अख़बारनामा: रफ़ाल घोटाले की ख़बर का खंडन करने में जुटी खंडित पत्रकारिता !


‘द हिन्दू’ और एन राम को पत्रकारीय नैतिकता के पाठ पढ़ाने वाले लोग सामने आए हैं और इनमें राजनेता भी हैं।


मीडिया विजिल मीडिया विजिल
अभी-अभी Published On :


संजय कुमार सिंह

रफाल सौदे में गड़बड़ी की खबर द हिन्दू में छपते ही मीडिया का बड़ा हिस्सा सरकार के पक्ष में कूद पड़ा है। अमूमन भ्रष्टाचार और गड़बड़ी की खबरें किसी एक अखबार में छपती है तो दूसरे अखबार उसे अगले दिन छापते रहे हैं और बताते हैं कि खबर क्या है। बोफर्स मामले में ऐसा खूब होता था पर अब समय बदल गया है। ‘द हिन्दू’ और एन राम को पत्रकारीय नैतिकता के पाठ पढ़ाने वाले लोग सामने आए हैं और इनमें राजनेता भी हैं।

इसी क्रम में द हिन्दू ने कल खबर छापी थी कि रफाल सौदे में से भ्रष्टाचार रोकने वाली शर्तें हटा दी गई हैं। इससे पहले प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा समानांतर वार्ता चलाने और भारतीय खरीद टीम द्वारा इसका विरोध किए जाने की खबर छपी थी। तब यह सवाल उठाया गया कि उस समय के रक्षा मंत्री मनोहर परिकर ने इसपर जो नोट लिखा था (उन्होंने इसे ओवर रीऐक्शन कहा था) उसे क्यों नहीं छापा गया। हालांकि उसे छापने की कोई जरूरत नहीं थी और इसपर हिन्दू की ओर से सफाई भी आ चुकी है। हिन्दू का कहना है कि वह इस सौदे में रक्षा मंत्री की भूमिका पर रिपोर्ट नहीं कर रहा था। इसलिए वह अंश प्रासंगिक नहीं था।

कल उसने दूसरी खबर की। और प्रधानममंत्री कार्यालय द्वारा समानांतर वार्ता चलाने की खबरों के बाद बड़ी बात है कि सौदे से भ्रष्टाचार रोकने वाली धाराएं हटा दी गईं। आज के अखबारों में इसके पक्ष में तर्क दिए गए हैं और उनमें से कुछ का उल्लेख मैंने आगे किया है पर क्या यह सवाल नहीं है कि ये धाराएं किसके लिए हटाई गईं खासकर तब जब यह आरोप लग रहा है कि सौदे से सरकारी कंपनी एचएएल को हटाकर निजी कंपनी को शामिल किया गया और उसे 30,000 करोड़ रुपए का लाभ पहुंचाने की कोशिश की गई।

रक्षा सौदे में भ्रष्टाचार दलाली खाना-खिलाना ही होता है। सरकारी ठेके में कमीशन बहुत आम बात है और सरकार इन्हीं सब चीजों को मुद्दा बनाकर सत्ता में आई थी। अब जब यह आरोप लग रहा है कि रफाल सौदा पाक-साफ नहीं है तो गोदी मीडिया सौदे की खबरें तो नहीं ही छाप रहा है, सरकार का बचाव करने की बेशर्मी कर रहा है और सरकारी दलीलें जस के तस परोस दी जा रही हैं जबकि आरोप ती चर्चा नहीं के बराबर होती है। आइए देखें आज के अखबारों में क्या कैसे छपा है।

नवोदय टाइम्स ने राफेल सौदे में नया खुलासा फ्लैग शीर्षक से छापा है कि डील से पहले भ्रष्टाचार रोधी प्रावधान हटाए गए। और इस तरह हिन्दू की खबर अपने पाठकों को बताई है। नवभारत टाइम्स ने पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम की खबर से अपने पाठकों को बताया है, दावा, राफेल डील से प्रावधान हटाया गया। अखबार ने शीर्षक और पहला वाक्य तो दावे को दिया है पर एक कॉलम की इस खबर का दूसरा वाक्य है, हालांकि, सौदा करने वाली टीम के प्रमुख एयर मार्शल एसबीपी सिन्हा ने कहा, अमेरिका और रूस के साथ हुई डील (दो सरकारों के बीच) में यह प्रावधान नहीं था। इसलिए फ्रांस वाले में भी नहीं है। दूसरी ओर, आज सरकार संसद में राफेल डील पर सीएजी की रिपोर्ट पेश करेगी।

दैनिक जागरण ने राफेल पर संसद में आज पेश होगी कैग की रिपोर्ट को मुख्य खबर बनाते हुए इसके साथ हिन्दू की खबर छापी है और उसके साथ संप्रग सरकार ने बदले नियम? शीर्षक से एक छोटी खबर है, एक अन्य रिपोर्ट में सरकारी सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि संप्रग सरकार ने ही नियम बनाया था कि मित्र देशों के साथ अंतर सरकारी समझौते के एसओपी मामले में कुछ शर्तों से छूट दी जा सकती है। मोदी सरकार ने संप्रग सरकार द्वारा बनाए गए नियमों का ही पालन किया है।

अमर उजाला में खबर है, आरोपों के बीच आज रखी जाएगी राफेल सौदे पर कैग रिपोर्ट। इसमें कहा गया है, राफेल सौदे में कथित घोटाले के विपक्ष के आरोपों के बीच मोदी सरकार मंगलवार को कैग रिपोर्ट रखेगी। छोटी सी इस खबर के साथ एक लाइन की सूचना है, मीडिया रिपोर्ट के आरोप सही नहीं, पेज 15। हालांकि पेज 15 पर यह खबर दिखी नहीं। मैं भी ठीक से ढूंढ़ नहीं पाया। पर यह तो समझ में आ ही गया कि ज्यादातर अखबारों ने मूल खबर तो नहीं छापी है पर छोटा ही सही, खंडन छापा है।

सबसे बढ़िया और विस्तार से हिन्दुस्तान टाइम्स ने खंडन छापा है। पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर और फिर उसका विस्तार अंदर के पन्ने पर। आइए देखें यह खबर क्या है। शीर्षक है, नो इंटीग्रिटी क्लॉज इन पास्ट डिफेंस डील्स टू। यानी पहले के रक्षा सौदों में भी इंटीग्रिटी की (संक्षेप में भ्रष्टाचार विरोधी) धारा नहीं रही है। सुधि रंजन सेन ने नाम न छापने की शर्त पर वरिष्ठ रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों के हवाले से अपनी इस खबर में यह जानकारी दी है। इस खबर में मनमोहन सिंह सरकार द्वारा किए गए सौदे का जिक्र है और बताया गया है कि उसमें भी ये धाराएं नहीं थीं। पर धाराएं नहीं होने और हटा दिए जाने में फर्क है। वह भी तब जब किसी को फायदा पहुंचाने की बात चल रही है जो भ्रष्टाचार है और भारत में दलाली खाने का उदाहरण। हालांकि यह मामला क्रोनी कैपिटलिज्म का ज्यादा लगता है।

इस बीच इंडियन एक्सप्रेस ने आज अपने पहले पन्ने पर एक खबर छापी है। इसके मुताबिक रफाल सौदे की घोषणा से दो हफ्ते पहले अनिल अंबानी फ्रेंच रक्षा अधिकारियों से मिले थे। सुशांत सिंह की इस खबर के मुताबिक अंबानी की यह मुलाकात गोपनीय थी और इसकी योजना बहुत कम समय में बनी थी। खबर के मुताबिक, …. उन्होंने यह भी कहा बताते हैं कि एक मेमोरेंडम ऑफ अंडरस्टैंडिंग (एमओयू) तैयार हो रहा है और प्रधानमंत्री के दौरे के समय उसपर दस्तखत का इरादा है। खबर में आगे कहा गया है, जब अंबानी फ्रेंच रक्षा मंत्री के कार्यालय गए थे तो यह पता था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 9-11 अप्रैल 2015 के बीच फ्रांस के आधिकारिक दौरे पर होंगे। बाद में अंबानी इस प्रतिनिधिमंडल के सदस्य थे। और इसी दौरान 36 रफाल विमान के लिए करार की घोषणा की गई थी। अखबार ने याद दिलाया है कि प्रसंगवश रिलायंस डिफेंस का निगमन भी 28 मार्च 2015 को हुआ था और यह वही हफ्ता था जब यह मुलाकात हुई थी।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। जनसत्ता में रहते हुए लंबे समय तक सबकी ख़बर लेते रहे और सबको ख़बर देते रहे। )