नियम राजा के शिखर पर डोंगरिया का वसंत-नाद, जब तक यहां वेदांता है तब तक चलेगी जंग!

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ऋचा पांडे । नियमगिरि से लौटकर 

ओडिशा के कालाहांडी और रायगढ़ा जिलों को घेरती नियमगिरि की पहाडि़यों पर बसने वाले दुर्लभ डोंगरिया कोंढ और झरनिया कोंढ आदिवासियों ने वसंत का स्वागत एक बार फिर बहुराष्‍ट्रीय कंपनी वेदांता की लूट के खिलाफ संकल्‍प लेकर किया है। पिछले 15 साल से यहां नियमित रूप से हो रहे नियम राजा के पूजा-अर्चन पर्व ने आज से पांच साल पहले 2013 में राजनीतिक संदर्भ ले लिया था जब यहां के 70 गांवों के करीब दस हज़ार आदिवासियों ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हुई पल्‍ली सभा (ग्राम सभा) की 12 जन सुनवाइयों में वेदांता कंपनी को  एक सिरे से मात दे दी थी और पहाडि़यों से बॉक्‍साइट निकालने की उसकी योजना पर पानी फेर दिया था।

नियमगिरि के शिखर पर मनाया जाने वाला यह पर्व इस बार नियमगिरि सुरक्षा समिति के सदस्‍य दसरू कडरका के दो साल बाद रिहा होकर वापस आने के चलते विशिष्‍ट हो गया। उन्‍हें माओवादी होने के आरोप में पकड़ा गया था। देश भर से आए समर्थकों के बीच दसरू कडरका ने कहा- ”सरकार हमारी प्राकृतिक संसाधनों की लड़ाई को माओवाद का झूठा नाम देकर हमारा उत्पीड़न कर रही है। वह हमें बिना किसी सबूत के झूठे आरोपों में गिरफ्तार कर हमारे हौसले को तोड़ने की कोशिश कर रही है लेकिन हमारी लड़ाई हमारे प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा की लड़ाई है। हमारे प्राकृतिक संसाधन हमारा अस्तित्व है। इस जल-जंगल-जमीन तथा हमारे नियाम राजा के बिना डोंगरिया कोंढ जनजाति का कोई अस्तित्व नहीं है। इसलिए अपने इस अस्तित्व को बचाने के लिए हम तब तक लड़ेंगे जब तक वेदांता हमारे इलाके में मौजूद है।”

बीते पांच साल के दौरान वेदांता कंपनी के खिलाफ स्‍थानीय आदिवासियों की 2013 में हुई कानूनी जीत को पलटने के काफी प्रयास हुए हैं। ओडिशा की सरकार ने जहां एक बार फिर कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया, वहीं कंपनी की परियोजना को साकार करने के उद्देश्‍य से बीते साल केंद्रीय गृह मंत्रालय ने नियमगिरि के सहज-सुंदर आदिवासियों को माओवादी पार्टी से जोड़ने का षडयंत्र रचा। मंत्रालय ने अपनी सालाना रिपोर्ट में 2017 में नियगिरि सुरक्षा समिति को माओवादियों का जनसंगठन घोषित करते हुए कहा कि यह संगठन स्‍थानीय लोगों के विस्‍थापन के मुद्दे का बहाना बनाकर माओवादियों के एजेंडे को आगे बढ़ा रहा है।  

गृह मंत्रालय की इस रिपोर्ट के बाद नियमगिरि में एक बार फिर सरकार का दमन चक्र शुरू हुआ। पुलिस गोलीबारी में एक आदिवासी को गोली लगी और दो को गिरफ्तार कर लिया गया। आज स्थिति यह है कि इलाके में सीआरपीएफ का एक स्‍थायी कैम्‍प लगाया जा चुका है।

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नियमगिरी के आदिवासी कारोबारी अनिल अग्रवाल की लंदन स्थित कंपनी वेदांता से अपने प्राकृतिक संसाधनों को बचाए रखने के लिए निरंतर संघर्ष कर रहे हैं। हरे-भरे जंगलों से भरपूर नियमगिरी पर्वतों के भीतर बॉक्‍साइट मौजूद है। यह बॉक्साइट ही इस पर्वत की हरियाली तथा यहां से फूटने वाले झरनों के मीठे पानी का स्रोत है। इसी खनिज संसाधन पर वेदांता पिछले 14 साल से अपनी नजर गड़ाए हुए है। कालाहांडी के लांजीगढ़ में कई साल से वेदांता की रिफाइनरी बनकर तैयार खड़ी है लेकिन स्‍थानीय बॉक्‍साइट का खनन न हो पाने के चलते यहां दूसरी जगहों के बॉक्‍साइट का परिशोधन होता है। आज से करीब आठ साल पहले ही कंपनी ने रिफाइनरी से नियमगिरि तक कनवेयर बेल्‍ट बिछा दिया था लेकिन डोंगरियों के र्धर्य और साहस भरे संघर्ष के चलते बेल्‍ट का लोहा आज ज़ंग खा चुका है।

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बीते 23 से 25 फरवरी के बीच चले नियम राजा के पर्व के दौरान नियमगिरि आंदोलन के अगुवा नेता लादो सिकाका ने कहा- ”यह लड़ाई सिर्फ हमारी नहीं है बल्कि समस्त मानव जगत की रक्षा की लड़ाई है और हम इसे आखिरी सांस तक लड़ते रहेंगे।” पर्व के दौरान उपस्थित पॉस्को प्रतिरोध संग्राम समिति के प्रशांत पैकरा ने बताया कि पिछले एक दशक में भारत में दो सफल आंदोलन पॉस्को विरोधी आंदोलन तथा वेदांता विरोधी नियमगिरी का आंदोलन रहा है। ”सरकार अब भी किसी न किसी बहाने से हमारे प्राकृतिक संसाधन हम से हड़प कर कॉर्पोरेट को सौंपने की कोशिश कर रही है। शुरुआत से ही दोनों आंदोलनों ने मिलकर इस संघर्ष को साझा चलाया है और हम हमेशा इसे साझा संघर्ष ही रखेंगे।”

पर्व के दौरान दसरू कडरका और ओडिया के कवि हेमंत दलपति का नागरिक अभिनंदन आदिवासियों ने किया। अंतिम दिन बाहर से आंदोलन के समर्थन में जुटे सभी नागरिकों का डोंगरिया कोंध आदिवासियों की तरफ से धन्यवाद देते हुए नियमगिरी सुरक्षा समिति के सत्यनारायण महार ने कहा कि हर साल हमारे पर्व में बाहर से जुटा यह समर्थन ही लड़ाई को और ज्यादा ताकत देता है।