“श्‍वेता कोठारी, तुमने जो बोया था वही काटा है। तुम कुछ भी हो सकती हो, पर पत्रकार नहीं!”

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शुक्रवार को रिपब्लिक टीवी की वरिष्‍ठ संवाददाता श्‍वेता कोठारी ने अपनी जासूसी और प्रताड़ना से आजिज़ आकर इस्‍तीफ़ा दे दिया और अपने साथ हुई ज्‍यादती के बारे में एक नोट ट्विटर खाते से जारी किया। इसकी ख़बर मीडियाविजिल ने विस्‍तार से छापी। ख़बर के आखिरी पैरा में बताया गया है कि श्‍वेता कोठारी वही श्‍वेता शर्मा हैं जो परमाणु ऊर्जा विरोधी कार्यकर्ता, कुडनकुलम आंदोलन के नेता और वैज्ञानिक एसपी उदयकुमार के यहां छात्रा का वेश धर के स्टिंग और जासूसी करने गई थीं, जिनकी प्रताड़ना से आजिज़ आकर उदयकुमार ने चैनल के खिलाफ़ लिखित शिकायत प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया में दी थी।

एसपी उदयकुमार ने श्‍वेता कोठारी के इस्‍तीफ़े के संबंध में एक लंबा नोट अपने फेसबुक खाते पर जारी करते हुए लिखा है ”जैसी करनी वैसी भरनी।” वे अपने नोट की शुरुआत कुछ यूं करते हैं, ”उम्‍मीद है तुमने मुझे याद रखा होगा, श्‍वेता।” फिर वे याद दिलाते हुए कहते हैं कि श्‍वेता 8 अप्रैल, 2017 को उनके घर गई थीं, उनके मुफ्त किताबें ली थीं, उनके परिवार ने श्‍वेता का स्‍वागत-सत्‍कार किया था लेकिन ”तुमने मेरे और मेरे परिवार की पीठ में इतनी क्रूरता और बेरहमी से छुरा घोंपा।”

श्‍वेता कोठारी ने उदयकुमार से झूठ बोला था कि उनका नाम श्‍वेता शर्मा है और वे यूके की कार्डिफ युनिवर्सिटी की शोध छात्रा हैं। इसी बहाने उन्‍होंने उदयकुमार से अपने शोध प्रबंध में मदद मांगी। उदयकुमार नोट में लिखते हैं कि अगले दिन 9 सितंबर को श्‍वेता ने उनसे अपने होटल के कमरे में रुकने का आग्रह किया और बताया उसके एक प्रोफेसर कुडनकुलम आंदोलन को सहयोग देने को तत्‍पर हैं। इन दोनों ही मौकों पर श्‍वेता बातचीत की गोपनीय तरीके से रिकॉर्डिंग कर रही थीं।

उदयकुमार लिखते हैं, ”आपको दुख इस बात का है कि अर्णब गोस्‍वामी ने आप पर जासूस होने का संदेह किया। आपने पक्‍का यह कहावत सुनी होगी जो जैसा करता है वो वैसा ही भरता है।” वे लिखते हैं, ”जब आपके अपराधी बॉस ने आपको जासूस कहा तो आपके मुताबिक यह हास्‍यास्‍पद और ‘विच हंट’ था लेकिन जब आपने भारत के हजारों हजार मेहनतकश और सच्‍चे नागरिकों को कैथॉलिक चर्च का पिट्ठू बताया, जो विदेशी पैसे के लोभी हैं और ऐसी ही तमाम बकवास बातें जिनका कोई साक्ष्‍य नहीं था, तो आपको लगा कि यह सर्वोत्‍कृष्‍ट किस्‍म की पत्रकारिता है। क्‍यों?”

”आप अपने रिपोर्टिंग मैनेजर से क्षुब्‍ध हैं कि उसने आपके सोशल नेटवर्किंग प्रोफाइलों को देखने में वक्‍त लगाया और बाद में प्रस्‍ताव किया कि आप एक जासूस हो सकती हैं और यह बात अर्णब को बतायी। कितनी दिलचस्‍प बात है! आप मेरे घर में घुस आती हैं, एक ऐसे मेजबान परिवार के साथ घंटों बिताती हैं जिसे आप पर कोई संदेह नहीं है (मेरे बूढ़े मां-बाप, पत्‍नी और पुत्र), बिलकुल किसी जासूस की तरह बातचीत को रिकॉर्ड करती हैं और हमारे प्रेम व विश्‍वास के साथ धोखा करती हैं।”

उदयकुमार पूछते हैं कि अगर श्‍वेता को अपने चरित्र पर लांछन लगाए जाने से दर्द हुआ था, तो क्‍या वही काम वे उन सब के साथ कुछ माह पहले नहीं कर रही थीं और बिना खुद से पूछे कि यह सही है या नहीं, पूरे देश के सामने टीवी पर चिल्‍ला रही थीं।

एसपी उदयकुमार ने श्‍वेता कोठारी के एक-एक वाक्‍य का पंचनामा करते हुए पत्रकार के बतौर उनके कुकृत्‍यों का परदाफाश किया है। अंत में वे कहते हैं, ”आप अपने महान घोषणापत्र का अंत एक सहज प्रश्‍न से करती हैं कि ‘मेरे पत्रकार होने का क्‍या अर्थ’? आप कुछ भी हो सकती हैं, एक जासूस, गुप्‍तचर, घुसपैठिया, जैसा कि आपके बॉस आरोप लगा रहे हैं। लेकिन बेशक आप एक अच्‍छी पत्रकार नहीं हो सकती हैं! और इतना तो आप जानती ही हैं कि जो जैसा बोता है, वैसा ही काटता है।”


तस्‍वीर: साभार दि न्‍यू इंडियन एक्‍सप्रेस

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