अख़बारनामा: चुनाव से पहले सरकार से बँटी लोकपाल की गोली ‘एक्सक्लूसिव’ बनी!


आजकल खबरें एक ही स्रोत से प्लांट की जाती हैं। इसे मैं समझ सकता हूं तो प्लांटेशन के भागीदार नहीं जानते या समझते होंगे – ऐसा आपको लगे तो मैं कुछ नहीं कर सकता


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लोकपाल की ‘नियुक्ति’ का बाजा बजाते आज के अखबार

संजय कुमार सिंह

समझा जाता है कि चुनाव से पहले सरकार ने देश के पहले लोकपाल और आठ अन्य सदस्यों के नामों की मंजूरी दे दी है। यह घोषणा अभी नहीं हुई है पर सूत्रों के हवाले से आज के अखबारों में इस आशय की खबरें प्रमुखता से हैं। खबरों के मुताबिक, लोकसभा में लोकपाल बिल पास होने के लगभग 50 साल और देश में भ्रष्टाचार विरोधी लोकप्रिय आंदोलन के पांच साल भारत के पहले लोकपाल की नियुक्ति करीब लग रही है। पत्रकारिता की भाषा में कहूं तो हिन्दुस्तान टाइम्स में इस खबर पर राजीव जयसवाल की और इंडियन एक्सप्रस में अनंत कृष्णन जी की बाइलाइन है। दिल्ली के तीन प्रमुख अंग्रेजी दैनिक में यह खबर पहले पन्ने पर प्रमुखता से है।

इंडियन एक्सप्रेस में दो कॉलम की इस खबर का शीर्षक तीन लाइन में है, “सुप्रीमकोर्ट के पूर्व जज न्यायमूर्ति पीसी घोष का भारत का पहला लोकपाल बनना तय”। खबर के तीसरे पैरे में और पहले पन्ने पर ही अखबार ने यह सूचना दी है कि मल्लिकार्जुन खड़गे ने विशेष आमंत्रित के रूप में इस बैठक में हिस्सा नहीं लिया। अखबार ने पहले पन्ने पर यह भी बताया है कि अंतरराष्ट्रीय संबंध, बाहरी और आंतरिक सुरक्षा आदि जैसे कुछ क्षेत्रों से संबंधित आरोप लोकपाल के अधिकारक्षेत्र में नहीं हैं। इस लिहाज से मुझे लगता है कि राफेल मामला भी लोकपाल के क्षेत्राधिकार में नहीं आएगा। अगर ऐसा है तो इसपर भी चर्चा होनी चाहिए, देखता हूं।

इस मामले पर कल से ट्वीटर पर भी चर्चा चल रही है। खबर की दशा यह है कि दैनिक भास्कर ने लिखा है, किरण बेदी ने पहले ही जता दी खुशी। भास्कर के अनुसार किरण बेदी ने ट्वीट करते हुए लिखा है, लोकपाल की घोषणा के बारे में जानकर बहुत खुशी हुई। यह देश की सभी भ्रष्टाचार विरोधी प्रणालियों को मजबूत करेगा। और सभी स्तर पर सतर्कता के काम को बढ़ावा देगा। … ” मैंने यह ट्वीट देखा नहीं है और यह भी पता नहीं चल रहा है कि ट्वीट हिन्दी में था या अंग्रेजी से अनुवाद किया गया है पर किरण बेदी को शक का लाभ दिया जा सकता है कि उन्होंने इस बात पर खुशी जताई हो कि अब घोषणा हो जाएगी। मेरा मु्द्दा चुनाव से पहले की जा रही यह ‘घोषणा’ ही है।

हिन्दुस्तान टाइम्स ने एक अनाम अधिकारी के हवाले से लिखा है, (अंग्रेजी से अनुवाद मेरा) दूसरे अधिकारी ने कहा कि चुनाव समिति का यह निर्णय महाधिवक्ता केके वेणुगोपाल को दिए गए सुप्रीम कोर्ट के सात मार्च के निर्देश के क्रम में है। उनसे 10 दिन के अंदर लोकपाल की नियुक्ति पर प्रधानमंत्री के नेतृत्व वाली चुनाव समिति की बैठक की तारीख बताने के लिए कहा गया था। मुझे नहीं पता कि लोकपाल की नियुक्ति के मामले में आज क्या होगा और घोषणा कब होगी। ना मेरा वह मुद्दा है। मैं इस विवाद में नहीं जा रहा हूं। अभी यही मानकर चला जाए कि सामान्य तौर पर अगर आज घोषणा होनी चाहिए तो हो जाएगी।

इस लिहाज से खबर पहले देने की जल्दबाजी में बिलावजह की प्रतिद्वंद्विता को जारी रखते हुए यह खबर लिखी गई है। पर जब यह मामला ट्वीटर पर है और हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर में यह सब शामिल है तो एक्सक्लूसिव की तरह छापना भले ही अखबारी मामला है, गलत है। खबर गलत नहीं है। उसकी प्रस्तुति गलत है। सरकार का पक्ष रख रही है जबकि विवाद नियुक्ति में है और उसे खबर में भले ही शामिल कर लिया गया है पर शुरू में ये सूचनाएं नहीं हैं। जो अनैतिक है। टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर पहले पन्ने पर टॉप में न्यायमूर्ति पीसी घोष का भारत का पहला लोकपाल घोषित होना तय। उपशीर्षक है, पता चला है कि सरकार ने नियुक्ति की सहमति दे दी है। यहां यह खबर टाइम्स न्यूजनेटवर्क की है और बाईलाइन नहीं है।

इस लिहाज से दैनिक भास्कर की प्रस्तुति सही है। यहां शीर्षक के नीचे और खबर शुरू होने से पहले बोल्ड अक्षर में इंट्रो है – मल्लिकार्जुन खड़गे भी समिति में हैं लेकिन वह मीटिंग में शामिल नहीं हुए। पढ़ते हुए आपको लग सकता है कि हिन्दुस्तान टाइम्स के रिपोर्टर को यह सब नहीं पता होगा इसलिए उसकी गलती नहीं है। पर मामला इतना सीधा नहीं है। रिपोर्टर को नहीं पता होना और नहीं लिखना और नहीं छपना या सही संपादन न होना – सब अलग-अलग मामले हैं। वैसे भी, अगर रिपोर्टर को ही नहीं पता हो तो आपको क्या बताएगा? मेरा यह सब लिखने का मकसद आपको यही बताना है कि आजकल के अखबार सरकारी खबरें छापते हैं और आपको सरकार के पक्ष में करने में लगे हुए हैं।

हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर का शीर्षक है, न्यायमूर्ति घोष का देश का पहला लोकपाल बनना तय। पहले वाक्य में, “लाइकली टू बी” जोड़ा हुआ है और इसका साफ मतलब है, संभावना है कि न्यायमूर्ति घोष देश के पहले लोकपाल होंगे। खबर आगे कहती है, इस मामले की सीधी जानकारी रखने वाले दो अधिकारियों ने कहा। घोषणा के बाद भले शीर्षक सही हो जाए और तकनीकी रूप से अभी भी सही हो पर खबर और शीर्षक में भेद है जबकि ऐसा शीर्षक लग सकता था जिसमें यह विवाद नहीं होता और खबर असल में जो है वही पाठकों को मिलती या शीर्षक से स्पष्ट होता तो वही पाठक इस खबर को पढता जिसकी इसमें दिलचस्पी है। मुद्दा यह नहीं है कि सरकार जाते-जाते और मतदान का दिन करीब आते देख लोकपाल की नियुक्ति भी कर दे रही है।

मेरा मुद्दा यह है कि शीर्षक से यह बात नहीं मालूम होती है कि इस चुनाव के लिए बनी समिति में विपक्ष के नेता नहीं हैं और चूंकि संसद में कोई विधिवत विपक्ष नहीं है इसलिए कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में बुलाया गया था। खड़गे ने बिना अधिकार के इस समिति की बैठक में जाने से मना कर दिया। हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर के अनुसार खड़गे ने बैठक में शामिल होने के सरकार के निमंत्रण को बार-बार अस्वीकार कर दिया। उनका कहना है कि एक अहम मामले में विपक्ष की आवाज उठाने का मौका ही नहीं दिया जाए इसे वे स्वीकार नहीं कर सकते। लोकपाल की चुनाव समिति में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन, वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी शामिल हैं।

द टेलीग्राफ में भी यह खबर पहले पन्ने पर है और सिंगल कॉलम में। शीर्षक है, लोकपाल की सूची तैयार, खिचड़ी पक रही है। विशेष संवाददाता की खबर का पहला वाक्य है, लोकपाल और अन्य सदस्यों की घोषणा सोमवार को होगी। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने इतवार को कहा। यहां इतवार का अपना महत्व है और इसे क्यों नहीं रेखांकित किया जाना चाहिए? अपनी इस खबर में अखबार ने लिखा है, ऐक्टिविस्ट अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने एक ट्वीट में पिछले विवाद का जिक्र किया और एक पूर्व जज को लोकपाल बनाए जाने के संभावित निर्णय पर सवाल उठाया। अब आप इसे किरण बेदी के ट्वीट से जोड़कर देखिए। कई बातें साफ होती नजर आएंगी जो लिखा नहीं है। इसके साथ टेलीग्राफ ने यह भी लिखा है कि घोषणा पर विवाद की संभावना है।

राजस्थान पत्रिका ने इसे फोल्ड के नीचे दो कॉलम में रखा है जबकि नवोदय टाइम्स में भी नीचे है पर चार कॉलम में है। हिन्दुस्तान और नवभारत टाइम्स में दो कॉलम में है। पिछले दिनों के अनुभव से लगा था कि जागरण में यह खबर लीड होगी और ऐसा ही है। शीर्षक है, जस्टिस पीसी घोष हो सकते हैं देश के पहले लोकपाल। चयन समिति ने लोकपाल अध्यक्ष और सदस्यों के नाम किए फाइनल और इस खबर पर माला दीक्षित की बाईलाइन है। अमर उजाला मे भी यह खबर लीड है। बाईलाइन यहां नहीं है पर शीर्षक है, जस्टिस पिनाकी घोष होंगे देश के पहले लोकपाल। अगर आप हिन्दी के अखबार जेब के पैसे देकर खरीदते हैं तो देखिए कि उसमें क्या सूचना है। खबर की लंबाई पर मत जाइए – पत्रकारिता की भाषा में इसे पैडिंग कहा जाता है भले यह अंग्रेजी का शब्द है पर आज के समय में इसकी हिन्दी बताने की जरूरत नहीं है। किसी खबर को फैलाकर बड़ी मोटी सुर्खी बनाने का यह पुराना तरीका है। पैडिंग संभव न हो तो फोटो लगा दी जाती है।

हिन्दी के जो अखबार मैं देखता हूं उनमें सबमें यह खबर लगभग मिलते-जुलते शीर्षक से पहले पन्ने पर है। इसके बावजूद हिन्दुस्तान टाइम्स और इंडियन एक्सप्रेस में बाईलाइन क्यों है – यह खोजी खबर का विषय हो सकता है और मुमकिन है इसकी जांच से कोई दूसरी अच्छी खबर मिले। पर यह अभी भी नामुमकिन है। हालांकि, इस “एक्सक्लूसिव” खबर के सभी अखबारों में होने से साबित होता है कि आजकल खबरें एक ही स्रोत से प्लांट की जाती हैं। इसे मैं समझ सकता हूं तो प्लांटेशन के भागीदार नहीं जानते या समझते होंगे – ऐसा आपको लगे तो मैं कुछ नहीं कर सकता। ऐसी खबर अंग्रेजी अखबारों में कैसे लिखी गई है यह बताने के बाद हिन्दी अखबार में उन्हीं खबरों को पढ़ना भी अब नामुमिकन से मुमकिन हो गया है पर मुश्किल जरूर है। इसलिए नहीं पढ़ रहा। शीर्षक या डिसप्ले में भी कुछ खास उल्लेखनीय नहीं लगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। जनसत्ता में रहते हुए लंबे समय तक सबकी ख़बर लेते रहे और सबको ख़बर देते रहे। )