हिंदू राव के डॉक्टर ने उठाया था सुरक्षा किट का सवाल, बरख़ास्त हुए

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दिल्ली के हिंदू राव अस्पताल में ऑर्थोपेडिक विभाग में डीएनबी (नेशनल बोर्ड ऑफ डिप्लोमेट) छात्र व प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ पीयूष पुष्कर सिंह को अस्पताल प्रशासन ने तत्काल प्रभाव से उनकी सेवाओं से निकाल दिया गया। 15 अप्रैल जारी किये गये इस आदेश में डॉ पीयूष पर आरोप लगाया गया था कि वे संस्थान को बदनाम कर रहे थे।

डॉक्टरों के लिए बालकनी में खड़ी होकर ताली बजाने वाली अवाम को यह जानना चाहिए कि डॉ पीयूष का अपराध इतना भर था कि वे कोरोना महामारी से लड़ने के लिए निजी सुरक्षा उपकरण (पीपीई) किटों के प्रबंध से लेकर वितरण में लगे हुए थे।

यह किसी से छिपा नहीं है कि कोरोना महामारी से सबसे अग्रिम पंक्ति में हमारे डॉक्टर लड़ रहे हैं और ज़रूरी उपकरणों के बिना ही यह लड़ाई उन्हें लड़नी पड़ रही है। डॉ पीयूष लगातार अस्पताल में पीपीई किट, फेस शील्ड आदि की कमी को लेकर आवाज़ उठा रहे थे। वे केवल आवाज़ ही नहीं उठा रहे थे, बल्कि व्यक्तिगत स्तर पर अपने प्रयासों द्वारा डॉ पीयूष ने 102 फेस शील्ड का प्रबंध भी किया था और डॉक्टरों के बीच उसका वितरण किया था। डॉक्टरों की सुरक्षा से जुड़े उनके यही प्रयास बर्दाश्त नहीं किये गये।

बताया जाता है कि डॉ पीयूष ने 14 मार्च को सोशल मीडिया पर इमरजेंसी वार्ड का वीडियो भी डाला था और अस्पताल की कमियों की ओर इशारा किया था और मदद की गुहार लगायी थी, जिसके लिए उन्हें 16 मार्च को अनुशासनहीनता का नोटिस भी थमा दिया गया था।

सवाल उठता है कि क्या भारत में कोरोना जैसी महामारी के बीच सुरक्षा उपकरणों का इंतज़ाम करना गुनाह है? फेस शील्ड और पीपीई किट का वितरण अस्पताल की बदनामी कैसे हो सकती है? क्या अब इस सरकार में आलोचनाओं के लिए कोई जगह नहीं बची है और जो ऐसा करता है उसका यही हश्र होना?

अवाम का ताली बजाना और प्रधानमंत्री का भाषणों में डॉक्टरों को योद्धा बोलना अच्छा है पर, बतौर देश हम अगर डॉक्टरों की वाकई इज़्ज़त करना चाहते हैं तो हमें सरकार से मांग करनी चाहिए कि एक युवा जूनियर डॉक्टर का कैरियर ख़त्म होने से बचाया जाये और उन्हें दोबारा बहाल किया जाये। वरना हम केवल हिप्पोक्रेट ही कहलायेंगे। डॉ पीयूष डॉक्टर होने के अलावा अपने नागरिक होने का धर्म भी निभा रहे थे। क्या अब नये भारत में ऐसा करना जुर्म है?

हिंदू राव अस्पताल की इस कार्रवाई के ख़िलाफ़ सोशल मीडिया और अन्य जगहों पर माहौल खूब दबाव बना, जिसके बाद अब डॉ पीयूष पर की गयी कार्रवाई वापस ले ली गयी है।

वैसे, दिलचस्प बात ये है कि डा.पीयूष अपने फेसबुक प्रोफाइल में खुद को बीजेपी में सक्रिय बताते हैं और उन्हें बरखास्त जिस अस्पताल ने किया है वह नगर निगम का अस्पताल है, जहाँ बीजेपी का ही कब्जा है।