कि मोदी सरकार ने रोजगार उपलब्ध कराने के जो वादे किए थे उन्हें पूरा नहीं किया। विश्वविद्यालय मार्ग के एक चाय ढाबे पर बैठे छात्रों में से एक मुखर छात्र ने कहा- ‘’आप तो पत्रकार हो। हर बरस दो करोड़ रोजगार देने का वादा किया था। बताओ कितने को रोजगार दिया। हमें तो कोई नहीं मिला जिसे किसी सरकारी दफ्तर में नौकरी मिली हो। हम भी पहले मोदीजी की रैली में मोदी मोदी चिल्लाने जाते थे।  अब बिन पैसे लिए कोई नहीं जाता। आप मानो या न मानो। ऐसे में इस बार जनता मोदी जी की पार्टी को तो वोट नहीं देगी।‘’

प्रेस क्लब में एक युवा पत्रकार ने बताया कि तीन माह पहले ही राजस्थान के विधानसभा चुनाव में एक नारा चला था, ‘मोदी तुझसे बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं’ । उन्होंने कहा कि पुराने शहर की गलियों में जाकर पूछिए, वहां के व्यापारी नाम न छापने की शर्त पर कहेंगे कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से लोगो की नाराजगी के कारण हुई। केंद्र की मोदी सरकार से राजस्थान के व्यापारी नाराज नहीं हैं। नोटबंदी और जीएसटी से कुछ तकलीफ हुई पर वे कुल मिलाकर खुश हैं। राजधानी में आज भी मोदी के जयकारे लगते है। हां, गांवो की बात अलग है। किसानों को तसल्ली नहीं है। वे आये दिन सड़कों पर मोर्चा निकालते रहते हैं लेकिन भाजपा का वोट तो शहरों में है। गांव के भी बड़े घरों के कारण कुछ वोट मिल ही जाते हैं, लेकिन अभी राज्य में कांग्रेस की सरकार बन गई है, इसका कुछ फायदा तो उसे मिलेगा ही। ‘’आप खुद गांव का एक चक्कर लगा लो। सब समझ जाओगे।‘’

पुराने शहर में मिठाई की एक दुकान पर एक परिवार मिला। उनकी महिलाओं ने चुनाव के बारे में बात करने से स्पष्ट इनकार कर दिया। उनके साथ मौजूद एक अधेड़ पुरुष ने अलबत्ता यह जरूर कहा- ‘’सबको मौक़ा मिलना चाहिए। मोदी जी को मौक़ा दिया तो एक मौक़ा राहुल गांधी को देने में क्या हर्ज है। देखने में अच्छा है। बोलता भी अच्छा है। बड़ी अच्छी अच्छी स्कीम निकाल कर ला रहा है। खानदानी है।‘’