जस्टिस काटजू के सीजेआई गोगोई से चार विस्फोटक सवाल! मीडिया ने तवज्जो न दी तो कहा- कायर!


मैं लोगों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई से निम्नलिखित सवाल पूछता हूं जिसका उन्हें सार्वजनिक रूप से उत्तर देना चाहिए।


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आम तौर पर सनसनी के पीछे भागने वाला भारतीय मीडिया सत्ता, प्रतिष्ठानों से कितना डरता है, इसका नया सबूत जस्टिस काटजू के साथ हुए उसके एक व्यवहार से फिर सामने आया है। सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज जस्टिस मार्कंडेय काटजू अपनी बेबाक बयानी के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने हाल ही मे मुख्य न्यायाधीश जस्टिर रंजन गोगोई से चार सवाल पूछते हुए एक लेख लिखा और टीवी तथा प्रिंट के तमाम बड़े संपादको और पत्रकारों को भेजा, लेकिन किसी ने भी इसे नही छापा।

जस्टिस काटजू प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। पत्रकारों के इस रवैये से ख़फ़ा जस्टिस काटजू ने ‘कायर भारतीय मीडिया’ शीर्षक से एक फेसबुक पोस्ट लिखी। उन्होंने बताया कि ज्यादातर ने उनके ई मेल का संज्ञान ही नहीं लिया। कुछ ने ही जवाब दिया ये बताने के लिए वे लेख नहीं छाप सकते। आख़िरकार जस्टिस काटजू ने इस लेख को एक अमेरिकी पोर्टल इंडिकान्यूज़.कॉम को भेजा जहाँ ये छपा। इस पोर्टल को कैलीफोर्नियाँ में रहने वाली एनआरआई रितु झा जलाती हैं।

जस्टिस काटजू लिखते हैं कि कोई आश्चर्य नहीं कि आडवाणी ने इमरजेंसी के दौर के भारतीय मीडिया बारे में कहा था कि ‘जब उन्हें झुकने के लिए कहा गया तो वह रेंगने लगा।‘

बहरहाल, इंडिका न्यूज़ में जो चार सवाल मुख्य न्यायधीश को लेकर किए गए हैं, वे काफी गंभीर हैं। ये  सवाल ही हैं जिनका जवाब जस्टिस काटजू ने जस्टिस गोगोई से माँगा है। सत्ता के गलियारों में यूँ तैरने वाले इन सवालों का जवाब न्यायपालिका पर अखंड विश्वास बनाए रखने के लिए जरूरी है।

आप इंडिकान्यूज़.कॉम में छपा जस्टिस काटजू का अंग्रेज़ी में छपा लेख यहाँ पढ़ सकते हैं

नीचे जस्टिस काटजू के लेख का अनुवाद-

“मुख्य न्यायाधीश को सीजर की पत्नी की तरह हर तरह के संदेह से परे होना चाहिए। लेकिन भारत के सुप्रीम कोर्ट में कुछ हालिया घटनाएँ, जिसमें राम-जन्मभूमि के मामले की सुनवाई में गैरमामूली देरी और सुनवाइयों का लगातार स्थगित होना शामिल है, (एक तारीख को तय करने के लिए दूसरी तारीख आदि) मौजूदा भारत के मुख्य न्यायाधीश के बारे में बहुत सारे सवाल खड़े करती हैं। जिनका सबसे बेहतर तरीके से उनके द्वारा ही जवाब दिया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट का एक पूर्व जज, जिसमें सेवा करने का मुझे सम्मान प्राप्त हो चुका है, होने के नाते इस पवित्र संस्थान में जो हो रहा है उसको लेकर मैं बेहद चिंतित हूं। और मैं लोगों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई से निम्नलिखित सवाल पूछता हूं जिसका उन्हें सार्वजनिक रूप से उत्तर देना चाहिए। आखिरकार एक लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि है। राज्य की सभी अथ़ॉरिटी और संस्थाएँ (यहां तक इसमें मुख्य न्यायाधीश भी शामिल हैं) जनता के नौकर हैं और उसी के प्रति जवाबदेह हैं।

1. जस्टिस गोगोई की बेटी की दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस वाल्मीकि मेहता के बेटे से शादी हुई है। वाल्मीकि मेहता के खिलाफ गंभीर आरोप थे जिनको सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस टी.एस.ठाकुर ने अपनी जांच सही पाया था। जस्टिस ठाकुर की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की कोलेजियम ने मार्च 2016 में जस्टिस वाल्मीकि का दूसरे हाईकोर्ट में तबादला किए जाने की संस्तुति की थी।

आमतौर पर इस तरह की संस्तुतियों पर भारत सरकार एक-दो सप्ताह के भीतर मुहर लगा देती है। लेकिन आश्चर्यजनक तौर पर भारत सरकार ने तकरीबन एक साल तक संस्तुति वाली फाइल को कोल्ड स्टोरेज में रखा। तब के सीजेआई ठाकुर ने संस्तुति को लागू न किए जाने पर बार-बार खुली अदालत में नाराजगी जाहिर की थी। उन्होंने यहाँ तक धमकी दी थी कि गंभीर आरोप होने के चलते वो दिल्ली हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस को जस्टिस वाल्मीकि से न्यायिक काम छीनने का निर्देश दे देंगे।

लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला। जस्टिस ठाकुर जब जनवरी 2017 में रिटायर हो गए और जस्टिस केहर सुप्रीम कोर्ट के सीजेआई बने, तब भारत सरकार द्वारा फाइल (राष्ट्रपति को हस्ताक्षर के लिए भेजने के बजाय) सुप्रीम कोर्ट को वापस लौटा दी गयी। सीजेआई केहर की अध्यक्षता वाली नयी कोलेजियम ने पहले की संस्तुति को रद्द कर दिया। जिसके नतीजे के तौर पर वाल्मीकि मेहता दिल्ली हाईकोर्ट के आज भी जज बने हुए हैं। इस रहस्य के पीछे क्या सचाई है?

मेरे पास जानकारी है, लेकिन इसकी सत्यता या कुछ और बातों का जवाब केवल जस्टिस गोगोई दे सकते है, कि अपने समधी के तबादले की संस्तुति की जानकारी पाने पर गोगोई पीएम मोदी के पास गए (या फिर एक वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री के पास) और उससे जस्टिस वाल्मीकि मेहता का तबादला नहीं होने देने की भीख मांगी। क्योंकि वरिष्ठता के हिसाब से गोगोई अगला मुख्य न्यायाधीश बनने की कतार में थे, लिहाजा सरकार ने उनके निवेदन को स्वीकार कर लिया और बजाय हस्ताक्षर के लिए राष्ट्रपति के पास भेजने के फाइल को कोल्ड स्टोरेज में रख दिया।

अगर ये प्रकरण सही है तो निश्चित तौर पर गोगोई ने बीजेपी सरकार से एक सहयोग लिया जिसे उन्हें बदले में लौटाना था। और सुप्रीम कोर्ट की बहुत सारी घटनाओं में इसकी व्याख्या देखी जा सकती है।

2- वाल्मीकि मेहता का बेटा (गोगोई का दामाद) एक वकील है। ऐसा माना जाता है कि शादी के बाद उसकी प्रैक्टिस और आय में एकाएक उछाल आ गया। इसलिए गोगोई को इस बात को बताना चाहिए कि शादी से पहले और बाद में उनके दामाद की क्या आय थी।

3- दिल्ली हाईकोर्ट के तीन जज, जस्टिस प्रदीप नंदराजोग (मौजूदा समय में राजस्थान हाईकोर्ट के सीजेआई), जस्टिस गीता मित्तल (जम्मू-कश्मीर कोर्ट के मौजूदा सीजे) और जस्टिस रविंदर भट्ट सभी दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस संजीव खन्ना से वरिष्ठ थे लेकिन इन सबको पीछे छोड़कर खन्ना को प्रोन्नति दे दी गयी। क्यों? सभी 3 जजों (जो उस समय हाईकोर्ट के न्यायाधीश थे।) की ईमानदारी और क्षमता का निष्कलंक रिकार्ड है और वास्तव में जस्टिस नंदराजोग की प्रोन्नति की संस्तुति 12.12.2018 को बैठी सुप्रीम कोर्ट की कोलेजियम ने दी थी। उस संस्तुति पर कोलेजियम के सभी पांचों सदस्यों का हस्ताक्षर था। लेकिन उसके बाद सीजेआई गोगोई ने आराम से उसे अपनी पाकेट में डाल लिया। और उसे भारत सरकार के पास नहीं भेजा जैसा कि आमतौर पर किया जाता है। क्यों?

मैंने जस्टिस लोकुर से बात की जो उस समय कोलेजियम के सदस्य (और गोगोई के बाद वरिष्ठताक्रम में दूसरे) थे। उन्होंने मुझे बताया कि संस्तुति और उस पर हस्ताक्षर के बाद उन्होंने लगातार गोगोई के आवास पर ये पूछने के लिए फोन किया कि क्या संस्तुति को सरकार के पास भेजा गया। लेकिन हर बार कोई सेक्रेटरी फोन उठाता और कहता कि सीजेआई की तबीयत ठीक नहीं है और गोगोई ने फिर लौटकर कभी फोन नहीं किया। बाद में गोगोई ने कहा कि संस्तुति सरकार के पास इसलिए नहीं भेजी गयी क्योंकि संबंधित जजों से संपर्क नहीं किया जा सका था। हालांकि इस तरह की राय-बात के लिए एक-दो दिन का समय लगता है। (जैसा कि मैं निजी अनुभव से जानता हूं)

इन तीन जजों का पीछे किया जाना इंदिरा गाँधी सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के तीन वरिष्ठ जजों को पीछे छोड़े जाने की याद दिला देता है। इसने इन तीन जजों को हतोत्साहित करने के अलावा पूरी न्यायपालिका में एक गलत संदेश दिया है। सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ जज ने संकेत दिया है कि ये बीजेपी सरकार के निर्देश पर हुआ। इस बात में कोई शक नहीं कि कोलेजियम में दूसरे जज भी थे जिन्होंने जस्टिस खन्ना की संस्तुति की थी, लेकिन उन्होंने गोगोई के सामने समर्पण कर दिया था जिन्होंने जस्टिस खन्ना के नाम को जबरन मढ़ दिया। उसका कोई कारगर प्रतिरोध भी नहीं हुआ। (जैसा कि हमें सुप्रीम कोर्ट के ढेर सारे जजों ने बताया जिनसे मैंने संपर्क कर निजी तौर पर बातचीत की थी।) 

जस्टिस खन्ना से वरिष्ठ इन तीन जजों के खिलाफ अगर कुछ था तो उसे जनता को जानने का हक है। अगर जस्टिस नंदराजोग के खिलाफ 12.12.2018 को कुछ नहीं था जब उस समय की कोलेजियम ने उनके नाम के प्रोन्नति की संस्तुति की थी। तो ऐसा क्या तीन हफ्तों के बीच एकाएक घटित हो गया? ये सब कुछ एक रहस्य है।

इससे भी आगे, प्रोन्नत किए गए जस्टिस माहेश्वरी को उस कोलेजियम ने विशेष तौर पर खारिज कर दिया था जिसकी 12.12.2018 को बैठक हुई थी। (जैसा कि उस कोलेजियम के सदस्य जस्टिस लोकुर ने मुझको बताया था)। क्या वो तीन हफ्ते के भीतर एकाएक सक्षम हो गए ?

4- एक या फिर दूसरे बहाने के जरिये बार-बार राम जन्मभूमि के केस को क्यों स्थगित किया गया? और एक तारीख की फिक्सिंग के लिए क्यों तारीख फिक्स की गयी? एक बार फिर रहस्य। ये क्या किसी तरह का लेन-देन था? केवल गोगोई ही उत्तर दे सकते हैं।”