प्रणब मुखर्जी की ‘डाँट’ से राजदीप तो सँभल गए, बाक़ी ऐंकर-ऐंकरानियाँ कब सुधरेंगे ?

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प्रणब मुखर्जी की डाँट राजदीप सरदेसाई क्या, किसी भी मीडियाकर्मी के लिए जरूरी है
विनीत कुमार

 

सोशल मीडिया पर इस बात को लेकर हाय-तौबा मची हुई है कि देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राजदीप देसाई जैसे टीवी के तेजतर्रार एंकर को डांट पिलायी.

राजदीप ने प्रणब मुखर्जी से सवाल किया कि आपके अनुभव से गठबंधन की सरकार बेहतर है या एक पार्टी की बहुमत की सरकार ? वो इस बात का अभी ठीक से जवाब दे पाते कि राजदीप ने बीच में टोक दिया. अब इससे प्रणब मुखर्जी का मूड थोड़ा बिगड़ गया जो कि स्वाभाविक ही था. उन्होंने सख्ती से कहा- आपने मुझसे सवाल किया, मुझे पहले बोलने दें. आप ये मत भूलिए कि आप देश के पूर्व राष्ट्रपति से बात कर रहे हो और उसे टेलिविजन स्क्रीन पर आने का शौक नहीं है. आपने मुझे बुलाया है तो सम्मान के साथ पहले सुनो.

आप बातचीत की ये वीडियो क्लिप देखते हैं तो आपको कहीं से ऐसा नहीं लगेगा कि प्रणब मुखर्जी की इस बात को राजदीप ने गलत तरीके से लिया. एक शालीन पत्रकार को जैसे अपनी गलती का एहसास होना चाहिए और चेहरे पर जो भाव आने चाहिए, वो एकदम स्वाभाविक है. वो बार-बार इसके लिए खेद प्रकट करते नजर आ रहे हैं. और उनके इस भाव को प्रणब मुखर्जी भी महसूस कर पाते हैं जिसका प्रमाण ये है कि वो वापस उस सवाल पर आकर गंभीरता से जवाब देने लग जाते हैं.

बीच से काउंटर जम्प करते हुए जो लोग इस बातचीत को बीच से काटकर, उस पर अपने ढंग से सुपर लगाकर पेश कर रहे हैं, मजे ले रहे हैं, ये उनका सोशल मीडिया से मिली ताकत से हासिल अधिकार है, उन्हें ऐसा करने दीजिए. लेकिन मीडिया, अभिव्यक्ति, भाषा के एक छात्र होने के नाते आप इत्मिनान होकर सोचिए कि इसमे गलत क्या है ? टीवी स्क्रीन पर एक बुजुर्ग पत्रकार को सख्ती से ही सही, ये समझा रहे हैं कि आपको सामनेवाले का ख्याल करना चाहिए और वो उसी गंभीरता से उसे महसूस कर पा रहा है तो ये तो फूटे हुए ढोल की तरह होते जा रहे टेलिविजन की एख उपलब्धि है. इससे टीवी दर्शकों को खुश होना चाहिए कि एहसास कराने का एक तरीका ये भी हो सकता है.

दूसरी तरफ राजदीप से बाकी टीवी एंकरों को सीखना चाहिए कि जब गलती हो जाए तो कैसे पेश आएं कि इंटरव्यू देनेवाला व्यक्ति पहले की तरह सहज हो जाएं ? राजदीप ने इस बात को तूल दिए बिना यदि माफी मांग ली तो ये टेलिविजन के खाते में आया सम्मान है. नहीं तो आलम ये है कि न्यूज एंकर इंटरव्यू करने से पहले ही दिमागी रूप से तैयार होते हैं कि इतना पैम्पर करो कि बंदा अपने आप भड़क जाए और स्टूडियो छोड़कर निकल जाए और उसके बाद अगली बुलेटिन में उसके लिए दर्जनों मेटाफर का इस्तेमाल करते हुए खदेड़ दो.

इंटरव्यू के आखिर में आप देखते हैं कि वो बेहद सहज और खुश होकर हाथ मिलाते हैं. इतना ही नहीं, थोड़ा सख्त हो जाने को लेकर सॉरी भी कहते हैं.

छोड़ दीजिए राजदीप से अपनी सहमति-असहमति का मसला.. लेकिन एक संजीदा एंकर के तौर पर उन्होंने वही किया जो हम-आप आए दिन इंटरव्यू की तैयारी जैसे शीर्षक के अनतर्गत मीडिया पाठ्यक्रम में पढ़ते आए हैं और लिखकर पास हो जाने के बावजूद व्यवहार के स्तर पर वो सब कर नहीं पाते. राजदीप के चेहरे से गलती का एहसास होने का भाव नहीं झलकता तो प्रणब मुखर्जी इतने सहज और प्रसन्न होकर जा पाते ? एक बेहतर एंकर का धर्म आखिर क्या है ? संवाद की जमीन को हर हाल में बचाए रखना, मजबूत करना और गलती होने पर झुककर माफी मांग लेना. जरूरी तो नहीं कि हर बात जला दो, मिटा दो के अंदाज पर ही जाकर खत्म हो.

नोट–नीचे वीडियो में 9:55 मिनट पर आप प्रणब मुखर्जी को नसीहत देते देख सकते हैं और राजदीप को खेद प्रकट करते-

 



 

 

(लेखक मीडिया शिक्षक और मशहूर टीवी विश्लेषक हैं।)